मैं तो तुम्हारी हर ख़ुशी में शामिल था
फिर मुझे इतना बेगाना क्यों कर दिया ?
नज़र जो मिली तुमसे,उन नज़रों में, मैं न था
मेरी मोहब्बत को, ख़ाक मोहब्बत क्यों कह दिया ?|
दोरे-सफ़र में हर जगह, मैं मोजूद था
फिर मुझे बीच सफ़र में ही, क्यों छोड़ दिया ?
साथ होते हुए भी,मैं तुम्हारे साथ न था
जुदा रहते भी,मुझे हमसफ़र क्यों कह दिया ? |
तम्हारे हर फैसले में, मैं शामिल था
फिर मुझे इतना पराया क्यों कर दिया ?
जो मांग लेते मेरी मोत,मैं तंग-दिल न था
सरे-राह मिलने पर,सिसक कर मुँह क्यों फेर लिया ? |
मैंने तुम्हे चाहा ,ये मेरा नसीब था
चाह कर मुझे,बदनसीब क्यों कर दिया ?
तुम सुकून से रहो,मैं तनहा कब था ?
बता "पवन पागल"को गम-गीन क्यों कर दिया ? |

Mere Dil Se.....
बुधवार, 22 दिसंबर 2010
३४(११५)पंछी उड़ गये
होश उड़ गये,पंछी उड़ गये
जो जकड़े हुए थे बँधनों से
बँधनों से मुक्त होगये
पर पीछे उदास चेहरे छोड़ गये |
जाने वाले फिर लोट के न आयें
जो जाना सब का समय से तय है
वो तो समय के बंधन से भी मुक्त होगये
और समय के साथ 'पंछी' को लोग भूल गये |
होश में नहीं,बेहोश उड़ गये
जो उलझे थे,रिश्तों से
रिश्तों से आज़ाद होगये
सच्चाई की दुनियाँ में कँही खोगये |
ऐसा नहीं सुबह गये,शाम को आये
मजबूर थे उसकी व्यवस्था से
संसार की सभी मजबूरीयों से मुक्त होगये
"पवन पागल" जिसके थे,उसी के होगये |
जो जकड़े हुए थे बँधनों से
बँधनों से मुक्त होगये
पर पीछे उदास चेहरे छोड़ गये |
जाने वाले फिर लोट के न आयें
जो जाना सब का समय से तय है
वो तो समय के बंधन से भी मुक्त होगये
और समय के साथ 'पंछी' को लोग भूल गये |
होश में नहीं,बेहोश उड़ गये
जो उलझे थे,रिश्तों से
रिश्तों से आज़ाद होगये
सच्चाई की दुनियाँ में कँही खोगये |
ऐसा नहीं सुबह गये,शाम को आये
मजबूर थे उसकी व्यवस्था से
संसार की सभी मजबूरीयों से मुक्त होगये
"पवन पागल" जिसके थे,उसी के होगये |
३३(११४)किनारे लगी नाव
जिंदगी एक नाव है
जो हर दाव पर चलती
दूसरे किनारे पे लगने की उम्मीद में
कभी हिचकोले लेकर चलती
कभी जोर-शोर से चलती |
किनारे तो अपनी जगह अटल हैं
कभी सूख भी जाते हैं बेचारे
ऐसे में नाव भी रुक जाती है
सूखे किनारों में पानी भर जाने पर
नाव फिर से लहराकर शान से चलती |
जर-जर होजाने पर वो नाव
हमेशा के लिए किनारे लगती
जब इतना ही सफ़र तय है
तो हम खातमों की चुभन में
अपने को और जर-जर क्यों बनायें ?|
मोत इस किनारे हो,या उस किनारे
नाव का दूसरे किनारे पर लगना तो तय है
चलो आज तो नहीं मरे,कल की फ़िक्र क्यों करें ?
क्या पता "पवन पागल"किनारे लगी नाव ?
सज-संवर कर फिर से चलने लगे |
जो हर दाव पर चलती
दूसरे किनारे पे लगने की उम्मीद में
कभी हिचकोले लेकर चलती
कभी जोर-शोर से चलती |
किनारे तो अपनी जगह अटल हैं
कभी सूख भी जाते हैं बेचारे
ऐसे में नाव भी रुक जाती है
सूखे किनारों में पानी भर जाने पर
नाव फिर से लहराकर शान से चलती |
जर-जर होजाने पर वो नाव
हमेशा के लिए किनारे लगती
जब इतना ही सफ़र तय है
तो हम खातमों की चुभन में
अपने को और जर-जर क्यों बनायें ?|
मोत इस किनारे हो,या उस किनारे
नाव का दूसरे किनारे पर लगना तो तय है
चलो आज तो नहीं मरे,कल की फ़िक्र क्यों करें ?
क्या पता "पवन पागल"किनारे लगी नाव ?
सज-संवर कर फिर से चलने लगे |
३२(११३) हाले-दिल
जो खिलते बेशुमार फूल हसरतों के
जी भर के मुस्करा तो लेते|
कोई हमारा होता,हम भी होते किसी के
ख़ुशी से एक दूसरे को अपना लेते |
जो नशे में न रहते,कमाई दोलत के
होश आने से पहले,उसे बचा तो लेते |
तकलीफ़ उनको हो,आँसू हमारी आँख में छलकें
तकलीफ़ ज्यादा बढे,उससे पहले बचा तो लेते |
वो तरस भी न खायें, मुझे छलके
कभी आकर अपनी सूरत तो दिखा देते |
हम भी बैठे रहे इत्मिनान से,तसल्ली करके
हमें न सही,किसी और को तो अपना लेते |
जो तकलीफ़ हुई,हाले-दिल हमारा देख के
तो कुछ कुछ कम क्यों नहीं करलेते ?|
पीते जाम पे जाम,जी भर भरके
कभी हमको पिलाते,कभी खुद पी लेते |
जो खुले-आम मोहब्बत न करके
आँखों में मोहब्बतों को तो भर लेते |
जब भी याद आती,देखते आँखें बंद करके
"पवन पागल" को करीब से बिखरा हुआ देख तो लेते |
जी भर के मुस्करा तो लेते|
कोई हमारा होता,हम भी होते किसी के
ख़ुशी से एक दूसरे को अपना लेते |
जो नशे में न रहते,कमाई दोलत के
होश आने से पहले,उसे बचा तो लेते |
तकलीफ़ उनको हो,आँसू हमारी आँख में छलकें
तकलीफ़ ज्यादा बढे,उससे पहले बचा तो लेते |
वो तरस भी न खायें, मुझे छलके
कभी आकर अपनी सूरत तो दिखा देते |
हम भी बैठे रहे इत्मिनान से,तसल्ली करके
हमें न सही,किसी और को तो अपना लेते |
जो तकलीफ़ हुई,हाले-दिल हमारा देख के
तो कुछ कुछ कम क्यों नहीं करलेते ?|
पीते जाम पे जाम,जी भर भरके
कभी हमको पिलाते,कभी खुद पी लेते |
जो खुले-आम मोहब्बत न करके
आँखों में मोहब्बतों को तो भर लेते |
जब भी याद आती,देखते आँखें बंद करके
"पवन पागल" को करीब से बिखरा हुआ देख तो लेते |
३१(११२) गोविन्द ललक
गोविन्द म्हारा श्याम्धनी चितचोर --२
मेंह तो थांकी बाट देखां नितभोर
गोविन्द म्हारा------------------
थे म्हांने चाहो, मेंह थानें चावां ------२
फिर कांइ की देर
गोविन्द म्हारा ------------------
इसी गांठ लगाओ जी,कदे न टूटे गठजोड़ ---२
लम्बी ही बढती जाये,म्हारी पतंगा की डोर
गोविन्द म्हारा---------------------
वृन्दावन भी जा आया देर सबेर -----२
पण थान्को कोणी लादयो ठोर
गोविन्द म्हारा----------------------
अब म्हाने मत तरसावो सांवरिया रुणछोड़ ---२
बेगा-बेगा आवो,झटपट भोग लगाओ नंदकिशोर
गोविन्द म्हारा -----------------------
थान्से मिलबा की खातिर--------------------२
"पवन पागल" होतो रहयो भाव-विभोर --------२
गोविन्द म्हारा ----------------------
मेंह तो थांकी बाट देखां नितभोर
गोविन्द म्हारा------------------
थे म्हांने चाहो, मेंह थानें चावां ------२
फिर कांइ की देर
गोविन्द म्हारा ------------------
इसी गांठ लगाओ जी,कदे न टूटे गठजोड़ ---२
लम्बी ही बढती जाये,म्हारी पतंगा की डोर
गोविन्द म्हारा---------------------
वृन्दावन भी जा आया देर सबेर -----२
पण थान्को कोणी लादयो ठोर
गोविन्द म्हारा----------------------
अब म्हाने मत तरसावो सांवरिया रुणछोड़ ---२
बेगा-बेगा आवो,झटपट भोग लगाओ नंदकिशोर
गोविन्द म्हारा -----------------------
थान्से मिलबा की खातिर--------------------२
"पवन पागल" होतो रहयो भाव-विभोर --------२
गोविन्द म्हारा ----------------------
३०(१११) तडफ
उनको रुलाने के सिवा कुछ भी नहीं आता
हमको उनको मनाने के सिवा कुछ भी नहीं आता
वो रुलातें रहें,हम मनातें रहें जिंदगी भर
हमें नचाते रहें! उनको तो नाचने के सिवा कुछ भी नहीं आता |
वो कहाँ तडफते हैं! उनको तो तडफाने के सिवा कुछ भी नहीं आता ?
