जो जिंदगी ठाट-बाट से गुजरी
तो क्या जनाज़ा भी शांन से उठेगा ?
इसकी हम क्यों कर फ़िक्र करें,
माटी का पुतला था,माटी में मिल जायेगा |
जो हम ने न की,उसकी जी-हज़ूरी
तो वो भी मजबूर होजायेगा
तुम्हारी फ़िक्र करना छोड़,
ओरों की फ़िक्र में खो जायेगा |
जो उसने दिखाना बंद कर दी बाजी-गरी
तुम क्या ख़ाक नाच पाओगे ?
उससे रिश्तों का मान करें,
यक़ीनन वो तुमसे मिलने ज़रूर आयेगा |
उससे प्यार करना नहीं है तुम्हारी मज़बूरी
वो मजबूरन तुमसे प्यार करने लगेगा
रोज सुबक-सुबक कर,उसके सामने रोना शुरू करें,
"पवन पागल" वो हर हाल में,तुम्हें ज़रूर मिल जायेगा |
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