Mere Dil Se.....

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

३५(११६) क्या खता

मैं तो तुम्हारी हर ख़ुशी में शामिल था
फिर मुझे इतना बेगाना क्यों कर दिया ?
नज़र जो मिली तुमसे,उन नज़रों में, मैं न था
मेरी मोहब्बत को, ख़ाक मोहब्बत क्यों कह दिया ?|
दोरे-सफ़र में हर जगह, मैं मोजूद था
फिर मुझे बीच सफ़र में ही, क्यों छोड़ दिया ?
साथ होते हुए भी,मैं तुम्हारे साथ न था
जुदा रहते भी,मुझे हमसफ़र क्यों कह दिया ? |
तम्हारे हर फैसले में, मैं शामिल था
फिर मुझे इतना पराया क्यों कर दिया ?
जो मांग लेते मेरी मोत,मैं तंग-दिल न था
सरे-राह मिलने पर,सिसक कर मुँह क्यों फेर लिया ? |
मैंने तुम्हे चाहा ,ये मेरा नसीब था
चाह कर मुझे,बदनसीब क्यों कर दिया ?
तुम सुकून से रहो,मैं तनहा कब था ?
बता "पवन पागल"को गम-गीन क्यों कर दिया ? |

३४(११५)पंछी उड़ गये

होश उड़ गये,पंछी उड़ गये
जो जकड़े हुए थे बँधनों से
बँधनों से मुक्त होगये
पर पीछे उदास चेहरे छोड़ गये |
जाने वाले फिर लोट के न आयें
जो जाना सब का समय से तय है
वो तो समय के बंधन से भी मुक्त होगये
और समय के साथ 'पंछी' को लोग भूल गये |
होश में नहीं,बेहोश उड़ गये
जो उलझे थे,रिश्तों से
रिश्तों से आज़ाद होगये
सच्चाई की दुनियाँ में कँही खोगये |
ऐसा नहीं सुबह गये,शाम को आये
मजबूर थे उसकी व्यवस्था से
संसार की सभी मजबूरीयों से मुक्त होगये
"पवन पागल" जिसके थे,उसी के होगये |

३३(११४)किनारे लगी नाव

जिंदगी एक नाव है
जो हर दाव पर चलती
दूसरे किनारे पे लगने की उम्मीद में
कभी हिचकोले लेकर चलती
कभी जोर-शोर से चलती |
किनारे तो अपनी जगह अटल हैं
कभी सूख भी जाते हैं बेचारे
ऐसे में नाव भी रुक जाती है
सूखे किनारों में पानी भर जाने पर
नाव फिर से लहराकर शान से चलती |
जर-जर होजाने पर वो नाव
हमेशा के लिए किनारे लगती
जब इतना ही सफ़र तय है
तो हम खातमों की चुभन में
अपने को और जर-जर क्यों बनायें ?|
मोत इस किनारे हो,या उस किनारे
नाव का दूसरे किनारे पर लगना तो तय है
चलो आज तो नहीं मरे,कल की फ़िक्र क्यों करें ?
क्या पता "पवन पागल"किनारे लगी नाव ?
सज-संवर कर फिर से चलने लगे |

३२(११३) हाले-दिल

जो खिलते बेशुमार फूल हसरतों के
जी भर के मुस्करा तो लेते|
कोई हमारा होता,हम भी होते किसी के
ख़ुशी से एक दूसरे को अपना लेते |
जो नशे में न रहते,कमाई दोलत के
होश आने से पहले,उसे बचा तो लेते |
तकलीफ़ उनको हो,आँसू हमारी आँख में छलकें
तकलीफ़ ज्यादा बढे,उससे पहले बचा तो लेते |
वो तरस भी न खायें, मुझे छलके
कभी आकर अपनी सूरत तो दिखा देते |
हम भी बैठे रहे इत्मिनान से,तसल्ली करके
हमें न सही,किसी और को तो अपना लेते |
जो तकलीफ़ हुई,हाले-दिल हमारा देख के
तो कुछ कुछ कम क्यों नहीं करलेते ?|
पीते जाम पे जाम,जी भर भरके
कभी हमको पिलाते,कभी खुद पी लेते |
जो खुले-आम मोहब्बत न करके
आँखों में मोहब्बतों को तो भर लेते |
जब भी याद आती,देखते आँखें बंद करके
"पवन पागल" को करीब से बिखरा हुआ देख तो लेते |

३१(११२) गोविन्द ललक

गोविन्द म्हारा श्याम्धनी चितचोर --२
मेंह तो थांकी बाट देखां नितभोर
गोविन्द म्हारा------------------
थे म्हांने चाहो, मेंह थानें चावां ------२
फिर कांइ की देर
गोविन्द म्हारा ------------------
इसी गांठ लगाओ जी,कदे न टूटे गठजोड़ ---२
लम्बी ही बढती जाये,म्हारी पतंगा की डोर
गोविन्द म्हारा---------------------
वृन्दावन भी जा आया देर सबेर -----२
पण थान्को कोणी लादयो ठोर
गोविन्द म्हारा----------------------
अब म्हाने मत तरसावो सांवरिया रुणछोड़ ---२
बेगा-बेगा आवो,झटपट भोग लगाओ नंदकिशोर
गोविन्द म्हारा -----------------------
थान्से मिलबा की खातिर--------------------२
"पवन पागल" होतो रहयो भाव-विभोर --------२
गोविन्द म्हारा ----------------------

