में तुम पर फ़िदा न होऊं ,तो फ़िदा होऊं किस पे ?
तुमने फिजां में इतने जो ,रंग बखेर दियें हैं,
में इनको बिखेरूं तो, बिखेरूं किस पे?
अदा इतरा जाये ,तो हो सितम किस पे ?
तुम्हारी अंगड़ाईयों ने,कितनों की कन्नियाँ काट दीं हैं ?
में उनको समेटूं तो, समेटूं किस पे ?
माँझा उलझ जाये , तो दोष किस पे ?
तुमने इतने जो पेच लड़ा दियें हैं,
में खींच कर न काटूं ,तो सितम किस पे ?
तुम पर नाराज़ न होंउ , तो होऊं किस पे ?
हर एक कटी पतंग पर, तुम्हारा नाम है,
आखिर में यकीं करूँ ,तो करूँ किस पे?
में तुम पर इल्ज़ाम न धरूँ, तो धरूं किस पे ?
तुम ने इतने बखेड़े खड़े कर दिये हैं
धुली चादर को बिछाऊ , तो बिछाऊ किस पे ?
में अगर ज़मीं पर न चलूँ,तो चलूँ किस पे?
तुमने हवाओं में इतनी रफ़्तार भर दी है
में इनको थामूं,चढ़ कर किस पे ?
"पवन पागल" रोऊँ , तो रोंउं किस पे ?
इन आँखों की ख़ामोशी,फिर भी नहीं जाती है,
में इन्हें बंद तो करलूं, पर खोलूं तो खोलूं किस पे ?
शनिवार, 23 अक्टूबर 2010
(३१) सूखे घरोंदे
दीवार क्या गिरी मेरे खस्ता मकान की ?
लोगों ने नजदीक ही रास्ते बना लिए|
में सूखी आँखों से ज़िन्दगी भर देखता रहा,
बस्ती वालों ने आलीशान मकान बना लिए|
क्या चर्चा करूँ ,मेरे अपनों के रिश्ते की ?
सच्चाई को नहीं परखा,दिलों में नासूर बनालिए|
में उनका जिंदगी भर, इंतजार करता रहा,
रिश्ते दारों ने रिश्ते , बेमानी बना लिए|
किसे तमन्ना है,जी भर के जीने की,
लोगों ने ज़रा सी बात के तमाशे बना लिए|
में अब भी आती-जाती बहार देख रहा हूँ,
चाहने वालों ने घरों में सूखे घरोंदे बना लिए|
ज़रूरत क्या है ,दूसरों के घरों में झाँकने की ?
पहेले खुद ,अपना घर तो सजा लीजिये ,
में बरसों से यह सब कुछ देखता रहा,
चंद लोगों ने मेरे ही घर में, झरोखे बना लिए|
बुरे वक़्त में ज़रूरत है, नजरिया बदल ने की,
जिन्होंने बदल लिए,वो सभी के होलिये,
"पवन पागल" नम आँखों से,उन्हें देखता रहा,
पर ये क्या उनहोंने,आँखों के नये चश्में बना लिए ?
लोगों ने नजदीक ही रास्ते बना लिए|
में सूखी आँखों से ज़िन्दगी भर देखता रहा,
बस्ती वालों ने आलीशान मकान बना लिए|
क्या चर्चा करूँ ,मेरे अपनों के रिश्ते की ?
सच्चाई को नहीं परखा,दिलों में नासूर बनालिए|
में उनका जिंदगी भर, इंतजार करता रहा,
रिश्ते दारों ने रिश्ते , बेमानी बना लिए|
किसे तमन्ना है,जी भर के जीने की,
लोगों ने ज़रा सी बात के तमाशे बना लिए|
में अब भी आती-जाती बहार देख रहा हूँ,
चाहने वालों ने घरों में सूखे घरोंदे बना लिए|
ज़रूरत क्या है ,दूसरों के घरों में झाँकने की ?
पहेले खुद ,अपना घर तो सजा लीजिये ,
में बरसों से यह सब कुछ देखता रहा,
चंद लोगों ने मेरे ही घर में, झरोखे बना लिए|
बुरे वक़्त में ज़रूरत है, नजरिया बदल ने की,
जिन्होंने बदल लिए,वो सभी के होलिये,
"पवन पागल" नम आँखों से,उन्हें देखता रहा,
पर ये क्या उनहोंने,आँखों के नये चश्में बना लिए ?
(३०) कर्म-कुशलता
कैसे भी हों,कर्म तो सभी करतें हैं,
ओर करना भी चाहिए,
बिना फल की कामना से करें,तो क्या कहना,
ओर 'कर्म में
'कर्म कुशलता ' का समावेश हो जाये तो'
वाह! क्या कहना ?
यक़ीनन आपके सभी कर्म,
शतप्रतिशत सफल होंगे |
ओर करना भी चाहिए,
बिना फल की कामना से करें,तो क्या कहना,
ओर 'कर्म में
'कर्म कुशलता ' का समावेश हो जाये तो'
वाह! क्या कहना ?
यक़ीनन आपके सभी कर्म,
शतप्रतिशत सफल होंगे |
(२९) नाकाम कर्म
हम लोग सपनों में ही,खयाली पुलाव बनाते हैं,
ओर सपनों को ,हकीकत में बदलने के लिए ,
हम लोग खूब बढ़-चढ़ कर बोलतें हैं,
इसीलिए हम असली कर्म करने में नाकाम रहतें हैं|
ओर सपनों को ,हकीकत में बदलने के लिए ,
हम लोग खूब बढ़-चढ़ कर बोलतें हैं,
इसीलिए हम असली कर्म करने में नाकाम रहतें हैं|
(२८) जातिंयाँ
कोई जात-पांत नहीं होती,
होती है तो सिर्फ हमारे मन की सोच|
'ब्राह्मणत्व ' तत्व वाले,
'शुद्रत्व' तत्व वालों की अच्छाई लेंलें ,
ओर
शुद्रतत्व वाले
ब्राह्मणत्व तत्व वालों की अच्छाई लेंलें ,
ओर
दोनों तत्व ऊँचे उठें ,ओर नीचे न गिरें,
तो फिर क्या जाती क्या पांती |
एक ही मां, ओर उसकी एक ही छाती,
फिर चाहे ब्राह्मण हो,
या शुद्र,
"पवन पागल' 'भारतमाता ' की एक ही जाती |
होती है तो सिर्फ हमारे मन की सोच|
'ब्राह्मणत्व ' तत्व वाले,
'शुद्रत्व' तत्व वालों की अच्छाई लेंलें ,
ओर
शुद्रतत्व वाले
ब्राह्मणत्व तत्व वालों की अच्छाई लेंलें ,
ओर
दोनों तत्व ऊँचे उठें ,ओर नीचे न गिरें,
तो फिर क्या जाती क्या पांती |
एक ही मां, ओर उसकी एक ही छाती,
फिर चाहे ब्राह्मण हो,
या शुद्र,
"पवन पागल' 'भारतमाता ' की एक ही जाती |
(२५) शूद्र
शारीरिक शक्ति के साथ ,
जिसमें सेवाभाव हो,
ओर संस्कार की ध्रष्टि से नि कृष्ट हो ,
तथा जिसमें ब्राह्मणत्व का अभाव हो,
वो शूद्र कहलाता है |
जिसमें सेवाभाव हो,
ओर संस्कार की ध्रष्टि से नि कृष्ट हो ,
तथा जिसमें ब्राह्मणत्व का अभाव हो,