वो छ्लीयाँ हैं!उनको तो छलने के सिवा कुछ भी नहीं आता
वो छलते रहें,और हम छलाते रहें जिंदगी भर
उनको तो छलने पर,तरस खाना भी नहीं आता |
रहतें हैं दिल में!पर परोक्ष रूप में दर्शन देना भी नहीं आता
कड़े इम्तिहान लें! पर इम्तिहानों में कामयाबी भी देना नहीं आता
वो आग लगाते रहें! हम सुलगते रहें जिंदगी भर
उनको तो आग लगाने के सिवा कुछ भी नहीं आता |
आग लगाकर,उसे बुझाना भी नहीं आता
जले फफोंलों पर मल्हम लगा देते! उन्हें तो वो भी नहीं आता
हमारे अन्दर सदा जल्ती रखना इस आग को ज़िदगी भर
"पवन पागल"उन्हें तो जल्ती आग को! और हवा देना भी नहीं आता |
हमको उनको मनाने के सिवा कुछ भी नहीं आता
वो रुलातें रहें,हम मनातें रहें जिंदगी भर
हमें नचाते रहें! उनको तो नाचने के सिवा कुछ भी नहीं आता |
वो कहाँ तडफते हैं! उनको तो तडफाने के सिवा कुछ भी नहीं आता ?
वो छ्लीयाँ हैं!उनको तो छलने के सिवा कुछ भी नहीं आता
वो छलते रहें,और हम छलाते रहें जिंदगी भर
उनको तो छलने पर,तरस खाना भी नहीं आता |
रहतें हैं दिल में!पर परोक्ष रूप में दर्शन देना भी नहीं आता
कड़े इम्तिहान लें! पर इम्तिहानों में कामयाबी भी देना नहीं आता
वो आग लगाते रहें! हम सुलगते रहें जिंदगी भर
उनको तो आग लगाने के सिवा कुछ भी नहीं आता |
आग लगाकर,उसे बुझाना भी नहीं आता
जले फफोंलों पर मल्हम लगा देते! उन्हें तो वो भी नहीं आता
हमारे अन्दर सदा जल्ती रखना इस आग को ज़िदगी भर
"पवन पागल"उन्हें तो जल्ती आग को! और हवा देना भी नहीं आता |
२९(११०)तरसती आरज़ू
जो नज़र भर के देखा उनको,दिल बाग-बाग होगया
पर उधर से जो माकूल जवाब न आया,तो दिल तार-तार होगया
मैंने इस तरह,दिल टूटने की उम्मीद न की थी
जो दुबारा नज़रों से देखा उनको,नज़रों का गुमान होगया |
हादसा छोटा सा था,पर न जाने तिल का ताड़ कैसे होगया ?
सफ़र का छोटा सा रास्ता,देखते ही देखते पहाड़ होगया
मैंने जो कुछ सोचा था,वैसा तो नहीं हुआ
बेबसी में हाले-दिल हमारा,छलनी-छलनी होगया |
धन-दोलत की कमी न थी,पर जो देखा उन्हें,कंगाल होगया
दोलत-मंद होते हुए भी,उनके सामने गरीब से गरीब होगया
मुझे मंज़ूर है फांका-कसी ,काश वो मिल तो जाएँ
दूर बैठे तरसते रहे,अब तरसती आँखों में अँधेरा होगया |
दिल में रहते हैं,पर हुबहू मिलने का मलाल रह गया
आँखों में रहते हैं,पर इन आँखों से देखने का ख्याल ही रहगया
जो दिखाई देते इन आँखों से,तो 'आलाआँखों'को कोन पूछता ?
"पवन पागल"आँखों के होते हुए भी,'सूरदास'ही बाज़ी मार गया |
पर उधर से जो माकूल जवाब न आया,तो दिल तार-तार होगया
मैंने इस तरह,दिल टूटने की उम्मीद न की थी
जो दुबारा नज़रों से देखा उनको,नज़रों का गुमान होगया |
हादसा छोटा सा था,पर न जाने तिल का ताड़ कैसे होगया ?
सफ़र का छोटा सा रास्ता,देखते ही देखते पहाड़ होगया
मैंने जो कुछ सोचा था,वैसा तो नहीं हुआ
बेबसी में हाले-दिल हमारा,छलनी-छलनी होगया |
धन-दोलत की कमी न थी,पर जो देखा उन्हें,कंगाल होगया
दोलत-मंद होते हुए भी,उनके सामने गरीब से गरीब होगया
मुझे मंज़ूर है फांका-कसी ,काश वो मिल तो जाएँ
दूर बैठे तरसते रहे,अब तरसती आँखों में अँधेरा होगया |
दिल में रहते हैं,पर हुबहू मिलने का मलाल रह गया
आँखों में रहते हैं,पर इन आँखों से देखने का ख्याल ही रहगया
जो दिखाई देते इन आँखों से,तो 'आलाआँखों'को कोन पूछता ?
"पवन पागल"आँखों के होते हुए भी,'सूरदास'ही बाज़ी मार गया |
२८(109 ) ये हादसे
दिल में दर्द माथे पर शिकन दे गये,मोहब्बतों के हादसे
दुबारा संभल कर करें मोहब्बत,ये हिदायत देगये हादसे
तमाम आरजुओं को दरकिनार कर गये ये आवारा हादसे
कुछ और जिंदा रहते,और जीने की उम्मीद तोड़ गये हादसे |
मुझे ही क्या! बहुतों को ठोकर मारतें हैं हादसे
क्यों बे-वक़्त सर ऊँचा किये,चले आते हैं हादसे
जब भी कुछ करने की सोची,होजातें हैं हादसे
अच्छों-अच्छों के होश उड़ा जातें हैं हादसे |
अछे-खासे लोगों को ,जिंदा लाश बना जाते हादसे
दोस्त को दुश्मन,दुश्मन को दोस्त बना जाते हादसे
जरा सी बात पर,नाजुक दिलों को तोड़ते हादसे
दो मुल्कों के रिश्तों को बे-वजह,तोड़ते हादसे |
गल्ती करने वालों को,खामोश रखते हादसे
न गल्ती करने वालों को,मदहोश रखते हादसे
आदमी को ओरत,ओरत को आदमी बनाते हादसे
कभी राजा को रंक,रंक को राजा बनाते हादसे |
अपनी कारगुजारियों पर,दिल ठोककर हँसते हादसे
दुसरें जो भला करना चाहें,उस पर भी ठांस लगते हादसे
"पवन पागल' मोत की तरह ही,बिना बताये आते हादसे
सभी की होली जला देते,ये कमबख्त कमीने हादसे |
दुबारा संभल कर करें मोहब्बत,ये हिदायत देगये हादसे
तमाम आरजुओं को दरकिनार कर गये ये आवारा हादसे
कुछ और जिंदा रहते,और जीने की उम्मीद तोड़ गये हादसे |
मुझे ही क्या! बहुतों को ठोकर मारतें हैं हादसे
क्यों बे-वक़्त सर ऊँचा किये,चले आते हैं हादसे
जब भी कुछ करने की सोची,होजातें हैं हादसे
अच्छों-अच्छों के होश उड़ा जातें हैं हादसे |
अछे-खासे लोगों को ,जिंदा लाश बना जाते हादसे
दोस्त को दुश्मन,दुश्मन को दोस्त बना जाते हादसे
जरा सी बात पर,नाजुक दिलों को तोड़ते हादसे
दो मुल्कों के रिश्तों को बे-वजह,तोड़ते हादसे |
गल्ती करने वालों को,खामोश रखते हादसे
न गल्ती करने वालों को,मदहोश रखते हादसे
आदमी को ओरत,ओरत को आदमी बनाते हादसे
कभी राजा को रंक,रंक को राजा बनाते हादसे |
अपनी कारगुजारियों पर,दिल ठोककर हँसते हादसे
दुसरें जो भला करना चाहें,उस पर भी ठांस लगते हादसे
"पवन पागल' मोत की तरह ही,बिना बताये आते हादसे
सभी की होली जला देते,ये कमबख्त कमीने हादसे |
शनिवार, 18 दिसंबर 2010
१०८.और इंतजार
खुशियाँ यहाँ से गुजर गईं,रह-रह के तेरे इंतज़ार में
चमन के फूल मुरझा गए,तेरे आने के इंतज़ार में
ओरों की क्या बात करूँ,तेरे इस सूनें जहाँन में
मेरे अपने हीं बैठे हैं,मेरी म़ोत के इंतज़ार में|
मैंने किसी को चाहा,इसमें मेरी क्या ख़ता ?
जिंदगी गुजर गई,तेरे आने के इंतज़ार में
चाहतों का सिलसिला,कभी तो खतम हो
अब मैं और जिंदा न रहूँ,चाहतों के इंतज़ार में |
अबके बहार में ,मुझे चैन से रहने दे
अपने ही पास रख अपनी,तंग दिल मोहब्बतों को
मैं खुश हूँ,अपने इस छोटे से आशियाँ में
परेशां न कर,क्या रखा है इन गुस्ताखियों में ?|
जो बराबर की आग है,तो खुल कर बरस
क्या कभी किसीका भला हुआ है,बूंदा-बांदियों में ?
जो सूखे गुलिस्तां में फूल खिल जाएँ,इस बरसांत में
मैं भीगता रहूँ तेरे आने तक,तेरे इंतज़ार में |
मोहब्बत कमजोर नहीं है,ये दो दिलों का जोर है
जो यकीन के साथ चलतें हैं,इस लम्बे सफ़र में
वो मोहब्बत की बाज़ी जीत लेते हैं,इस ज़िदगी में
"पवन पागल"वो ही कामयाब रहतें हैं,मोहब्बत में |
चमन के फूल मुरझा गए,तेरे आने के इंतज़ार में
ओरों की क्या बात करूँ,तेरे इस सूनें जहाँन में
मेरे अपने हीं बैठे हैं,मेरी म़ोत के इंतज़ार में|
मैंने किसी को चाहा,इसमें मेरी क्या ख़ता ?