३०(१११) तडफ

उनको रुलाने के सिवा कुछ भी नहीं आता
हमको उनको मनाने के सिवा कुछ भी नहीं आता
वो रुलातें रहें,हम मनातें रहें जिंदगी भर
हमें नचाते रहें! उनको तो नाचने के सिवा कुछ भी नहीं आता |
वो कहाँ तडफते हैं! उनको तो तडफाने के सिवा कुछ भी नहीं आता ?
वो छ्लीयाँ हैं!उनको तो छलने के सिवा कुछ भी नहीं आता
वो छलते रहें,और हम छलाते रहें जिंदगी भर
उनको तो छलने पर,तरस खाना भी नहीं आता |
रहतें हैं दिल में!पर परोक्ष रूप में दर्शन देना भी नहीं आता
कड़े इम्तिहान लें! पर इम्तिहानों में कामयाबी भी देना नहीं आता
वो आग लगाते रहें! हम सुलगते रहें जिंदगी भर
उनको तो आग लगाने के सिवा कुछ भी नहीं आता |
आग लगाकर,उसे बुझाना भी नहीं आता
जले फफोंलों पर मल्हम लगा देते! उन्हें तो वो भी नहीं आता
हमारे अन्दर सदा जल्ती रखना इस आग को ज़िदगी भर
"पवन पागल"उन्हें तो जल्ती आग को! और हवा देना भी नहीं आता |

२९(११०)तरसती आरज़ू

जो नज़र भर के देखा उनको,दिल बाग-बाग होगया
पर उधर से जो माकूल जवाब न आया,तो दिल तार-तार होगया
मैंने इस तरह,दिल टूटने की उम्मीद न की थी
जो दुबारा नज़रों से देखा उनको,नज़रों का गुमान होगया |
हादसा छोटा सा था,पर न जाने तिल का ताड़ कैसे होगया ?
सफ़र का छोटा सा रास्ता,देखते ही देखते पहाड़ होगया
मैंने जो कुछ सोचा था,वैसा तो नहीं हुआ
बेबसी में हाले-दिल हमारा,छलनी-छलनी होगया |
धन-दोलत की कमी न थी,पर जो देखा उन्हें,कंगाल होगया
दोलत-मंद होते हुए भी,उनके सामने गरीब से गरीब होगया
मुझे मंज़ूर है फांका-कसी ,काश वो मिल तो जाएँ
दूर बैठे तरसते रहे,अब तरसती आँखों में अँधेरा होगया |
दिल में रहते हैं,पर हुबहू मिलने का मलाल रह गया
आँखों में रहते हैं,पर इन आँखों से देखने का ख्याल ही रहगया
जो दिखाई देते इन आँखों से,तो 'आलाआँखों'को कोन पूछता ?
"पवन पागल"आँखों के होते हुए भी,'सूरदास'ही बाज़ी मार गया |

२८(109 ) ये हादसे

दिल में दर्द माथे पर शिकन दे गये,मोहब्बतों के हादसे
दुबारा संभल कर करें मोहब्बत,ये हिदायत देगये हादसे
तमाम आरजुओं को दरकिनार कर गये ये आवारा हादसे
कुछ और जिंदा रहते,और जीने की उम्मीद तोड़ गये हादसे |
मुझे ही क्या! बहुतों को ठोकर मारतें हैं हादसे
क्यों बे-वक़्त सर ऊँचा किये,चले आते हैं हादसे
जब भी कुछ करने की सोची,होजातें हैं हादसे
अच्छों-अच्छों के होश उड़ा जातें हैं हादसे |
अछे-खासे लोगों को ,जिंदा लाश बना जाते हादसे
दोस्त को दुश्मन,दुश्मन को दोस्त बना जाते हादसे
जरा सी बात पर,नाजुक दिलों को तोड़ते हादसे
दो मुल्कों के रिश्तों को बे-वजह,तोड़ते हादसे |
गल्ती करने वालों को,खामोश रखते हादसे
न गल्ती करने वालों को,मदहोश रखते हादसे
आदमी को ओरत,ओरत को आदमी बनाते हादसे
कभी राजा को रंक,रंक को राजा बनाते हादसे |
अपनी कारगुजारियों पर,दिल ठोककर हँसते हादसे
दुसरें जो भला करना चाहें,उस पर भी ठांस लगते हादसे
"पवन पागल' मोत की तरह ही,बिना बताये आते हादसे
सभी की होली जला देते,ये कमबख्त कमीने हादसे |

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

१०८.और इंतजार

खुशियाँ यहाँ से गुजर गईं,रह-रह के तेरे इंतज़ार में
चमन के फूल मुरझा गए,तेरे आने के इंतज़ार में
ओरों की क्या बात करूँ,तेरे इस सूनें जहाँन में
मेरे अपने हीं बैठे हैं,मेरी म़ोत के इंतज़ार में|
मैंने किसी को चाहा,इसमें मेरी क्या ख़ता ?
जिंदगी गुजर गई,तेरे आने के इंतज़ार में
चाहतों का सिलसिला,कभी तो खतम हो
अब मैं और जिंदा न रहूँ,चाहतों के इंतज़ार में |
अबके बहार में ,मुझे चैन से रहने दे
अपने ही पास रख अपनी,तंग दिल मोहब्बतों को
मैं खुश हूँ,अपने इस छोटे से आशियाँ में
परेशां न कर,क्या रखा है इन गुस्ताखियों में ?|
जो बराबर की आग है,तो खुल कर बरस
क्या कभी किसीका भला हुआ है,बूंदा-बांदियों में ?
जो सूखे गुलिस्तां में फूल खिल जाएँ,इस बरसांत में
मैं भीगता रहूँ तेरे आने तक,तेरे इंतज़ार में |
मोहब्बत कमजोर नहीं है,ये दो दिलों का जोर है
जो यकीन के साथ चलतें हैं,इस लम्बे सफ़र में
वो मोहब्बत की बाज़ी जीत लेते हैं,इस ज़िदगी में
"पवन पागल"वो ही कामयाब रहतें हैं,मोहब्बत में |