वो शूद्र कहलाता है |
(२४)ब्राह्मणत्व
जो सुसंस्कृति वान,
तथा
मन , बुद्धी व ह्रदय से ,
हो एश्व्रवान,
वो कहलाता है,
ब्राह्मणत्व जन |
तथा
मन , बुद्धी व ह्रदय से ,
हो एश्व्रवान,
वो कहलाता है,
ब्राह्मणत्व जन |
(२३) तुझे देख लिया
मेरी आँखों ने चुना है, तुझको दुनिया देख कर,
ओर किसी का चेहरा अब में क्यों देखूं, तेरा चेहरा देख कर|
मेरी आँखों --------------------------------
तमाम तसवीरें फीकी लगतीं हैं, तुझ को देख कर,
दूसरी ओर अब में क्यों रुख करूँ, तुझे रूबरू देख कर|
मेरी आँखों--------------------------------
तमाम ख़ुशी मिल जाती है,तुझको रूप-ध्यान में देख कर,
ओर किसी रूप को अब में क्यों देखूं, तेरा रूप देख कर|
मेरी आँखों----------------------------------
तुझे साथ लेकर में बहुत खुश हूँ, परली दुनिया देख कर,
अगला-पिछला अब में क्यों कर जानूं , तुझे देख कर|
मेरी आँखों --------------------------------
मुझे अब जीना सार्थक लगता है,तुझ को देख कर ,
परमाणु मुझे बेकार लगता है,तेरा 'अणु रूप 'देख कर |
मेरी आँखों-----------------------------------
मुझे अब ज़िन्दगी के मायने पता लग गए हैं,तुझ को देख कर,
एक ही आँख,एक ही निशाना,लगाना है तुझे देख कर|
मेरी आँखों-----------------------------------
बहुत देर से चुना है तुझको,अपनी तमाम उम्र गवां कर,
"पवन पागल"अब तुझसे दूर नहीं हो पाऊँगा ,तुझे देखकर |
मेरी आँखों------------------------------------
('श्री जगत गुरुतम कृपालु जी महाराज की सेवा में')
ओर किसी का चेहरा अब में क्यों देखूं, तेरा चेहरा देख कर|
मेरी आँखों --------------------------------
तमाम तसवीरें फीकी लगतीं हैं, तुझ को देख कर,
दूसरी ओर अब में क्यों रुख करूँ, तुझे रूबरू देख कर|
मेरी आँखों--------------------------------
तमाम ख़ुशी मिल जाती है,तुझको रूप-ध्यान में देख कर,
ओर किसी रूप को अब में क्यों देखूं, तेरा रूप देख कर|
मेरी आँखों----------------------------------
तुझे साथ लेकर में बहुत खुश हूँ, परली दुनिया देख कर,
अगला-पिछला अब में क्यों कर जानूं , तुझे देख कर|
मेरी आँखों --------------------------------
मुझे अब जीना सार्थक लगता है,तुझ को देख कर ,
परमाणु मुझे बेकार लगता है,तेरा 'अणु रूप 'देख कर |
मेरी आँखों-----------------------------------
मुझे अब ज़िन्दगी के मायने पता लग गए हैं,तुझ को देख कर,
एक ही आँख,एक ही निशाना,लगाना है तुझे देख कर|
मेरी आँखों-----------------------------------
बहुत देर से चुना है तुझको,अपनी तमाम उम्र गवां कर,
"पवन पागल"अब तुझसे दूर नहीं हो पाऊँगा ,तुझे देखकर |
मेरी आँखों------------------------------------
('श्री जगत गुरुतम कृपालु जी महाराज की सेवा में')
(२२) उनसे चाहत
जब भी फुर्सत मिले तुझे,
थोड़ी देर नज़र मुझ पर टिका लेना,
में चला आऊँगा|
मुझे मालूम है ,वक़्त की कमी है तेरे पास,
मुझे आँख का इशारा कर देना,
में चला आऊँगा|
किसी को फुर्सत नहीं मिलती,
किसी को इशारा नहीं मिलता,तू सिर्फ ख्याल कर,
में चला आऊँगा|
मुझे उनसे कुछ मोहबत सी हो गई है,इसलिए,
दिल बेचैन है,नब्ज़ मेरी देखनी हो तो बता देना,
में चला आऊँगा|
मेरे मर्ज़ का सिर्फ एक ही इलाज है,
तेरे साथ रहना, तेरे साथ जीना,तू याद तो कर,
में चला आऊँगा|
में रास्ते में पड़ा एक पत्थर हूँ, उसे तू वंहा लगा देना,
जंहा से तेरे कदम रोज़ गुजरते हों,मुझे बता देना,
में चला आऊँगा|
मेरी सभी ख़ताओं को माफ़ कर देना,
मेरे अन्दर जो तेरे लिए चिंगारी सुलगी है, उसे ओर हवा देना,
में चला आऊँगा|
मुझे अब जीने में ओर भी मज़ा आने लगा है,
साथ जो तेरा मिल गया,बता देना कँहा चलना है,
में चला आऊँगा|
यंहा रह कर भी में क्या करूँगा?
मुझे अंनंत तक पहुंचा दे,
में चला आऊँगा|
'पवन पागल' को अब तेरे सीवा कोई जचता नहीं है,
मुझे रास्ता बता देना,ओर तेरा पता देना,
में चला आऊँगा|
("श्री जगत गुरुतम कृपालु जी महाराज की सेवा में" )
थोड़ी देर नज़र मुझ पर टिका लेना,
में चला आऊँगा|
मुझे मालूम है ,वक़्त की कमी है तेरे पास,
मुझे आँख का इशारा कर देना,
में चला आऊँगा|
किसी को फुर्सत नहीं मिलती,
किसी को इशारा नहीं मिलता,तू सिर्फ ख्याल कर,
में चला आऊँगा|
मुझे उनसे कुछ मोहबत सी हो गई है,इसलिए,
दिल बेचैन है,नब्ज़ मेरी देखनी हो तो बता देना,
में चला आऊँगा|
मेरे मर्ज़ का सिर्फ एक ही इलाज है,
तेरे साथ रहना, तेरे साथ जीना,तू याद तो कर,
में चला आऊँगा|
में रास्ते में पड़ा एक पत्थर हूँ, उसे तू वंहा लगा देना,
जंहा से तेरे कदम रोज़ गुजरते हों,मुझे बता देना,
में चला आऊँगा|
मेरी सभी ख़ताओं को माफ़ कर देना,
मेरे अन्दर जो तेरे लिए चिंगारी सुलगी है, उसे ओर हवा देना,
में चला आऊँगा|
मुझे अब जीने में ओर भी मज़ा आने लगा है,
साथ जो तेरा मिल गया,बता देना कँहा चलना है,
में चला आऊँगा|
यंहा रह कर भी में क्या करूँगा?
