Mere Dil Se.....

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

८९.फ़कीरी

जब हमारे पास कुछ है ही नहीं,कोई हमसे क्या ले जायेगा ?
हम उसके सामने फ़कीर हैं,फ़कीरों से कोई क्या ले जायेगा ?
कुछ नहीं होने से,फ़कीरी अच्छी होती है
जो कुछ न मिला उसे तो,फ़कीरों की दुआएं ही ले जायेगा |
जो अब कुछ बचा ही नहीं,इस ज़र-ज़र शरीर में
कोई क्या ख़ाक मार कर हमें ले जायेगा ?
जो हम मुफ़लिसी में,रास्ते पे बैठे कंजर
कोई क्यों हमारे सीने में,खंजर घोंप जायेगा ?
उठना तो सब का तय है,क्यों न शान से उंठे ?
सुकून मिलेगा,जो जमाना रोता रह जायेगा |
"पवन पागल"जर्रे-जर्रे में टूट कर,बिखर जाने की ख्वाइश है
कभी न कभी कंही न कंही उससे सामना हो ही जायेगा |

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