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

१०७.हसरतें

हसरतें मेरे दिल की मिटने न दे
तू तो बादशाह है,दिलों की सल्तनतों का
पहले मेरी हसरतों को पूरी तो होने दे
फिर चाहे तो मुझे दोज़ख में ही जगह दे |
मुझे यूँ ही जँग में,लड़ते-लड़ते मरने दे
मैं ही नहीं मेरी पीढ़ियों को भी यूं ही मरने दे
मरने से पहले मेरी एक ख्वाइश पूरी तो कर दे
मुझे एक मुठी खाक वतन की लेने तो दे |
अगले जनम भी फिर वही माँ दे
जो हँसते-हँसते वतन पर कुर्बानी की सीख दे
उसके आँसुओं को पोंछ, मेरे बहने दे
कुर्बानियों की बली को ,जँग की जीत में बदल दे |
हर जनम वीर गति पाऊँ ,ऐसा होसला दे
सदा सब के दुःख पी जाऊं ,ऐसा यकीं दे
अगला जनम भी मुझे,इसी जमीं पर दे
"पवन पागल" को कुछ दिन,तेरे घर में भी रहने दे |

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

१०६.कुछ जचता नहीं

रेशमी सलवार पे,सूती कुर्ता कुछ जचता नहीं
छोटे कद की महिलाओं पे,छोटा कुर्ता जचता नहीं |
ऊँचे घर की लड़कियों से,घर-परिवार चलता नहीं
छोटे-मोटे कामों में भी,दिल उनका लगता नहीं |
ऊँचे परिवार वालों को,कोई रिश्ता जचता नहीं
ढेरों रिश्ते आये,पर कोई रिश्ता जचता नहीं |
दिन भर सोते-जागते ,टीवी से मन भरता नहीं
मतलब की बातें सुनते नहीं,दिल उनका घर में लगता नहीं |
जो बंद हुए तंबाखू लाल-मंजन ,घर के कामों में जी लगता नहीं
जो बाल रंगे नहीं गये,तो चितकबरे बालों में सिंदूर जचता नहीं |
खाते कुछ भी नहीं,खाया हुआ कुछ पचता नहीं
मुँह से डकारें आती रहें,ये पाचन कुछ जचता नहीं |
न आने की चीज मुँह से आये,ये कुछ जचता नहीं
"पवन पागल"नाज़ुक रिश्तों में ताने मारें जायें,ये कुछ जचता नहीं |

१०५.डंक

साँप के काटने से क्या आदमी मरता है ?
हाँ उसकी दहशत से ज़रूर मरता है
सभी खुशियाँ होने से क्या आदमी मरता है ?
हाँ दिलों में हो चुभन, तो जीते-जी मरता है |
छिपकली के काटने से क्या आदमी मरता है ?
हाँ उसके किसी में गिरने से ज़रूर मरता है
मकड़ी से अच्छा जाला बुनता है आदमी
मकड़ी के बुने जाल से नहीं मरता आदमी |
मच्छर के काटने से क्या आदमी मरता है ?
हाँ चिकनगुनिया से मर सकता है आदमी
एक छोटासा मच्छर आदमी को हिंजड़ा बना देता है
जो चींटी की शे: लगे,तो हाथी भी मारा जाता है|
साँप से कम,बिच्छू से ज्यादा डर लगता है
साँप चेतावनी देकर डशता है,बिच्छू वैसे ही डंक मरता है
सबसे खतरनाक कनखजूरा,जो शरीर में सारे पैर गडा देता है
"पवन पागल"इन सबसे खतरनाक-'आदमी 'जो काटने पर निश्चित मोत देता है |

१०४.जिंदगी के तेवर

जिंदगी गुजरती-गुजारती,संवरती-संवारती
हंसती-हंसाती,रोती-रुलाती,सजती-सजाती
जिंदगी-ये सभी मायने,सब को शान से बताती
जिसने समझा-उससे दोस्ती,बाकी से दुश्मनी निभाती |
मैं तो हूँ जलते हुए दीपक की भांति
तेज हवा में,रह-रह कर भुझी जाती
ये मांगे मजबूत गुंथी घी में तर बाती
कभी ना भुजूँ ,जो भरपूर घी मैं पाती |
मैं अपनी गणित को,अगणित ही रखती
बड़े से खिलाडी को भी भ्रमित ही रखती
इठलाकर चलती,न चलने वाले को गिराती
जो मुझे बांध के रखता,उसको मैं बांध के रखती |
पैदा होने पर सजती,मर जाने पर भी सजती
जन्म लेते ही रोती,मरने पर दूसरों को रुलाती
"पवन पागल"ये कैसे विरोधाभासों पर जिंदगी चलती
कभी जमकर दोस्ती,कभी जमकर दुश्मनी करती |



१०३.वक़्त का तकाज़ा

मोसमों का मिज़ाज बदलता ही रहेगा
जो आज है अपना,कल सपना रहेगा
इसे कसके पकड़ कर रखा जाये
वक़्त है-भागता है-भागता ही रहेगा |
कब तक आदमी दूसरों के भरोसे रहेगा
जो न किया कुछ,वो गुमनाम रहेगा
मरने से पहले,कुछ नाम कमा लिया जाये
जमाना है-बदलता है-बदलता ही रहेगा |
गिरना रुक जायेगा,जो दोड़ता ही रहेगा
जो गिरने से डरा,वो सफ़र में कहाँ रहेगा ?
हिम्मत से हँस कर जिंदगी गुजारी जाये
सफ़र है-चलने का-चलता ही रहेगा |
वक़्त ज़माने के साथ,कभी रुका नहीं रहेगा
जिसने आज न की इसकी कद्र,कल ज़रूर मरेगा
क्यों न इसके थपेड़े सहते,इसको पीछे छोड़ा जाये?
"पवन पागल" ये आज़ाद पंछी है,आज़ाद ही रहेगा |