मुझे अंनंत तक पहुंचा दे,
में चला आऊँगा|
'पवन पागल' को अब तेरे सीवा कोई जचता नहीं है,
मुझे रास्ता बता देना,ओर तेरा पता देना,
में चला आऊँगा|
("श्री जगत गुरुतम कृपालु जी महाराज की सेवा में" )
शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010
(२१) पुनर:मिलन
तू मेरे अधरों की बांसुरी बन जाये,
में तेरे गले का हार,
हम दोनों का जीवन संवर जाये,
बरसों का ख़तम, होजाये इंतजार |
तेरी सवेरे वाली लाली,मेंरी खुशगवार शाम बन जाये,
इसको पाने के लिए,में जीवन दूँ हार|
दोनों अलग रह रहे जिस्म,एक हो जांयें,
जिससे की हमारे भी जीवन में आजाये बहार|
हमारे मासूमों की भीबिगड़ी सुधर जाये ,
वो नन्हे होंगे हमारे बड़े कर्जदार |
जो हम ठीक से, वफ़ा निभाते चलें जांयें ,
तो उनका भी ढंग से,बस जाये संसार|
खता हमारी,सजा उन्हें दी जाये,
बच्चे हमारे,फिर भी उन्हें नहीं करार|
कुछ पाने के लिए, कुछ खो दिया जाये,
वर्ना ये ज़िन्दगी है बेकार
हम क्योंकर अपनों के गुनहगार बन जांयें,
जबकि सभी उनसे करतें हैं प्यार|
अपनी अड़ी को छोड़ दिया जाये,
ओर भूल जांए सभी तकरार|
क्यों न हम अपनी हदों से गुजर जांए"पवन पागल",
अपनी नन्ही सी ज़िन्दगी को बनालें, खुशगवार|
में तेरे गले का हार,
हम दोनों का जीवन संवर जाये,
बरसों का ख़तम, होजाये इंतजार |
तेरी सवेरे वाली लाली,मेंरी खुशगवार शाम बन जाये,
इसको पाने के लिए,में जीवन दूँ हार|
दोनों अलग रह रहे जिस्म,एक हो जांयें,
जिससे की हमारे भी जीवन में आजाये बहार|
हमारे मासूमों की भीबिगड़ी सुधर जाये ,
वो नन्हे होंगे हमारे बड़े कर्जदार |
जो हम ठीक से, वफ़ा निभाते चलें जांयें ,
तो उनका भी ढंग से,बस जाये संसार|
खता हमारी,सजा उन्हें दी जाये,
बच्चे हमारे,फिर भी उन्हें नहीं करार|
कुछ पाने के लिए, कुछ खो दिया जाये,
वर्ना ये ज़िन्दगी है बेकार
हम क्योंकर अपनों के गुनहगार बन जांयें,
जबकि सभी उनसे करतें हैं प्यार|
अपनी अड़ी को छोड़ दिया जाये,
ओर भूल जांए सभी तकरार|
क्यों न हम अपनी हदों से गुजर जांए"पवन पागल",
अपनी नन्ही सी ज़िन्दगी को बनालें, खुशगवार|
(२०) संतोष- धन
क्या तेरा है-क्या मेरा है,ये समझ लिया तो,
सवेरा है,वरना ज़िन्दगी घोर अँधेरा है|
आने-जाने वाली सांसों पर नज़र रखो,
जो आगई तो ठीक,
जान में जान है,वरना,
नज़दीक ही शमशान है|
जो ख़ुशी से मिल रहा है,
उसे खर्च तो करलो,
जी भर कर जी तो लो,वरना
'चिड़िया चुग गई खेत'-यही कहना है|
कुछ मिल गया तो अच्छा है,
कुछ नहीं मिला तो ओर भी अच्छा है,
जीवन 'संतोष-धन,वरना,
गल-सड कर मरना है|
अगला-पिछला सब देख लिया है,
कुछ बाकी है तो
अभी पर,इस वक़्त पर जी लो,
ओरों से अच्छी कट जाएगी|
कड़क उसूलों से ज़िन्दगी सहज कटती नहीं है,
"पवन पागल"इसे थोडा लचर बना लिया जाये तो,
सभी की सरलता से कट जाएगी,
वरना हम भी परेशान-तुम भी परेशान!
सवेरा है,वरना ज़िन्दगी घोर अँधेरा है|
आने-जाने वाली सांसों पर नज़र रखो,
जो आगई तो ठीक,
जान में जान है,वरना,
नज़दीक ही शमशान है|
जो ख़ुशी से मिल रहा है,
उसे खर्च तो करलो,
जी भर कर जी तो लो,वरना
'चिड़िया चुग गई खेत'-यही कहना है|
कुछ मिल गया तो अच्छा है,
कुछ नहीं मिला तो ओर भी अच्छा है,
जीवन 'संतोष-धन,वरना,
गल-सड कर मरना है|
अगला-पिछला सब देख लिया है,
कुछ बाकी है तो
अभी पर,इस वक़्त पर जी लो,
ओरों से अच्छी कट जाएगी|
कड़क उसूलों से ज़िन्दगी सहज कटती नहीं है,
"पवन पागल"इसे थोडा लचर बना लिया जाये तो,
सभी की सरलता से कट जाएगी,
वरना हम भी परेशान-तुम भी परेशान!
(१९) शे:और मात
में इस बार तुम्हारे सफ़र में,
साथ न दे पाऊंगा,कुछ मज़बूरी है,
मेरे घर पर,कुछ पेड़ सूख गये हैं,
उन्हें पानी देना ज़रूरी है|
में जीउँ तो हरियाली में,
ओर मरुँ तो यार की गली में,
मेंरे कुछ नज़दीकी रूठ गये हैं,
उन्हें मनाना ज़रूरी है|
में अकेला उसूलों के बियाबान में,
चल ना पाउँगा,लोगों से कुछ दूरी है,
मेंरे घर पर,कुछ ज़रूरी ख़त आगये हैं,
उन्हें पढ़ना ज़रूरी है|
मुझे शाख से तोड़ने में,
क्या मज़बूरी है?
मेंरे कुछ पाशे उलटे पड़ गएँ हैं,
उन्हें तरतीब देना ज़रूरी है|
उम्र के इस पड़ाव में,
नई बीशात बिघाना समझदारी है,
राजा को पैदल की शैह लग गई है,
"पवन पागल"उसे मात से बचाना ज़रूरी है|
साथ न दे पाऊंगा,कुछ मज़बूरी है,
मेरे घर पर,कुछ पेड़ सूख गये हैं,
उन्हें पानी देना ज़रूरी है|
में जीउँ तो हरियाली में,
ओर मरुँ तो यार की गली में,
मेंरे कुछ नज़दीकी रूठ गये हैं,
उन्हें मनाना ज़रूरी है|
में अकेला उसूलों के बियाबान में,
चल ना पाउँगा,लोगों से कुछ दूरी है,
मेंरे घर पर,कुछ ज़रूरी ख़त आगये हैं,
उन्हें पढ़ना ज़रूरी है|
मुझे शाख से तोड़ने में,
क्या मज़बूरी है?
मेंरे कुछ पाशे उलटे पड़ गएँ हैं,
उन्हें तरतीब देना ज़रूरी है|
उम्र के इस पड़ाव में,
नई बीशात बिघाना समझदारी है,
राजा को पैदल की शैह लग गई है,
"पवन पागल"उसे मात से बचाना ज़रूरी है|
(१८) बदलती सोच
हर कोई ख़ुशी चाहता है,
दुःख से अपने को दूर चाहता है|
पर ये नामुमकिन है-
हर कोई इन्द्रधनुष देखना चाहता है,
बैगेर बरसांत के,सात रंग देखना चाहता है,
हर कोई आपको चोट पहुँचाना चाहता है,
आपको आहत कर,खुद को सुखी देखना चाहता है|
पर ये नामुमकिन है की
आपको चोट नहीं पहुंचे,ओर वो देखता रहे,
ज़रूरी यह है की
ये चोट आपके लिए,कितना मायना रखती है|
हर राजा पहेले ,असहाय बालक था,
ऐसा नहीं की उठाये कदम,ओर राजशाही मिल गई|
क्या यह संभव है की?
बैगेर नकशे के,शानदार ईमारत बन जाये,
आप दूर सफ़र में चलो,ओर पैरों में छाले भी न पड़ जायें|
हर कोई अपनी सोच,नहीं बदलना चाहता है|
बैगेर सोच बदले,चाँद-सितारों को पाना चाहता है|
पर ये नामुमकिन है की,
"पवन पागल"आपको गहरे सागर में,किनारा मिल जाये,
आप दिशाएँ भी ना बदलें,ओर आपको संसार भी मिल जाये|
दुःख से अपने को दूर चाहता है|
पर ये नामुमकिन है-
हर कोई इन्द्रधनुष देखना चाहता है,
बैगेर बरसांत के,सात रंग देखना चाहता है,
हर कोई आपको चोट पहुँचाना चाहता है,
आपको आहत कर,खुद को सुखी देखना चाहता है|
पर ये नामुमकिन है की
आपको चोट नहीं पहुंचे,ओर वो देखता रहे,
ज़रूरी यह है की
ये चोट आपके लिए,कितना मायना रखती है|
हर राजा पहेले ,असहाय बालक था,
ऐसा नहीं की उठाये कदम,ओर राजशाही मिल गई|
क्या यह संभव है की?
बैगेर नकशे के,शानदार ईमारत बन जाये,
आप दूर सफ़र में चलो,ओर पैरों में छाले भी न पड़ जायें|
हर कोई अपनी सोच,नहीं बदलना चाहता है|
बैगेर सोच बदले,चाँद-सितारों को पाना चाहता है|
पर ये नामुमकिन है की,
"पवन पागल"आपको गहरे सागर में,किनारा मिल जाये,
आप दिशाएँ भी ना बदलें,ओर आपको संसार भी मिल जाये|
गुरुवार, 14 अक्टूबर 2010
(१७) नाजुक रिश्ता
तेरी याद ने तड़फा दिया है सनम,
तू मिल जाये, तो मिट जाये ये गम|
अनजान रिश्तों को पहेले काँच में देखा करते थे हम,
बुजुर्गों ने काँच हटा लिया, ओर रिश्ता पक्का कर दिया एकदम|
पहली बार तुझे दूर से देखा था हमदम
कुछ घडी का साथ था वो
जिसमे मिले थे हम|
तेरी याद-------------
कई साल लम्बी जुदाई में गुजर गए,
न तुम को मुझ से मिलने दिया गया,
न मुझ को तुम से मिलने दिया गया,
न तुम ने मुझ में देखा था,न मैंने तुझ में देखा था,
पर लोगों ने इतना ही काफी समझा-
दो लोगों की जिंदगी का फैसला,
तुरंत- फुरंत कर दिया उसी दम|
तेरी याद----------------
इतनी लम्बी जुदाई,ओर ऊपर से,
मिलने -मिलाने पर सख्त पहरा,
"पवन पागल"ये जुदाई अच्छे-अच्छों को मार देती है,
ओर नाज़ुक रिश्तों में ,कडुवाहट घोल देती है|
तू मिल जाये, तो मिट जाये ये गम|
अनजान रिश्तों को पहेले काँच में देखा करते थे हम,
बुजुर्गों ने काँच हटा लिया, ओर रिश्ता पक्का कर दिया एकदम|
पहली बार तुझे दूर से देखा था हमदम
कुछ घडी का साथ था वो
जिसमे मिले थे हम|
तेरी याद-------------
कई साल लम्बी जुदाई में गुजर गए,
न तुम को मुझ से मिलने दिया गया,
न मुझ को तुम से मिलने दिया गया,
न तुम ने मुझ में देखा था,न मैंने तुझ में देखा था,
पर लोगों ने इतना ही काफी समझा-
दो लोगों की जिंदगी का फैसला,
तुरंत- फुरंत कर दिया उसी दम|
तेरी याद----------------
इतनी लम्बी जुदाई,ओर ऊपर से,
मिलने -मिलाने पर सख्त पहरा,
"पवन पागल"ये जुदाई अच्छे-अच्छों को मार देती है,
ओर नाज़ुक रिश्तों में ,कडुवाहट घोल देती है|
(१६) कसक
कभी आबाद हुए, कभी बर्बाद हुए,
किसी के यूँ, मिलने-बिछुड़ने से|
क्यों आती है ये लहेरें सागर में ?
क्यों काली घटायें होती हैं आकाश में?
तूफ़ान क्यों नहीं आता?
बरसांत क्यों नहीं होती ?
अगर यह सब कुछ हो भी जाता है,
तो
हम अब तक क्यों नहीं बह गए?
शायद
मोत को भी हमसे प्यार नहीं |
खेर
जिंदगी को हमसे प्यार है,
इसीलिए तो
कुदरत ने हमें ये 'दो रंगा' चोला
दे रखा है,
जो की
"पवन पागल" की जिंदगी को मोत से,
ओर मोत को जिंदगी से जुदा किए हुए है|
किसी के यूँ, मिलने-बिछुड़ने से|
क्यों आती है ये लहेरें सागर में ?
क्यों काली घटायें होती हैं आकाश में?
तूफ़ान क्यों नहीं आता?
बरसांत क्यों नहीं होती ?
अगर यह सब कुछ हो भी जाता है,
तो
हम अब तक क्यों नहीं बह गए?
शायद
मोत को भी हमसे प्यार नहीं |
खेर
जिंदगी को हमसे प्यार है,
इसीलिए तो
कुदरत ने हमें ये 'दो रंगा' चोला
दे रखा है,
जो की
"पवन पागल" की जिंदगी को मोत से,
ओर मोत को जिंदगी से जुदा किए हुए है|
(15) प्यास
नयनों की प्यास को, इतना कम न समझो
जो भुझ जाएगी जाम से,
आ के तू गले लगजा
जैसे सुबह शाम से|
नयनों ----------------------------
दिन तो गुजर जाता है
दर्द की करराहट में
पर ये रात क्यूँ आती है,
चाँद के साथ में|
नयनों---------------------------
तू आती तो है,पर तू वो नहीं,
जो थी कभी मेरे नयनों की रोशनी-वो अब नहीं।
माना की - रोशनी तो होती है तुझ से ,
पर मेरा घर रोशन नहीं|
नयनों----------------------------
में इतना कमजोर भी नहीं
जो लबों को तर करलूं ,तेरे शबाब से
नयनों की प्यास, नयनों से ही भुजे तो अच्छा,
'पवन पागल' बाकी प्यास भुझा लेगा सुराही से|
नयनों------------------------------
जो भुझ जाएगी जाम से,
आ के तू गले लगजा
जैसे सुबह शाम से|
नयनों ----------------------------
दिन तो गुजर जाता है
दर्द की करराहट में
पर ये रात क्यूँ आती है,
चाँद के साथ में|
नयनों---------------------------
तू आती तो है,पर तू वो नहीं,
जो थी कभी मेरे नयनों की रोशनी-वो अब नहीं।
माना की - रोशनी तो होती है तुझ से ,
पर मेरा घर रोशन नहीं|
नयनों----------------------------
में इतना कमजोर भी नहीं
जो लबों को तर करलूं ,तेरे शबाब से
नयनों की प्यास, नयनों से ही भुजे तो अच्छा,
'पवन पागल' बाकी प्यास भुझा लेगा सुराही से|
नयनों------------------------------
(14) BEST -WISHES
Renu my dear friend Ashok,
is going to marry you,
in two three day's,
and when we will meet today in the party,
the engagement ceremony will be completed.
I wish a happy and a prosperous life to both of you.
Till now you might have familiar with him.
