सच बोलते-बोलते,सुर्ख लाल होट काले पड़ गये
फिर सच का यकीन,दिलाने के लाले पड़ गये |
चापलूसी सच से,लोग बहुत खुश रहते हैं
असल सच सुन सभी,आग-बबूला हो जातें हैं |
जो देखा दूर से उन्हें,ठीक-ठाक नज़र आये
जो देखा पास से, टूटे-फूटे नज़र आये |
पास से देखने के लिए,जिंदगी के दिन ही कम पड़ गये
जितनों को भी देखा,वो सब किनारा कर गये |
जो देखा गहराई में,सच के नमूने मिल गये
कुछ परेहट गये,कुछ शर्मा कर मर गये |
"पवन पागल" सच की खोज में,पाँवों में छाले पड़ गये
पहले गिने-चुने दुश्मन थे,अब दुश्मनों के खाते खुल गये |
सोमवार, 29 नवंबर 2010
(८०) दूरीयाँ
फासले जैसे भी होंगे,फिर भी मैं उनसे दूर न था
फैसले जो भी होंगे,फिर भी मैं उनमें शामिल न था |
बिछड़े मुसाफ़िर फिर एक होंगे,मैं उनसे दूर ही कब था ?
मेरे हिस्से के सभी ग़मों में,मैं नहीं तो ओर कोंन शामिल था?
जो आज लड़ेंगे कल फिर मिलेंगे,मैं उनसे दूर ही कब था ?
सच्चाई समझने पर,सभी की जबानों पर ताला था |
इस दोरमें नहीं तो अगले दोर में मिलेंगे,मैं उनसे दूर ही कब था ?
तुम आसमान में उड़तें होंगे, मेरा तो हर कदम जमीं पर ही था |
सपने पूरे होंगे,ऐसा मेरा नसीब ही कहाँ था ?
रोज नये कुए खोदता,ओर पुरानों को बूरता था |
"पवन पागल" की खुली किताब को,कोंन समझ पाया था ?
सच लिखते हुये भी,मेरा 'लेखन' अधूरा ही था |
फैसले जो भी होंगे,फिर भी मैं उनमें शामिल न था |
बिछड़े मुसाफ़िर फिर एक होंगे,मैं उनसे दूर ही कब था ?
मेरे हिस्से के सभी ग़मों में,मैं नहीं तो ओर कोंन शामिल था?
जो आज लड़ेंगे कल फिर मिलेंगे,मैं उनसे दूर ही कब था ?
सच्चाई समझने पर,सभी की जबानों पर ताला था |
इस दोरमें नहीं तो अगले दोर में मिलेंगे,मैं उनसे दूर ही कब था ?
तुम आसमान में उड़तें होंगे, मेरा तो हर कदम जमीं पर ही था |
सपने पूरे होंगे,ऐसा मेरा नसीब ही कहाँ था ?
रोज नये कुए खोदता,ओर पुरानों को बूरता था |
"पवन पागल" की खुली किताब को,कोंन समझ पाया था ?
सच लिखते हुये भी,मेरा 'लेखन' अधूरा ही था |
(७९)पूछेगा कोन
जो गम जिंदगी में न रहे,तो उसे पूछेगा कोन ?
हम उन्हें भूलते जायें,बदलते मोसमों की तरह |
जो हम सदा मयखानों में रहें,तो हमें पूछेगा कोन ?
सरासर इस आग में जल जाओगे,परवानों की तरह |
जो लड़ाई ना लड़ते रहें,तो ज़ख्मों को पूछेगा कोन ?
यूँ ही लड़तें रहें,बहादुर सपूतों की तरह |
जो जिंदगी में बेगानें रहें,तो दीवानों को पूछेगा कोन ?
सुलगते-भुझते रहें,आग ओर पानी की तरह |
सहाय को सभी पूछते रहें,तो असहाय को पूछेगा कोन ?
उनके गम में शामिल होजायें,सागर में नदी की तरह |
जो आपस में मोहबत ही ना रहे,तो उसे पूछेगा कोन ?
"पवन पागल" साथ-साथ रहें,लैला-मजनूं की तरह |
हम उन्हें भूलते जायें,बदलते मोसमों की तरह |
जो हम सदा मयखानों में रहें,तो हमें पूछेगा कोन ?
सरासर इस आग में जल जाओगे,परवानों की तरह |
जो लड़ाई ना लड़ते रहें,तो ज़ख्मों को पूछेगा कोन ?
यूँ ही लड़तें रहें,बहादुर सपूतों की तरह |
जो जिंदगी में बेगानें रहें,तो दीवानों को पूछेगा कोन ?
सुलगते-भुझते रहें,आग ओर पानी की तरह |
सहाय को सभी पूछते रहें,तो असहाय को पूछेगा कोन ?
उनके गम में शामिल होजायें,सागर में नदी की तरह |
जो आपस में मोहबत ही ना रहे,तो उसे पूछेगा कोन ?
"पवन पागल" साथ-साथ रहें,लैला-मजनूं की तरह |
रविवार, 28 नवंबर 2010
(७८)बड़ा जादूगर
तेरी मेहरबानियाँ,हमारी नादानियाँ
दोनों एक साथ रहतें हैं
फिर भी दूरियां बहुत हैं
तू नचाये हम न नाचें ,ऊपर से बजाये शहनाइयाँ|
अगर न होती हमारे में कमियां
तो फिर तो तेरे ही साथ हम रहते
पर तू तो बड़ा ही जादूगर है
ऊपर बैठा नचाता रहता,अपनी कटपुतलियाँ |
जो हम न होते,तो तू क्या करता ?
तुझे भी तो समय,व्यतीत करना ही था
वैसे भी एक राजा को, प्रजा की ज़रूरत होती है
वाह रे वाह बहुत महंगी पड़ी,तेरी ये चतुराईयां |
वैसे तो तू हमें अपना ही अंश बताता है
फिर हममें क्यों इतनी भर दीं बिमारियाँ ?
क्या ख़ता थी जो तडफता छोड़ दिया यहाँ ?
अपने पास ही रखता,जिससे न होंती परेशानियाँ |
बैगर हम खलनायकों के,महानायक है अधूरा
अधूरीं हैं जग की,तमाम कहानियां
बिना खलनायकों के,रचते गीता ,रामायण
सच में तुमने जान-भूझ के,हमसे बनाई हैं दूरियां |
अपनों से ही अपने फ़रियाद कर सकतें हैं
जानतें हैं दूरियां बनाये रखने में तू उस्ताद है
हमें सर झुका कर तेरे,तमाम फैसले मंज़ूर हैं
वंश से अंश को जुदा करने में,तेरी रही होंगी कोई मजबूरियां |
पाप का घड़ा फूटने पर,तू ज़मीं पर आता है
जल्दी भर दे हमारे पापों की,अदछलकत गगरी
जिससे निज़ात मिले इस दुनिया से,ओर जल्दी पहुंचें तेरी नगरी
"पवन पागल"को अब रास नहीं आंतीं,ये खोखली जिंदगानियां |
दोनों एक साथ रहतें हैं
फिर भी दूरियां बहुत हैं
तू नचाये हम न नाचें ,ऊपर से बजाये शहनाइयाँ|
अगर न होती हमारे में कमियां
तो फिर तो तेरे ही साथ हम रहते
पर तू तो बड़ा ही जादूगर है
ऊपर बैठा नचाता रहता,अपनी कटपुतलियाँ |
जो हम न होते,तो तू क्या करता ?
तुझे भी तो समय,व्यतीत करना ही था
वैसे भी एक राजा को, प्रजा की ज़रूरत होती है
वाह रे वाह बहुत महंगी पड़ी,तेरी ये चतुराईयां |
वैसे तो तू हमें अपना ही अंश बताता है
फिर हममें क्यों इतनी भर दीं बिमारियाँ ?
क्या ख़ता थी जो तडफता छोड़ दिया यहाँ ?
अपने पास ही रखता,जिससे न होंती परेशानियाँ |
बैगर हम खलनायकों के,महानायक है अधूरा
अधूरीं हैं जग की,तमाम कहानियां
बिना खलनायकों के,रचते गीता ,रामायण
सच में तुमने जान-भूझ के,हमसे बनाई हैं दूरियां |
अपनों से ही अपने फ़रियाद कर सकतें हैं
जानतें हैं दूरियां बनाये रखने में तू उस्ताद है
हमें सर झुका कर तेरे,तमाम फैसले मंज़ूर हैं
वंश से अंश को जुदा करने में,तेरी रही होंगी कोई मजबूरियां |
पाप का घड़ा फूटने पर,तू ज़मीं पर आता है
जल्दी भर दे हमारे पापों की,अदछलकत गगरी
जिससे निज़ात मिले इस दुनिया से,ओर जल्दी पहुंचें तेरी नगरी
"पवन पागल"को अब रास नहीं आंतीं,ये खोखली जिंदगानियां |
शनिवार, 27 नवंबर 2010
(७७)खून के रिश्ते
खून चाहे हमारे बाप-दादा का हो,या हमारे बेटे-बेटियों का हो
चाहे खून हमारे पोते-पोतियों का हो,या फिर हमारे भाई-बहनों का हो
खून तो खून ही रहेगा,ओर रिश्ता भी खून का ही रहेगा
पर कई बार इन खून के रिश्तों की खातिर
हमें कुछ कुर्बानियां भी देनी पड़ती हैं |
वैसे तो दोनों हाथों से ही ताली बजतीं हैं
पर अकेला चना भी भाड़ नहीं फोड़ सकता है
पर न जानें ऐसा क्या होजाता है ?
की खून के रिश्ते भी बेमानी लगतें हैं
जिन्हें हम अपना समझते हैं,वो पराये लगतें हैं |
कुछ उसूलों की खातिर,या फिर अपने मतलब के लिये
खून के रिश्ते भी टूट जातें हैं
रह्जातीं हैं कुछ यादें,जो ये एहसास दिलातीं रहतीं हैं
की वो पहले वाली सुबह कब आयेगी ?
जिस सुबह में,खून के रिश्तों पर फिर से यकीन होगा
"पवन पागल"जब एक बाप अपने बच्चों से,
पति-पत्नी एक दूसरे से खुश रहें
या फिर समझदारी से समझोता करलें
ओर खून के रिश्तों को,खून के आँसू न बननें दें |
चाहे खून हमारे पोते-पोतियों का हो,या फिर हमारे भाई-बहनों का हो
खून तो खून ही रहेगा,ओर रिश्ता भी खून का ही रहेगा
पर कई बार इन खून के रिश्तों की खातिर
हमें कुछ कुर्बानियां भी देनी पड़ती हैं |
वैसे तो दोनों हाथों से ही ताली बजतीं हैं
पर अकेला चना भी भाड़ नहीं फोड़ सकता है
पर न जानें ऐसा क्या होजाता है ?
की खून के रिश्ते भी बेमानी लगतें हैं
जिन्हें हम अपना समझते हैं,वो पराये लगतें हैं |
कुछ उसूलों की खातिर,या फिर अपने मतलब के लिये
खून के रिश्ते भी टूट जातें हैं
रह्जातीं हैं कुछ यादें,जो ये एहसास दिलातीं रहतीं हैं
की वो पहले वाली सुबह कब आयेगी ?
जिस सुबह में,खून के रिश्तों पर फिर से यकीन होगा
"पवन पागल"जब एक बाप अपने बच्चों से,
पति-पत्नी एक दूसरे से खुश रहें
या फिर समझदारी से समझोता करलें
ओर खून के रिश्तों को,खून के आँसू न बननें दें |
(७६)बेहतर
अनकही दिल में ना रहे,तो बेहतर है
वरना सीनें में गुबार,बनती रहती है
सारी भड़ास एक बार में निकल जाये तो बेहतर है
वरना एक छोटी सी बात,एक लम्बी सी कहानी बन जाती है |
क्यों लोग खोखली ज़िदगी,रह-रह कर जीतें हैं ?
किताबें खुलीं क्यों नहीं रहतीं हैं ?
एक छोटी सी गल्ती भी,इतिहास बन जाती है
इतिहास दोहराया न जाये,तो बेहतर है |
सभी को सभी सवालों का,जवाब देना ज़रूरी नहीं है
चेहरे की ख़ामोशी से समझ जायें,तो बेहतर है
वरना तेवर दिखाने में,क्या देर लगती है ?
कुछ फैसलों में किसी से पूछा ना जाये,तो बेहतर है |
ज़िंदगियाँ सँवारने के लिए,उनका उजाड़ ना क्या बेहतर है
जो आज संवरी ,कल उजड़ सकतीं हैं
आम-राय से फैसले ,होजायें तो बेहतर है
वरना जिंदगी नासूर ,बन जाती है |
झूंट की परतें जल्दी ही खुल जायें ,तो बेहतर है
वरना झूंट पे झूंट,बोलने की आदत बन जाती है
सो झूंट बोलने की बजाय, एक सच बोला जाये तो बेहतर है
वरना "पवन पागल" दिवाली , होली -- बन जाती है |
वरना सीनें में गुबार,बनती रहती है
सारी भड़ास एक बार में निकल जाये तो बेहतर है
वरना एक छोटी सी बात,एक लम्बी सी कहानी बन जाती है |
क्यों लोग खोखली ज़िदगी,रह-रह कर जीतें हैं ?