जिंदगी गुजर गई,तेरे आने के इंतज़ार में
चाहतों का सिलसिला,कभी तो खतम हो
अब मैं और जिंदा न रहूँ,चाहतों के इंतज़ार में |
अबके बहार में ,मुझे चैन से रहने दे
अपने ही पास रख अपनी,तंग दिल मोहब्बतों को
मैं खुश हूँ,अपने इस छोटे से आशियाँ में
परेशां न कर,क्या रखा है इन गुस्ताखियों में ?|
जो बराबर की आग है,तो खुल कर बरस
क्या कभी किसीका भला हुआ है,बूंदा-बांदियों में ?
जो सूखे गुलिस्तां में फूल खिल जाएँ,इस बरसांत में
मैं भीगता रहूँ तेरे आने तक,तेरे इंतज़ार में |
मोहब्बत कमजोर नहीं है,ये दो दिलों का जोर है
जो यकीन के साथ चलतें हैं,इस लम्बे सफ़र में
वो मोहब्बत की बाज़ी जीत लेते हैं,इस ज़िदगी में
"पवन पागल"वो ही कामयाब रहतें हैं,मोहब्बत में |
गुरुवार, 16 दिसंबर 2010
१०७.हसरतें
हसरतें मेरे दिल की मिटने न दे
तू तो बादशाह है,दिलों की सल्तनतों का
पहले मेरी हसरतों को पूरी तो होने दे
फिर चाहे तो मुझे दोज़ख में ही जगह दे |
मुझे यूँ ही जँग में,लड़ते-लड़ते मरने दे
मैं ही नहीं मेरी पीढ़ियों को भी यूं ही मरने दे
मरने से पहले मेरी एक ख्वाइश पूरी तो कर दे
मुझे एक मुठी खाक वतन की लेने तो दे |
अगले जनम भी फिर वही माँ दे
जो हँसते-हँसते वतन पर कुर्बानी की सीख दे
उसके आँसुओं को पोंछ, मेरे बहने दे
कुर्बानियों की बली को ,जँग की जीत में बदल दे |
हर जनम वीर गति पाऊँ ,ऐसा होसला दे
सदा सब के दुःख पी जाऊं ,ऐसा यकीं दे
अगला जनम भी मुझे,इसी जमीं पर दे
"पवन पागल" को कुछ दिन,तेरे घर में भी रहने दे |
तू तो बादशाह है,दिलों की सल्तनतों का
पहले मेरी हसरतों को पूरी तो होने दे
फिर चाहे तो मुझे दोज़ख में ही जगह दे |
मुझे यूँ ही जँग में,लड़ते-लड़ते मरने दे
मैं ही नहीं मेरी पीढ़ियों को भी यूं ही मरने दे
मरने से पहले मेरी एक ख्वाइश पूरी तो कर दे
मुझे एक मुठी खाक वतन की लेने तो दे |
अगले जनम भी फिर वही माँ दे
जो हँसते-हँसते वतन पर कुर्बानी की सीख दे
उसके आँसुओं को पोंछ, मेरे बहने दे
कुर्बानियों की बली को ,जँग की जीत में बदल दे |
हर जनम वीर गति पाऊँ ,ऐसा होसला दे
सदा सब के दुःख पी जाऊं ,ऐसा यकीं दे
अगला जनम भी मुझे,इसी जमीं पर दे
"पवन पागल" को कुछ दिन,तेरे घर में भी रहने दे |
सोमवार, 13 दिसंबर 2010
१०६.कुछ जचता नहीं
रेशमी सलवार पे,सूती कुर्ता कुछ जचता नहीं
छोटे कद की महिलाओं पे,छोटा कुर्ता जचता नहीं |
ऊँचे घर की लड़कियों से,घर-परिवार चलता नहीं
छोटे-मोटे कामों में भी,दिल उनका लगता नहीं |
ऊँचे परिवार वालों को,कोई रिश्ता जचता नहीं
ढेरों रिश्ते आये,पर कोई रिश्ता जचता नहीं |
दिन भर सोते-जागते ,टीवी से मन भरता नहीं
मतलब की बातें सुनते नहीं,दिल उनका घर में लगता नहीं |
जो बंद हुए तंबाखू लाल-मंजन ,घर के कामों में जी लगता नहीं
जो बाल रंगे नहीं गये,तो चितकबरे बालों में सिंदूर जचता नहीं |
खाते कुछ भी नहीं,खाया हुआ कुछ पचता नहीं
मुँह से डकारें आती रहें,ये पाचन कुछ जचता नहीं |
न आने की चीज मुँह से आये,ये कुछ जचता नहीं
"पवन पागल"नाज़ुक रिश्तों में ताने मारें जायें,ये कुछ जचता नहीं |
छोटे कद की महिलाओं पे,छोटा कुर्ता जचता नहीं |
ऊँचे घर की लड़कियों से,घर-परिवार चलता नहीं
छोटे-मोटे कामों में भी,दिल उनका लगता नहीं |
ऊँचे परिवार वालों को,कोई रिश्ता जचता नहीं
ढेरों रिश्ते आये,पर कोई रिश्ता जचता नहीं |
दिन भर सोते-जागते ,टीवी से मन भरता नहीं
मतलब की बातें सुनते नहीं,दिल उनका घर में लगता नहीं |
जो बंद हुए तंबाखू लाल-मंजन ,घर के कामों में जी लगता नहीं
जो बाल रंगे नहीं गये,तो चितकबरे बालों में सिंदूर जचता नहीं |
खाते कुछ भी नहीं,खाया हुआ कुछ पचता नहीं
मुँह से डकारें आती रहें,ये पाचन कुछ जचता नहीं |
न आने की चीज मुँह से आये,ये कुछ जचता नहीं
"पवन पागल"नाज़ुक रिश्तों में ताने मारें जायें,ये कुछ जचता नहीं |
१०५.डंक
साँप के काटने से क्या आदमी मरता है ?
हाँ उसकी दहशत से ज़रूर मरता है
सभी खुशियाँ होने से क्या आदमी मरता है ?
हाँ दिलों में हो चुभन, तो जीते-जी मरता है |
छिपकली के काटने से क्या आदमी मरता है ?
हाँ उसके किसी में गिरने से ज़रूर मरता है
मकड़ी से अच्छा जाला बुनता है आदमी
मकड़ी के बुने जाल से नहीं मरता आदमी |
मच्छर के काटने से क्या आदमी मरता है ?
हाँ चिकनगुनिया से मर सकता है आदमी
एक छोटासा मच्छर आदमी को हिंजड़ा बना देता है
जो चींटी की शे: लगे,तो हाथी भी मारा जाता है|
साँप से कम,बिच्छू से ज्यादा डर लगता है
साँप चेतावनी देकर डशता है,बिच्छू वैसे ही डंक मरता है
सबसे खतरनाक कनखजूरा,जो शरीर में सारे पैर गडा देता है
"पवन पागल"इन सबसे खतरनाक-'आदमी 'जो काटने पर निश्चित मोत देता है |
हाँ उसकी दहशत से ज़रूर मरता है
सभी खुशियाँ होने से क्या आदमी मरता है ?
हाँ दिलों में हो चुभन, तो जीते-जी मरता है |
छिपकली के काटने से क्या आदमी मरता है ?
हाँ उसके किसी में गिरने से ज़रूर मरता है
मकड़ी से अच्छा जाला बुनता है आदमी
मकड़ी के बुने जाल से नहीं मरता आदमी |
मच्छर के काटने से क्या आदमी मरता है ?
हाँ चिकनगुनिया से मर सकता है आदमी
एक छोटासा मच्छर आदमी को हिंजड़ा बना देता है
जो चींटी की शे: लगे,तो हाथी भी मारा जाता है|
साँप से कम,बिच्छू से ज्यादा डर लगता है
साँप चेतावनी देकर डशता है,बिच्छू वैसे ही डंक मरता है
सबसे खतरनाक कनखजूरा,जो शरीर में सारे पैर गडा देता है
"पवन पागल"इन सबसे खतरनाक-'आदमी 'जो काटने पर निश्चित मोत देता है |
१०४.जिंदगी के तेवर
जिंदगी गुजरती-गुजारती,संवरती-संवारती
हंसती-हंसाती,रोती-रुलाती,सजती-सजाती
जिंदगी-ये सभी मायने,सब को शान से बताती
जिसने समझा-उससे दोस्ती,बाकी से दुश्मनी निभाती |
मैं तो हूँ जलते हुए दीपक की भांति
तेज हवा में,रह-रह कर भुझी जाती
ये मांगे मजबूत गुंथी घी में तर बाती
कभी ना भुजूँ ,जो भरपूर घी मैं पाती |
मैं अपनी गणित को,अगणित ही रखती
बड़े से खिलाडी को भी भ्रमित ही रखती
इठलाकर चलती,न चलने वाले को गिराती
जो मुझे बांध के रखता,उसको मैं बांध के रखती |
पैदा होने पर सजती,मर जाने पर भी सजती
जन्म लेते ही रोती,मरने पर दूसरों को रुलाती
"पवन पागल"ये कैसे विरोधाभासों पर जिंदगी चलती
कभी जमकर दोस्ती,कभी जमकर दुश्मनी करती |
हंसती-हंसाती,रोती-रुलाती,सजती-सजाती
जिंदगी-ये सभी मायने,सब को शान से बताती
जिसने समझा-उससे दोस्ती,बाकी से दुश्मनी निभाती |
मैं तो हूँ जलते हुए दीपक की भांति
तेज हवा में,रह-रह कर भुझी जाती
ये मांगे मजबूत गुंथी घी में तर बाती
कभी ना भुजूँ ,जो भरपूर घी मैं पाती |
मैं अपनी गणित को,अगणित ही रखती
बड़े से खिलाडी को भी भ्रमित ही रखती
इठलाकर चलती,न चलने वाले को गिराती
जो मुझे बांध के रखता,उसको मैं बांध के रखती |
पैदा होने पर सजती,मर जाने पर भी सजती
जन्म लेते ही रोती,मरने पर दूसरों को रुलाती
"पवन पागल"ये कैसे विरोधाभासों पर जिंदगी चलती
कभी जमकर दोस्ती,कभी जमकर दुश्मनी करती |
१०३.वक़्त का तकाज़ा
मोसमों का मिज़ाज बदलता ही रहेगा
जो आज है अपना,कल सपना रहेगा
इसे कसके पकड़ कर रखा जाये
वक़्त है-भागता है-भागता ही रहेगा |
कब तक आदमी दूसरों के भरोसे रहेगा
जो न किया कुछ,वो गुमनाम रहेगा
मरने से पहले,कुछ नाम कमा लिया जाये
जमाना है-बदलता है-बदलता ही रहेगा |
गिरना रुक जायेगा,जो दोड़ता ही रहेगा
जो गिरने से डरा,वो सफ़र में कहाँ रहेगा ?
हिम्मत से हँस कर जिंदगी गुजारी जाये
सफ़र है-चलने का-चलता ही रहेगा |
वक़्त ज़माने के साथ,कभी रुका नहीं रहेगा
जिसने आज न की इसकी कद्र,कल ज़रूर मरेगा
क्यों न इसके थपेड़े सहते,इसको पीछे छोड़ा जाये?
"पवन पागल" ये आज़ाद पंछी है,आज़ाद ही रहेगा |
जो आज है अपना,कल सपना रहेगा
इसे कसके पकड़ कर रखा जाये
वक़्त है-भागता है-भागता ही रहेगा |
कब तक आदमी दूसरों के भरोसे रहेगा
जो न किया कुछ,वो गुमनाम रहेगा
मरने से पहले,कुछ नाम कमा लिया जाये
जमाना है-बदलता है-बदलता ही रहेगा |
गिरना रुक जायेगा,जो दोड़ता ही रहेगा
जो गिरने से डरा,वो सफ़र में कहाँ रहेगा ?
हिम्मत से हँस कर जिंदगी गुजारी जाये
सफ़र है-चलने का-चलता ही रहेगा |
वक़्त ज़माने के साथ,कभी रुका नहीं रहेगा
जिसने आज न की इसकी कद्र,कल ज़रूर मरेगा
क्यों न इसके थपेड़े सहते,इसको पीछे छोड़ा जाये?
"पवन पागल" ये आज़ाद पंछी है,आज़ाद ही रहेगा |
शनिवार, 11 दिसंबर 2010
१०२.क़ुओं में भांग
जब राज-निति ही भ्रष्ट है,तो राजनितिज्ञ भ्रष्ट न हो ,
ऐसा हो नहीं सकता |
सभी काम सहज होते रहें,और भ्रष्टाचार कभी न हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
जब तमाम क़ुओं में ही भांग घुली हो,और चाहें की नशा न हो ,
ऐसा हो नहीं सकता |
कोई भी श्रेत्र अछूता नहीं है,और हम चाहें की छुआ-छूत न हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
खरबों चुप -चाप डकार लिए जाएँ,और किसी को खबर भी न हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
सब कुछ खर्च कर चुनाव जीत कर आयें,और हम चाहें की लूट-खसोट न हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
नई-नई योजनाएं आती रहे,और घोटाले न हों,
ऐसा हो नहीं सकता |
जब मीडिया के पत्रकार ही भर्ष्ट हों,और मीडिया भ्रष्ट न हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
जब अख़बारों के पत्रकार भ्रष्ट हों,और अखबार भ्रष्ट न हों ,
ऐसा हो नहीं सकता |
जब घराने लालच में आजायें,और घराने भ्रष्ट न हों ,
ऐसा हो नहीं सकता |
जब कोई देश भ्रष्ट सिकंजें में फंस जाये,और वो देश भर्ष्ट न हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
"पवन पागल" लिखते-लिखते थक जाये,फिर भी कहीं छपता न हो,
'ऐसा हो सकता है' ----------- ?
ऐसा हो नहीं सकता |
सभी काम सहज होते रहें,और भ्रष्टाचार कभी न हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
जब तमाम क़ुओं में ही भांग घुली हो,और चाहें की नशा न हो ,
ऐसा हो नहीं सकता |
कोई भी श्रेत्र अछूता नहीं है,और हम चाहें की छुआ-छूत न हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
खरबों चुप -चाप डकार लिए जाएँ,और किसी को खबर भी न हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
सब कुछ खर्च कर चुनाव जीत कर आयें,और हम चाहें की लूट-खसोट न हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
नई-नई योजनाएं आती रहे,और घोटाले न हों,
ऐसा हो नहीं सकता |
जब मीडिया के पत्रकार ही भर्ष्ट हों,और मीडिया भ्रष्ट न हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
जब अख़बारों के पत्रकार भ्रष्ट हों,और अखबार भ्रष्ट न हों ,
ऐसा हो नहीं सकता |
जब घराने लालच में आजायें,और घराने भ्रष्ट न हों ,
ऐसा हो नहीं सकता |
जब कोई देश भ्रष्ट सिकंजें में फंस जाये,और वो देश भर्ष्ट न हो,
ऐसा हो नहीं सकता |
"पवन पागल" लिखते-लिखते थक जाये,फिर भी कहीं छपता न हो,
'ऐसा हो सकता है' ----------- ?
१०१.नोक-झोंक
तू हाँ तो कर,मेरे मरने की दुआ के लिए ,
तेरे लिए चौदहवीं का चाँद तोड़ न लाऊं तो कहना
मैंने हाँ करदी,पर मरने से पहले मेरे लिए
सामने के पेड़ से लटकते हुए अमरुद तो तोड़ लाओ |
क्या बेकार की बातें करती हो,जो मरने जारहा हो,
उससे अमरुद तोड़ लाने की बातें करती हो
जाओ नहीं मरना! मैं तुम्हारे मरने की दुआ करता हूँ
'मरें मेरे दुश्मन,मैं तो तुम को मार कर ही मरूंगी ' |
ये क्या चल रहा है,जो हम दोनों उट- पटांग बके जारहे हैं
न तुम कँही जारही हो,न मैं कँही जारहा हूँ
फिर भी न जाने दुनियां के दिल क्यों जले जा रहे हैं
चलो छत्त पर धूप में बाज़ार से लाये अमरुद खाये जांये |
अमरुद तो खालेंगे,पर नीचे से चाकू और नमक तो ले आओ
कभी मेरे लिए भी,हाथ-पाँव तो हिला लिया करो
जाओ नहीं खाने तुम्हारे हाथ से कटे ये अमरुद
नज़दीक ही मुफ्त की रेवड़ियाँ बंट रहीं हैं,वंही हाथ-पाँव हिला आऊँगा |
मन करता है की बिजली के खम्बे से चिपक कर मर जाऊं ,
पर हाय रे मुक्कदर ! बिजली ही चली गई
बस इतनी सी बात ! मुझसे कहते
मैं दहेज में लाइ जनरेटर तुरंत ही चालू कर देती |
वो कहते मैं तुम पर जान छिडकता हूँ,झूंट है ये
जान तो दूर, पास पड़े पावडरको तो छिड़का नहीं जाता,
मेरी घमोड़ियों पर,बदन पर तेल की मालिश क्या खाक करोगे ?
बड़े आये जान छिड़कने वाले,दूर जाकर नाक तो सिनकी ही नहीं जाती |
पिछले जनम में भूत थे क्या,जो बच्चों को डरा रहे हो ?
पिछले जन्मों का तो पता नहीं, तुम तो इस जनम में भी भूतनी लगती हो
रोज नहाया करो,पूजा-पाठ किया करो,फिर अच्छे कपडे पहना करो
भूतों को कभी नहाते,पूजा-पाठ करते,और कपडे पहने देखा है कभी ?
("पवन पागल" ये काम तो भूतनियां हीं करती हैं,भूतों को खुश करने के लिए )
तेरे लिए चौदहवीं का चाँद तोड़ न लाऊं तो कहना
मैंने हाँ करदी,पर मरने से पहले मेरे लिए
सामने के पेड़ से लटकते हुए अमरुद तो तोड़ लाओ |
क्या बेकार की बातें करती हो,जो मरने जारहा हो,
उससे अमरुद तोड़ लाने की बातें करती हो
जाओ नहीं मरना! मैं तुम्हारे मरने की दुआ करता हूँ
'मरें मेरे दुश्मन,मैं तो तुम को मार कर ही मरूंगी ' |
ये क्या चल रहा है,जो हम दोनों उट- पटांग बके जारहे हैं
न तुम कँही जारही हो,न मैं कँही जारहा हूँ
फिर भी न जाने दुनियां के दिल क्यों जले जा रहे हैं
चलो छत्त पर धूप में बाज़ार से लाये अमरुद खाये जांये |
अमरुद तो खालेंगे,पर नीचे से चाकू और नमक तो ले आओ
कभी मेरे लिए भी,हाथ-पाँव तो हिला लिया करो
जाओ नहीं खाने तुम्हारे हाथ से कटे ये अमरुद
नज़दीक ही मुफ्त की रेवड़ियाँ बंट रहीं हैं,वंही हाथ-पाँव हिला आऊँगा |
मन करता है की बिजली के खम्बे से चिपक कर मर जाऊं ,
पर हाय रे मुक्कदर ! बिजली ही चली गई
बस इतनी सी बात ! मुझसे कहते
मैं दहेज में लाइ जनरेटर तुरंत ही चालू कर देती |
वो कहते मैं तुम पर जान छिडकता हूँ,झूंट है ये
जान तो दूर, पास पड़े पावडरको तो छिड़का नहीं जाता,
मेरी घमोड़ियों पर,बदन पर तेल की मालिश क्या खाक करोगे ?
बड़े आये जान छिड़कने वाले,दूर जाकर नाक तो सिनकी ही नहीं जाती |
पिछले जनम में भूत थे क्या,जो बच्चों को डरा रहे हो ?
पिछले जन्मों का तो पता नहीं, तुम तो इस जनम में भी भूतनी लगती हो
रोज नहाया करो,पूजा-पाठ किया करो,फिर अच्छे कपडे पहना करो
भूतों को कभी नहाते,पूजा-पाठ करते,और कपडे पहने देखा है कभी ?
("पवन पागल" ये काम तो भूतनियां हीं करती हैं,भूतों को खुश करने के लिए )
शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010
१००.लाचार व्यवस्था
कबूतर की गुटरगूं और कोयल की कुहक भी,
आज-तक भ्रष्टाचार को रोक नहीं पाई
राजनेताओं की छोड़ें,अब तो पत्रकारों की भी,
आँख इस अनोखी जादुई कमाई पर पाई |
बड़े से बड़ा अफसर और छोटे से छोटे बाबू ने भी,
खूब डट के दिखाई अपने हाथों की सफाई
दिल खोल के की ,बहती गंगा में हाथों की धुलाई,
ये अपने मकसद की खातिर,खुद के बाप को भी न छोड़ें कभी |
एक कमजोर कबूतर की गुटरगूं ने और भी,
किया कमाल' हजारों करोड़ों रूपये के घोटाले भी मेरे भाई,
अर्थव्यवस्था पर भारी न पड़ें कभी',
ऐसी उन्होंने अदभुत प्लानिंग सिखाई |
कोई भी राजनैतिक पार्टी बेदाग नहीं है,न ही होगी कभी
दूध से धुला कोई नहीं है मेरे भाई
ये हमेशा खायेंगे और खिलायेंगे भी
शानदार किस्मत के धनि हैं,जो ऐसी शानदार किस्मत पाई |
चुनावी खर्च के लिए एक साफ़ छवी नेता से सुझाव आया अभी,
की' सरकार इस खर्च की स्वयं करे भरपाई'
उम्मीदवारों की चुनाव से पहले ही लोटरी निकल आई अभी,
फंड तो जुटायें जायेंगे,इस पर ये सरकारी खर्च होगी ( + ) कमाई |
क्या कबूतर और कोयल की कुहुक से राज चलें हैं कभी ?
भ्रष्टाचारियों की तो सरे-आम गीले चमड़े के कोड़े से की जाये पिटाई
ये क्या इनकी पीढियां भी फिर न करें दुबारा ऐसी हिम्मत कभी
"पवन पागल"जिंदगी भर ये रो-रो कर देतें रहें अपने खानदान की दुहाई |
आज-तक भ्रष्टाचार को रोक नहीं पाई
राजनेताओं की छोड़ें,अब तो पत्रकारों की भी,
आँख इस अनोखी जादुई कमाई पर पाई |
बड़े से बड़ा अफसर और छोटे से छोटे बाबू ने भी,
खूब डट के दिखाई अपने हाथों की सफाई
दिल खोल के की ,बहती गंगा में हाथों की धुलाई,
ये अपने मकसद की खातिर,खुद के बाप को भी न छोड़ें कभी |
एक कमजोर कबूतर की गुटरगूं ने और भी,
किया कमाल' हजारों करोड़ों रूपये के घोटाले भी मेरे भाई,
अर्थव्यवस्था पर भारी न पड़ें कभी',
ऐसी उन्होंने अदभुत प्लानिंग सिखाई |
कोई भी राजनैतिक पार्टी बेदाग नहीं है,न ही होगी कभी
दूध से धुला कोई नहीं है मेरे भाई
ये हमेशा खायेंगे और खिलायेंगे भी
शानदार किस्मत के धनि हैं,जो ऐसी शानदार किस्मत पाई |
चुनावी खर्च के लिए एक साफ़ छवी नेता से सुझाव आया अभी,
की' सरकार इस खर्च की स्वयं करे भरपाई'
उम्मीदवारों की चुनाव से पहले ही लोटरी निकल आई अभी,
फंड तो जुटायें जायेंगे,इस पर ये सरकारी खर्च होगी ( + ) कमाई |
क्या कबूतर और कोयल की कुहुक से राज चलें हैं कभी ?
भ्रष्टाचारियों की तो सरे-आम गीले चमड़े के कोड़े से की जाये पिटाई
ये क्या इनकी पीढियां भी फिर न करें दुबारा ऐसी हिम्मत कभी
"पवन पागल"जिंदगी भर ये रो-रो कर देतें रहें अपने खानदान की दुहाई |
९९,शेर-शायरी 3
हर नई चीज कुछ वक़्त तक ठीक लगती है
मुफ्त में मिली हर चीज हर-वक़्त ठीक लगती है
माल-असबाबों के साथ ही ,वक़्त की हद ठीक लगती है
जो ये मुफ्त में मिली हमारी जान,हरदम ठीक ही लगती है
न होता काजल,बिंदी,और सिंदूर,तो सुन्दरता फूहड़ ही लगती
सीना तानें खड़ी भद्र नारी,कुमलाये फूल सी ही लगती
न होता खिजाब,पाउडर,और क्रीम,उम्र कुछ थमी सी लगती
जो होंतीं सभी सोंदर्य सामग्रियां,भद्र नारी अप्प्सरा सी लगती |
इधर से उधर भागते हुए , पाँव कुछ थक गये थे
पाँव तो कुछ खास नहीं,पाँव से ज्यादा,मन से थक गये थे
वो दरवाजे बंद कर दीयें जाएँ,जो ज्यादा ही खुल गये थे
बंद पड़े मयखानों में,फिर से पीने को कदम क्यों बढ़ गये थे |
क़दमों को जितनी ज्यादा तकलीफ दी जाये
उतना ही आराम ज्यादा मिलता है
तो फिर पूरे शरीर को ही , क्यों न ज्यादा तकलीफ दी जाये
शायद आराम के साथ " राम " भी मिल जाये |
जो तेरे रहमों-करम पर रहते हैं,तो भरपूर जीतें हैं
हम तो निक्कमें हैं,कुछ भी न करते,फिर भी जीतें हैं
जीते तो सभी हैं,जो तुझ पर भरोसा कर, तुझ में जीतें हैं
हमारे जैसे निक्कमें,नालायक,तेरे सहारे जी भर कर जीते हैं |
मुफ्त में मिली हर चीज हर-वक़्त ठीक लगती है
माल-असबाबों के साथ ही ,वक़्त की हद ठीक लगती है
जो ये मुफ्त में मिली हमारी जान,हरदम ठीक ही लगती है
न होता काजल,बिंदी,और सिंदूर,तो सुन्दरता फूहड़ ही लगती
सीना तानें खड़ी भद्र नारी,कुमलाये फूल सी ही लगती
न होता खिजाब,पाउडर,और क्रीम,उम्र कुछ थमी सी लगती
जो होंतीं सभी सोंदर्य सामग्रियां,भद्र नारी अप्प्सरा सी लगती |
इधर से उधर भागते हुए , पाँव कुछ थक गये थे
पाँव तो कुछ खास नहीं,पाँव से ज्यादा,मन से थक गये थे
वो दरवाजे बंद कर दीयें जाएँ,जो ज्यादा ही खुल गये थे
बंद पड़े मयखानों में,फिर से पीने को कदम क्यों बढ़ गये थे |
क़दमों को जितनी ज्यादा तकलीफ दी जाये
उतना ही आराम ज्यादा मिलता है
तो फिर पूरे शरीर को ही , क्यों न ज्यादा तकलीफ दी जाये
शायद आराम के साथ " राम " भी मिल जाये |
जो तेरे रहमों-करम पर रहते हैं,तो भरपूर जीतें हैं
हम तो निक्कमें हैं,कुछ भी न करते,फिर भी जीतें हैं
जीते तो सभी हैं,जो तुझ पर भरोसा कर, तुझ में जीतें हैं
हमारे जैसे निक्कमें,नालायक,तेरे सहारे जी भर कर जीते हैं |
९८.शेर-शायरी २
जो मेरे हिस्से में तुम आयीं,वो मेरा ही नसीब था
मैंने तुम्हे चाहा,तुमने नहीं,वो मेरा ही नसीब था
अकेला ही बसर करूँ जिंदगी,वो मेरा ही नसीब था
मर-मिटूँ अपनों की याद में,वो मेरा ही नसीब था |
जो दिल से किसी का साथ न मिले,तो अकेलापन ही अच्छा है
हजारों खुदगर्ज मिलें,इससे तो आदमी अकेला ही अच्छा है
जिन फूलों से खुशबु न मिले,उन फूलों का न होना ही अच्छा है
जो जन्नतों में भी सुख न मिले,ऐसी जन्नतों का न होना ही अच्छा है |
चमकता चाँद अच्छा लगता है,टूटा तारा सुकून देता है
कभी अचानक चमक के साथ टूटना,बड़े खतरे का संकेत देता है
टूट कर बिखरना ,ख्वाइश थी बिखर कर जर्रे-जर्रे में समाना
खूब देखें हैं गमें जिंदगी के दोर,अब हमें जी भरके देखे जमाना |
नादानियों में लिए फैसले,बेमतलबी होते हैं
जो समझदारी ही होती,फैसले गोर-मतलबी होते |
शुकुने -इश्क, बे-शुकुनी नहीं देख सकता
बे-शुकुनी इश्क,शुकुने -इश्क नहीं देख सकता
मैंने तुम्हे चाहा,तुमने नहीं,वो मेरा ही नसीब था
अकेला ही बसर करूँ जिंदगी,वो मेरा ही नसीब था
मर-मिटूँ अपनों की याद में,वो मेरा ही नसीब था |
जो दिल से किसी का साथ न मिले,तो अकेलापन ही अच्छा है
हजारों खुदगर्ज मिलें,इससे तो आदमी अकेला ही अच्छा है
जिन फूलों से खुशबु न मिले,उन फूलों का न होना ही अच्छा है
जो जन्नतों में भी सुख न मिले,ऐसी जन्नतों का न होना ही अच्छा है |
चमकता चाँद अच्छा लगता है,टूटा तारा सुकून देता है
कभी अचानक चमक के साथ टूटना,बड़े खतरे का संकेत देता है
टूट कर बिखरना ,ख्वाइश थी बिखर कर जर्रे-जर्रे में समाना
खूब देखें हैं गमें जिंदगी के दोर,अब हमें जी भरके देखे जमाना |
नादानियों में लिए फैसले,बेमतलबी होते हैं
जो समझदारी ही होती,फैसले गोर-मतलबी होते |
शुकुने -इश्क, बे-शुकुनी नहीं देख सकता
बे-शुकुनी इश्क,शुकुने -इश्क नहीं देख सकता
गुरुवार, 9 दिसंबर 2010
९७.शेर-शायरी १
बड़ी तमन्ना थी की,किसी के आसानी से होजायें
पर मुक्कदर में बलखाते,सांप ही सांप मिले
नसीब रेगिस्थान में,सूखे की तरह खड़ा था
वो घडी कब आयेगी,जब दो-दिल एक होजायें ?|
मैंने हंस-हंस के काट दी,रोती हुई जिंदगी
सब कुछ गँवा दिया,इसे संवार ने में
रेत के ढेर की तरह,हमेशा बिखरा ही रहा
लोगों को हंसती ही मिली मेरी छुई-मुई जिंदगी |
सलीकेदार लोगों से ,बदसुलूकी का डर लगता है
वो कब कुछ क्या करदें,पता ही नहीं लगता ?
बदसुलूकी लोगों से,मैं बेखोफ़ रहता हूँ
पता है,भोंकने वाले कुत्ते कभी काटते नहीं हैं |
जिनको देखा ही न हो पहले कभी,उनसे रिश्ता होजाता है
धीरे-धीरे वो पराया,जिंदगी भर के लिये हमारा होजाता है
अच्छी तरह देखी-भाली सूरतों से भी कभी रिश्ता होजाता है
कुछ ज्यादा ही समझ लेंने पर,बहुत जल्दी ही तलाक भी होजाता है |
पर मुक्कदर में बलखाते,सांप ही सांप मिले
नसीब रेगिस्थान में,सूखे की तरह खड़ा था
वो घडी कब आयेगी,जब दो-दिल एक होजायें ?|
मैंने हंस-हंस के काट दी,रोती हुई जिंदगी
सब कुछ गँवा दिया,इसे संवार ने में
रेत के ढेर की तरह,हमेशा बिखरा ही रहा
लोगों को हंसती ही मिली मेरी छुई-मुई जिंदगी |
सलीकेदार लोगों से ,बदसुलूकी का डर लगता है
वो कब कुछ क्या करदें,पता ही नहीं लगता ?
बदसुलूकी लोगों से,मैं बेखोफ़ रहता हूँ
पता है,भोंकने वाले कुत्ते कभी काटते नहीं हैं |
जिनको देखा ही न हो पहले कभी,उनसे रिश्ता होजाता है
धीरे-धीरे वो पराया,जिंदगी भर के लिये हमारा होजाता है
अच्छी तरह देखी-भाली सूरतों से भी कभी रिश्ता होजाता है
कुछ ज्यादा ही समझ लेंने पर,बहुत जल्दी ही तलाक भी होजाता है |
९६.तेरे संग
तुझ से मोहब्बत तो करें,पर तेरी आँख का इशारा तो दे
जिंदगी में कुछ रंग भरे,तू भी तो कुछ रंग भरदे
जो कब कहाँ मिलना है,अपना कोई पता तो दे ?
मुश्किल से तेरे तक पहुँच पाऊँ,मेरे क़दमों को रफ़्तार तो दे |
तुझसे दोस्ती ही अच्छी,दुश्मनी की हिम्मत कोंन करे ?
जिसे तू अपनी दोस्ती की ललक दे,उससे बेझिझक मिले
हमारी इस अधूरी सी जिंदगी में,कुछ खुशबु तो भरदे
हरदम तेरी ही याद में खोये रहें,कुछ ऐसी ही चाबी भरदे |
जो हो कोई और हसीन सूरत,हमें भी उससे मिला दे
हम तेरे तक तो नहीं पहुँच पाये, उस तक क्या पहुंचेगे ?
ऊपर जो हसीन नज़ारे हैं,उन्हें हमें भी देखने दे
हमारे लोगों की धरती को ,कभी तो सूरज से मिलने दे |
जो सांसें थोड़ी बहुत बचीं हैं,उनमें तेरी महक भरदे
हर आने-जाने वाली सांसों पर तेरा ही नाम लिख दे
"पवन पागल" तेरे सफ़र में डगमगा न जाये,इतना होसला दे
हरदम तेरी ही खुदाई में खोया रहूँ,ऐसा कुछ करदे |
जिंदगी में कुछ रंग भरे,तू भी तो कुछ रंग भरदे
जो कब कहाँ मिलना है,अपना कोई पता तो दे ?
मुश्किल से तेरे तक पहुँच पाऊँ,मेरे क़दमों को रफ़्तार तो दे |
तुझसे दोस्ती ही अच्छी,दुश्मनी की हिम्मत कोंन करे ?
जिसे तू अपनी दोस्ती की ललक दे,उससे बेझिझक मिले
हमारी इस अधूरी सी जिंदगी में,कुछ खुशबु तो भरदे
हरदम तेरी ही याद में खोये रहें,कुछ ऐसी ही चाबी भरदे |
जो हो कोई और हसीन सूरत,हमें भी उससे मिला दे
हम तेरे तक तो नहीं पहुँच पाये, उस तक क्या पहुंचेगे ?
ऊपर जो हसीन नज़ारे हैं,उन्हें हमें भी देखने दे
हमारे लोगों की धरती को ,कभी तो सूरज से मिलने दे |
जो सांसें थोड़ी बहुत बचीं हैं,उनमें तेरी महक भरदे
हर आने-जाने वाली सांसों पर तेरा ही नाम लिख दे
"पवन पागल" तेरे सफ़र में डगमगा न जाये,इतना होसला दे
हरदम तेरी ही खुदाई में खोया रहूँ,ऐसा कुछ करदे |
९५.आखिर क्यों
गर्दिश में मैं रहूँ,और तुझे खबर न हो,
ऐसा हो नहीं सकता
कोयले की दलाली करूँ,और हाथ काले न हों
ऐसा हो नहीं सकता |
सुर्ख़ियों में रहूँ,और तुझे खबर न हों
ऐसा हो नहीं सकता
बारिश बरसती रहे,और बादल न हों
ऐसा हो नहीं सकता |
चिराग़ जलते रहें,और तुझे खबर न हो
ऐसा हो नहीं सकता
तू सदा साथ मेरे रहे,फिर भी चिराग़ तले अँधेरा
ऐसा हो नहीं सकता |
बीच भंवर में फंसा रहूँ,और तुझे खबर न हो
ऐसा हो नहीं सकता
तेरे सफ़र में रहूँ,और पानी में भैंस डूब जाये
ऐसा हो नहीं सकता |
रात-दिन तेरे ख्यालों में रहूँ,और तुझे खबर न हो
ऐसा हो नहीं सकता
"पवन पागल"तेरी अरदास में रहे,और मूंड मुडाते ही ओले पड़ें
ऐसा हो नहीं सकता |
ऐसा हो नहीं सकता
कोयले की दलाली करूँ,और हाथ काले न हों
ऐसा हो नहीं सकता |
सुर्ख़ियों में रहूँ,और तुझे खबर न हों
ऐसा हो नहीं सकता
बारिश बरसती रहे,और बादल न हों
ऐसा हो नहीं सकता |
चिराग़ जलते रहें,और तुझे खबर न हो
ऐसा हो नहीं सकता
तू सदा साथ मेरे रहे,फिर भी चिराग़ तले अँधेरा
ऐसा हो नहीं सकता |
बीच भंवर में फंसा रहूँ,और तुझे खबर न हो
ऐसा हो नहीं सकता
तेरे सफ़र में रहूँ,और पानी में भैंस डूब जाये
ऐसा हो नहीं सकता |
रात-दिन तेरे ख्यालों में रहूँ,और तुझे खबर न हो
ऐसा हो नहीं सकता
"पवन पागल"तेरी अरदास में रहे,और मूंड मुडाते ही ओले पड़ें
ऐसा हो नहीं सकता |
९४.कैसी तड़फ
जो उन पर नज़र पड़ गयी,तो अच्छा ही हुआ
जाना-पहचाना चेहरा,अनजाना ही निकला
अच्छी तरह जानते हुए भी,धोका ही हुआ
जैसे शमा से टकराकर,परवाना झुलसता निकला |
जो अनजाने में,अच्छा होगया हो
मेरे कर्म! या ऊपर वाले की दुआ
जान-भूझ कर तो,मैंने कभी अच्छा किया ही नहीं
उसकी गली से जब भी निकला,रोते हुए ही निकला |
जो मैंने सोचा,वैसा तो कभी नहीं हुआ
तमाम वक़्त फांका-कसी में ही निकला
मुक्कदर ज़ुल्फ़ की तरह,उलझ कर रहगया
जो उसे सुलझाना चाहा,ज्यादा उलझा ही निकला |
न सर पर छत थी,न हाथ में पैसा
बरसती बारिश में भी,भीगता हुआ ही निकला
"पवन पागल"सूनी गलियों में बदबू,नसीब में बद- दुआ
लडखडाते हुए यूँ लाचारी में,अपने घर से बेआबरू निकला |
जाना-पहचाना चेहरा,अनजाना ही निकला
अच्छी तरह जानते हुए भी,धोका ही हुआ
जैसे शमा से टकराकर,परवाना झुलसता निकला |
जो अनजाने में,अच्छा होगया हो
मेरे कर्म! या ऊपर वाले की दुआ
जान-भूझ कर तो,मैंने कभी अच्छा किया ही नहीं
उसकी गली से जब भी निकला,रोते हुए ही निकला |
जो मैंने सोचा,वैसा तो कभी नहीं हुआ
तमाम वक़्त फांका-कसी में ही निकला
मुक्कदर ज़ुल्फ़ की तरह,उलझ कर रहगया
जो उसे सुलझाना चाहा,ज्यादा उलझा ही निकला |
न सर पर छत थी,न हाथ में पैसा
बरसती बारिश में भी,भीगता हुआ ही निकला
"पवन पागल"सूनी गलियों में बदबू,नसीब में बद- दुआ
लडखडाते हुए यूँ लाचारी में,अपने घर से बेआबरू निकला |
९३.हवाएं
जो हवाएं यहाँ चलतीं हैं,वो ही शरहद पार भी चलती हैं
जो खुशबुएँ यहाँ महकती हैं,वो ही शरहद पार भी महकती हैं
जब दोनों हवाओं में खुशबु एक है,तो दिलों में इतना फर्क क्यों ?