What sweetness is in Mr Ashok ?
I do not mean only external sweetness,
but internal sweetness too.
Mr Ashok is smiling and smiling
even for no reason,
but simply because He is feeling.
what about you ? I don't know
more about you,expect your name.
Any how, whenever you will invite me,
for A cup of tea in the near future,
I will try to catch up about you & your Smile.
As you know Mr Ashok is coming from a very,
high & well to do family.
Two member's are doctor's,
having big nice Car,
others are also doing well,
through I don't know much.
Coming back to Mr ashok
He is most popular Gentleman,
Not only with Men,but also with Ladies too .
Whenever I looked him, to do any thing,
He was saying"Just now Sir
I will do it".
That is showing Good sprit.
Saying 'No' is not in his Dictionary,
He is always saying' Yes'.
and today He is going
to start his new life with you.
Now dear you are with him
Let us Pray for all the success
and a Happy Life.
Remember me ? I am 'Pawan pagal'
'Not really'?just for the fun!'
just for the sake of your
Happy Marriage Life.
many-many Happy returns of the day'
May GOD! bless you,
All the Happiness of the Word'
Spare some time,
and have a cup of tea with Me,
with a lot of Blessings in persons.
is going to marry you,
in two three day's,
and when we will meet today in the party,
the engagement ceremony will be completed.
I wish a happy and a prosperous life to both of you.
Till now you might have familiar with him.
What sweetness is in Mr Ashok ?
I do not mean only external sweetness,
but internal sweetness too.
Mr Ashok is smiling and smiling
even for no reason,
but simply because He is feeling.
what about you ? I don't know
more about you,expect your name.
Any how, whenever you will invite me,
for A cup of tea in the near future,
I will try to catch up about you & your Smile.
As you know Mr Ashok is coming from a very,
high & well to do family.
Two member's are doctor's,
having big nice Car,
others are also doing well,
through I don't know much.
Coming back to Mr ashok
He is most popular Gentleman,
Not only with Men,but also with Ladies too .
Whenever I looked him, to do any thing,
He was saying"Just now Sir
I will do it".
That is showing Good sprit.
Saying 'No' is not in his Dictionary,
He is always saying' Yes'.
and today He is going
to start his new life with you.
Now dear you are with him
Let us Pray for all the success
and a Happy Life.
Remember me ? I am 'Pawan pagal'
'Not really'?just for the fun!'
just for the sake of your
Happy Marriage Life.
many-many Happy returns of the day'
May GOD! bless you,
All the Happiness of the Word'
Spare some time,
and have a cup of tea with Me,
with a lot of Blessings in persons.
बुधवार, 13 अक्टूबर 2010
(१३) बे-बफा
उनकी महफिल में आ बैठे हैं,
जो परायों की महफिल में हैं,
ऐसे नज़रें चुरातें हैं ,
जैसे हम कोई गैर हैं|
उनकी---------------
कभी नज़रें चुरातें हैं,
कभी नज़रें मिलातें हैं,
बीते दिनों की याद कर,
हमें वो गुजरा वक़त याद दिलातें हैं|
उनकी-------------------
तन साहिल पे है,
मन मझधार में है,
बहार जो पहेले कभी थी,
आज वो यार में कँहा है ?
उनकी--------------------
गल्ती से आगये हैं,
हमें माफ़ करना सितमगर,
हमें मालूम न था की,
तुम होंगी यँहा सरे बाज़ार|
उनकी--------------------
जा रहा हूँ, दूर तुझ से,
पर तेरी,एक कसक तो है,
तू मिलें ,या ना मिलें,
'पवन पागल' तेरी जुस्तजू तो है|
जो परायों की महफिल में हैं,
ऐसे नज़रें चुरातें हैं ,
जैसे हम कोई गैर हैं|
उनकी---------------
कभी नज़रें चुरातें हैं,
कभी नज़रें मिलातें हैं,
बीते दिनों की याद कर,
हमें वो गुजरा वक़त याद दिलातें हैं|
उनकी-------------------
तन साहिल पे है,
मन मझधार में है,
बहार जो पहेले कभी थी,
आज वो यार में कँहा है ?
उनकी--------------------
गल्ती से आगये हैं,
हमें माफ़ करना सितमगर,
हमें मालूम न था की,
तुम होंगी यँहा सरे बाज़ार|
उनकी--------------------
जा रहा हूँ, दूर तुझ से,
पर तेरी,एक कसक तो है,
तू मिलें ,या ना मिलें,
'पवन पागल' तेरी जुस्तजू तो है|
(१२) एहसास
तेरी यादों के सहारे बैठा हूँ ,
दिल में तेरे आने की,आरजू लिए बैठा हूँ|
हर एक आहट पे,तेरे आने का इंतजार होता है मुझे,
हर एक मोड़ पे तेरे बिछड़ जाने का एहसास होता है मुझे|
कितना बेताब बना दिया है तूने मुझे,
आदमी था काम का,बेकार बना दिया है तूने मुझे|
पुरानी यादों के महल में गुम-सुम बैठा हूँ,
दिल में तेरे आने की आरजू लिए बैठा हूँ|
तेरी यादों------------
कंही ऐसा ना हो की हमारी आरजू किसी ,
ओर की आरजू बन जाये,
हम इंतजार करते रहें,
तू किसी ओर की हो जाये|
दिल में----------------
हाथ में खाली ज़ाम लिए बैठा हूँ,
कोई आएगा ,इसे भरने 'पवन पागल',
में आज उसी के इंतजार में बैठा हूँ|
तेरी-----------------------
तू ना आई तो,ज़ाम में शराब की जगह आँसू होंगे,
जिस्म मिटटी का एक ढेर होगा,न जाने तब तक,
कितेने ही बुत बन गए होंगे,
एक नहीं हजारों "पवन पागल, तेरी ही याद में मर गए होंगे|
दिल में तेरे आने की,आरजू लिए बैठा हूँ|
हर एक आहट पे,तेरे आने का इंतजार होता है मुझे,
हर एक मोड़ पे तेरे बिछड़ जाने का एहसास होता है मुझे|
कितना बेताब बना दिया है तूने मुझे,
आदमी था काम का,बेकार बना दिया है तूने मुझे|
पुरानी यादों के महल में गुम-सुम बैठा हूँ,
दिल में तेरे आने की आरजू लिए बैठा हूँ|
तेरी यादों------------