किताबें खुलीं क्यों नहीं रहतीं हैं ?
एक छोटी सी गल्ती भी,इतिहास बन जाती है
इतिहास दोहराया न जाये,तो बेहतर है |
सभी को सभी सवालों का,जवाब देना ज़रूरी नहीं है
चेहरे की ख़ामोशी से समझ जायें,तो बेहतर है
वरना तेवर दिखाने में,क्या देर लगती है ?
कुछ फैसलों में किसी से पूछा ना जाये,तो बेहतर है |
ज़िंदगियाँ सँवारने के लिए,उनका उजाड़ ना क्या बेहतर है
जो आज संवरी ,कल उजड़ सकतीं हैं
आम-राय से फैसले ,होजायें तो बेहतर है
वरना जिंदगी नासूर ,बन जाती है |
झूंट की परतें जल्दी ही खुल जायें ,तो बेहतर है
वरना झूंट पे झूंट,बोलने की आदत बन जाती है
सो झूंट बोलने की बजाय, एक सच बोला जाये तो बेहतर है
वरना "पवन पागल" दिवाली , होली -- बन जाती है |
(७५)टूटा-तारा
जो उनका नाम,किताबों से निकल कर
गलीयों में आगया
मैं छप कर तो,उनका हो न सका
संग गलीयों में खेल कर
उन्हें अपने करीब पा गया |
जो आसमान से चाँद निकल कर
जमीं पर आगया
लाख कोशिश की मिलने की,पर मिल न सका
फिर चाँद की चांदनी में नहाकर
उसकी शीतलता को बहुत भा गया |
जो सपनों की दुनियां से निकल कर
हकीकत में आगया
न किताबें रहीं--न चाँद रहा--
उनका साथ तो दूर "पवन पागल"
एक टूटा-तारा बनकर रहगया |
गलीयों में आगया
मैं छप कर तो,उनका हो न सका
संग गलीयों में खेल कर
उन्हें अपने करीब पा गया |
जो आसमान से चाँद निकल कर
जमीं पर आगया
लाख कोशिश की मिलने की,पर मिल न सका
फिर चाँद की चांदनी में नहाकर
उसकी शीतलता को बहुत भा गया |
जो सपनों की दुनियां से निकल कर
हकीकत में आगया
न किताबें रहीं--न चाँद रहा--
उनका साथ तो दूर "पवन पागल"
एक टूटा-तारा बनकर रहगया |
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010
(७४)सावधान
तुम्हें उसे पुकारना ही ,नहीं आता
तुम क्या ख़ाक,उसे पाओगे
पहले ठीक से,पुकारना सीख लो
फिर कहीं जाके,तुम उसे पाओगे |
तू भी मेरा है,यह कहना गलत है
तू 'ही' मेरा है,यह कहना सही है
अपनी इस भूल को,जल्दी सुधार लो
तुरंत ही तुम उसे,अपने सामने पाओगे |
हजारों देवी-देवताओं को भजना गलत है
इससे से ध्यान इधर-उधर भटकता है
कोई' एक' जो तुम्हे अच्छा लगे,उसे 'ही' अपना लो
फिर देखना तुम उसे,अपने करीब ही पाओगे |
तुम्हारे अन्दर ही तो वो,छुपा बैठा है
तो तुम इतनी दूर,क्यों भागते हो
पहले ठीक से,उसे जानना सीख लो
पलक झपक ते ही,तुम उसे पाओगे |
कोंन किसका नोकर है,कोन किसका मालिक
"पवन पागल" ये समझना ज़रूरी है
कहे'कृपालु' आत्मा तन की नोकर है,ये गलत है
तन आत्मा का नोकर है,ये 'ही' अमिट सच है |
तुम क्या ख़ाक,उसे पाओगे
पहले ठीक से,पुकारना सीख लो
फिर कहीं जाके,तुम उसे पाओगे |
तू भी मेरा है,यह कहना गलत है
तू 'ही' मेरा है,यह कहना सही है
अपनी इस भूल को,जल्दी सुधार लो
तुरंत ही तुम उसे,अपने सामने पाओगे |
हजारों देवी-देवताओं को भजना गलत है
इससे से ध्यान इधर-उधर भटकता है
कोई' एक' जो तुम्हे अच्छा लगे,उसे 'ही' अपना लो
फिर देखना तुम उसे,अपने करीब ही पाओगे |
तुम्हारे अन्दर ही तो वो,छुपा बैठा है
तो तुम इतनी दूर,क्यों भागते हो
पहले ठीक से,उसे जानना सीख लो
पलक झपक ते ही,तुम उसे पाओगे |
कोंन किसका नोकर है,कोन किसका मालिक
"पवन पागल" ये समझना ज़रूरी है
कहे'कृपालु' आत्मा तन की नोकर है,ये गलत है
तन आत्मा का नोकर है,ये 'ही' अमिट सच है |
(७३) फासला
सर्दी,गर्मीं ,बरसांत ,में
जब भी फटाव आता है
तो
मन का फटाव
कम हो जाता है |
पल भर अपनों की याद में
जब मन खो जाता है
तो
"पवन पागल" मींलों की दूरी का फासला
गज भर का रह जाता है |
जब भी फटाव आता है
तो
मन का फटाव
कम हो जाता है |
पल भर अपनों की याद में
जब मन खो जाता है
तो
"पवन पागल" मींलों की दूरी का फासला
गज भर का रह जाता है |
(७२) छोड़ दो
कोशिश करना छोड़ दो
वरना ये तुम्हेपीछे छोड़ देगी
जवाब सिर्फ "हाँ " में दो
या फिर "ना" में दो |
वरना ये तुम्हेपीछे छोड़ देगी
जवाब सिर्फ "हाँ " में दो
या फिर "ना" में दो |
(७१)समझदार
कुत्ता बिल्ली का मांस नहीं खाता है
मतलब वो हमसे ज्यादा समझदार है
इंसान जानवर का मांस खाता है
इसका मतलब जानवर ,इंसान से ज्यादा समझदार है |
मतलब वो हमसे ज्यादा समझदार है
इंसान जानवर का मांस खाता है
इसका मतलब जानवर ,इंसान से ज्यादा समझदार है |
(६९)आनंद
जितनी भी मन में,बातें आरही हैं
या-- जा-- रही हैं
आनें दो, जानें दो
पर मानों मत |
ये है 'आनंद'
पर ये है क्या ?
वर्तमान में जीना
बल्की इस पल में जीना |
या-- जा-- रही हैं
आनें दो, जानें दो
पर मानों मत |
ये है 'आनंद'
पर ये है क्या ?
वर्तमान में जीना
बल्की इस पल में जीना |
(६८)नजराना
उसको दो तो, जिंदगी का खिलता गुलाब दो
हो सके तो उसके सामने, अपना ये नकाब उतार दो,
उसकी तेज रौशनी, तमाम जख्म्मों को भर देगी
तुमको उससे सच्ची मोहब्बत है इसका उसे यकीन दो|
वो तुम्हारी तमाम करतूतें,इत्मीनान से देखता रहता है
अच्छे-बुरे सभी कर्मो का,बाकायदा हर पल हिसाब रखता है,
होसके तो उसके सामनें,अपने सारे आँसू बहा दो
ओर अपनी सभी बुराइयाँ ,उसके दामन में दफ़न कर दो|
उसे चाहने वालों की,इस दुनियां में कमी नहीं है
पर वो कुछ खास चुनिन्दा,शाखों पर ही फूल देता है,
होसके तो इन सुखद फूलों की,खुशबुओं को अपनालो
ओर अपनी तमाम खुशियों की दोलत,उसके हवाले कर दो|
वो तुमसे क्या लेगा,जो सारी दुनिया का दाता है
तुम उसे क्या दोगे,जोकि पूरी कायनात का मालिक है?
जिन शाखों पर फूल देता है,उन पर वो फल भी देता है,
"पवन पागल"बेहतर है अपनी नज़र को,उसकी नज़र से मिला दो|
हो सके तो उसके सामने, अपना ये नकाब उतार दो,
उसकी तेज रौशनी, तमाम जख्म्मों को भर देगी
तुमको उससे सच्ची मोहब्बत है इसका उसे यकीन दो|
वो तुम्हारी तमाम करतूतें,इत्मीनान से देखता रहता है
अच्छे-बुरे सभी कर्मो का,बाकायदा हर पल हिसाब रखता है,
होसके तो उसके सामनें,अपने सारे आँसू बहा दो
ओर अपनी सभी बुराइयाँ ,उसके दामन में दफ़न कर दो|
उसे चाहने वालों की,इस दुनियां में कमी नहीं है
पर वो कुछ खास चुनिन्दा,शाखों पर ही फूल देता है,
होसके तो इन सुखद फूलों की,खुशबुओं को अपनालो
ओर अपनी तमाम खुशियों की दोलत,उसके हवाले कर दो|
वो तुमसे क्या लेगा,जो सारी दुनिया का दाता है
तुम उसे क्या दोगे,जोकि पूरी कायनात का मालिक है?
जिन शाखों पर फूल देता है,उन पर वो फल भी देता है,
"पवन पागल"बेहतर है अपनी नज़र को,उसकी नज़र से मिला दो|
गुरुवार, 25 नवंबर 2010
(६७)पथराई आँखें
कभी नजदीकियां,कभी दूरियां करलीं
आज तौबा की,कल शुरू करली |
उनकी खामोंशियाँ,मैनें दिल्ल्लगी करली
उनकी परछाइयाँ , मैनें हूब-हू समझ लीं |
ये जिंदगी भर की तन्हाईयां ,कभी बहुत दूर करलीं
कभी इनसे लड़ते रहे,कभी आँख बंद करलीं |
कभी जो दूर हुईं रोशनियाँ,कभी सिसकियों में हामी भरली
जो हुईं उनकी मेहरबानियाँ,उनकी हाँ में हाँ करली |
अक्सर मुझसे जलती रहती हैं चांदनियां,जो मैनें तारों से दोस्ती करली,
जो जलते सूरज को पकड़ना चाहा, दिल ने धड़कन बंद करलीं |
उनकी कुछ झलकियाँ देख,आँखें शुकून से बंद करलीं
जो उनका दीदार न हुआ,आँखें हमेशा के लिए बंद करलीं|
"पवन पागल"सूखता नहीं कभी दरिया,जो नदियों से दोस्ती करली,
पीने के लिए जीना,जीने के लिए पीना,इन से सच में नफरत करली |
आज तौबा की,कल शुरू करली |
उनकी खामोंशियाँ,मैनें दिल्ल्लगी करली
उनकी परछाइयाँ , मैनें हूब-हू समझ लीं |
ये जिंदगी भर की तन्हाईयां ,कभी बहुत दूर करलीं
कभी इनसे लड़ते रहे,कभी आँख बंद करलीं |
कभी जो दूर हुईं रोशनियाँ,कभी सिसकियों में हामी भरली
जो हुईं उनकी मेहरबानियाँ,उनकी हाँ में हाँ करली |
अक्सर मुझसे जलती रहती हैं चांदनियां,जो मैनें तारों से दोस्ती करली,
जो जलते सूरज को पकड़ना चाहा, दिल ने धड़कन बंद करलीं |
उनकी कुछ झलकियाँ देख,आँखें शुकून से बंद करलीं
जो उनका दीदार न हुआ,आँखें हमेशा के लिए बंद करलीं|
"पवन पागल"सूखता नहीं कभी दरिया,जो नदियों से दोस्ती करली,
पीने के लिए जीना,जीने के लिए पीना,इन से सच में नफरत करली |
बुधवार, 24 नवंबर 2010
(६६)घायल कुदरत
बरसांत दुखी मन से बोली
'मैं तो ठीक ही बरसती थी'
पर आज-कल लोगों ने मुझे भी
बरसाना शुरू कर दिया है |
जो छेड़े मुझे ये दुनिया बावली
मैं बिन बादल ही बरस ने लगी थी
जो छेड़ा कुदरत को
मैंने भी तेवर दिखाना शुरू कर दिया है|
मैं तो साल में चार महीने ही
बरसना चाहती थी
पर इन्होंने मुझे हर महीने ही
बरसाना शुरू कर दिया है|
मैं कहती हूँ मैं पहले ही
ठीक बरसती थी
इन्होंने खामखाँ मुझ से
पंगा लेना शुरू कर दिया है |
वो गरजती हुई आसमान से बोली
'ये क्या कुदरत की कारीगरी ही थी'
जो जब चाहें मुझे
बरसने के लिए छोड़ दिया है |
आसमान ने कहा'बहना बावली
तेरा बदला मैंने लेना शुरू कर दिया है'
आज-कल मैनें भी अचानक
फटना शुरू कर दिया है |
तुरंत इन दोनों से धरती बोली
