Mere Dil Se.....

सोमवार, 29 नवंबर 2010

(८०) दूरीयाँ

फासले जैसे भी होंगे,फिर भी मैं उनसे दूर न था
फैसले जो भी होंगे,फिर भी मैं उनमें शामिल न था |
बिछड़े मुसाफ़िर फिर एक होंगे,मैं उनसे दूर ही कब था ?
मेरे हिस्से के सभी ग़मों में,मैं नहीं तो ओर कोंन शामिल था?
जो आज लड़ेंगे कल फिर मिलेंगे,मैं उनसे दूर ही कब था ?
सच्चाई समझने पर,सभी की जबानों पर ताला था |
इस दोरमें नहीं तो अगले दोर में मिलेंगे,मैं उनसे दूर ही कब था ?
तुम आसमान में उड़तें होंगे, मेरा तो हर कदम जमीं पर ही था |
सपने पूरे होंगे,ऐसा मेरा नसीब ही कहाँ था ?
रोज नये कुए खोदता,ओर पुरानों को बूरता था |
"पवन पागल" की खुली किताब को,कोंन समझ पाया था ?
सच लिखते हुये भी,मेरा 'लेखन' अधूरा ही था |

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