कंही ऐसा ना हो की हमारी आरजू किसी ,
ओर की आरजू बन जाये,
हम इंतजार करते रहें,
तू किसी ओर की हो जाये|
दिल में----------------
हाथ में खाली ज़ाम लिए बैठा हूँ,
कोई आएगा ,इसे भरने 'पवन पागल',
में आज उसी के इंतजार में बैठा हूँ|
तेरी-----------------------
तू ना आई तो,ज़ाम में शराब की जगह आँसू होंगे,
जिस्म मिटटी का एक ढेर होगा,न जाने तब तक,
कितेने ही बुत बन गए होंगे,
एक नहीं हजारों "पवन पागल, तेरी ही याद में मर गए होंगे|
(११) दो रंग
जीवन के दो रंग,
जिनमें रंग गए हैं हम,
साथ थोड़ी ख़ुशी,
ओर ज्यादा हैं गम|
जीवन ------------
कभी सुख की छांव में बैठे,
कभी आग के शोलों पर,
पर फिर भी ना मिट पाए,
अभी तक हम|
जीवन-------------
क्या बताएं ,इन ज़ख्मों की कहानी,
तुम्हे रात-दिन,
न इनमें सुबह का रंग,
न शाम का गम|
जीवन---------------
रातों की तन्हाई भी नहीं,
भोर की ताजगी भी नहीं,
दोपहर की धूप की कमी भी नहीं,
जिसमें की 'पवन पागल',
झुलस गए हैं हम|
जीवन----------------
जिनमें रंग गए हैं हम,
साथ थोड़ी ख़ुशी,
ओर ज्यादा हैं गम|
जीवन ------------
कभी सुख की छांव में बैठे,
कभी आग के शोलों पर,
पर फिर भी ना मिट पाए,
अभी तक हम|
जीवन-------------
क्या बताएं ,इन ज़ख्मों की कहानी,
तुम्हे रात-दिन,
न इनमें सुबह का रंग,
न शाम का गम|
जीवन---------------
रातों की तन्हाई भी नहीं,
भोर की ताजगी भी नहीं,
दोपहर की धूप की कमी भी नहीं,
जिसमें की 'पवन पागल',
झुलस गए हैं हम|
जीवन----------------
(१०) पछतावा
जाने अनजाने कितने ही राही मिले,
जीवन के इस सफ़र में यंहा,
यारों की तरफ भी गए पर,
उन्हों ने भी मुंह फेर लिया यंहा|
हाथ पकड़ करसाथ चलने का वादा किया था,
जिन्होंने ,वो ही आज होगये पराये,
उनकी दहलीज़ तक भी गया था,
मगर उन्होंने दरवाज़ा ही बंद कर लिया|
हमें उनसे कुछ भी ना चाहिए, सिर्फ दो शब्द प्यार के,
जिससे आजाये जीवन में कुछ दिन बहार के|
सब दिन होते ना किसी के एक सामान,
रंग बदलते देर नहीं लगती,
हो जाते हैं पुरे सब अरमान
इतना क्यों नहीं समझता ये मूर्ख इन्सान|
बरसों बाद वो यूँ ही हमसे मिले एक बार,
तो शर्म से गर्दन झुक गयी उनकी,
पश्चाताप की अग्नी में जल रहे थे वो,
जब नज़रें उनसे मिलीं,तो कह रहे थे वो,
'पवन पागल'हम हारे,तुम हार कर भी जीते|
जीवन के इस सफ़र में यंहा,
यारों की तरफ भी गए पर,
उन्हों ने भी मुंह फेर लिया यंहा|
हाथ पकड़ करसाथ चलने का वादा किया था,
जिन्होंने ,वो ही आज होगये पराये,
उनकी दहलीज़ तक भी गया था,
मगर उन्होंने दरवाज़ा ही बंद कर लिया|
हमें उनसे कुछ भी ना चाहिए, सिर्फ दो शब्द प्यार के,
जिससे आजाये जीवन में कुछ दिन बहार के|
सब दिन होते ना किसी के एक सामान,
रंग बदलते देर नहीं लगती,
हो जाते हैं पुरे सब अरमान
इतना क्यों नहीं समझता ये मूर्ख इन्सान|
बरसों बाद वो यूँ ही हमसे मिले एक बार,
तो शर्म से गर्दन झुक गयी उनकी,
पश्चाताप की अग्नी में जल रहे थे वो,
जब नज़रें उनसे मिलीं,तो कह रहे थे वो,
'पवन पागल'हम हारे,तुम हार कर भी जीते|
(९) इंतजार
उनकी आरजू का दिया जल ही गया,
वो मिलें ना मिलें,ये गम तो हमें मिल ही गया |
कितना फर्क है,उस दिए में जो जलता था,कभी अँधेरे में
आज वही, जलते हुए भी भुज गया|
उनकी---------
आँखों में आँसू होते तो हैं,पर फर्क होता है उनमें,
कभी वो दरिया थे,आज मोती से लटकते हैं |
क़ाश की वो आज साथ होते,ये तो मलाल ही रहगया,
वो कभी मिलेंगे,ये तो इंतजार ही रहगया |
कितना फर्क है उस इंतजार में,जो कभी किया था उजालों में,
आज उन्ही लम्हों को समेटते हुए मैं जर-जर हो गया,
मैं ही नहीं मेरा छोटासा आंसियाँ भी तितर-बितर होगया
"पवन पागल"आज उनके इंतजार में दर-बदर होगया |
उनकी ------------
वो मिलें ना मिलें,ये गम तो हमें मिल ही गया |
कितना फर्क है,उस दिए में जो जलता था,कभी अँधेरे में
आज वही, जलते हुए भी भुज गया|
उनकी---------
आँखों में आँसू होते तो हैं,पर फर्क होता है उनमें,
कभी वो दरिया थे,आज मोती से लटकते हैं |
क़ाश की वो आज साथ होते,ये तो मलाल ही रहगया,
वो कभी मिलेंगे,ये तो इंतजार ही रहगया |
कितना फर्क है उस इंतजार में,जो कभी किया था उजालों में,
आज उन्ही लम्हों को समेटते हुए मैं जर-जर हो गया,
मैं ही नहीं मेरा छोटासा आंसियाँ भी तितर-बितर होगया
"पवन पागल"आज उनके इंतजार में दर-बदर होगया |
उनकी ------------
(८) दूसरा पहलू
ये सुबह-शाम का गम,भी क्या कम है,
जो तुम पिलाये जा रहे हो,वो भी क्या कम है|
पिला तुम रहे हो,पर अंदाज़ बदल गया है,
सुला तुम रहेहो,पर वो हसींन ख्वाब बदल गया है|
नज़रें तुम मिला रहे हो,पर अंदाज़ बदल गया है,
संगीत तुम सुना रहे हो,पर साज़ बदल गया है|
तुम्हारा इतना सब एहेसान ,भी क्या कम है,
जो तुम पिलाये जारहे हो,वो भी क्या कम है |
अँधेरे में देख रहे हो,वो भी क्या कम है,
दिल को जला कर उजालाकर रहे हो,वो भी क्या कम है |
कत्ल कर रहे हो,पर वो खँजर बदल गया है,
पर्दा कर रहे हो, पर अब ये हुस्न बदल गया है|
चाँद की चाँदनी देख रहे हो,ये क्या कम है,
उस पर लगे दाग को,नकार रहे हो,ये क्या कम है|
जला तुम रहे हो,पर दाग़ लग गया है,
उसे भुजा रहे हो, जो खुद ही भुज गया है|
जिसे चाहते हो, उसकी राख़ भी क्या कम है,
ख़ुशी तुम चाहते हो,तो उसे क्या गम है|
इश्क कर रहे हो, पर वो दिल बदल गया है,
पैमाने दिखा रहे हो,पर उनमें ज़हर भर गया है|
मयखाने में तिरछी नज़रों से बुला रहे हो,ये क्या कम है,
मय की जगह ज़हर पिला रहे हो,ये क्या कम है|
शिकारी हो पर ,निशाना बदल गया है,
भिखारी हो, पर वक़त बदल गया है|
फूल हो, पर कलियाँ भी क्या कम हैं,
यार हो ,पर यारों की गलियाँ ,भी क्या कम हैं|
चल रहे हो,पर काँटा चुभ गया है,
जिंदा हो, पर शर्म से सर झुक गया है|
दुनिया की नज़र में ,वो हमारे हों ,ये क्या कम है,
रोज़ उसी चहरे को सुबह-शाम देखूं,ये क्या कम है|
तुम भी उसी के पास चली जाओ, जो गम हमारे पास आगया है,