'मैं तो ठीक ही धुरी पर घुमती थी
पर आज-कल लोगों ने
मेरे अन्दर भी विश्फोट शुरू कर दिया है |
जो ये मुझे करने लगेंगे बावली
मैं डग-मग घूमती थी
रोको इनको मैंने भी बड़े-बड़े
भुकम्प्पों के तेवर दिखाना शुरू कर दिया है |
इन तीनोकी सुन हवा बोली
'मैं तो ठीक ही बहती थी
पर आज-कल लोगों ने
मुझ को दूषित कर दिया है |
दुखी प्राकृतिक साधनों की देवी बोली
'हमने तो ठीक से ही जग की पोटली बांधी थी
पर कुछ चतुर लोगों ने
उसे खोलना शुरू कर दिया है |
"पवन पागल" ये दुनिया हो गई है बावली,
कुदरत ने तो ठीक ही व्यवस्था बना रखी थी
पर कोन समझाए इन नादानों को
इन्होने कुदरत के साथ,अजीब मजाक शुरू कर दिया है |
'मैं तो ठीक ही बरसती थी'
पर आज-कल लोगों ने मुझे भी
बरसाना शुरू कर दिया है |
जो छेड़े मुझे ये दुनिया बावली
मैं बिन बादल ही बरस ने लगी थी
जो छेड़ा कुदरत को
मैंने भी तेवर दिखाना शुरू कर दिया है|
मैं तो साल में चार महीने ही
बरसना चाहती थी
पर इन्होंने मुझे हर महीने ही
बरसाना शुरू कर दिया है|
मैं कहती हूँ मैं पहले ही
ठीक बरसती थी
इन्होंने खामखाँ मुझ से
पंगा लेना शुरू कर दिया है |
वो गरजती हुई आसमान से बोली
'ये क्या कुदरत की कारीगरी ही थी'
जो जब चाहें मुझे
बरसने के लिए छोड़ दिया है |
आसमान ने कहा'बहना बावली
तेरा बदला मैंने लेना शुरू कर दिया है'
आज-कल मैनें भी अचानक
फटना शुरू कर दिया है |
तुरंत इन दोनों से धरती बोली
'मैं तो ठीक ही धुरी पर घुमती थी
पर आज-कल लोगों ने
मेरे अन्दर भी विश्फोट शुरू कर दिया है |
जो ये मुझे करने लगेंगे बावली
मैं डग-मग घूमती थी
रोको इनको मैंने भी बड़े-बड़े
भुकम्प्पों के तेवर दिखाना शुरू कर दिया है |
इन तीनोकी सुन हवा बोली
'मैं तो ठीक ही बहती थी
पर आज-कल लोगों ने
मुझ को दूषित कर दिया है |
दुखी प्राकृतिक साधनों की देवी बोली
'हमने तो ठीक से ही जग की पोटली बांधी थी
पर कुछ चतुर लोगों ने
उसे खोलना शुरू कर दिया है |
"पवन पागल" ये दुनिया हो गई है बावली,
कुदरत ने तो ठीक ही व्यवस्था बना रखी थी
पर कोन समझाए इन नादानों को
इन्होने कुदरत के साथ,अजीब मजाक शुरू कर दिया है |
(६५) बुत
मैं उनसे क्या मांगू,जो खुद ही किसी सहारे के है,
मांगूं तो उससे ,जो सब का सहारा है|
मैं सबसे ये मांगूं,जिनके पास वो है
है तो मेरे पास भी वो,पर बहुत दूर है |
मुझे उनसे जो नजदीकियां मिल जायें खुद ही
मैं अपना सब-कुछ हार दूँ उसके लिये खुद ही
हम पत्थर के बुत तो बनते रहते हैं खुद ही
"पवन पागल"क्यों न खुदाई बुत बन जायें खुद ही |
मांगूं तो उससे ,जो सब का सहारा है|
मैं सबसे ये मांगूं,जिनके पास वो है
है तो मेरे पास भी वो,पर बहुत दूर है |
मुझे उनसे जो नजदीकियां मिल जायें खुद ही
मैं अपना सब-कुछ हार दूँ उसके लिये खुद ही
हम पत्थर के बुत तो बनते रहते हैं खुद ही
"पवन पागल"क्यों न खुदाई बुत बन जायें खुद ही |
(६४)ये हसरतें
मुझे तोड़कर तुम,यूँ ही मत फेंक देना
मैं बड़ी मुश्किल से खिला हूँ,
होसके तो मुझे कुछ अपनी परछाइयाँ देनां
मैं धूप में बहुत झुलश चूका हूँ |
मुझे परछाईयौं में रहकर खिलने देना,
मैं धूप में कभी खिला नहीं हूँ
होसके तो मुझे अपनी पनाह देना,
मैं बहार आने से डरा हुआ हूँ |
मुझ से बिछुड़ कर तुम,यूँ ही मत चले जाना
पास से देखना,मैं ख़तम ही हूँ
होसके तो मुझे कुछ,सहारा देना
मैं तुम्हें दूर जाते न देखना चाहता हूँ |
मैं जब भी रुखसत हूँ,अपने पास ही जगह देना,
मैं बड़ी हसरत लिये जारहा हूँ
होसके तो "पवन पागल" को अपना प्यार देना
जिंदगी भर साथ रहने का,अपना वादा देना|
मैं बड़ी मुश्किल से खिला हूँ,
होसके तो मुझे कुछ अपनी परछाइयाँ देनां
मैं धूप में बहुत झुलश चूका हूँ |
मुझे परछाईयौं में रहकर खिलने देना,
मैं धूप में कभी खिला नहीं हूँ
होसके तो मुझे अपनी पनाह देना,
मैं बहार आने से डरा हुआ हूँ |
मुझ से बिछुड़ कर तुम,यूँ ही मत चले जाना
पास से देखना,मैं ख़तम ही हूँ
होसके तो मुझे कुछ,सहारा देना
मैं तुम्हें दूर जाते न देखना चाहता हूँ |
मैं जब भी रुखसत हूँ,अपने पास ही जगह देना,
मैं बड़ी हसरत लिये जारहा हूँ
होसके तो "पवन पागल" को अपना प्यार देना
जिंदगी भर साथ रहने का,अपना वादा देना|
(६३)मोसम के तकाजे
सावन-भादों में बरसांत
अच्छी लगती है
माघ में लगातार बरसे
तो कपं-कपी लगती है |
किसी को तू कोहरे में नहाई
दुल्हन सी लगती लगती है
जो फुट-पाथ पर बसर कर रहें हैं
उन्हें "पवन पागल" तू सोतेली लगती है |
अच्छी लगती है
माघ में लगातार बरसे
तो कपं-कपी लगती है |
किसी को तू कोहरे में नहाई
दुल्हन सी लगती लगती है
जो फुट-पाथ पर बसर कर रहें हैं
उन्हें "पवन पागल" तू सोतेली लगती है |
मंगलवार, 23 नवंबर 2010
(६२) कुछ शेर
आँखों से आँखें मिलाने की,
तुम्हारी आदत पुरानी होगी
हम अंदाजें बंया,झुकी पलकों से
भांप लेते हैं|
* सामने देख कर चलो,इसी में सब का भला है,
नीची नजरें करके चलने वालों को,यंहा क्या मिला है ?
कभी रुकना,कभी चलना,ये जिंदगी एक झमेला है
इतने इंसानों के होते हुए भी,आज आदमी अकेला है |
* कभी तनहाइयों से मैं परेशान,
कभी तनहाइयाँ मुझ से परेशान
ऊपर वाले का बहुत-बहुत एहसान,
जिसकी बदोलत मेरी बनी हुई है जान|
* चमन में बिच्ढ़ कर, वापस मिलने की उम्मीद,
दिल को सुकून देती है,
किसी बुरे सपने को देख कर,उसके हकीकत में न होने की उम्मीद,
सब को सुकून देती है|
*मैं बहार से डरता नहीं हूँ,
बहार में मुझ से कोई न मिले,इसलिए डरता हूँ
चमन में फूल खिलें,मुझे एक भी न मिले
बस इस ख़याल से मैं,रात-दिन डरता हूँ|
*मैं रात-रात भर छुप-छुप के क्यों मिलूं उनसे,
वो जो दिन के उजाले में,मिलने से डरतें हैं
मैं जो सरेआम मोहब्बत करूँ उनसे,
फिर वो उसे क्यों, जग से छुपाते रहते हैं|
*तुम्हारी आँखें बहुत बोलतीं हैं,
जरा पलकें गिराना,
मेरी नज़र तुम्हारी नज़र से बोलती है,
संभल कर खोलना,एक को नहीं,हजारों को गिराना|
तुम्हारी आदत पुरानी होगी
हम अंदाजें बंया,झुकी पलकों से
भांप लेते हैं|
* सामने देख कर चलो,इसी में सब का भला है,
नीची नजरें करके चलने वालों को,यंहा क्या मिला है ?
कभी रुकना,कभी चलना,ये जिंदगी एक झमेला है
इतने इंसानों के होते हुए भी,आज आदमी अकेला है |
* कभी तनहाइयों से मैं परेशान,
कभी तनहाइयाँ मुझ से परेशान
ऊपर वाले का बहुत-बहुत एहसान,
जिसकी बदोलत मेरी बनी हुई है जान|
* चमन में बिच्ढ़ कर, वापस मिलने की उम्मीद,
दिल को सुकून देती है,
किसी बुरे सपने को देख कर,उसके हकीकत में न होने की उम्मीद,
सब को सुकून देती है|
*मैं बहार से डरता नहीं हूँ,
बहार में मुझ से कोई न मिले,इसलिए डरता हूँ
चमन में फूल खिलें,मुझे एक भी न मिले
बस इस ख़याल से मैं,रात-दिन डरता हूँ|
*मैं रात-रात भर छुप-छुप के क्यों मिलूं उनसे,
वो जो दिन के उजाले में,मिलने से डरतें हैं
मैं जो सरेआम मोहब्बत करूँ उनसे,
फिर वो उसे क्यों, जग से छुपाते रहते हैं|
*तुम्हारी आँखें बहुत बोलतीं हैं,
जरा पलकें गिराना,
मेरी नज़र तुम्हारी नज़र से बोलती है,
संभल कर खोलना,एक को नहीं,हजारों को गिराना|
(६१) चाटुकार
हर ऊँची शकसियत के आस-पास,
चाटुकारों का मेला सा लगा होता है
जैसे शहद के छते आस -पास,
मधु-मक्खियों का मेला सा लगा होता है|
हर कोई एक दूसरेपर, पैर रख कर,
आगे बढ़ना चाहता है
फिर लोगों की जिंदगी थम सी जाती है
उस शक्श के आस-पास |
क्या गलत है,क्या सही इसका,
उस शक्श को कभी पता नहीं चलता
वो तो चाहता है की,"पवन पागल"
खुजाने वाले रहें,उसके आस-पास |
चाटुकारों का मेला सा लगा होता है
जैसे शहद के छते आस -पास,
मधु-मक्खियों का मेला सा लगा होता है|
हर कोई एक दूसरेपर, पैर रख कर,
आगे बढ़ना चाहता है
फिर लोगों की जिंदगी थम सी जाती है
उस शक्श के आस-पास |
क्या गलत है,क्या सही इसका,
उस शक्श को कभी पता नहीं चलता
वो तो चाहता है की,"पवन पागल"
खुजाने वाले रहें,उसके आस-पास |
(६०) बेईमानी-रिश्ता
ये रिश्ता शादी का,बेईमानी सा लगता है,
जब हम-सफ़र साथ न दे|
ये रिश्ता-----
होना उनका,अजनबी सा लगता है,
जब हम-सफ़र साथ न दे|
ये रिश्ता--------
हम गैरों की,बांहों में क्यों रहतें हैं?
सिर्फ इसलिए,की हम-सफ़र साथ न दे|
ये रिश्ता-----
क्या खता है मेरी,जो मैनें ओरों को चाहा ?
अपनों ने पूछा नहीं कभी |
ये रिश्ता------
हम बरबाद हो गये, खुशियों की चाहत में,
उन्हें आसमान मिला,हमें जमीं भी नहीं |
ये रिश्ता------
क्यों आंती हैं खुशियाँ, इस सूने जीवन में,
"पवन पागल" उन्हें बरसांत मिलें,हमें सूखा भी नहीं |
ये रिश्ता------
जब हम-सफ़र साथ न दे|
ये रिश्ता-----
होना उनका,अजनबी सा लगता है,
जब हम-सफ़र साथ न दे|
ये रिश्ता--------
हम गैरों की,बांहों में क्यों रहतें हैं?
सिर्फ इसलिए,की हम-सफ़र साथ न दे|
ये रिश्ता-----
क्या खता है मेरी,जो मैनें ओरों को चाहा ?
