सोमवार, 11 अक्टूबर 2010

(१) "एक-बार"

आँसुओं तुम जी भर के निकल जाओ ,
एक बार
मैं नहीं चाहता उनका आवागमन जारी रहे
बार बार|
बहारो तुम भी जी भर के आ जाओ,
एक बार
मैं नहीं चाहता की गुलशन उजड़े
बार बार|
घटाओ तुम भी जी भर के बरस जाओ,
एक बार
"पवन पागल " नहीं चाहता है की
सैलाब आये बार बार,

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