शनिवार, 11 दिसंबर 2010

१०२.क़ुओं में भांग

जब राज-निति ही भ्रष्ट है,तो राजनितिज्ञ भ्रष्ट न हो ,
ऐसा हो नहीं सकता |
सभी काम सहज होते रहें,और भ्रष्टाचार कभी न हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
जब तमाम क़ुओं में ही भांग घुली हो,और चाहें की नशा न हो ,
ऐसा हो नहीं सकता |
कोई भी श्रेत्र अछूता नहीं है,और हम चाहें की छुआ-छूत न हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
खरबों चुप -चाप डकार लिए जाएँ,और किसी को खबर भी न हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
सब कुछ खर्च कर चुनाव जीत कर आयें,और हम चाहें की लूट-खसोट न हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
नई-नई योजनाएं आती रहे,और घोटाले न हों,
ऐसा हो नहीं सकता |
जब मीडिया के पत्रकार ही भर्ष्ट हों,और मीडिया भ्रष्ट न हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
जब अख़बारों के पत्रकार भ्रष्ट हों,और अखबार भ्रष्ट न हों ,
ऐसा हो नहीं सकता |
जब घराने लालच में आजायें,और घराने भ्रष्ट न हों ,
ऐसा हो नहीं सकता |
जब कोई देश भ्रष्ट सिकंजें में फंस जाये,और वो देश भर्ष्ट न
हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
"पवन पागल" लिखते-लिखते थक जाये,फिर भी कहीं छपता न हो,
'ऐसा हो सकता है' ----------- ?

१०१.नोक-झोंक

तू हाँ तो कर,मेरे मरने की दुआ के लिए ,
तेरे लिए चौदहवीं का चाँद तोड़ न लाऊं तो कहना
मैंने हाँ करदी,पर मरने से पहले मेरे लिए
सामने के पेड़ से लटकते हुए अमरुद तो तोड़ लाओ |
क्या बेकार की बातें करती हो,जो मरने जारहा हो,
उससे अमरुद तोड़ लाने की बातें करती हो
जाओ नहीं मरना! मैं तुम्हारे मरने की दुआ करता हूँ
'मरें मेरे दुश्मन,मैं तो तुम को मार कर ही मरूंगी ' |
ये क्या चल रहा है,जो हम दोनों उट- पटांग बके जारहे हैं
न तुम कँही जारही हो,न मैं कँही जारहा हूँ
फिर भी न जाने दुनियां के दिल क्यों जले जा रहे हैं
चलो छत्त पर धूप में बाज़ार से लाये अमरुद खाये जांये |
अमरुद तो खालेंगे,पर नीचे से चाकू और नमक तो ले आओ
कभी मेरे लिए भी,हाथ-पाँव तो हिला लिया करो
जाओ नहीं खाने तुम्हारे हाथ से कटे ये अमरुद
नज़दीक ही मुफ्त की रेवड़ियाँ बंट रहीं हैं,वंही हाथ-पाँव हिला आऊँगा |
मन करता है की बिजली के खम्बे से चिपक कर मर जाऊं ,
पर हाय रे मुक्कदर ! बिजली ही चली गई
बस इतनी सी बात ! मुझसे कहते
मैं दहेज में लाइ जनरेटर तुरंत ही चालू कर देती |
वो कहते मैं तुम पर जान छिडकता हूँ,झूंट है ये
जान तो दूर, पास पड़े पावडरको तो छिड़का नहीं जाता,
मेरी घमोड़ियों पर,बदन पर तेल की मालिश क्या खाक करोगे ?
बड़े आये जान छिड़कने वाले,दूर जाकर नाक तो सिनकी ही नहीं जाती |
पिछले जनम में भूत थे क्या,जो बच्चों को डरा रहे हो ?
पिछले जन्मों का तो पता नहीं, तुम तो इस जनम में भी भूतनी लगती हो
रोज नहाया करो,पूजा-पाठ किया करो,फिर अच्छे कपडे पहना करो
भूतों को कभी नहाते,पूजा-पाठ करते,और कपडे पहने देखा है कभी ?
("पवन पागल" ये काम तो भूतनियां हीं करती हैं,भूतों को खुश करने के लिए )

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

१००.लाचार व्यवस्था

कबूतर की गुटरगूं और कोयल की कुहक भी,
आज-तक भ्रष्टाचार को रोक नहीं पाई
राजनेताओं की छोड़ें,अब तो पत्रकारों की भी,
आँख इस अनोखी जादुई कमाई पर पाई |
बड़े से बड़ा अफसर और छोटे से छोटे बाबू ने भी,
खूब डट के दिखाई अपने हाथों की सफाई
दिल खोल के की ,बहती गंगा में हाथों की धुलाई,
ये अपने मकसद की खातिर,खुद के बाप को भी न छोड़ें कभी |
एक कमजोर कबूतर की गुटरगूं ने और भी,
किया कमाल' हजारों करोड़ों रूपये के घोटाले भी मेरे भाई,
अर्थव्यवस्था पर भारी न पड़ें कभी',
ऐसी उन्होंने अदभुत प्लानिंग सिखाई |
कोई भी राजनैतिक पार्टी बेदाग नहीं है,न ही होगी कभी
दूध से धुला कोई नहीं है मेरे भाई
ये हमेशा खायेंगे और खिलायेंगे भी
शानदार किस्मत के धनि हैं,जो ऐसी शानदार किस्मत पाई |
चुनावी खर्च के लिए एक साफ़ छवी नेता से सुझाव आया अभी,
की' सरकार इस खर्च की स्वयं करे भरपाई'
उम्मीदवारों की चुनाव से पहले ही लोटरी निकल आई अभी,
फंड तो जुटायें जायेंगे,इस पर ये सरकारी खर्च होगी ( + ) कमाई |
क्या कबूतर और कोयल की कुहुक से राज चलें हैं कभी ?
भ्रष्टाचारियों की तो सरे-आम गीले चमड़े के कोड़े से की जाये पिटाई
ये क्या इनकी पीढियां भी फिर न करें दुबारा ऐसी हिम्मत कभी
"पवन पागल"जिंदगी भर ये रो-रो कर देतें रहें अपने खानदान की दुहाई |

९९,शेर-शायरी 3

हर नई चीज कुछ वक़्त तक ठीक लगती है
मुफ्त में मिली हर चीज हर-वक़्त ठीक लगती है
माल-असबाबों के साथ ही ,वक़्त की हद ठीक लगती है
जो ये मुफ्त में मिली हमारी जान,हरदम ठीक ही लगती है