अपनों ने पूछा नहीं कभी |
ये रिश्ता------
हम बरबाद हो गये, खुशियों की चाहत में,
उन्हें आसमान मिला,हमें जमीं भी नहीं |
ये रिश्ता------
क्यों आंती हैं खुशियाँ, इस सूने जीवन में,
"पवन पागल" उन्हें बरसांत मिलें,हमें सूखा भी नहीं |
ये रिश्ता------
(५९) 'मन'
हे 'मन' तू एक यान है
जिसकी गति की तुलना करना
असंभव है |
इस तन के चिड़िया घर में
'तू'
एक विचरता हुआ पक्षी है|
हे 'मन' पहले तू लड़ता है
फिर हथियार लड़तें हैं
तेरे हारे 'हार' है
तेरे जीते 'जीत है|
हे 'मन'पहले तू चलता है
फिर हम चलतें हैं
जब तू गलता है
तो "पवन पागल"मरता है|
हे मन 'जु'शब्द के तुझ में
मिलने पर
तू
एक सुगंधित पुष्प है|
तेरा न कोई 'आदि' है
न कोई अन्त है
'तू' इस सृष्टि में "पवन पागल"
अन्नंत है|
जिसकी गति की तुलना करना
असंभव है |
इस तन के चिड़िया घर में
'तू'
एक विचरता हुआ पक्षी है|
हे 'मन' पहले तू लड़ता है
फिर हथियार लड़तें हैं
तेरे हारे 'हार' है
तेरे जीते 'जीत है|
हे 'मन'पहले तू चलता है
फिर हम चलतें हैं
जब तू गलता है
तो "पवन पागल"मरता है|
हे मन 'जु'शब्द के तुझ में
मिलने पर
तू
एक सुगंधित पुष्प है|
तेरा न कोई 'आदि' है
न कोई अन्त है
'तू' इस सृष्टि में "पवन पागल"
अन्नंत है|
(५८) नेता
नेता,कभी किसी को कुछ भी नहीं देता
खुद के स्वार्थ के लिए,जनता से सब कुछ ले लेता |
चुनाव जीतने के लिए
जनता को लम्बे-लम्बे हाथ जोड़ता|
चुनाव जीतने के बाद
इस भोली-भाली गरीब जनता को भूल जाता|
अपने उदर की पूर्ति के लिए
जी भर के लूट-पाट करता|
बुरे से बुरे कर्म वो करता,पर कभी भी
हवालात की हवा नहीं खता|
अछे-खासे इंसान को,हवालात जरुर पंहुँचाता
सारे घोटालों की जड़ वो होता,फिर भी मज़बूत पकड़ रखता|
सत्ता में रहते उसका 'बाल भी बांका'नही होता
सत्ता से जाने के बाद,करोंडो डकारने का भांडा फूटता|
फिर भी वो आज,'खुले सांड'की तरह आज़ाद घूमता
"पवन पागल"कोई आज भी उसका,कुछ नहीं बिगाड़ सकता|
खुद के स्वार्थ के लिए,जनता से सब कुछ ले लेता |
चुनाव जीतने के लिए
जनता को लम्बे-लम्बे हाथ जोड़ता|
चुनाव जीतने के बाद
इस भोली-भाली गरीब जनता को भूल जाता|
अपने उदर की पूर्ति के लिए
जी भर के लूट-पाट करता|
बुरे से बुरे कर्म वो करता,पर कभी भी
हवालात की हवा नहीं खता|
अछे-खासे इंसान को,हवालात जरुर पंहुँचाता
सारे घोटालों की जड़ वो होता,फिर भी मज़बूत पकड़ रखता|
सत्ता में रहते उसका 'बाल भी बांका'नही होता
सत्ता से जाने के बाद,करोंडो डकारने का भांडा फूटता|
फिर भी वो आज,'खुले सांड'की तरह आज़ाद घूमता
"पवन पागल"कोई आज भी उसका,कुछ नहीं बिगाड़ सकता|
सोमवार, 22 नवंबर 2010
(५७) गंजे को नाखून
थोडा ऊँचा हुआ था, पर हमसे नीचा ही रहा
'गंजे को नाख़ून मिले', कुछ ऐसा ही रहा |
अपने आपको तीस-मारखां 'मार्डन ' समझता था
अपनी ही सूरत पर, खुद ही मरता था |
बहुत अभिमान था,उसे अपने आप पर
बड़ा खुश होता था,हमें गुमराह कर|
सही को गलत ,गलत को सही बताना
मानों उसका पेशा था|
खुद अपना नुकसान कभी न करता
दूसरों को नुकसान के,नुक्कशे बताया करता|
पर हम तो उसके गुरु थे
सुनते उसकी,मानते मन की|
इसीलिए अब तक हमारे सर पर बाल हैं
ओर वो कभी का टकला हो गया |
वो हमेशा 'ड्राई एरिये' को बताता था 'जेंटरी प्लेस'
सलवार को बताता था 'सलेक्स
इस तरह वो करता हमें 'मिसप्लेस' |
बांतों का न था,उसके पास कभी 'एन्ड'
हर किसी को बताता अपनी 'गर्ल-फ्रेंड' |
'ब्यूटी' की तुलना पनीर से करता
कहता 'क्या चीज' है?
पनीर को कहता,' हाउ स्वीट यू आर'
हकीकत में उसका,कोई यार ही नहीं था |
बरसांत का मोंसम था,एक दिन बोला
'यार" बीयर "होनी चाहिये
हमने कहा ज़रूर
पर "पवन पागल"
'बीयर' करने वाला भी,होना चाहिये |
'गंजे को नाख़ून मिले', कुछ ऐसा ही रहा |
अपने आपको तीस-मारखां 'मार्डन ' समझता था
अपनी ही सूरत पर, खुद ही मरता था |
बहुत अभिमान था,उसे अपने आप पर
बड़ा खुश होता था,हमें गुमराह कर|
सही को गलत ,गलत को सही बताना
मानों उसका पेशा था|
खुद अपना नुकसान कभी न करता
दूसरों को नुकसान के,नुक्कशे बताया करता|
पर हम तो उसके गुरु थे
सुनते उसकी,मानते मन की|
इसीलिए अब तक हमारे सर पर बाल हैं
ओर वो कभी का टकला हो गया |
वो हमेशा 'ड्राई एरिये' को बताता था 'जेंटरी प्लेस'
सलवार को बताता था 'सलेक्स
इस तरह वो करता हमें 'मिसप्लेस' |
बांतों का न था,उसके पास कभी 'एन्ड'
हर किसी को बताता अपनी 'गर्ल-फ्रेंड' |
'ब्यूटी' की तुलना पनीर से करता
कहता 'क्या चीज' है?
पनीर को कहता,' हाउ स्वीट यू आर'
हकीकत में उसका,कोई यार ही नहीं था |
बरसांत का मोंसम था,एक दिन बोला
'यार" बीयर "होनी चाहिये
हमने कहा ज़रूर
पर "पवन पागल"
'बीयर' करने वाला भी,होना चाहिये |
(५६) मैरिज एजेंट
एजेंट बोले----
"आपकी भावी पत्न्नी का नाम 'स्नेहलता है
स्नेह का तो ब्लैक मार्केट है,ओर
लता आपके पीछे है "
भावी दुल्हा बोला---
क्या दो रत्नों की वरमाला का फंदा
एक ही के गले में डाल रहे हो
क्यों दो कन्याओं का मुझ से वरण कर रहे हो
क्या तुम्हें जाना है जेल,जो मुझे फांस कर
करते हो मुझ से 'ब्लैक-मेल
सुनो! अगर तुम पकडे गये,तो छुड़ा लाऊंगा
पर दहेज में 'ब्लैक के साथ 'वाहिट भी लूँगा |
क्या आपकी यह प्यारी लता कंही
अम्बर बेल की सहेली तो नहीं
लिपट जाये बिचारे मुझ जैसे किसी
भोले-भाले पेड़ से
ओर भोजन का बटवारा करे
मकान का बटवारा करे,बंटवारा करे' ऐ टू जेड '
बिना कोई मुवावजा पेड़ को दिये हुए |
हे महोदय आपका यह फ्री' सेम्पल
आप के ही पास ही रखिये
दीजिये किसी ऐसे मरीज़ को,जिसकी बीमारी
"पवन पागल" 'फ्री सेम्पल' से ही जाती हो |
"आपकी भावी पत्न्नी का नाम 'स्नेहलता है
स्नेह का तो ब्लैक मार्केट है,ओर
लता आपके पीछे है "
भावी दुल्हा बोला---
क्या दो रत्नों की वरमाला का फंदा
एक ही के गले में डाल रहे हो
क्यों दो कन्याओं का मुझ से वरण कर रहे हो
क्या तुम्हें जाना है जेल,जो मुझे फांस कर
करते हो मुझ से 'ब्लैक-मेल
सुनो! अगर तुम पकडे गये,तो छुड़ा लाऊंगा
पर दहेज में 'ब्लैक के साथ 'वाहिट भी लूँगा |
क्या आपकी यह प्यारी लता कंही
अम्बर बेल की सहेली तो नहीं
लिपट जाये बिचारे मुझ जैसे किसी
भोले-भाले पेड़ से
ओर भोजन का बटवारा करे
मकान का बटवारा करे,बंटवारा करे' ऐ टू जेड '
बिना कोई मुवावजा पेड़ को दिये हुए |
हे महोदय आपका यह फ्री' सेम्पल
आप के ही पास ही रखिये
दीजिये किसी ऐसे मरीज़ को,जिसकी बीमारी
"पवन पागल" 'फ्री सेम्पल' से ही जाती हो |
(५५) बिगडेल बाराती
बारात समय से तीन घंटे पहले ही आ पंहुँची
पर बेटी वाले के घर से तीन मील दूर पंहुँची
रास्ता भटक गये थे बेचारे
आखिर पकवानों की खुशबू सूंघते-सांघते
पहुंचे बेटी वाले के आस-पास
एक जान-पहचान वाले ने आश्रय दिया
ठंडे पानी के अलावा,एक गरम प्याला चाय भी दिया |
बारातियों में एक थे,एक सही एक बटा दो
(आप समझ गये होंगे ) दरअसल वो कुछ काणें थे
चाय का जो प्याला दिया उन्हें ,कहा फेंक दो
हमनें चटकी ली,पूछा कंहा? -- वे बोले
मेरे उप्पर --
पास खड़ा था एक गधा
दे मारा हमने उसी पे वो चाय का प्याला
काटो तो उन्हें खून नहीं |
खैर---लड़की वाले के घर पंहुंचे
रिसेप्शन में मिला ठंडा कोका-कोला
हो गये जल कर वो आग-बबूला
बोले 'ये क्या मजाक' ?
पहले ठंडा,फिर गर्म, फिर ठंडा
उपर से हमें गधा समझ मारा एक डंडा
हम बोले
'श्रीमान एक सही एक बटा दो जी
ये तो आधी को एक करने का 'सेम्पल है
अभी तो पूरा 'ओपरेशन बाकी है |
डेढ़ आँख उनकी,ओर ऊपर से उनका सदव्यवहार
हमें उनकी नेता गीरी पर कोई शक न रहा
अपने कुछ खास लोगों को हमने बताया
'इनकी चमचागिरी करो
येही हैं,बनाने-बिगाड़ने वाले
हर बारात में,एक ऐसा मोहरा ज़रूर होता है
बात लोगों को जची
खूब उनकी सेवा की,खूब लगाया मश्का
पर ये क्या,पड़ गया था उन्हें अब
इन सब का चश्का---
किसी से सुना वे भूतों से डरतें हैं
बने भूत रात में,उतारा उनका भूत बात ही बात में
कहने लगे अब बस करो,कोई भी खलल अब
नहीं होगा बारात में------
"पवन पागल"हर बारात में ऐसा एक शक्श ज़रूर होता है
जो बनते काम को बिगाड़ता है बात-बात में|
पर बेटी वाले के घर से तीन मील दूर पंहुँची
रास्ता भटक गये थे बेचारे
आखिर पकवानों की खुशबू सूंघते-सांघते
पहुंचे बेटी वाले के आस-पास
एक जान-पहचान वाले ने आश्रय दिया
ठंडे पानी के अलावा,एक गरम प्याला चाय भी दिया |
बारातियों में एक थे,एक सही एक बटा दो
(आप समझ गये होंगे ) दरअसल वो कुछ काणें थे
चाय का जो प्याला दिया उन्हें ,कहा फेंक दो
हमनें चटकी ली,पूछा कंहा? -- वे बोले
मेरे उप्पर --
पास खड़ा था एक गधा
दे मारा हमने उसी पे वो चाय का प्याला
काटो तो उन्हें खून नहीं |
खैर---लड़की वाले के घर पंहुंचे
रिसेप्शन में मिला ठंडा कोका-कोला
हो गये जल कर वो आग-बबूला
बोले 'ये क्या मजाक' ?