दिल तो एक ही हैं,दरअसल दिलों पार दादा-गिरी चलती है |
जो दिलों पर दादा-गिरी चले,तो आवाम कब तक बर्दाश्त करेगा ?
आवाम तो बर्दाश्त कर चुका,पर वहां पर मर्दों की ज्यादा चलती है
धार्मिक नेताओं की ज्यादा ,ओर राजनीतीगों की कम चलती है
खुशबु भरी हवाएं तो चलतीं हैं,पर धर्म की हवा जोरों से चलती है |
धर्म की हवाएं जोरों से चलें,इससे ज्यादा ख़ुशी की बात क्या होसकती है?
पर इतनी जोरों से भी न चलें,की दुआ-सलाम ही बंद हो जायें
ऐ हवाओं जब भी उधर जाओ,उन तक हमारा पैगाम लेते जाना
दुनियाँ चाहे कुछ भी कहे,हमारी तो यूँ ही छोटी-मोटी चलती रहती है |
रिश्ते जो बिगड़ जातें हैं,सुधरते-सुधरते ही सुधरेंगे
जो बादल आज ग़रज रहें हैं ,कल फिर ज़रूर बरसेंगे
"पवन पागल" जिंदगी खुशबु भरी हवाओं और पानी पर चलती है
सच्चाई से लिए फैसलों पर,जन्ता की खुशियों की खातिर,कुछ समझोंतों पर चलती है |
जो खुशबुएँ यहाँ महकती हैं,वो ही शरहद पार भी महकती हैं
जब दोनों हवाओं में खुशबु एक है,तो दिलों में इतना फर्क क्यों ?
दिल तो एक ही हैं,दरअसल दिलों पार दादा-गिरी चलती है |
जो दिलों पर दादा-गिरी चले,तो आवाम कब तक बर्दाश्त करेगा ?
आवाम तो बर्दाश्त कर चुका,पर वहां पर मर्दों की ज्यादा चलती है
धार्मिक नेताओं की ज्यादा ,ओर राजनीतीगों की कम चलती है
खुशबु भरी हवाएं तो चलतीं हैं,पर धर्म की हवा जोरों से चलती है |
धर्म की हवाएं जोरों से चलें,इससे ज्यादा ख़ुशी की बात क्या होसकती है?
पर इतनी जोरों से भी न चलें,की दुआ-सलाम ही बंद हो जायें
ऐ हवाओं जब भी उधर जाओ,उन तक हमारा पैगाम लेते जाना
दुनियाँ चाहे कुछ भी कहे,हमारी तो यूँ ही छोटी-मोटी चलती रहती है |
रिश्ते जो बिगड़ जातें हैं,सुधरते-सुधरते ही सुधरेंगे
जो बादल आज ग़रज रहें हैं ,कल फिर ज़रूर बरसेंगे
"पवन पागल" जिंदगी खुशबु भरी हवाओं और पानी पर चलती है
सच्चाई से लिए फैसलों पर,जन्ता की खुशियों की खातिर,कुछ समझोंतों पर चलती है |
शनिवार, 4 दिसंबर 2010
९२.तेरे ख्यालों में
पाँऊ सदा सामने उसे,पर देख न पाँऊ
आँखों के रहते हुए भी,उसे देख न पाँऊ
ये हमारी कमजोरियां हैं,या उसकी उस्तादियाँ,
इस तड़फ को मैं अब,ज्यादा सह न पाऊँ |
उसे पाने के लिए,लाख कोशिशें कीं
मगर वो ,आगे से आगे भागता रहा
ये हमारा कर्म है,जो उससे हैं इतनी दूरियां,
उससे अब मैं,इतनी लम्बी जुदाई सह न पाँऊ |
सुना है वो इन पथराई आँखों से,नहीं दिखाई देता
मन के दिव्य नेत्रों से,उसे देखना पड़ता है
जानते हुए भी ये कैसे हो गयी ,हम से गुस्ताखियाँ ?
मैं एक पल भी अब इन पथराई आँखों को,सह न पाऊँ |
मैं उसे अब तस्वीरों में,देखना न चाहूँ
तस्वीरों में वो बहुत,नज़दीक लगता है,
पर दिखाई नहीं देता,दिखतीं हैं सिर्फ उसकी परछाइयां,
प्रेम की धारा तो निरंतर बहती रहे,फिर भी मैं उस तक पहुँच न पाँऊ |
कागज़ों पर लिखना ओर कुछ चाहूँ,पर तेरा ही नाम छपा पाँऊ
लगातार लिखने के बावजूद भी,तुझे अब तक पहचान न पाँऊ
"पवन पागल" को इतना काबिल बना दिया,बहुत-बहुत मेहरबानियाँ ,
लिकना ओरों के लिए भी चाहूँ,पर न जाने क्यों न लिख पाँऊ |
आँखों के रहते हुए भी,उसे देख न पाँऊ
ये हमारी कमजोरियां हैं,या उसकी उस्तादियाँ,
इस तड़फ को मैं अब,ज्यादा सह न पाऊँ |
उसे पाने के लिए,लाख कोशिशें कीं
मगर वो ,आगे से आगे भागता रहा
ये हमारा कर्म है,जो उससे हैं इतनी दूरियां,
उससे अब मैं,इतनी लम्बी जुदाई सह न पाँऊ |
सुना है वो इन पथराई आँखों से,नहीं दिखाई देता
मन के दिव्य नेत्रों से,उसे देखना पड़ता है
जानते हुए भी ये कैसे हो गयी ,हम से गुस्ताखियाँ ?
मैं एक पल भी अब इन पथराई आँखों को,सह न पाऊँ |
मैं उसे अब तस्वीरों में,देखना न चाहूँ
तस्वीरों में वो बहुत,नज़दीक लगता है,
पर दिखाई नहीं देता,दिखतीं हैं सिर्फ उसकी परछाइयां,
प्रेम की धारा तो निरंतर बहती रहे,फिर भी मैं उस तक पहुँच न पाँऊ |
कागज़ों पर लिखना ओर कुछ चाहूँ,पर तेरा ही नाम छपा पाँऊ
लगातार लिखने के बावजूद भी,तुझे अब तक पहचान न पाँऊ
"पवन पागल" को इतना काबिल बना दिया,बहुत-बहुत मेहरबानियाँ ,
लिकना ओरों के लिए भी चाहूँ,पर न जाने क्यों न लिख पाँऊ |
गुरुवार, 2 दिसंबर 2010
९१.क्यों देखूं ?
तेरी दुनियाँ देखकर,किसी ओर दुनियाँ को क्यों देखूं ?
जो हुई तुझसे मोहब्बत,किसी ओर मोहब्बत को क्यों देखूं ?
तुझे देखकर सुकून मिलता है,तो रोती-बिलखती जिंदगियां क्यों देखूं ?
तूने तेरी हस्ती से बढ़ कर पाला,तो मैं गिरती-पड़ती जिंदगियां क्यों देखूं ?
जो तू मुझे निरंतर दिखता रहे,तो मैं अपनों को क्यों देखूं ?
मुझे अनवरत दिखाई देता रहे,तो मैं दुखी संसार को क्यों देखूं ?
मुझे तेरा चश्मा मिल गया है,तो मैं अपने चश्में से क्यों देखूं ?
मुझे जो तेरा चस्का लग गया है,तो मैं ओर नये स्वादों को क्यों देखूं ?
जो मिले तेरा नज़रिया,तो मैं अपने नजरिये से क्यों देखूं ?
जो तेरी नजदीकियां मिल जांयें ,तो मैं इतनी दूर से क्यों देखूं ?
"पवन पागल" तेरे सीधा संबंध मुझ से हो,तो मैं दूसरों की मदद से क्यों देखूं ?
जो गोलोक में ही तू मिल जाये,तो मैं बैकुंठ में क्यों देखूं ?
जो हुई तुझसे मोहब्बत,किसी ओर मोहब्बत को क्यों देखूं ?
तुझे देखकर सुकून मिलता है,तो रोती-बिलखती जिंदगियां क्यों देखूं ?
तूने तेरी हस्ती से बढ़ कर पाला,तो मैं गिरती-पड़ती जिंदगियां क्यों देखूं ?
जो तू मुझे निरंतर दिखता रहे,तो मैं अपनों को क्यों देखूं ?
मुझे अनवरत दिखाई देता रहे,तो मैं दुखी संसार को क्यों देखूं ?
मुझे तेरा चश्मा मिल गया है,तो मैं अपने चश्में से क्यों देखूं ?
मुझे जो तेरा चस्का लग गया है,तो मैं ओर नये स्वादों को क्यों देखूं ?
जो मिले तेरा नज़रिया,तो मैं अपने नजरिये से क्यों देखूं ?
