रविवार, 28 नवंबर 2010

(७८)बड़ा जादूगर

तेरी मेहरबानियाँ,हमारी नादानियाँ
दोनों एक साथ रहतें हैं
फिर भी दूरियां बहुत हैं
तू नचाये हम न नाचें ,ऊपर से बजाये शहनाइयाँ|
अगर न होती हमारे में कमियां
तो फिर तो तेरे ही साथ हम रहते
पर तू तो बड़ा ही जादूगर है
ऊपर बैठा नचाता रहता,अपनी कटपुतलियाँ |
जो हम न होते,तो तू क्या करता ?
तुझे भी तो समय,व्यतीत करना ही था
वैसे भी एक राजा को, प्रजा की ज़रूरत होती है
वाह रे वाह बहुत महंगी पड़ी,तेरी ये चतुराईयां |
वैसे तो तू हमें अपना ही अंश बताता है
फिर हममें क्यों इतनी भर दीं बिमारियाँ ?
क्या ख़ता थी जो तडफता छोड़ दिया यहाँ ?
अपने पास ही रखता,जिससे न होंती परेशानियाँ |
बैगर हम खलनायकों के,महानायक है अधूरा
अधूरीं हैं जग की,तमाम कहानियां
बिना खलनायकों के,रचते गीता ,रामायण
सच में तुमने जान-भूझ के,हमसे बनाई हैं दूरियां |
अपनों से ही अपने फ़रियाद कर सकतें हैं
जानतें हैं दूरियां बनाये रखने में तू उस्ताद है
हमें सर झुका कर तेरे,तमाम फैसले मंज़ूर हैं
वंश से अंश को जुदा करने में,तेरी रही होंगी कोई मजबूरियां |
पाप का घड़ा फूटने पर,तू ज़मीं पर आता है
जल्दी भर दे हमारे पापों की,अदछलकत गगरी
जिससे निज़ात मिले इस दुनिया से,ओर जल्दी पहुंचें तेरी नगरी
"पवन पागल"को अब रास नहीं आंतीं,ये खोखली जिंदगानियां |



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