पहले ठंडा,फिर गर्म, फिर ठंडा
उपर से हमें गधा समझ मारा एक डंडा
हम बोले
'श्रीमान एक सही एक बटा दो जी
ये तो आधी को एक करने का 'सेम्पल है
अभी तो पूरा 'ओपरेशन बाकी है |
डेढ़ आँख उनकी,ओर ऊपर से उनका सदव्यवहार
हमें उनकी नेता गीरी पर कोई शक न रहा
अपने कुछ खास लोगों को हमने बताया
'इनकी चमचागिरी करो
येही हैं,बनाने-बिगाड़ने वाले
हर बारात में,एक ऐसा मोहरा ज़रूर होता है
बात लोगों को जची
खूब उनकी सेवा की,खूब लगाया मश्का
पर ये क्या,पड़ गया था उन्हें अब
इन सब का चश्का---
किसी से सुना वे भूतों से डरतें हैं
बने भूत रात में,उतारा उनका भूत बात ही बात में
कहने लगे अब बस करो,कोई भी खलल अब
नहीं होगा बारात में------
"पवन पागल"हर बारात में ऐसा एक शक्श ज़रूर होता है
जो बनते काम को बिगाड़ता है बात-बात में|
(५४)मौन प्रचार
परिवार नियोजन का मौनं प्रचार करने चले
कुछ नये आधुनिक,सस्ते-सुंदर तरीके सोचने चले|
लोगों की शर्ट पर बने दिल को
तीर से चीरता हुआ मत दिखाओ
दिल को सजीव ही दिखाओ|
शर्ट पर दिल की जगह ,लाल त्रिकोण बनाओ|
गले में लोकिट की जगह,कानों में झुमकों की जगह
माथे पर टीके की जगह,हाथों में दस्तबंद की जगह
सिर्फ लाल त्रिकोण का डिजाईन अपनाओ
ओंर मुफ्त में वेल एडवांस'उपाधी का सम्मान भोगो|
खाना परोसते समय भी तुम दो व दो के बाद
कभी नहीं का नारा मत भूलो
दो बार ही परोसो,दो के बाद कभी नहीं
खाने में बचत होगी,ओंर मोंन प्रचार भी होगा|
बस,रेल,सिनेमा या बारात की विदाई में
अगर किसी को रुपये देने हों तो
उलटे त्रिकोण की शक्ल बना कर ही दो
परिवार-नियोजन का मौनं प्रचार होगा|
घर में रोटी बनानें में कमी करो
शादी-ब्याह में पूड़ियाँ बिलकुल भी मत बनाओ
इन सब की जगह तिकोने पंरांठे बनाओ
सभी व्यंजन तिकोने बर्तन में परोसे हुए हों
ओंर सभी का आकार समोंसे से मिलता-झूलता हो
परिवार-नियोजन का मौनं प्रचार होगा|
फक्कड़ हो तो शादी कर लो
घर में सोच समझ कर थोड़ी आबादी कर लो
मिल कर गाना गाओ ------
एक से दो भले,दो से भले चार,पर याद रखो
अगर इससे आगे बढ़े तो होगा,उस फेमस नारे पर
होगा अत्याचार (हम दो-हमारे दो) |
वन,टू, थ्री,पर इससे आगे मत हों फ्री
एक को मानो कोमा
दो को अर्धविराम ओंर
"पवन पागल" तीन को मानो पूर्ण विराम |
कुछ नये आधुनिक,सस्ते-सुंदर तरीके सोचने चले|
लोगों की शर्ट पर बने दिल को
तीर से चीरता हुआ मत दिखाओ
दिल को सजीव ही दिखाओ|
शर्ट पर दिल की जगह ,लाल त्रिकोण बनाओ|
गले में लोकिट की जगह,कानों में झुमकों की जगह
माथे पर टीके की जगह,हाथों में दस्तबंद की जगह
सिर्फ लाल त्रिकोण का डिजाईन अपनाओ
ओंर मुफ्त में वेल एडवांस'उपाधी का सम्मान भोगो|
खाना परोसते समय भी तुम दो व दो के बाद
कभी नहीं का नारा मत भूलो
दो बार ही परोसो,दो के बाद कभी नहीं
खाने में बचत होगी,ओंर मोंन प्रचार भी होगा|
बस,रेल,सिनेमा या बारात की विदाई में
अगर किसी को रुपये देने हों तो
उलटे त्रिकोण की शक्ल बना कर ही दो
परिवार-नियोजन का मौनं प्रचार होगा|
घर में रोटी बनानें में कमी करो
शादी-ब्याह में पूड़ियाँ बिलकुल भी मत बनाओ
इन सब की जगह तिकोने पंरांठे बनाओ
सभी व्यंजन तिकोने बर्तन में परोसे हुए हों
ओंर सभी का आकार समोंसे से मिलता-झूलता हो
परिवार-नियोजन का मौनं प्रचार होगा|
फक्कड़ हो तो शादी कर लो
घर में सोच समझ कर थोड़ी आबादी कर लो
मिल कर गाना गाओ ------
एक से दो भले,दो से भले चार,पर याद रखो
अगर इससे आगे बढ़े तो होगा,उस फेमस नारे पर
होगा अत्याचार (हम दो-हमारे दो) |
वन,टू, थ्री,पर इससे आगे मत हों फ्री
एक को मानो कोमा
दो को अर्धविराम ओंर
"पवन पागल" तीन को मानो पूर्ण विराम |
(५३) भड़ास
पत्नी ने,पति से कहा की
अख़बार से मुंह क्यों पंहुंचते हो
कालिख लग जाएगी
जाकर धो क्यों नही आते|
पति ने कहा,अख़बार ही तो है
रद्दी के भाव बिक जायेगा
पत्नी बोलीं
ये तो फिर भी रद्दी के भाव बिक जायेगा
पर तुम्हारा तो इतने सालों से
भाव भी तय नहीं हुआ है की
किस भाव बिकोगे
ओर बिकोगे की भी नहीं
खामखां अख़बार को ख़राब कर रहे हो
पति ने चुप-चाप अख़बार रख दिया
पत्नी ने उसी अख़बार से
दर्पण को अच्छी तरह से पोंछा
अपना सुव्रण मुख उसमें देख कर
"पवन पागल"वो हंसी ,ओर अपना होट कचोटा
ओर कहा की क्या खूब हमने उनको डांटा |
अख़बार से मुंह क्यों पंहुंचते हो
कालिख लग जाएगी
जाकर धो क्यों नही आते|
पति ने कहा,अख़बार ही तो है
रद्दी के भाव बिक जायेगा
पत्नी बोलीं
ये तो फिर भी रद्दी के भाव बिक जायेगा
पर तुम्हारा तो इतने सालों से
भाव भी तय नहीं हुआ है की
किस भाव बिकोगे
ओर बिकोगे की भी नहीं
खामखां अख़बार को ख़राब कर रहे हो
पति ने चुप-चाप अख़बार रख दिया
पत्नी ने उसी अख़बार से
दर्पण को अच्छी तरह से पोंछा
अपना सुव्रण मुख उसमें देख कर
"पवन पागल"वो हंसी ,ओर अपना होट कचोटा
ओर कहा की क्या खूब हमने उनको डांटा |
(५२) समाजवाद
सेठ क्यों करता है लेट
क्यों करवा रहा है वेट
क्यों नहीं हमारी बढवा देता है रेट
हमारे कष्टों को मेट
अगर ऐसा नहीं हुआ तो
हम तुझसे करेंगे हेट
तेरा सकडा कर देंगे गेट
फिर कैसे मायेगा तेरा पेट
एक निशचित बता दे डेट
जब भर पाए गा हमारा पेट
तेरा बदल देंगे हम फेट
फिर तू कंहासे खायेगा आमलेट
तेरा ठंडा कर देंगे मार्केट
अगर नहीं बढ़वाई जो रेट
तेरा बदल देंगे फोरचुनेट
अगर २५० रूपये सलरी रखी नेट
"पवन पागल को ज़ल्दी ही दिलादे इन्क्रीमेंट
जिस से वो जल्दी ही हो जाये परमानेंट |
क्यों करवा रहा है वेट
क्यों नहीं हमारी बढवा देता है रेट
हमारे कष्टों को मेट
अगर ऐसा नहीं हुआ तो
हम तुझसे करेंगे हेट
तेरा सकडा कर देंगे गेट
फिर कैसे मायेगा तेरा पेट
एक निशचित बता दे डेट
जब भर पाए गा हमारा पेट
तेरा बदल देंगे हम फेट
फिर तू कंहासे खायेगा आमलेट
तेरा ठंडा कर देंगे मार्केट
अगर नहीं बढ़वाई जो रेट
तेरा बदल देंगे फोरचुनेट
अगर २५० रूपये सलरी रखी नेट
"पवन पागल को ज़ल्दी ही दिलादे इन्क्रीमेंट
जिस से वो जल्दी ही हो जाये परमानेंट |
(५१) झुलसते अरमान
सपनों की माला टूट गई
बिखर गया हर एक मोती
जिंदगी अब बोझ लगती है
क्यों न यह हो जाती छोटी |
अरमान किसी के थे की ,हम उनका नाम रोशन करें
पर अँधेरे हमारे साथी बने
काश वे उजालों को भी बुला लेते
अगर ऐसा होता तो ये ,कुदरत की अदभुत कारीगरी होती |
सुना है ,जी कर भी मरना आता है लोगों को
ओर मर कर भी,जीते हैं लोग
पर "पवन पागल"हम तो बीच भंवर में ही रहगये
न आज जीए,न कल मेरे|
बिखर गया हर एक मोती
जिंदगी अब बोझ लगती है
क्यों न यह हो जाती छोटी |
अरमान किसी के थे की ,हम उनका नाम रोशन करें
पर अँधेरे हमारे साथी बने
काश वे उजालों को भी बुला लेते
अगर ऐसा होता तो ये ,कुदरत की अदभुत कारीगरी होती |
सुना है ,जी कर भी मरना आता है लोगों को
ओर मर कर भी,जीते हैं लोग
पर "पवन पागल"हम तो बीच भंवर में ही रहगये
न आज जीए,न कल मेरे|
रविवार, 21 नवंबर 2010
(५०) फ़िल्मी कविता
ओ बसंती पवन पागल ,अगर मुझ से मोहब्बत है,
मैं तो कब से खड़ी,पर आपकी नजरों ने ना समझा प्यार के काबिल|
आवारा ऐ मेरे दिल,बचपन की मोहब्बत को दिल से जुदा ना करना,
बोल री कटपुतली गोरी ,भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना|
चाँद फिर निकला,छोड़ दे सारी दुनिया,
दिल अपना ओर प्रीत पराई, छोटी सी ये दुनिया|
दिल जो ना कह सका,दुनिया करे सवाल,
दुनियां में हम आंयें हैं तो,इक बेवफा से प्यार हो जाये|
घर आया मेरा परदेशी,गुडिया हमसे रूठी रहोगी कब तक,
है इसी में प्यार की आरज़ू,गुजरा ज़माना वापस नहीं आता |
हमें काश तुमसे मोहब्बत न होती,जीना हम को रास न आया,
जीया बेक़रार है,कभी ख़ुशी कभी गम |
कोई हम-दम न रहा,लाख छुपाओ छुप न सकेगा,
लो आगई उनकी याद,लग जा गले से दिल हंसी रात हो ना हो|
वो भूली दांस्ता याद आगई,मेरा मन डोले मेरा तन डोले,
मैं इक सदी से बैठी हूँ ,मैं तो तुम संग नैन लड़ा के हार गई |
मेरा दिल ये पुकारे आजा,मेरे अश्कों का गम न कर,
मेरे जीवन साथी, मोहब्बत की झूंटी कहानी पे रोये |
मुझे ऐसा मिला मोती,न छेड़ो कल के अफसाने,
नगरी-नगरी धुंडू रे सांवरिया,नैना बरसे रिम-झिम रिम-झिम |
निंदिया से जागी बहार, उनको ये शिकायत है,
पिया ऐसो जीया में समाय गयो,प्यार किया तो डरना क्या|
रात ओर दिन दिया जले,राजा की आएगी बरात ,
रसिक बलमा काहे दिल ,दिल उठ गया है जंहा से|
"पवन पागल"आप के दिल ने कई बार पुकारा मुझ को,
फिर न कीजिये गिला ,मेरी गुस्ताख निगाही को |
मैं तो कब से खड़ी,पर आपकी नजरों ने ना समझा प्यार के काबिल|
आवारा ऐ मेरे दिल,बचपन की मोहब्बत को दिल से जुदा ना करना,
बोल री कटपुतली गोरी ,भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना|
चाँद फिर निकला,छोड़ दे सारी दुनिया,
दिल अपना ओर प्रीत पराई, छोटी सी ये दुनिया|
दिल जो ना कह सका,दुनिया करे सवाल,
दुनियां में हम आंयें हैं तो,इक बेवफा से प्यार हो जाये|
घर आया मेरा परदेशी,गुडिया हमसे रूठी रहोगी कब तक,
है इसी में प्यार की आरज़ू,गुजरा ज़माना वापस नहीं आता |
हमें काश तुमसे मोहब्बत न होती,जीना हम को रास न आया,
जीया बेक़रार है,कभी ख़ुशी कभी गम |
कोई हम-दम न रहा,लाख छुपाओ छुप न सकेगा,
लो आगई उनकी याद,लग जा गले से दिल हंसी रात हो ना हो|
वो भूली दांस्ता याद आगई,मेरा मन डोले मेरा तन डोले,
मैं इक सदी से बैठी हूँ ,मैं तो तुम संग नैन लड़ा के हार गई |
मेरा दिल ये पुकारे आजा,मेरे अश्कों का गम न कर,
मेरे जीवन साथी, मोहब्बत की झूंटी कहानी पे रोये |
मुझे ऐसा मिला मोती,न छेड़ो कल के अफसाने,
नगरी-नगरी धुंडू रे सांवरिया,नैना बरसे रिम-झिम रिम-झिम |
निंदिया से जागी बहार, उनको ये शिकायत है,
पिया ऐसो जीया में समाय गयो,प्यार किया तो डरना क्या|
रात ओर दिन दिया जले,राजा की आएगी बरात ,
रसिक बलमा काहे दिल ,दिल उठ गया है जंहा से|
"पवन पागल"आप के दिल ने कई बार पुकारा मुझ को,
फिर न कीजिये गिला ,मेरी गुस्ताख निगाही को |
(49) अधूरी प्यास
उसका ही रंग काला है,यक़ीनन वो गोपाला ही होगा
मेरा कृष्णा बिना राधा के,अधूरा ही होगा |
उसमें इतना खो जांयें ,की शायद कान्हा मिल जाये
बिना राधा-कृष्ण के,जिंदगी में अँधेरा ही होगा |
उस प्यास का क्या ज़िक्र, जो वृन्दावन में भी ना भुझी
शायद द्वारका में,वो हमारा इंतजार कर रहा होगा |
जिंदगी में सांसे इतनी तेजी से आती-जातीं रहतीं हैं
इन को रोक कर देखो,पास ही में कृष्णा मिल जायेगा |
उसकी तस्वीर को देखने पर,शुकून मिलता है
मन की आँखें बंद करलें,अपने अन्दर ही मिल जायेगा |
पहले हम उनसे मिलने के ,काबिल तो बन जाएँ
तन-मन पर लगे मैल को हटालें,यक़ीनन वो ज़रूर मिल जायेगा |
तेरे कांधे पर सर रख के,रोने को जी चाहता है
तू होसला देदे,कहीं ना कंहीं तो ढूंढे मिल जायेगा |
"पवन पागल" को इतनी तसल्ली देदे राधे-राधे
की तू मेरी हर सांसों में,सदा के लिए मिल जायेगा |
मेरा कृष्णा बिना राधा के,अधूरा ही होगा |
उसमें इतना खो जांयें ,की शायद कान्हा मिल जाये
बिना राधा-कृष्ण के,जिंदगी में अँधेरा ही होगा |
उस प्यास का क्या ज़िक्र, जो वृन्दावन में भी ना भुझी
शायद द्वारका में,वो हमारा इंतजार कर रहा होगा |
जिंदगी में सांसे इतनी तेजी से आती-जातीं रहतीं हैं
इन को रोक कर देखो,पास ही में कृष्णा मिल जायेगा |
उसकी तस्वीर को देखने पर,शुकून मिलता है
मन की आँखें बंद करलें,अपने अन्दर ही मिल जायेगा |
पहले हम उनसे मिलने के ,काबिल तो बन जाएँ
तन-मन पर लगे मैल को हटालें,यक़ीनन वो ज़रूर मिल जायेगा |
तेरे कांधे पर सर रख के,रोने को जी चाहता है
तू होसला देदे,कहीं ना कंहीं तो ढूंढे मिल जायेगा |
"पवन पागल" को इतनी तसल्ली देदे राधे-राधे
की तू मेरी हर सांसों में,सदा के लिए मिल जायेगा |
शनिवार, 20 नवंबर 2010
(48) खुदा जाने
जो कल होगा,खुदा जाने
जो कल हो गया,उसकी हम जानें
अभी जो हो रहा है,उससे हम हैं अनजान
इस पल में जी लो,आगे की खुदा जाने |
क्यों बेवजह फ़िक्र करते हो दीवाने
अक्सर यूँ ही जलते रहतें हैं,परवाने
अपने आप को मन से पहचानें
उसको पकडे रहो,बाकी की राम जाने |
क्यों छेड़ते हो कल के अफसाने ?