'पवन पागल'ज़िन्दगी में अब बस,यही एक अरमान बाकी रह गया है|
जो तुम पिलाये जा रहे हो,वो भी क्या कम है|
पिला तुम रहे हो,पर अंदाज़ बदल गया है,
सुला तुम रहेहो,पर वो हसींन ख्वाब बदल गया है|
नज़रें तुम मिला रहे हो,पर अंदाज़ बदल गया है,
संगीत तुम सुना रहे हो,पर साज़ बदल गया है|
तुम्हारा इतना सब एहेसान ,भी क्या कम है,
जो तुम पिलाये जारहे हो,वो भी क्या कम है |
अँधेरे में देख रहे हो,वो भी क्या कम है,
दिल को जला कर उजालाकर रहे हो,वो भी क्या कम है |
कत्ल कर रहे हो,पर वो खँजर बदल गया है,
पर्दा कर रहे हो, पर अब ये हुस्न बदल गया है|
चाँद की चाँदनी देख रहे हो,ये क्या कम है,
उस पर लगे दाग को,नकार रहे हो,ये क्या कम है|
जला तुम रहे हो,पर दाग़ लग गया है,
उसे भुजा रहे हो, जो खुद ही भुज गया है|
जिसे चाहते हो, उसकी राख़ भी क्या कम है,
ख़ुशी तुम चाहते हो,तो उसे क्या गम है|
इश्क कर रहे हो, पर वो दिल बदल गया है,
पैमाने दिखा रहे हो,पर उनमें ज़हर भर गया है|
मयखाने में तिरछी नज़रों से बुला रहे हो,ये क्या कम है,
मय की जगह ज़हर पिला रहे हो,ये क्या कम है|
शिकारी हो पर ,निशाना बदल गया है,
भिखारी हो, पर वक़त बदल गया है|
फूल हो, पर कलियाँ भी क्या कम हैं,
यार हो ,पर यारों की गलियाँ ,भी क्या कम हैं|
चल रहे हो,पर काँटा चुभ गया है,
जिंदा हो, पर शर्म से सर झुक गया है|
दुनिया की नज़र में ,वो हमारे हों ,ये क्या कम है,
रोज़ उसी चहरे को सुबह-शाम देखूं,ये क्या कम है|
तुम भी उसी के पास चली जाओ, जो गम हमारे पास आगया है,
'पवन पागल'ज़िन्दगी में अब बस,यही एक अरमान बाकी रह गया है|
(७) दल-दल
कुछ खड़े हुए थे,कुछ बैठ गए हैं,
ओर जो कुछ खड़े हैं,उन्हें,
खुद को भी यंकी नहीं है की,
वो खड़े हुए हैं, या खड़े किये गए हैं|
राजनीती ओर राजनीतिग्य ,
कभी किसी के नहीं हुए|
इस दलदल में से शायद ही कभी,
'लाल बहादुर' जैसा कोई कमल खिला हो|
इस दलित राजनीती का ,बस एक ही नारा है,
'दलबदल', कर अदल बदल|
जब भी मोका आया,इस कीचड़ में से,
ये सफ़ेद कमल की तरह निकल आतें हैं,
जैसे बरसात में मेंडक|
ये सिद्धांत- हीन राजनेता
पहेले अपना दिल बदलते हैं
फिर अपना दल ओर
घुसते ही जाते हैं इस दल-दल में|
दिन के उजाले में ये सब 'पवन पागल',
अनेकता में एकता रखेते हैं|
रात के अँधेरे में सभी दलों के लोग।
मिल बाँट कर खाने में एक हो जातें हैं|
ओर जो कुछ खड़े हैं,उन्हें,
खुद को भी यंकी नहीं है की,
वो खड़े हुए हैं, या खड़े किये गए हैं|
राजनीती ओर राजनीतिग्य ,
कभी किसी के नहीं हुए|
इस दलदल में से शायद ही कभी,
'लाल बहादुर' जैसा कोई कमल खिला हो|
इस दलित राजनीती का ,बस एक ही नारा है,
'दलबदल', कर अदल बदल|
जब भी मोका आया,इस कीचड़ में से,
ये सफ़ेद कमल की तरह निकल आतें हैं,
जैसे बरसात में मेंडक|
ये सिद्धांत- हीन राजनेता
पहेले अपना दिल बदलते हैं
फिर अपना दल ओर
घुसते ही जाते हैं इस दल-दल में|
दिन के उजाले में ये सब 'पवन पागल',
अनेकता में एकता रखेते हैं|
रात के अँधेरे में सभी दलों के लोग।
मिल बाँट कर खाने में एक हो जातें हैं|
(६)आँखें
आँखों में बस गये हैं,वो दूर रहेने वाले,
ऐसे आंसू बन गये, जो न हैं बहेने वाले|
आँखों में-------------------------
कई बातें,जो जुबां से कही नहीं जाती ,
आँखें बंया करती हैं,वो दिल की दास्ताँ|
आँखों में ------------------------
मोहब्बत की,बातें ,आँखों से समझा ने वाले,
आज उसी इशारे के लिए बैठे हैं,तेरे चाहेने वाले|
आँखों में--------------------------------
शराब का नशा थोड़ी देर के लिए,
तेरी आँख का नशा, ज़िन्दगी भर के लिए|
आँखों में----------------------------
हमें बेहोश करके,तू होश में क्यों है?
क्यों जाम तेरे हाथ में है,आँखों से पिलाने वाले ?
आँखों में--------------------------------
आज तू खामोश क्यों है,सदा मुस्कराने वाले,
मार डालेगी तेरी ये ख़ामोशी,ओ जिंदा रहेने वाले|
आँखों में---------------------------------
काश आज तेरे लब खुले होते,आँखों से बात करने वाले,
"'पवन पागल"जुबां हर अफसाना बयां करती,आँखों से बंया करने वाले|
आँखों में---------------------------------------------------
ऐसे आंसू बन गये, जो न हैं बहेने वाले|
आँखों में-------------------------
कई बातें,जो जुबां से कही नहीं जाती ,
आँखें बंया करती हैं,वो दिल की दास्ताँ|
आँखों में ------------------------
मोहब्बत की,बातें ,आँखों से समझा ने वाले,
आज उसी इशारे के लिए बैठे हैं,तेरे चाहेने वाले|
आँखों में--------------------------------
शराब का नशा थोड़ी देर के लिए,
तेरी आँख का नशा, ज़िन्दगी भर के लिए|
आँखों में----------------------------
हमें बेहोश करके,तू होश में क्यों है?
क्यों जाम तेरे हाथ में है,आँखों से पिलाने वाले ?
आँखों में--------------------------------
आज तू खामोश क्यों है,सदा मुस्कराने वाले,
मार डालेगी तेरी ये ख़ामोशी,ओ जिंदा रहेने वाले|
आँखों में---------------------------------
काश आज तेरे लब खुले होते,आँखों से बात करने वाले,
"'पवन पागल"जुबां हर अफसाना बयां करती,आँखों से बंया करने वाले|
आँखों में---------------------------------------------------
मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010
(५)मोंन-प्रेम
मोहब्बत उनसे करते हैं,पर उन्हें खबर नहीं,
क्यों याद करते हैं उन्हें,जो याद करते नहीं|
कोई जिस्म का भूका है, कोई हुस्न का गुलाम,
कोई दोलत के पीछे है,बस हो जाये उनका सलाम|
हम जो चाहते हैं,वो सब इन में नहीं,
आँखों से बढ़ कर,कोई चीज़ मोहब्बत में नहीं|
महबूब की आँखों से ही प्यार करते हैं,
उन्ही को मोहब्बत का, एक जरिया समझते हैं|
वो जाने की हम उनसे मोहब्बत करते हैं,ज़रूरी नहीं,
इज़हारे मोहब्बत करें ,ये ज़रूरी नहीं|
वो हमारे हों ओर हम उनके,ये भी ज़रूरी नहीं,
रोज़ मिलें आँखें बातें करें ,पर लबों का खुलना ज़रूरी नहीं|
जो मज़ा इस मोंन प्रेम में है 'पवन पागल',
वो इज़हारे मोहब्बत में कहाँ?
