जो उन पर नज़र पड़ गयी,तो अच्छा ही हुआ
जाना-पहचाना चेहरा,अनजाना ही निकला
अच्छी तरह जानते हुए भी,धोका ही हुआ
जैसे शमा से टकराकर,परवाना झुलसता निकला |
जो अनजाने में,अच्छा होगया हो
मेरे कर्म! या ऊपर वाले की दुआ
जान-भूझ कर तो,मैंने कभी अच्छा किया ही नहीं
उसकी गली से जब भी निकला,रोते हुए ही निकला |
जो मैंने सोचा,वैसा तो कभी नहीं हुआ
तमाम वक़्त फांका-कसी में ही निकला
मुक्कदर ज़ुल्फ़ की तरह,उलझ कर रहगया
जो उसे सुलझाना चाहा,ज्यादा उलझा ही निकला |
न सर पर छत थी,न हाथ में पैसा
बरसती बारिश में भी,भीगता हुआ ही निकला
"पवन पागल"सूनी गलियों में बदबू,नसीब में बद- दुआ
लडखडाते हुए यूँ लाचारी में,अपने घर से बेआबरू निकला |
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