बुधवार, 3 नवंबर 2010

(३३) दिवाली

सभी मनाते हैं दिवाली ,
कोई सोने से,कोई चांदी से,
दिलों को नजदीक लाती है दिवाली,
मज़हब की कोई बंदिश नहीं,सभी मिलतें हैं दिल से।
सूनें आँगन में रोशनी बन कर आती है दिवाली,
गरीब भी अमीर होजाता है,अपनी हैसियत से,
पूरे साल जो रहती दिवाली,
तो न दिल टूटते,न रात-दिन रहते झिल- मिल से,
सुना है की,पैसे वालों की होती है दिवाली,
पर गरीब भी अमीर होजाता है,दिल से,
जी भर के मनाता है दिवाली,
ये खुशियाँ उसे साल भर बचाती हैं,रिम-झिम से।
दिल वालों की होती है दिवाली,
वाह निकलती है गरीब से,वाह-वाह निकलती है अमीर से,
आह को "पवन पागल"दूर भगाती है दिवाली,
नई चाहत,नई ख़ुशी,नई उमंग लाती है दिवाली.

1 टिप्पणी: