Mere Dil Se.....

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

३५(११६) क्या खता

मैं तो तुम्हारी हर ख़ुशी में शामिल था
फिर मुझे इतना बेगाना क्यों कर दिया ?
नज़र जो मिली तुमसे,उन नज़रों में, मैं न था
मेरी मोहब्बत को, ख़ाक मोहब्बत क्यों कह दिया ?|
दोरे-सफ़र में हर जगह, मैं मोजूद था
फिर मुझे बीच सफ़र में ही, क्यों छोड़ दिया ?
साथ होते हुए भी,मैं तुम्हारे साथ न था
जुदा रहते भी,मुझे हमसफ़र क्यों कह दिया ? |
तम्हारे हर फैसले में, मैं शामिल था
फिर मुझे इतना पराया क्यों कर दिया ?
जो मांग लेते मेरी मोत,मैं तंग-दिल न था
सरे-राह मिलने पर,सिसक कर मुँह क्यों फेर लिया ? |
मैंने तुम्हे चाहा ,ये मेरा नसीब था
चाह कर मुझे,बदनसीब क्यों कर दिया ?
तुम सुकून से रहो,मैं तनहा कब था ?
बता "पवन पागल"को गम-गीन क्यों कर दिया ? |

३४(११५)पंछी उड़ गये

होश उड़ गये,पंछी उड़ गये
जो जकड़े हुए थे बँधनों से
बँधनों से मुक्त होगये
पर पीछे उदास चेहरे छोड़ गये |
जाने वाले फिर लोट के न आयें
जो जाना सब का समय से तय है
वो तो समय के बंधन से भी मुक्त होगये
और समय के साथ 'पंछी' को लोग भूल गये |
होश में नहीं,बेहोश उड़ गये
जो उलझे थे,रिश्तों से
रिश्तों से आज़ाद होगये
सच्चाई की दुनियाँ में कँही खोगये |
ऐसा नहीं सुबह गये,शाम को आये
मजबूर थे उसकी व्यवस्था से
संसार की सभी मजबूरीयों से मुक्त होगये
"पवन पागल" जिसके थे,उसी के होगये |

३३(११४)किनारे लगी नाव

जिंदगी एक नाव है
जो हर दाव पर चलती
दूसरे किनारे पे लगने की उम्मीद में
कभी हिचकोले लेकर चलती
कभी जोर-शोर से चलती |
किनारे तो अपनी जगह अटल हैं
कभी सूख भी जाते हैं बेचारे
ऐसे में नाव भी रुक जाती है
सूखे किनारों में पानी भर जाने पर
नाव फिर से लहराकर शान से चलती |
जर-जर होजाने पर वो नाव
हमेशा के लिए किनारे लगती
जब इतना ही सफ़र तय है
तो हम खातमों की चुभन में
अपने को और जर-जर क्यों बनायें ?|
मोत इस किनारे हो,या उस किनारे
नाव का दूसरे किनारे पर लगना तो तय है
चलो आज तो नहीं मरे,कल की फ़िक्र क्यों करें ?
क्या पता "पवन पागल"किनारे लगी नाव ?
सज-संवर कर फिर से चलने लगे |

३२(११३) हाले-दिल

जो खिलते बेशुमार फूल हसरतों के
जी भर के मुस्करा तो लेते|
कोई हमारा होता,हम भी होते किसी के
ख़ुशी से एक दूसरे को अपना लेते |
जो नशे में न रहते,कमाई दोलत के
होश आने से पहले,उसे बचा तो लेते |
तकलीफ़ उनको हो,आँसू हमारी आँख में छलकें
तकलीफ़ ज्यादा बढे,उससे पहले बचा तो लेते |
वो तरस भी न खायें, मुझे छलके
कभी आकर अपनी सूरत तो दिखा देते |
हम भी बैठे रहे इत्मिनान से,तसल्ली करके
हमें न सही,किसी और को तो अपना लेते |
जो तकलीफ़ हुई,हाले-दिल हमारा देख के
तो कुछ कुछ कम क्यों नहीं करलेते ?|
पीते जाम पे जाम,जी भर भरके
कभी हमको पिलाते,कभी खुद पी लेते |
जो खुले-आम मोहब्बत न करके
आँखों में मोहब्बतों को तो भर लेते |
जब भी याद आती,देखते आँखें बंद करके
"पवन पागल" को करीब से बिखरा हुआ देख तो लेते |

३१(११२) गोविन्द ललक

गोविन्द म्हारा श्याम्धनी चितचोर --२
मेंह तो थांकी बाट देखां नितभोर
गोविन्द म्हारा------------------
थे म्हांने चाहो, मेंह थानें चावां ------२
फिर कांइ की देर
गोविन्द म्हारा ------------------
इसी गांठ लगाओ जी,कदे न टूटे गठजोड़ ---२
लम्बी ही बढती जाये,म्हारी पतंगा की डोर
गोविन्द म्हारा---------------------
वृन्दावन भी जा आया देर सबेर -----२
पण थान्को कोणी लादयो ठोर
गोविन्द म्हारा----------------------
अब म्हाने मत तरसावो सांवरिया रुणछोड़ ---२
बेगा-बेगा आवो,झटपट भोग लगाओ नंदकिशोर
गोविन्द म्हारा -----------------------
थान्से मिलबा की खातिर--------------------२
"पवन पागल" होतो रहयो भाव-विभोर --------२
गोविन्द म्हारा ----------------------

३०(१११) तडफ

उनको रुलाने के सिवा कुछ भी नहीं आता
हमको उनको मनाने के सिवा कुछ भी नहीं आता
वो रुलातें रहें,हम मनातें रहें जिंदगी भर
हमें नचाते रहें! उनको तो नाचने के सिवा कुछ भी नहीं आता |
वो कहाँ तडफते हैं! उनको तो तडफाने के सिवा कुछ भी नहीं आता ?
वो छ्लीयाँ हैं!उनको तो छलने के सिवा कुछ भी नहीं आता
वो छलते रहें,और हम छलाते रहें जिंदगी भर
उनको तो छलने पर,तरस खाना भी नहीं आता |
रहतें हैं दिल में!पर परोक्ष रूप में दर्शन देना भी नहीं आता
कड़े इम्तिहान लें! पर इम्तिहानों में कामयाबी भी देना नहीं आता
वो आग लगाते रहें! हम सुलगते रहें जिंदगी भर
उनको तो आग लगाने के सिवा कुछ भी नहीं आता |
आग लगाकर,उसे बुझाना भी नहीं आता
जले फफोंलों पर मल्हम लगा देते! उन्हें तो वो भी नहीं आता
हमारे अन्दर सदा जल्ती रखना इस आग को ज़िदगी भर
"पवन पागल"उन्हें तो जल्ती आग को! और हवा देना भी नहीं आता |

२९(११०)तरसती आरज़ू

जो नज़र भर के देखा उनको,दिल बाग-बाग होगया
पर उधर से जो माकूल जवाब न आया,तो दिल तार-तार होगया
मैंने इस तरह,दिल टूटने की उम्मीद न की थी
जो दुबारा नज़रों से देखा उनको,नज़रों का गुमान होगया |
हादसा छोटा सा था,पर न जाने तिल का ताड़ कैसे होगया ?
सफ़र का छोटा सा रास्ता,देखते ही देखते पहाड़ होगया
मैंने जो कुछ सोचा था,वैसा तो नहीं हुआ
बेबसी में हाले-दिल हमारा,छलनी-छलनी होगया |
धन-दोलत की कमी न थी,पर जो देखा उन्हें,कंगाल होगया
दोलत-मंद होते हुए भी,उनके सामने गरीब से गरीब होगया
मुझे मंज़ूर है फांका-कसी ,काश वो मिल तो जाएँ
दूर बैठे तरसते रहे,अब तरसती आँखों में अँधेरा होगया |
दिल में रहते हैं,पर हुबहू मिलने का मलाल रह गया
आँखों में रहते हैं,पर इन आँखों से देखने का ख्याल ही रहगया
जो दिखाई देते इन आँखों से,तो 'आलाआँखों'को कोन पूछता ?
"पवन पागल"आँखों के होते हुए भी,'सूरदास'ही बाज़ी मार गया |