आज की बात के, बहुत हैं मायने
जो छूटगएँ हैं,मयखानें में पैमाने
उन्हें वहीँ छोड़ होजाओ रब के दीवाने |
इश्क में चोट लगती है,जाने-अनजाने
शमा जलती रहे,झुलस जायेंगे परवानें
मुस्तेद रहो,कामयाबी के परचम फहराने
सिल-सिला ख़तम न हो,आगे की अल्लाह जाने |
याद रहे,हम यंहां आयें हैं,मरनें
बचा सकते हो तो,बचालो डूबते शफ़िने
अनमोल जिंदगी में"पवन पागल" जड़ दो नगीनें
वक़्त की कमी है,कल क्या होगा,खुदा जाने |
जो कल हो गया,उसकी हम जानें
अभी जो हो रहा है,उससे हम हैं अनजान
इस पल में जी लो,आगे की खुदा जाने |
क्यों बेवजह फ़िक्र करते हो दीवाने
अक्सर यूँ ही जलते रहतें हैं,परवाने
अपने आप को मन से पहचानें
उसको पकडे रहो,बाकी की राम जाने |
क्यों छेड़ते हो कल के अफसाने ?
आज की बात के, बहुत हैं मायने
जो छूटगएँ हैं,मयखानें में पैमाने
उन्हें वहीँ छोड़ होजाओ रब के दीवाने |
इश्क में चोट लगती है,जाने-अनजाने
शमा जलती रहे,झुलस जायेंगे परवानें
मुस्तेद रहो,कामयाबी के परचम फहराने
सिल-सिला ख़तम न हो,आगे की अल्लाह जाने |
याद रहे,हम यंहां आयें हैं,मरनें
बचा सकते हो तो,बचालो डूबते शफ़िने
अनमोल जिंदगी में"पवन पागल" जड़ दो नगीनें
वक़्त की कमी है,कल क्या होगा,खुदा जाने |
(४७) तोबा
जाने अनजाने तुम जो भी करो
पर शराब से तोबा करो
नुकसान इसके बहुत हैं,तुम हो अनजानें
तुम इसे नहीं पीते,ये तुम्हे पीती है|
शराब का नशा,थोड़ी देर के लिए
तेरी आँख का नशा,उम्र भर के लिए
कुछ वक़्त उसकी आँख से,आँख मिलालो
मदहोश हो जाओगे,जिंदगी भर के लिए|
जो मिले उसका साथ,जिंदगी संवर जाएगी
पहले जो रोकर या रुलाकर कटती थी
वो अब हंसी-ख़ुशी कट जाएगी
वरना नैया बीच भंवर में ही ,फंस जाएगी|
किसी के कहने से कोई नहीं छोड़ता है
तुम खुद ही इसे छोड़ सकते हो
वो तुम्हारी नोकर है,तुम उसके नोकर नहीं
उससे नाता जोड़ो,जिसे कोई तोड़ सकता नहीं |
रात-दिन काम में मशगूल रहो
पीने के सभी बहानों को ठोकर मारो
ऊपर वाले को देख कर ,रोते रहो
शाम को अपनी सूरत,आईने में देखते रहो |
छोड़ो सभी दर्द के बहाने
अपने दर्द को दूसरों के दर्द में मिला दो
तुम्हें मिल जायेंगे,जिंदगी के सही मायने
इस लडखडाती जिंदगी को,नई रफ़्तार दो |
जो घर की ओरतें भीं ,पीने लग जांयें
क्या तुम बर्दाश्त करोगे ?
बर्दाश्त करना तो दूर
दूसरे ही दिन तोबा करोगे |
आप ओर पूरा परिवार सुख से रहोगे
दुनिया के लिए कुछ कर पाओगे
"पवन पागल"की लेखनी को, धन्य कर जाओगे
जो शराब को अपने से,दूर भगाओ गे |
पर शराब से तोबा करो
नुकसान इसके बहुत हैं,तुम हो अनजानें
तुम इसे नहीं पीते,ये तुम्हे पीती है|
शराब का नशा,थोड़ी देर के लिए
तेरी आँख का नशा,उम्र भर के लिए
कुछ वक़्त उसकी आँख से,आँख मिलालो
मदहोश हो जाओगे,जिंदगी भर के लिए|
जो मिले उसका साथ,जिंदगी संवर जाएगी
पहले जो रोकर या रुलाकर कटती थी
वो अब हंसी-ख़ुशी कट जाएगी
वरना नैया बीच भंवर में ही ,फंस जाएगी|
किसी के कहने से कोई नहीं छोड़ता है
तुम खुद ही इसे छोड़ सकते हो
वो तुम्हारी नोकर है,तुम उसके नोकर नहीं
उससे नाता जोड़ो,जिसे कोई तोड़ सकता नहीं |
रात-दिन काम में मशगूल रहो
पीने के सभी बहानों को ठोकर मारो
ऊपर वाले को देख कर ,रोते रहो
शाम को अपनी सूरत,आईने में देखते रहो |
छोड़ो सभी दर्द के बहाने
अपने दर्द को दूसरों के दर्द में मिला दो
तुम्हें मिल जायेंगे,जिंदगी के सही मायने
इस लडखडाती जिंदगी को,नई रफ़्तार दो |
जो घर की ओरतें भीं ,पीने लग जांयें
क्या तुम बर्दाश्त करोगे ?
बर्दाश्त करना तो दूर
दूसरे ही दिन तोबा करोगे |
आप ओर पूरा परिवार सुख से रहोगे
दुनिया के लिए कुछ कर पाओगे
"पवन पागल"की लेखनी को, धन्य कर जाओगे
जो शराब को अपने से,दूर भगाओ गे |
मंगलवार, 16 नवंबर 2010
(४६) तेरा शुक्रिया
तू सवाल करे ओर मैं जवाब ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
दरिया में नदी मिले ओर मैं मिलने ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तेरी हर तम्मना को मैं पूरा ना करूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
रोज नित्य तेरी पूजा ना करूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तेरे अच्छे उपदेशों की में तारीफ ना करूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
तेरा पसीना बहे ओर में कुछ भी ना करूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तू अकेले सफ़र में जाये ओर तेरे साथ ना चलूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
तू दिल से पुकारे ओर मैं सुन ना पाऊँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तू मुझे संवारता रहे ओर मैं तुझे संवर ने ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
तू आगे-आगे चले ओर मैं क़दमों को रफ़्तार ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तेरी ख़ुशी के लिए मैं अपना सब कुछ गवां ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
"पवन पागल"तेरी ख़ुशी के लिए मैं अपने लब खोलूं
ऐसा मुमकिन तो नहीं |
ऐसा मुमकिन तो नहीं
दरिया में नदी मिले ओर मैं मिलने ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तेरी हर तम्मना को मैं पूरा ना करूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
रोज नित्य तेरी पूजा ना करूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तेरे अच्छे उपदेशों की में तारीफ ना करूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
तेरा पसीना बहे ओर में कुछ भी ना करूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तू अकेले सफ़र में जाये ओर तेरे साथ ना चलूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
तू दिल से पुकारे ओर मैं सुन ना पाऊँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तू मुझे संवारता रहे ओर मैं तुझे संवर ने ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
तू आगे-आगे चले ओर मैं क़दमों को रफ़्तार ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तेरी ख़ुशी के लिए मैं अपना सब कुछ गवां ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
"पवन पागल"तेरी ख़ुशी के लिए मैं अपने लब खोलूं
ऐसा मुमकिन तो नहीं |
(४५) फ़िक्र
जिंदगी बहुत छोटी सी होती है
बिना काम के बहुत लम्बी होती है
जो कट जाये तो ठीक
वरना रो-रो कर कटती है|
कुछ तो हमारी भी गल्तीयाँ रहीं होंगी
थोड़ी उसकी की भी मेहरबानीयां रहीं होंगी
दोनों ने मिल कर क्या किया ठीक ?
एक अछे-खासे इन्सान को पंगु बना दिया |
हमसफ़र अच्छा हो तो
ऐसी जिंदगी भी सहज कट जाती है
जो ओलाद हो ठीक
तो जीवन सफल हो जाता है |
अपनी चाहे जैसी भी गुज़रे
ओलादों के सुख की फ़िक्र होती है
उनकी बेहतर कट जाये तो ठीक
वरना सीनें में घुटन सी होती है |
किसी को बेटों का गम सताता है
किसी पर बेटियां भारी पड़ जातीं हैं
जो बहुएं मिलें ठीक
तो सब की राज़ी-ख़ुशी कट जाती है|
क्यों फ़िक्र करते हो "पवन पागल"
हर गम को धुंए में उड़ा कर जीओ
ऊपर वाले को कस कर पकडे रहो
ऐसी एक क्या हज़ार जिंदगियां कट जाएँगी |
बिना काम के बहुत लम्बी होती है
जो कट जाये तो ठीक
वरना रो-रो कर कटती है|
कुछ तो हमारी भी गल्तीयाँ रहीं होंगी
थोड़ी उसकी की भी मेहरबानीयां रहीं होंगी
दोनों ने मिल कर क्या किया ठीक ?
