सोमवार, 22 नवंबर 2010

(५१) झुलसते अरमान

सपनों की माला टूट गई
बिखर गया हर एक मोती
जिंदगी अब बोझ लगती है
क्यों न यह हो जाती छोटी |
अरमान किसी के थे की ,हम उनका नाम रोशन करें
पर अँधेरे हमारे साथी बने
काश वे उजालों को भी बुला लेते
अगर ऐसा होता तो ये ,कुदरत की अदभुत कारीगरी होती |
सुना है ,जी कर भी मरना आता है लोगों को
ओर मर कर भी,जीते हैं लोग
पर "पवन पागल"हम तो बीच भंवर में ही रहगये
न आज जीए,न कल मेरे|

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