Mere Dil Se.....

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

९७.शेर-शायरी १

बड़ी तमन्ना थी की,किसी के आसानी से होजायें
पर मुक्कदर में बलखाते,सांप ही सांप मिले
नसीब रेगिस्थान में,सूखे की तरह खड़ा था
वो घडी कब आयेगी,जब दो-दिल एक होजायें ?|

मैंने हंस-हंस के काट दी,रोती हुई जिंदगी
सब कुछ गँवा दिया,इसे संवार ने में
रेत के ढेर की तरह,हमेशा बिखरा ही रहा
लोगों को हंसती ही मिली मेरी छुई-मुई जिंदगी |

सलीकेदार लोगों से ,बदसुलूकी का डर लगता है
वो कब कुछ क्या करदें,पता ही नहीं लगता ?
बदसुलूकी लोगों से,मैं बेखोफ़ रहता हूँ
पता है,भोंकने वाले कुत्ते कभी काटते नहीं हैं |

जिनको देखा ही न हो पहले कभी,उनसे रिश्ता होजाता है
धीरे-धीरे वो पराया,जिंदगी भर के लिये हमारा होजाता है
अच्छी तरह देखी-भाली सूरतों से भी कभी रिश्ता होजाता है
कुछ ज्यादा ही समझ लेंने पर,बहुत जल्दी ही तलाक भी होजाता है |

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