शनिवार, 13 नवंबर 2010

(३५) धर्म के ठेकेदार

आजकल 'बाबाओं की बाढ़ सी आई हुई है,
कुछ तैर रहें हैं,कुछ की नैया भंवर में है ,
सच्चा कोंन है? इसकी समझ देर से आती है,
सबकुछ लुटाने के बाद,जब घर में फांके मारने की नोबत आती है|
जब भी इनका थोडा सा व्यापर बढ़ा,
ये अहंकारी होगये ,
जब भी इन्हें धन मिला,
इन्होंने उपदेश की भाषा सीख ली |
जब भी इनको सम्मान मिला,
ये पागल होगये,
ओर जब भी इनको अधिकार मिले,
इन्होने दुनिया को तबाह कर दिया|
जब भी इन्हें यश मिला,
इसी दुनिया पर वो हंसने लगे,
तमाम उम्र यूँ हीं ,हवाई घोड़े दोडाते रहे'
ओर अपनी समझ में ,बहुत बड़ा काम करते रहे|
हजारों की नैया डूबती है, इनके भरोसे पर,
मुझे धर्म की आड़ में,बड़ा व्यापार सा लगता है,
"पवन पागल" की समझ से,इन्होने 'अक्कल लगा कर,
'अपना बुढ़ापा सुधार' लिया है|

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