न होता काजल,बिंदी,और सिंदूर,तो सुन्दरता फूहड़ ही लगती
सीना तानें खड़ी भद्र नारी,कुमलाये फूल सी ही लगती
न होता खिजाब,पाउडर,और क्रीम,उम्र कुछ थमी सी लगती
जो होंतीं सभी सोंदर्य सामग्रियां,भद्र नारी अप्प्सरा सी लगती |

इधर से उधर भागते हुए , पाँव कुछ थक गये थे
पाँव तो कुछ खास नहीं,पाँव से ज्यादा,मन से थक गये थे
वो दरवाजे बंद कर दीयें जाएँ,जो ज्यादा ही खुल गये थे
बंद पड़े मयखानों में,फिर से पीने को कदम क्यों बढ़ गये थे |

क़दमों को जितनी ज्यादा तकलीफ दी जाये
उतना ही आराम ज्यादा मिलता है
तो फिर पूरे शरीर को ही , क्यों न ज्यादा तकलीफ दी जाये
शायद आराम के साथ " राम " भी मिल जाये |

जो तेरे रहमों-करम पर रहते हैं,तो भरपूर जीतें हैं
हम तो निक्कमें हैं,कुछ भी न करते,फिर भी जीतें हैं
जीते तो सभी हैं,जो तुझ पर भरोसा कर, तुझ में जीतें हैं
हमारे जैसे निक्कमें,नालायक,तेरे सहारे जी भर कर जीते हैं |

९८.शेर-शायरी २

जो मेरे हिस्से में तुम आयीं,वो मेरा ही नसीब था
मैंने तुम्हे चाहा,तुमने नहीं,वो मेरा ही नसीब था
अकेला ही बसर करूँ जिंदगी,वो मेरा ही नसीब था
मर-मिटूँ अपनों की याद में,वो मेरा ही नसीब था |

जो दिल से किसी का साथ न मिले,तो अकेलापन ही अच्छा है
हजारों खुदगर्ज मिलें,इससे तो आदमी अकेला ही अच्छा है
जिन फूलों से खुशबु न मिले,उन फूलों का न होना ही अच्छा है
जो जन्नतों में भी सुख न मिले,ऐसी जन्नतों का न होना ही अच्छा है |

चमकता चाँद अच्छा लगता है,टूटा तारा सुकून देता है
कभी अचानक चमक के साथ टूटना,बड़े खतरे का संकेत देता है
टूट कर बिखरना ,ख्वाइश थी बिखर कर जर्रे-जर्रे में समाना
खूब देखें हैं गमें जिंदगी के दोर,अब हमें जी भरके देखे जमाना |

नादानियों में लिए फैसले,बेमतलबी होते हैं
जो समझदारी ही होती,फैसले गोर-मतलबी होते |

शुकुने -इश्क, बे-शुकुनी नहीं देख सकता
बे-शुकुनी इश्क,शुकुने -इश्क नहीं देख सकता

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

९७.शेर-शायरी १

बड़ी तमन्ना थी की,किसी के आसानी से होजायें
पर मुक्कदर में बलखाते,सांप ही सांप मिले
नसीब रेगिस्थान में,सूखे की तरह खड़ा था
वो घडी कब आयेगी,जब दो-दिल एक होजायें ?|

मैंने हंस-हंस के काट दी,रोती हुई जिंदगी
सब कुछ गँवा दिया,इसे संवार ने में
रेत के ढेर की तरह,हमेशा बिखरा ही रहा
लोगों को हंसती ही मिली मेरी छुई-मुई जिंदगी |

सलीकेदार लोगों से ,बदसुलूकी का डर लगता है
वो कब कुछ क्या करदें,पता ही नहीं लगता ?
बदसुलूकी लोगों से,मैं बेखोफ़ रहता हूँ
पता है,भोंकने वाले कुत्ते कभी काटते नहीं हैं |

जिनको देखा ही न हो पहले कभी,उनसे रिश्ता होजाता है
धीरे-धीरे वो पराया,जिंदगी भर के लिये हमारा होजाता है
अच्छी तरह देखी-भाली सूरतों से भी कभी रिश्ता होजाता है
कुछ ज्यादा ही समझ लेंने पर,बहुत जल्दी ही तलाक भी होजाता है |

९६.तेरे संग

तुझ से मोहब्बत तो करें,पर तेरी आँख का इशारा तो दे
जिंदगी में कुछ रंग भरे,तू भी तो कुछ रंग भरदे
जो कब कहाँ मिलना है,अपना कोई पता तो दे ?
मुश्किल से तेरे तक पहुँच पाऊँ,मेरे क़दमों को रफ़्तार तो दे |
तुझसे दोस्ती ही अच्छी,दुश्मनी की हिम्मत कोंन करे ?
जिसे तू अपनी दोस्ती की ललक दे,उससे बेझिझक मिले
हमारी इस अधूरी सी जिंदगी में,कुछ खुशबु तो भरदे
हरदम तेरी ही याद में खोये रहें,कुछ ऐसी ही चाबी भरदे |
जो हो कोई और हसीन सूरत,हमें भी उससे मिला दे
हम तेरे तक तो नहीं पहुँच पाये, उस तक क्या पहुंचेगे ?
ऊपर जो हसीन नज़ारे हैं,उन्हें हमें भी देखने दे
हमारे लोगों की धरती को ,कभी तो सूरज से मिलने दे |
जो सांसें थोड़ी बहुत बचीं हैं,उनमें तेरी महक भरदे
हर आने-जाने वाली सांसों पर तेरा ही नाम लिख दे
"पवन पागल" तेरे सफ़र में डगमगा न जाये,इतना होसला दे
हरदम तेरी ही खुदाई में खोया रहूँ,ऐसा कुछ करदे |

९५.आखिर क्यों

गर्दिश में मैं रहूँ,और तुझे खबर न हो,
ऐसा हो नहीं सकता
कोयले की दलाली करूँ,और हाथ काले न हों
ऐसा हो नहीं सकता |
सुर्ख़ियों में रहूँ,और तुझे खबर न हों
ऐसा हो नहीं सकता
बारिश बरसती रहे,और बादल न हों
ऐसा हो नहीं सकता |
चिराग़ जलते रहें,और तुझे खबर न हो
ऐसा हो नहीं सकता
तू सदा साथ मेरे रहे,फिर भी चिराग़ तले अँधेरा
ऐसा हो नहीं सकता |
बीच भंवर में फंसा रहूँ,और तुझे खबर न हो
ऐसा हो नहीं सकता
तेरे सफ़र में रहूँ,और पानी में भैंस डूब जाये
ऐसा हो नहीं सकता |
रात-दिन तेरे ख्यालों में रहूँ,और तुझे खबर न हो
ऐसा हो नहीं सकता
"पवन पागल"तेरी अरदास में रहे,और मूंड मुडाते ही ओले पड़ें
ऐसा हो नहीं सकता |

९४.कैसी तड़फ

जो उन पर नज़र पड़ गयी,तो अच्छा ही हुआ
जाना-पहचाना चेहरा,अनजाना ही निकला
अच्छी तरह जानते हुए भी,धोका ही हुआ
जैसे शमा से टकराकर,परवाना झुलसता निकला |
जो अनजाने में,अच्छा होगया हो
मेरे कर्म! या ऊपर वाले की दुआ
जान-भूझ कर तो,मैंने कभी अच्छा किया ही नहीं
उसकी गली से जब भी निकला,रोते हुए ही निकला |
जो मैंने सोचा,वैसा तो कभी नहीं हुआ
तमाम वक़्त फांका-कसी में ही निकला
मुक्कदर ज़ुल्फ़ की तरह,उलझ कर रहगया
जो उसे सुलझाना चाहा,ज्यादा उलझा ही निकला |
न सर पर छत थी,न हाथ में पैसा
बरसती बारिश में भी,भीगता हुआ ही निकला
"पवन पागल"सूनी गलियों में बदबू,नसीब में बद- दुआ
लडखडाते हुए यूँ लाचारी में,अपने घर से बेआबरू निकला |

९३.हवाएं

जो हवाएं यहाँ चलतीं हैं,वो ही शरहद पार भी चलती हैं
जो खुशबुएँ यहाँ महकती हैं,वो ही शरहद पार भी महकती हैं
जब दोनों हवाओं में खुशबु एक है,तो दिलों में इतना फर्क क्यों ?
दिल तो एक ही हैं,दरअसल दिलों पार दादा-गिरी चलती है |
जो दिलों पर दादा-गिरी चले,तो आवाम कब तक बर्दाश्त करेगा ?
आवाम तो बर्दाश्त कर चुका,पर वहां पर मर्दों की ज्यादा चलती है
धार्मिक नेताओं की ज्यादा ,ओर राजनीतीगों की कम चलती है
खुशबु भरी हवाएं तो चलतीं हैं,पर धर्म की हवा जोरों से चलती है |
धर्म की हवाएं जोरों से चलें,इससे ज्यादा ख़ुशी की बात क्या होसकती है?
पर इतनी जोरों से भी न चलें,की दुआ-सलाम ही बंद हो जायें
ऐ हवाओं जब भी उधर जाओ,उन तक हमारा पैगाम लेते जाना
दुनियाँ चाहे कुछ भी कहे,हमारी तो यूँ ही छोटी-मोटी चलती रहती है |
रिश्ते जो बिगड़ जातें हैं,सुधरते-सुधरते ही सुधरेंगे
जो बादल आज ग़रज रहें हैं ,कल फिर ज़रूर बरसेंगे
"पवन पागल" जिंदगी खुशबु भरी हवाओं और पानी पर चलती है
सच्चाई से लिए फैसलों पर,जन्ता की खुशियों की खातिर,कुछ समझोंतों पर चलती है |

शनिवार, 4 दिसंबर 2010

९२.तेरे ख्यालों में

पाँऊ सदा सामने उसे,पर देख न पाँऊ
आँखों के रहते हुए भी,उसे देख न पाँऊ
ये हमारी कमजोरियां हैं,या उसकी उस्तादियाँ,
इस तड़फ को मैं अब,ज्यादा सह न पाऊँ |
उसे पाने के लिए,लाख कोशिशें कीं
मगर वो ,आगे से आगे भागता रहा
ये हमारा कर्म है,जो उससे हैं इतनी दूरियां,
उससे अब मैं,इतनी लम्बी जुदाई सह न पाँऊ |
सुना है वो इन पथराई आँखों से,नहीं दिखाई देता
मन के दिव्य नेत्रों से,उसे देखना पड़ता है
जानते हुए भी ये कैसे हो गयी ,हम से गुस्ताखियाँ ?
मैं एक पल भी अब इन पथराई आँखों को,सह न पाऊँ |
मैं उसे अब तस्वीरों में,देखना न चाहूँ
तस्वीरों में वो बहुत,नज़दीक लगता है,
पर दिखाई नहीं देता,दिखतीं हैं सिर्फ उसकी परछाइयां,
प्रेम की धारा तो निरंतर बहती रहे,फिर भी मैं उस तक पहुँच न पाँऊ |
कागज़ों पर लिखना ओर कुछ चाहूँ,पर तेरा ही नाम छपा पाँऊ
लगातार लिखने के बावजूद भी,तुझे अब तक पहचान न पाँऊ
"पवन पागल" को इतना काबिल बना दिया,बहुत-बहुत मेहरबानियाँ ,
लिकना ओरों के लिए भी चाहूँ,पर न जाने क्यों न लिख पाँऊ |

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

९१.क्यों देखूं ?