जो नशा इस प्यार में है वो,
लबों से पिलाई गई शराब में कहाँ ?
आँखें अगर बयाँ करें,मोहब्बत का अफसाना,
तो मज़ा कुछ ओर ही है,
शराब बोतल की जगह,पैमाने में हो,
तो मज़ा कुछ ओर ही है|
आँख 'चार' करतें हैं,पर 'दो' की खबर नहीं
"'पवन पागल"' उनको याद करते हैं,पर उनको खबर नहीं |
क्यों याद करते हैं उन्हें,जो याद करते नहीं|
कोई जिस्म का भूका है, कोई हुस्न का गुलाम,
कोई दोलत के पीछे है,बस हो जाये उनका सलाम|
हम जो चाहते हैं,वो सब इन में नहीं,
आँखों से बढ़ कर,कोई चीज़ मोहब्बत में नहीं|
महबूब की आँखों से ही प्यार करते हैं,
उन्ही को मोहब्बत का, एक जरिया समझते हैं|
वो जाने की हम उनसे मोहब्बत करते हैं,ज़रूरी नहीं,
इज़हारे मोहब्बत करें ,ये ज़रूरी नहीं|
वो हमारे हों ओर हम उनके,ये भी ज़रूरी नहीं,
रोज़ मिलें आँखें बातें करें ,पर लबों का खुलना ज़रूरी नहीं|
जो मज़ा इस मोंन प्रेम में है 'पवन पागल',
वो इज़हारे मोहब्बत में कहाँ?
जो नशा इस प्यार में है वो,
लबों से पिलाई गई शराब में कहाँ ?
आँखें अगर बयाँ करें,मोहब्बत का अफसाना,
तो मज़ा कुछ ओर ही है,
शराब बोतल की जगह,पैमाने में हो,
तो मज़ा कुछ ओर ही है|
आँख 'चार' करतें हैं,पर 'दो' की खबर नहीं
"'पवन पागल"' उनको याद करते हैं,पर उनको खबर नहीं |
(४) क्यों पीयूं
उसे क्योँ पीउं ,जो खुद ही मुझे पीगई
क्यों जीउँ उसके लिए,जो बेफा होगई|,
पहेले मय,फिर मैखाना,वो दिखा गयी,
आज मय नहीं,मय की जगह ज़हर पिला गयी|
उसे क्या कहूं,जो मर कर भी जी गयी ,
यंहा तो जीते जी ही मोंत आगयी|
चिराग उसने जलाया था,पर रोशनी गुल हो गयी ,
मयखाना जला दिया,ओर आंसू पीने को छोड़ गयी|
क्यों पीयेगी वो आंसू,जो हमे ही पीगई,
'पवन पागल' उसे मैं क्यों पीउं , जो खुद ही मुझे पी गयी |
क्यों जीउँ उसके लिए,जो बेफा होगई|,
पहेले मय,फिर मैखाना,वो दिखा गयी,
आज मय नहीं,मय की जगह ज़हर पिला गयी|
उसे क्या कहूं,जो मर कर भी जी गयी ,
यंहा तो जीते जी ही मोंत आगयी|
चिराग उसने जलाया था,पर रोशनी गुल हो गयी ,
मयखाना जला दिया,ओर आंसू पीने को छोड़ गयी|
क्यों पीयेगी वो आंसू,जो हमे ही पीगई,
'पवन पागल' उसे मैं क्यों पीउं , जो खुद ही मुझे पी गयी |
(३) त्रिकोण
लाल त्रिकोण सरकार ने
जनता को दिया ,
पर,
आज एक नया त्रिकोण
जनता ने सरकार को दिया,
हड़ताल,लूट-पाट,व बंद
कितना अंतर है,
इन दो त्रिकोणों के कोणों में
एक
सुनियोजित परिवार के
विकास में लगा हुआ है,
दूसरा,
सुनियोजित परिवार के,
विनाश में लगा हुआ है|
क्या हम लाल को,
ध्यान में रखेते हुए
सुख,समर्धि व विकास का
हरा त्रिकोण''पवन पागल"
सरकार को नहीं दे सकते?,
जनता को दिया ,
पर,
आज एक नया त्रिकोण
जनता ने सरकार को दिया,
हड़ताल,लूट-पाट,व बंद
कितना अंतर है,
इन दो त्रिकोणों के कोणों में
एक
सुनियोजित परिवार के
विकास में लगा हुआ है,
दूसरा,
सुनियोजित परिवार के,
विनाश में लगा हुआ है|
क्या हम लाल को,
ध्यान में रखेते हुए
सुख,समर्धि व विकास का
हरा त्रिकोण''पवन पागल"
सरकार को नहीं दे सकते?,
सोमवार, 11 अक्टूबर 2010
(३) आँसू
मुझे आँसू पसंद हैं ,
पर वो ,
जो की सपाट से निकल जांयें ,
एक बार |
मैं नहीं चाहता की,
वो हर पल आँखों मैं समाये रहें ,
ओर लोगों को,
यह कहने का मोका दें की।
"यार कुछ दुखी नज़र आते हो"|
'पवन पागल' को वो आँसू पसंद हैं ,
जो की एक सम्मानित आथिति की तरह ,
आंयें एक बार|
पर वो ,
जो की सपाट से निकल जांयें ,
एक बार |
मैं नहीं चाहता की,
वो हर पल आँखों मैं समाये रहें ,
ओर लोगों को,
यह कहने का मोका दें की।
"यार कुछ दुखी नज़र आते हो"|
'पवन पागल' को वो आँसू पसंद हैं ,
जो की एक सम्मानित आथिति की तरह ,
आंयें एक बार|
(२) फासला
सर्दी, गर्मी ,बरसात मैं
जब भी फटाव आता है
तो
मन का फटाव
कम हो जाता है |
पल भर अपनो की याद मैं
जब मन खो जाता है
तो
'पवन पागल' मीलों की दूरी का फासला
गज भर का रह जाता है|
जब भी फटाव आता है
तो
मन का फटाव
कम हो जाता है |
पल भर अपनो की याद मैं
जब मन खो जाता है
तो
'पवन पागल' मीलों की दूरी का फासला
गज भर का रह जाता है|
(१) "एक-बार"
आँसुओं तुम जी भर के निकल जाओ ,
एक बार
मैं नहीं चाहता उनका आवागमन जारी रहे
बार बार|
बहारो तुम भी जी भर के आ जाओ,
एक बार
मैं नहीं चाहता की गुलशन उजड़े
बार बार|
घटाओ तुम भी जी भर के बरस जाओ,
एक बार
"पवन पागल " नहीं चाहता है की
सैलाब आये बार बार,
एक बार
मैं नहीं चाहता उनका आवागमन जारी रहे
बार बार|
बहारो तुम भी जी भर के आ जाओ,
एक बार
मैं नहीं चाहता की गुलशन उजड़े
बार बार|
घटाओ तुम भी जी भर के बरस जाओ,
एक बार
"पवन पागल " नहीं चाहता है की
सैलाब आये बार बार,