एक अछे-खासे इन्सान को पंगु बना दिया |
हमसफ़र अच्छा हो तो
ऐसी जिंदगी भी सहज कट जाती है
जो ओलाद हो ठीक
तो जीवन सफल हो जाता है |
अपनी चाहे जैसी भी गुज़रे
ओलादों के सुख की फ़िक्र होती है
उनकी बेहतर कट जाये तो ठीक
वरना सीनें में घुटन सी होती है |
किसी को बेटों का गम सताता है
किसी पर बेटियां भारी पड़ जातीं हैं
जो बहुएं मिलें ठीक
तो सब की राज़ी-ख़ुशी कट जाती है|
क्यों फ़िक्र करते हो "पवन पागल"
हर गम को धुंए में उड़ा कर जीओ
ऊपर वाले को कस कर पकडे रहो
ऐसी एक क्या हज़ार जिंदगियां कट जाएँगी |
सोमवार, 15 नवंबर 2010
(४४)) कटी-पतंग
तुम उड़ती हो हवा में,उस लम्बी पतंग की तरह
तुम बहुत दूर उड़ जाना चाहती हो
चाहे जो कुछ भी हो जाये
तुम अपनी मंजिल को,जल्दी पाना चाहती हो|
पर हाय रे किस्मत
तुम्हारी डोर उस शक्श ने थाम राखी है
जो ढील में पतंग उड़ाना
पसंद नहीं करता|
उसे तो खीँच कर
पतंग लड़ाने में ही, मज़ा आता है
तुम्हे तो दिन के उजाले में भी
रात का अँधेरा नजर आता है|
पर वो शक्श ,
रात-दिन कदम फूंक-फूंक कर चलता है
तुम्हे तो चंद रुपये भी
हाथ का मैल लगते हैं|
पर उस शक्श को
चंद रुपयों की खातिर
हाथ पर लगा मैल
भी मंज़ूर है|
जो जितनी तेजी से,उडान भरतें हैं,
वो उतनीही तेजी से नीचे भी गिरतें हैं,
उड़ो धीरे-धीरे, पंखों को फैला कर,
उन्हें फड-फडाओ -मंजिल ओर रफ़्तार दोनों मिल जायेंगीं |
"पवन पागल"पतंगबाज़ी में,
अच्छा पतंगबाज़,डोर ओर अच्छी पतंग होना ज़रूरी है,
जो बिना सोचे-समझे, उड़ते-उड़ाते हैं
वो धडाम से जमी पर गिरतें हैं|
तुम बहुत दूर उड़ जाना चाहती हो
चाहे जो कुछ भी हो जाये
तुम अपनी मंजिल को,जल्दी पाना चाहती हो|
पर हाय रे किस्मत
तुम्हारी डोर उस शक्श ने थाम राखी है
जो ढील में पतंग उड़ाना
पसंद नहीं करता|
उसे तो खीँच कर
पतंग लड़ाने में ही, मज़ा आता है
तुम्हे तो दिन के उजाले में भी
रात का अँधेरा नजर आता है|
पर वो शक्श ,
रात-दिन कदम फूंक-फूंक कर चलता है
तुम्हे तो चंद रुपये भी
हाथ का मैल लगते हैं|
पर उस शक्श को
चंद रुपयों की खातिर
हाथ पर लगा मैल
भी मंज़ूर है|
जो जितनी तेजी से,उडान भरतें हैं,
वो उतनीही तेजी से नीचे भी गिरतें हैं,
उड़ो धीरे-धीरे, पंखों को फैला कर,
उन्हें फड-फडाओ -मंजिल ओर रफ़्तार दोनों मिल जायेंगीं |
"पवन पागल"पतंगबाज़ी में,
अच्छा पतंगबाज़,डोर ओर अच्छी पतंग होना ज़रूरी है,
जो बिना सोचे-समझे, उड़ते-उड़ाते हैं
वो धडाम से जमी पर गिरतें हैं|
(४३) ऐसा क्यों?
जो बारिश आये, ओर में ना भीगूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो तूफ़ान आये,ओर में ना डूबूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो बैशाखी के सहारे चलूँ, ओर ना गिरुं
ऐसा हो नहीं सकता|
जो उसूलों में रह कर, ठोकर ना खाऊँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो तरक्की को, अपनी गिरफ्त में कर लूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो कामयाबी मिले,ओर में उसे पकड़ लूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो लोग जी भर के लूटें, ओर में ना लूटूं
ऐसा हो नहीं सकता|
जो सच बात कहे बैगेर, में ना रुकूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो लोग मुझे तोडना चाहें, ओर में ना टूटूं
ऐसा हो नहीं सकता|
जो जिंदगी में बहार आये,ओर उसका में मज़ा लूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो ऐसी जिंदगी जीउँ, ओर सच्चा हमसफ़र भी साथ ना रखूं
ऐसा हो नहीं सकता|
जो" पवनपागल"उसकी मेहरबानियाँ रहें,ओर में ज़िन्दा न रहूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
ऐसा हो नहीं सकता|
जो तूफ़ान आये,ओर में ना डूबूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो बैशाखी के सहारे चलूँ, ओर ना गिरुं
ऐसा हो नहीं सकता|
जो उसूलों में रह कर, ठोकर ना खाऊँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो तरक्की को, अपनी गिरफ्त में कर लूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो कामयाबी मिले,ओर में उसे पकड़ लूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो लोग जी भर के लूटें, ओर में ना लूटूं
ऐसा हो नहीं सकता|
जो सच बात कहे बैगेर, में ना रुकूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो लोग मुझे तोडना चाहें, ओर में ना टूटूं
ऐसा हो नहीं सकता|
जो जिंदगी में बहार आये,ओर उसका में मज़ा लूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो ऐसी जिंदगी जीउँ, ओर सच्चा हमसफ़र भी साथ ना रखूं
ऐसा हो नहीं सकता|
जो" पवनपागल"उसकी मेहरबानियाँ रहें,ओर में ज़िन्दा न रहूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
(४२) हकीकत
हज़ार बातें ओर उनका गम
जिंदगी के साथ चलती हैं
मोती बनी-जो सीप में गिरी शबनम
वैसे तो बरसात होती ही रहती है |
उम्र काटे नहीं कटती
बैगेर किसी काम के
किससे कहें क्यों नहीं कटती?
कटती है सिर्फ उसकी मदद से?
अब कुछ याद नहीं,कल क्या हुआ था?
मैं जाग रहा था,सारा आलम सोया था
मैं जिंदगी के हिसाब-किताब में उलझ गया था
कहीं आग लगी थी ,उसे भुजाने गया था|
जो तोड़-मरोड़ कर बातें करतें हैं
उसमें कुछ ही सच्चाई होती है
जो मुंह पर साफ बक देतें हैं
उसमें सच्चाई ही सच्चाई होती है|
जिसने कभी दुनिया को कुछ दिया ही नहीं
अपने लिए भी कभी कुछ खर्च किया ही नहीं
"पवन पागल"वो क्या ख़ाक मिशाल कायम करेंगे
जिंदगी भर घुट-घुट के अपने ही घर में मरेंगे|
जिंदगी के साथ चलती हैं
मोती बनी-जो सीप में गिरी शबनम
वैसे तो बरसात होती ही रहती है |
उम्र काटे नहीं कटती
बैगेर किसी काम के
किससे कहें क्यों नहीं कटती?
कटती है सिर्फ उसकी मदद से?
अब कुछ याद नहीं,कल क्या हुआ था?
मैं जाग रहा था,सारा आलम सोया था
मैं जिंदगी के हिसाब-किताब में उलझ गया था
कहीं आग लगी थी ,उसे भुजाने गया था|
जो तोड़-मरोड़ कर बातें करतें हैं
उसमें कुछ ही सच्चाई होती है
जो मुंह पर साफ बक देतें हैं
उसमें सच्चाई ही सच्चाई होती है|
जिसने कभी दुनिया को कुछ दिया ही नहीं
अपने लिए भी कभी कुछ खर्च किया ही नहीं
"पवन पागल"वो क्या ख़ाक मिशाल कायम करेंगे
जिंदगी भर घुट-घुट के अपने ही घर में मरेंगे|
शनिवार, 13 नवंबर 2010
(४१) शिवमय
जो टूट गया,वो भिखर गया,
जो मन से हारा,वो मर गया|
जो नेकी के लिए मिट गया,वो अमर होगया,
जो दिल के लिए मिटा,वो दिलदार होगया|
जो मोह-माया से दूर होगया,वो जग में तर गया,
जो लोभ-लालच में फंस गया,वो नर्क में गया|
जो सपनों में रहगया,वो कंही खोगया,
जो हकीकत में जी गया,वो कामयाब होगया|
जो प्यार में गया,वो बेकार होगया,
जो प्यार को पागया,वो निहाल होगया |
जो किसी की बैशाखी बन गया,वो चल गया,
जो सारथी बन गया, वो धन्य होगया|
जो धूप में नहाया,वो सफल होगया,
जो मोज-मस्ती में रह गया,वो असफल होगया|
जो "पवन पागल" 'गम' पी गया,वो जी गया,
जो सारे ज़हरों को पी गया,वो "शिवमय" होगया|
जो मन से हारा,वो मर गया|
जो नेकी के लिए मिट गया,वो अमर होगया,
जो दिल के लिए मिटा,वो दिलदार होगया|
जो मोह-माया से दूर होगया,वो जग में तर गया,
जो लोभ-लालच में फंस गया,वो नर्क में गया|
जो सपनों में रहगया,वो कंही खोगया,
जो हकीकत में जी गया,वो कामयाब होगया|
जो प्यार में गया,वो बेकार होगया,
जो प्यार को पागया,वो निहाल होगया |
जो किसी की बैशाखी बन गया,वो चल गया,
जो सारथी बन गया, वो धन्य होगया|
जो धूप में नहाया,वो सफल होगया,
जो मोज-मस्ती में रह गया,वो असफल होगया|
जो "पवन पागल" 'गम' पी गया,वो जी गया,
जो सारे ज़हरों को पी गया,वो "शिवमय" होगया|
(४०) झिल-मिल हिदायतें
सदा मुस्कराईये,रूठे हुओं को मनाईये
हाथ आगे बढाईये ,कभी मेरे घर भी आईये
वादा तो निभाईये ,करीब से मत जाईये
बात आगे बढाईये ,कभी तो साथ निभाईये |
सफ़र में साथ चलिये,काँटों को भी अपनाईये
पैरों को तकलीफ दीजिये ,कभी तो जिंदगी का मज़ा लीजिये
फूलों सा महकिये,अच्छाइयों की खुशबु सदा फैलाइये
बुरों को सुधारिये,बुराईयों से दामन बचाइये |
आनें-जानें वाली सांसों पर नजर रखिये
अपने को मोंत से मीलों दूर भगाईये
होसके तो किसी न किसी के होजाईये
गुजरती जिंदगी को करीब से देख लीजीये |
लम्बे सफ़र में,दूर तक साथ जाईये
जो अच्छा लगे,उसे जीवन में अपनाईये
बेवजह किसी को भी मत सताईये
भूल से किसी को सता कर ज़रूर पछताईये |
गल्तीयां कीजिये,पर दुबारा मत कीजिये
अपनी गलतियों की सजा,दूसरों को मत दीजिये
दिल में बुराइयों को जगह मत दीजिये
"पवन पागल"खुल कर सभी को ,गले लगाइये |
हाथ आगे बढाईये ,कभी मेरे घर भी आईये
वादा तो निभाईये ,करीब से मत जाईये
बात आगे बढाईये ,कभी तो साथ निभाईये |
सफ़र में साथ चलिये,काँटों को भी अपनाईये
पैरों को तकलीफ दीजिये ,कभी तो जिंदगी का मज़ा लीजिये
फूलों सा महकिये,अच्छाइयों की खुशबु सदा फैलाइये
बुरों को सुधारिये,बुराईयों से दामन बचाइये |
आनें-जानें वाली सांसों पर नजर रखिये
अपने को मोंत से मीलों दूर भगाईये
होसके तो किसी न किसी के होजाईये
गुजरती जिंदगी को करीब से देख लीजीये |
लम्बे सफ़र में,दूर तक साथ जाईये
जो अच्छा लगे,उसे जीवन में अपनाईये
बेवजह किसी को भी मत सताईये
भूल से किसी को सता कर ज़रूर पछताईये |
गल्तीयां कीजिये,पर दुबारा मत कीजिये
अपनी गलतियों की सजा,दूसरों को मत दीजिये
दिल में बुराइयों को जगह मत दीजिये
"पवन पागल"खुल कर सभी को ,गले लगाइये |
(३९) सावन में लग गयी आग
पांव तो मेरे,ज़मीं पर ही थे,
ओर ज़मीं पर ही रहेते हैं,
फिर एक दिन न जाने कैसे ?
मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गयी |
अरमान तो मेरे,दिल में ही रहेते थे,
ओर दिल में ही रहेते हैं,
अचानक न जाने कैसे ?
अरमानों की नदिया सी बह्गयी|
जीवन की पतंग को ,ठीक ही उड़ा रहे थे,
ओर डोर को काबू में ही रखतें हैं,
यकायक न जाने कैसे ?
पतंग कट गयी,डोर हाथ में ही रह गयी
ख़याल तो मेरे, ठीक ही थे,
ओर नेक ही रखतें हैं,
वक़्त के हाथों न जाने कैसे ?
अरमानों की होली ही जल गयी |
सभी से रिश्ते,बहुत अछे थे,
ओर अछे ही रहतें हैं,
एक चिंगारी न जाने भड़की कैसे ?
रिश्ते ही नहीं,रिश्तेदारों को भी जला गयी|
वो मेरा नसीब,ओर मेरे फैसले ही थे,
जिन पर अब भी यकीन रखतें हैं,
फिर न जाने,"पवन पागल"गल्ती होगई कैसे ?