तेरी दुनियाँ देखकर,किसी ओर दुनियाँ को क्यों देखूं ?
जो हुई तुझसे मोहब्बत,किसी ओर मोहब्बत को क्यों देखूं ?
तुझे देखकर सुकून मिलता है,तो रोती-बिलखती जिंदगियां क्यों देखूं ?
तूने तेरी हस्ती से बढ़ कर पाला,तो मैं गिरती-पड़ती जिंदगियां क्यों देखूं ?
जो तू मुझे निरंतर दिखता रहे,तो मैं अपनों को क्यों देखूं ?
मुझे अनवरत दिखाई देता रहे,तो मैं दुखी संसार को क्यों देखूं ?
मुझे तेरा चश्मा मिल गया है,तो मैं अपने चश्में से क्यों देखूं ?
मुझे जो तेरा चस्का लग गया है,तो मैं ओर नये स्वादों को क्यों देखूं ?
जो मिले तेरा नज़रिया,तो मैं अपने नजरिये से क्यों देखूं ?
जो तेरी नजदीकियां मिल जांयें ,तो मैं इतनी दूर से क्यों देखूं ?
"पवन पागल" तेरे सीधा संबंध मुझ से हो,तो मैं दूसरों की मदद से क्यों देखूं ?
जो गोलोक में ही तू मिल जाये,तो मैं बैकुंठ में क्यों देखूं ?

९०.तोसे नैना मिला के

जो जिंदगी ठाट-बाट से गुजरी
तो क्या जनाज़ा भी शांन से उठेगा ?
इसकी हम क्यों कर फ़िक्र करें,
माटी का पुतला था,माटी में मिल जायेगा |
जो हम ने न की,उसकी जी-हज़ूरी
तो वो भी मजबूर होजायेगा
तुम्हारी फ़िक्र करना छोड़,
ओरों की फ़िक्र में खो जायेगा |
जो उसने दिखाना बंद कर दी बाजी-गरी
तुम क्या ख़ाक नाच पाओगे ?
उससे रिश्तों का मान करें,
यक़ीनन वो तुमसे मिलने ज़रूर आयेगा |
उससे प्यार करना नहीं है तुम्हारी मज़बूरी
वो मजबूरन तुमसे प्यार करने लगेगा
रोज सुबक-सुबक कर,उसके सामने रोना शुरू करें,
"पवन पागल" वो हर हाल में,तुम्हें ज़रूर मिल जायेगा |

८९.फ़कीरी

जब हमारे पास कुछ है ही नहीं,कोई हमसे क्या ले जायेगा ?
हम उसके सामने फ़कीर हैं,फ़कीरों से कोई क्या ले जायेगा ?
कुछ नहीं होने से,फ़कीरी अच्छी होती है
जो कुछ न मिला उसे तो,फ़कीरों की दुआएं ही ले जायेगा |
जो अब कुछ बचा ही नहीं,इस ज़र-ज़र शरीर में
कोई क्या ख़ाक मार कर हमें ले जायेगा ?
जो हम मुफ़लिसी में,रास्ते पे बैठे कंजर
कोई क्यों हमारे सीने में,खंजर घोंप जायेगा ?
उठना तो सब का तय है,क्यों न शान से उंठे ?
सुकून मिलेगा,जो जमाना रोता रह जायेगा |
"पवन पागल"जर्रे-जर्रे में टूट कर,बिखर जाने की ख्वाइश है
कभी न कभी कंही न कंही उससे सामना हो ही जायेगा |

८८.' पानी '

जो आज है, कल नहीं होगा
उसकी चिंता करना जरुरी है
सोच-समझ कर खर्च करना होगा,
भविष्य के लिए 'पानी' को बचाना जरुरी है |
कुदरत से हम हैं,कुदरत हम से नहीं
जिन्दा रहने के लिए,इसे बचाना जरुरी है
बरसातीं पानी को इक्कठा करना होगा,
मुफ्त में मिली 'भविष्यनिधि' को बचाना जरुरी है |
जोर से चलने वाले,फव्वारों को छोड़ना होगा
बाल्टी-डिब्बो का ही उपयोग करना होगा
गीले कपडे से कारें पोंछी जाएँ तो बेहतर,
हर बहते पानी को रोकना जरुरी है |
खेती-बाड़ी,ओर बाग़-बगीचों में
नये आयामों की खोज जरुरी है
पानी के खर्च को सीमाओं में बांधना होगा,
समंदर के खारे पानी को,मीठा बनाना जरुरी है |
सोचो नहीं,अमल करना शुरू करदें
बूंद-बूंद पानी बचाकर,घड़ा भरलें
"पवन पागल"सिमित पानी को अमृत मानना होगा,
असीमित जीवन जीने के लिए,जल को बचाना जरुरी है |

८७.नसीयत कोंन करे ?

जो खुद तो सदा रहे बेकाबू
वो हमें काबू में रहने की नसीयत देतें हैं
जिन्हें जिंदगी में तैरना न आया कभी,
वो हमें समंदर में ग़ोता-खोरी की सलाह देतें हैं |
थोड़ी अपने आस-पास, बिखेर लो खुशबुएँ
अपनी बगियाँ में सुगन्धित फूल क्यों नहीं उगालेते
खुद ने तो गंगा स्नान न किया कभी,
हमें गंगा-सागर में नहाने की सलाह देते हैं |
जिन्होंने कभी किसी का भला नहीं किया
वो हमें भी बुरा ही करने की सलाह देतें हैं
जिन्हें जिंदगी ठीक से जीने का तरीका न आया कभी,
वो हमें जिंदगी जीने का फलसफ़ा बार- बार दोहरातें हैं |
जो आज तक उन्होंने किसी से निभाई हो तो पूंछें सवाल
तमाम जिंदगी लोगों के सवालों में घिरे रहतें हैं
"पवन पागल" जिन्हें आग भुजाना न आया कभी,
वो सुलगती आग को जान-भूज कर,बार-बार हवा देतें हैं

