सोमवार, 29 नवंबर 2010

(८१)कटु-सच

सच बोलते-बोलते,सुर्ख लाल होट काले पड़ गये
फिर सच का यकीन,दिलाने के लाले पड़ गये |
चापलूसी सच से,लोग बहुत खुश रहते हैं
असल सच सुन सभी,आग-बबूला हो जातें हैं |
जो देखा दूर से उन्हें,ठीक-ठाक नज़र आये
जो देखा पास से, टूटे-फूटे नज़र आये |
पास से देखने के लिए,जिंदगी के दिन ही कम पड़ गये
जितनों को भी देखा,वो सब किनारा कर गये |
जो देखा गहराई में,सच के नमूने मिल गये
कुछ परेहट गये,कुछ शर्मा कर मर गये |
"पवन पागल" सच की खोज में,पाँवों में छाले पड़ गये
पहले गिने-चुने दुश्मन थे,अब दुश्मनों के खाते खुल गये |

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