दरिया देखता रहा,उसमें नदियाँ मिलने से रह्गयीं |
ओर ज़मीं पर ही रहेते हैं,
फिर एक दिन न जाने कैसे ?
मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गयी |
अरमान तो मेरे,दिल में ही रहेते थे,
ओर दिल में ही रहेते हैं,
अचानक न जाने कैसे ?
अरमानों की नदिया सी बह्गयी|
जीवन की पतंग को ,ठीक ही उड़ा रहे थे,
ओर डोर को काबू में ही रखतें हैं,
यकायक न जाने कैसे ?
पतंग कट गयी,डोर हाथ में ही रह गयी
ख़याल तो मेरे, ठीक ही थे,
ओर नेक ही रखतें हैं,
वक़्त के हाथों न जाने कैसे ?
अरमानों की होली ही जल गयी |
सभी से रिश्ते,बहुत अछे थे,
ओर अछे ही रहतें हैं,
एक चिंगारी न जाने भड़की कैसे ?
रिश्ते ही नहीं,रिश्तेदारों को भी जला गयी|
वो मेरा नसीब,ओर मेरे फैसले ही थे,
जिन पर अब भी यकीन रखतें हैं,
फिर न जाने,"पवन पागल"गल्ती होगई कैसे ?
दरिया देखता रहा,उसमें नदियाँ मिलने से रह्गयीं |
(३८) खामोश उलझन
रातें गुजार दीं हैं, तारों की रोशनी में,
अफ़साने सुन चूका हूँ,अपनी ही ख़ामोशी में,
कब तक रहेगी,यह रोशनी जिंदगी में ?
जो कुछ बची है,गुजर जाएगी तेरी याद में |
हम जाने वाले थे,कि वो आगये,
आग भुजाना तो दूर,ओर लगा गये,
जिंदगी गुजार दी है,जख्मों कि कर्हाहट में,
अब तो काम आने लगें हैं 'घाव, आग भुजाने में |
पर ये वो आग है , जो भुजाये न भुझे,
धीरे-धीरे सुलगे है,ओर जोर-जोर से न भुजे,
कब तक रहेगी ,ये आग जिंदगी में ?
काश बारिश हो, हम साथ भिगलें वादी में|
नहीं दिखाई देती,किसी को हमारी ये हालत,
दिन के उजाले में ,
चाँद पे लगे दाग को देखा जाता है,
काले दर्पण में |
काले बनो',
जलो अपनी ही आग में,
रात का इंतजार करो "पवन पागल",
फिर देखो,तारों कि रोशनी में |
अफ़साने सुन चूका हूँ,अपनी ही ख़ामोशी में,
कब तक रहेगी,यह रोशनी जिंदगी में ?
जो कुछ बची है,गुजर जाएगी तेरी याद में |
हम जाने वाले थे,कि वो आगये,
आग भुजाना तो दूर,ओर लगा गये,
जिंदगी गुजार दी है,जख्मों कि कर्हाहट में,
अब तो काम आने लगें हैं 'घाव, आग भुजाने में |
पर ये वो आग है , जो भुजाये न भुझे,
धीरे-धीरे सुलगे है,ओर जोर-जोर से न भुजे,
कब तक रहेगी ,ये आग जिंदगी में ?
काश बारिश हो, हम साथ भिगलें वादी में|
नहीं दिखाई देती,किसी को हमारी ये हालत,
दिन के उजाले में ,
चाँद पे लगे दाग को देखा जाता है,
काले दर्पण में |
काले बनो',
जलो अपनी ही आग में,
रात का इंतजार करो "पवन पागल",
फिर देखो,तारों कि रोशनी में |
(३७) अंजान सफ़र
कंहा जारहा है ?
तू ऐ जाने वाले,
जाने से पहले तुझे सोचना होगा,
कहाँ जायेगा तू ऐ जाने वाले ?
मंजिल तक पहुँचने वाले,
काँटों भरी डगर पर चलना होगा,
तेरे साथ कोई नहीं हैं जाने वाले,
मंजिल तक तुझे पहुंचना होगा |
गम को साथ लिए,
तू हँसता हुआ जा,
ऐसी मंजिल पे पहुँच,
जहाँ हों तेरे चाहने वाले?
क्या जायेगा तेरे संग अपने ?
ये ठाट-बाट ? यहीं पड़ा रह जायेगा,
'सिक्कंदर भी खली हाथ गया था,
बस जायेगा तेरे साथ,तेरा कर्म ओ जानेवाले |
पथ के काँटों को तू,
मुस्कराता हुआ चुनता जा,
"पवन पागल" ये कांटे फूल होंगे,
मंजिल को पाने वाले |
तू ऐ जाने वाले,
जाने से पहले तुझे सोचना होगा,
कहाँ जायेगा तू ऐ जाने वाले ?
मंजिल तक पहुँचने वाले,
काँटों भरी डगर पर चलना होगा,
तेरे साथ कोई नहीं हैं जाने वाले,
मंजिल तक तुझे पहुंचना होगा |
गम को साथ लिए,
तू हँसता हुआ जा,
ऐसी मंजिल पे पहुँच,
जहाँ हों तेरे चाहने वाले?
क्या जायेगा तेरे संग अपने ?
ये ठाट-बाट ? यहीं पड़ा रह जायेगा,
'सिक्कंदर भी खली हाथ गया था,
बस जायेगा तेरे साथ,तेरा कर्म ओ जानेवाले |
पथ के काँटों को तू,
मुस्कराता हुआ चुनता जा,
"पवन पागल" ये कांटे फूल होंगे,
मंजिल को पाने वाले |
(३६) ज़माना देख न ले
हँसो किसी पे ,तो अपने आस-पास देख कर हँसों,
कंही ऐसा न हो की ज़माना देख ले ,
तुम्हारी ये रुसवाई की हँसी|
मरो तो,तो अपने आस-पास देख कर मरो,
कंही ऐसा न हो की ज़माना देख ले,
तुम्हारे मरने की हँसी|
जिओ तो भी, अपने आस-पास देख कर जिओ,
कंही ऐसा न हो की ज़माना देख ले,
तुम्हारी ये थोथी जीवन की हँसी|
चलो तो अपने आस-पास देख कर चलो,
कंही ऐसा न हो की ज़माना देख ले,
तुम्हारी ये मतवाली चाल की हँसी|
किसी को दो, तो अपने आस-पास देख कर दो,
कंहीं ऐसा न हो की ज़माना देख ले,
तुम्हारे ये दान की हँसी|
"पवन पागल" हँसना है, तो अपने आप पर हँसो,
फिर चाहे ज़माना,देख भी ले,
तुम्हारी ये खिल-खिलाती हँसी|
कंही ऐसा न हो की ज़माना देख ले ,
तुम्हारी ये रुसवाई की हँसी|
मरो तो,तो अपने आस-पास देख कर मरो,
कंही ऐसा न हो की ज़माना देख ले,
तुम्हारे मरने की हँसी|
जिओ तो भी, अपने आस-पास देख कर जिओ,
कंही ऐसा न हो की ज़माना देख ले,
तुम्हारी ये थोथी जीवन की हँसी|
चलो तो अपने आस-पास देख कर चलो,
कंही ऐसा न हो की ज़माना देख ले,
तुम्हारी ये मतवाली चाल की हँसी|
किसी को दो, तो अपने आस-पास देख कर दो,
कंहीं ऐसा न हो की ज़माना देख ले,
तुम्हारे ये दान की हँसी|
"पवन पागल" हँसना है, तो अपने आप पर हँसो,
फिर चाहे ज़माना,देख भी ले,
तुम्हारी ये खिल-खिलाती हँसी|
(३५) धर्म के ठेकेदार
आजकल 'बाबाओं की बाढ़ सी आई हुई है,
कुछ तैर रहें हैं,कुछ की नैया भंवर में है ,
सच्चा कोंन है? इसकी समझ देर से आती है,
सबकुछ लुटाने के बाद,जब घर में फांके मारने की नोबत आती है|
जब भी इनका थोडा सा व्यापर बढ़ा,
ये अहंकारी होगये ,
जब भी इन्हें धन मिला,
इन्होंने उपदेश की भाषा सीख ली |
जब भी इनको सम्मान मिला,
ये पागल होगये,
ओर जब भी इनको अधिकार मिले,
इन्होने दुनिया को तबाह कर दिया|
जब भी इन्हें यश मिला,
इसी दुनिया पर वो हंसने लगे,
तमाम उम्र यूँ हीं ,हवाई घोड़े दोडाते रहे'
ओर अपनी समझ में ,बहुत बड़ा काम करते रहे|
हजारों की नैया डूबती है, इनके भरोसे पर,
मुझे धर्म की आड़ में,बड़ा व्यापार सा लगता है,
"पवन पागल" की समझ से,इन्होने 'अक्कल लगा कर,
'अपना बुढ़ापा सुधार' लिया है|
कुछ तैर रहें हैं,कुछ की नैया भंवर में है ,
सच्चा कोंन है? इसकी समझ देर से आती है,
सबकुछ लुटाने के बाद,जब घर में फांके मारने की नोबत आती है|
जब भी इनका थोडा सा व्यापर बढ़ा,
ये अहंकारी होगये ,
जब भी इन्हें धन मिला,
इन्होंने उपदेश की भाषा सीख ली |
जब भी इनको सम्मान मिला,
ये पागल होगये,
ओर जब भी इनको अधिकार मिले,
इन्होने दुनिया को तबाह कर दिया|
जब भी इन्हें यश मिला,
इसी दुनिया पर वो हंसने लगे,
तमाम उम्र यूँ हीं ,हवाई घोड़े दोडाते रहे'
ओर अपनी समझ में ,बहुत बड़ा काम करते रहे|
हजारों की नैया डूबती है, इनके भरोसे पर,
मुझे धर्म की आड़ में,बड़ा व्यापार सा लगता है,
"पवन पागल" की समझ से,इन्होने 'अक्कल लगा कर,
'अपना बुढ़ापा सुधार' लिया है|
(३४) मेरे सरकार
उनके लबों पर हंसी है,
आँखों में विलक्षण तेज है ,
मुख-मंडल पर दिव्य कांति है,
भाल पर अदभुत चमक है|
मोह-माया,अधिकार,यश,अदि,
सभी को बगल में रखतें हैं,
अपने ज्ञान व विद्वता से,
समस्त जग को सरोबर करते हैं|
हैं तो वो भी बड़े व्यापारी"पवन पागल",
पर व्यापार ओर अलबेली सरकार में,
फर्क रखते हैं,इसीलिए वे ,
'जगत-गुरुतम' की उपाधि से सुशोभित हैं|
* जगत-गुरुतम की सेवा में
आँखों में विलक्षण तेज है ,
मुख-मंडल पर दिव्य कांति है,
भाल पर अदभुत चमक है|
मोह-माया,अधिकार,यश,अदि,
सभी को बगल में रखतें हैं,
अपने ज्ञान व विद्वता से,
समस्त जग को सरोबर करते हैं|
हैं तो वो भी बड़े व्यापारी"पवन पागल",
पर व्यापार ओर अलबेली सरकार में,
फर्क रखते हैं,इसीलिए वे ,
'जगत-गुरुतम' की उपाधि से सुशोभित हैं|
* जगत-गुरुतम की सेवा में
बुधवार, 3 नवंबर 2010
(३३) दिवाली
सभी मनाते हैं दिवाली ,
कोई सोने से,कोई चांदी से,
दिलों को नजदीक लाती है दिवाली,
मज़हब की कोई बंदिश नहीं,सभी मिलतें हैं दिल से।
सूनें आँगन में रोशनी बन कर आती है दिवाली,
गरीब भी अमीर होजाता है,अपनी हैसियत से,
पूरे साल जो रहती दिवाली,
तो न दिल टूटते,न रात-दिन रहते झिल- मिल से,
सुना है की,पैसे वालों की होती है दिवाली,
पर गरीब भी अमीर होजाता है,दिल से,
जी भर के मनाता है दिवाली,
ये खुशियाँ उसे साल भर बचाती हैं,रिम-झिम से।
दिल वालों की होती है दिवाली,
वाह निकलती है गरीब से,वाह-वाह निकलती है अमीर से,
आह को "पवन पागल"दूर भगाती है दिवाली,
नई चाहत,नई ख़ुशी,नई उमंग लाती है दिवाली.
कोई सोने से,कोई चांदी से,
दिलों को नजदीक लाती है दिवाली,
मज़हब की कोई बंदिश नहीं,सभी मिलतें हैं दिल से।
सूनें आँगन में रोशनी बन कर आती है दिवाली,
गरीब भी अमीर होजाता है,अपनी हैसियत से,
पूरे साल जो रहती दिवाली,
तो न दिल टूटते,न रात-दिन रहते झिल- मिल से,
सुना है की,पैसे वालों की होती है दिवाली,
पर गरीब भी अमीर होजाता है,दिल से,
जी भर के मनाता है दिवाली,
ये खुशियाँ उसे साल भर बचाती हैं,रिम-झिम से।
दिल वालों की होती है दिवाली,
वाह निकलती है गरीब से,वाह-वाह निकलती है अमीर से,
आह को "पवन पागल"दूर भगाती है दिवाली,
नई चाहत,नई ख़ुशी,नई उमंग लाती है दिवाली.