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

८६.सुधार

लिखने सुनने से कोई बात नहीं बनेगी
जो इरादे मज़बूत हों,समंदर रास्ता दे देगा,
तैर-तैर कर डूबने से,अच्छीतैराकी नहीं कहलाएगी
बिना अक्कल के,क्या समंदर में ईमारत बन पायेगी ?
अच्छा बुरा बनने में,पहले आपकी मर्जी शामिल होती है
दूसरे आपको जब बहलाएँगे ,क्या आप बहल जाओगे ?
गलतियाँ आप को पकड़ें ,या आप गलतियों को पकड़ें '
बैगर गलतियों के, क्या अपने आप को सुधार पाओगे ?|
कहतें हैं इन्सान,गलतियों का पुलन्दा है
सीधे-सीधे क्यों नही कहते की,हम उसके हाथ से बंधी कटपुतलियाँ हैं,
हर किसी का अंत है,हम मेंसे कोई अंनंत नहीं,
जो गलतियाँ जवानी में नहीं ,तो क्या खाक बुढ़ापें में सुधार पाओगे ?|
तुम्हे जीना है,ओर लोगों कोजीने देना है
फिर क्यों नहीं अपनी हरकतों से ,बाज़ आते हो
"पवन पागल" मंजिल डूबने से नहीं,तैरने से मिलती है,
जो अपने आप को बचा पाये,तभी तो दूसरों को बचाओगे |

८५.नेक इरादे

बैठो उनके पास,जो महकते हों
वो ही फूल बोयें जांये,जो सुघंदित हों
जो न रह पायें,किसी उसूल पे कायम
उनसे दोस्ती न हो,तो दुश्मनी भी न हो |
विषेले साँपों के बीच,रहना तो पड़ता है
क्या चन्दन पर साँपों के जहर का असर होता है ?
चन्दन बन,घिस-घिस कर काम आते रहो,
जहर तो रहेगा ,पर अपनी महक को बढ़ाते रहो |
जो अपने मतलब के लिए,चहकते हों
उस कलरव से हमारा ,कोई नाता न हो
उनसे दोस्ती करो,जो सब के दोस्त हों,
फिर लोगों की क्या परवाह,बस हमारे इरादे नेक हों |
जो देखें हिमालय को,अगले कदम हिमालय पर हों
वो ही कुआ खोंदें,जिसमें सब के लिये पानी हो
"पवन पागल" आग सीनें में हो,पर लोगों को खबर न हो,
कल की फ़िक्र क्यों हो,न जाने कल हो न हो |

८४.खोया-पाया

गैरों ने कम,अपनों ने ज्यादा रुलाया
जो उजालों ने दी दस्तक,अपने को अँधेरे में ही पाया,
ख़ुशी कम,गम बेहिसाब पाया
हर तीर को अपनी ही,ओर आता पाया |
जो जीना ही रास न आया ,तो मरने की तम्मना कोन करे ?
जिसे डूबने का डर न हो,वो तूफ़ान की फ़िक्र क्यों करे ?
एक तेरा जो साथ मिला,जिंदगी में सब कुछ मिल गया
सुकून मिला इतना की ,सिर्फ तेरे आगे रोने को दिल करे |
तेरे रहते सब कुछ पाया,क्या काया- क्या माया ?
वो मर कर फिर जी गया,जिसने मन से तुझे पाया,
जो सुख में खोगया ओर गम से डर गया,वो जीते-जी मर गया
"पवन पागल" पहले ज्ञान न पाया ,जो तुझे इतनी देर से अपनाया |

८३.कवि और कविता

जब से पुराने कवि गये,कविता कंही खो गयी
वो कुछ ऐसा लिख गये की,हमेशा के लिए दिमाग में छागयी ,
वो अपने शौक में,अपनी धुन में,अनवरत लिखते रहे
उनको छपने का शौक न था,पर आज छपाई कविता को खागयी |
उनकी सोच लम्बी थी,इसलिये कविता विस्त्तार पागयी
बदलाव ओर वक़्त की मार से,कुछ ज्यादा ही भिखर गयी ,
पैसे से ज्यादा अपने मान-सम्मान को अहमियत देते रहे
सिमित सम्मान व असीमित माया,कविता को मार गयी |
अपने स्वार्थ के लिये ,साहित्य का गला घोटते रहे
उन्होंने साहित्य के लिये गले कटवा लिये ,
"पवन पागल" अति से- मति,ज्यादा ही नाराज़ होगयी
दिलों को छूने वाली,आज अँधेरे में कहीं खोगयी |

८२.जो तुम न होते

जो''औरत'न होती,तो न हम होते न तुम होते
न ताजमहल होता,न शहनाईयां होंती न नक्कारे होते,
होते सिर्फ,दिलजलों के सपनाई महल होते
जिनमें रोशनी नहीं,घुप्प अँधेरे होते |
न बीबियों के शानदार मकबरे होते
न दरबारों में लाजवाब नाच- गाने होते,
मकबरों की जगह सिर्फ चबूतरे होते
और दरबारों में सिर्फ बेनामी शायर होते |
न शायरी होती,न नामी शायर होते
न फूलों में पुंकेसर होते,न भोंरे उनका रस चूँसते ,
होतीं सिर्फ तुक-बंदियां,जिन्हें जबरन सुनते
फूलों की बजाय कांटें होते,जो हर जगह चुभते रहते |
न बरातें होंतीं ,न चुल -बुले बाराती होतें
न दहेज की पीड़ा होती,न दहेज के खरीदार होते,
न बेजा जुल्म होते,न जुल्मों के ठेकेदार होते,
होंतीं सिर्फ नाम की रातें ,जिसमें अधिकतर खैराती होते |
जो न होता हुस्न , तो बुर्के नदारत होते,
अगर कत्ले-आम मचता तो,पहरेदार निहथे होते
"पवन पागल" जो 'वो'न होंतीं,तो रौशनी की जगह अँधेरे होतें,
न कोई हमारा होता,न हम किसी के होंते |