जो तेरी नजदीकियां मिल जांयें ,तो मैं इतनी दूर से क्यों देखूं ?
"पवन पागल" तेरे सीधा संबंध मुझ से हो,तो मैं दूसरों की मदद से क्यों देखूं ?
जो गोलोक में ही तू मिल जाये,तो मैं बैकुंठ में क्यों देखूं ?
९०.तोसे नैना मिला के
जो जिंदगी ठाट-बाट से गुजरी
तो क्या जनाज़ा भी शांन से उठेगा ?
इसकी हम क्यों कर फ़िक्र करें,
माटी का पुतला था,माटी में मिल जायेगा |
जो हम ने न की,उसकी जी-हज़ूरी
तो वो भी मजबूर होजायेगा
तुम्हारी फ़िक्र करना छोड़,
ओरों की फ़िक्र में खो जायेगा |
जो उसने दिखाना बंद कर दी बाजी-गरी
तुम क्या ख़ाक नाच पाओगे ?
उससे रिश्तों का मान करें,
यक़ीनन वो तुमसे मिलने ज़रूर आयेगा |
उससे प्यार करना नहीं है तुम्हारी मज़बूरी
वो मजबूरन तुमसे प्यार करने लगेगा
रोज सुबक-सुबक कर,उसके सामने रोना शुरू करें,
"पवन पागल" वो हर हाल में,तुम्हें ज़रूर मिल जायेगा |
तो क्या जनाज़ा भी शांन से उठेगा ?
इसकी हम क्यों कर फ़िक्र करें,
माटी का पुतला था,माटी में मिल जायेगा |
जो हम ने न की,उसकी जी-हज़ूरी
तो वो भी मजबूर होजायेगा
तुम्हारी फ़िक्र करना छोड़,
ओरों की फ़िक्र में खो जायेगा |
जो उसने दिखाना बंद कर दी बाजी-गरी
तुम क्या ख़ाक नाच पाओगे ?
उससे रिश्तों का मान करें,
यक़ीनन वो तुमसे मिलने ज़रूर आयेगा |
उससे प्यार करना नहीं है तुम्हारी मज़बूरी
वो मजबूरन तुमसे प्यार करने लगेगा
रोज सुबक-सुबक कर,उसके सामने रोना शुरू करें,
"पवन पागल" वो हर हाल में,तुम्हें ज़रूर मिल जायेगा |
८९.फ़कीरी
जब हमारे पास कुछ है ही नहीं,कोई हमसे क्या ले जायेगा ?
हम उसके सामने फ़कीर हैं,फ़कीरों से कोई क्या ले जायेगा ?
कुछ नहीं होने से,फ़कीरी अच्छी होती है
जो कुछ न मिला उसे तो,फ़कीरों की दुआएं ही ले जायेगा |
जो अब कुछ बचा ही नहीं,इस ज़र-ज़र शरीर में
कोई क्या ख़ाक मार कर हमें ले जायेगा ?
जो हम मुफ़लिसी में,रास्ते पे बैठे कंजर
कोई क्यों हमारे सीने में,खंजर घोंप जायेगा ?
उठना तो सब का तय है,क्यों न शान से उंठे ?
सुकून मिलेगा,जो जमाना रोता रह जायेगा |
"पवन पागल"जर्रे-जर्रे में टूट कर,बिखर जाने की ख्वाइश है
कभी न कभी कंही न कंही उससे सामना हो ही जायेगा |
हम उसके सामने फ़कीर हैं,फ़कीरों से कोई क्या ले जायेगा ?
कुछ नहीं होने से,फ़कीरी अच्छी होती है
जो कुछ न मिला उसे तो,फ़कीरों की दुआएं ही ले जायेगा |
जो अब कुछ बचा ही नहीं,इस ज़र-ज़र शरीर में
कोई क्या ख़ाक मार कर हमें ले जायेगा ?
जो हम मुफ़लिसी में,रास्ते पे बैठे कंजर
कोई क्यों हमारे सीने में,खंजर घोंप जायेगा ?
उठना तो सब का तय है,क्यों न शान से उंठे ?
सुकून मिलेगा,जो जमाना रोता रह जायेगा |
"पवन पागल"जर्रे-जर्रे में टूट कर,बिखर जाने की ख्वाइश है
कभी न कभी कंही न कंही उससे सामना हो ही जायेगा |
८८.' पानी '
जो आज है, कल नहीं होगा
उसकी चिंता करना जरुरी है
सोच-समझ कर खर्च करना होगा,
भविष्य के लिए 'पानी' को बचाना जरुरी है |
कुदरत से हम हैं,कुदरत हम से नहीं
जिन्दा रहने के लिए,इसे बचाना जरुरी है
बरसातीं पानी को इक्कठा करना होगा,
मुफ्त में मिली 'भविष्यनिधि' को बचाना जरुरी है |
जोर से चलने वाले,फव्वारों को छोड़ना होगा
बाल्टी-डिब्बो का ही उपयोग करना होगा
गीले कपडे से कारें पोंछी जाएँ तो बेहतर,
हर बहते पानी को रोकना जरुरी है |
खेती-बाड़ी,ओर बाग़-बगीचों में
नये आयामों की खोज जरुरी है
पानी के खर्च को सीमाओं में बांधना होगा,
समंदर के खारे पानी को,मीठा बनाना जरुरी है |
सोचो नहीं,अमल करना शुरू करदें
बूंद-बूंद पानी बचाकर,घड़ा भरलें
"पवन पागल"सिमित पानी को अमृत मानना होगा,
असीमित जीवन जीने के लिए,जल को बचाना जरुरी है |
उसकी चिंता करना जरुरी है
सोच-समझ कर खर्च करना होगा,
भविष्य के लिए 'पानी' को बचाना जरुरी है |
कुदरत से हम हैं,कुदरत हम से नहीं
जिन्दा रहने के लिए,इसे बचाना जरुरी है
बरसातीं पानी को इक्कठा करना होगा,
मुफ्त में मिली 'भविष्यनिधि' को बचाना जरुरी है |
जोर से चलने वाले,फव्वारों को छोड़ना होगा
बाल्टी-डिब्बो का ही उपयोग करना होगा
गीले कपडे से कारें पोंछी जाएँ तो बेहतर,
हर बहते पानी को रोकना जरुरी है |
खेती-बाड़ी,ओर बाग़-बगीचों में
नये आयामों की खोज जरुरी है
पानी के खर्च को सीमाओं में बांधना होगा,
समंदर के खारे पानी को,मीठा बनाना जरुरी है |
सोचो नहीं,अमल करना शुरू करदें
बूंद-बूंद पानी बचाकर,घड़ा भरलें
"पवन पागल"सिमित पानी को अमृत मानना होगा,
असीमित जीवन जीने के लिए,जल को बचाना जरुरी है |
८७.नसीयत कोंन करे ?
जो खुद तो सदा रहे बेकाबू
वो हमें काबू में रहने की नसीयत देतें हैं
जिन्हें जिंदगी में तैरना न आया कभी,
वो हमें समंदर में ग़ोता-खोरी की सलाह देतें हैं |
थोड़ी अपने आस-पास, बिखेर लो खुशबुएँ
अपनी बगियाँ में सुगन्धित फूल क्यों नहीं उगालेते
खुद ने तो गंगा स्नान न किया कभी,
हमें गंगा-सागर में नहाने की सलाह देते हैं |
जिन्होंने कभी किसी का भला नहीं किया
वो हमें भी बुरा ही करने की सलाह देतें हैं
जिन्हें जिंदगी ठीक से जीने का तरीका न आया कभी,
वो हमें जिंदगी जीने का फलसफ़ा बार- बार दोहरातें हैं |
जो आज तक उन्होंने किसी से निभाई हो तो पूंछें सवाल
तमाम जिंदगी लोगों के सवालों में घिरे रहतें हैं
"पवन पागल" जिन्हें आग भुजाना न आया कभी,
वो सुलगती आग को जान-भूज कर,बार-बार हवा देतें हैं
वो हमें काबू में रहने की नसीयत देतें हैं
जिन्हें जिंदगी में तैरना न आया कभी,
वो हमें समंदर में ग़ोता-खोरी की सलाह देतें हैं |
थोड़ी अपने आस-पास, बिखेर लो खुशबुएँ
अपनी बगियाँ में सुगन्धित फूल क्यों नहीं उगालेते
खुद ने तो गंगा स्नान न किया कभी,
हमें गंगा-सागर में नहाने की सलाह देते हैं |
जिन्होंने कभी किसी का भला नहीं किया
वो हमें भी बुरा ही करने की सलाह देतें हैं
जिन्हें जिंदगी ठीक से जीने का तरीका न आया कभी,
वो हमें जिंदगी जीने का फलसफ़ा बार- बार दोहरातें हैं |
जो आज तक उन्होंने किसी से निभाई हो तो पूंछें सवाल
तमाम जिंदगी लोगों के सवालों में घिरे रहतें हैं
"पवन पागल" जिन्हें आग भुजाना न आया कभी,
वो सुलगती आग को जान-भूज कर,बार-बार हवा देतें हैं
बुधवार, 1 दिसंबर 2010
८६.सुधार
लिखने सुनने से कोई बात नहीं बनेगी
जो इरादे मज़बूत हों,समंदर रास्ता दे देगा,
तैर-तैर कर डूबने से,अच्छीतैराकी नहीं कहलाएगी
बिना अक्कल के,क्या समंदर में ईमारत बन पायेगी ?
अच्छा बुरा बनने में,पहले आपकी मर्जी शामिल होती है
दूसरे आपको जब बहलाएँगे ,क्या आप बहल जाओगे ?
गलतियाँ आप को पकड़ें ,या आप गलतियों को पकड़ें '
बैगर गलतियों के, क्या अपने आप को सुधार पाओगे ?|
कहतें हैं इन्सान,गलतियों का पुलन्दा है
सीधे-सीधे क्यों नही कहते की,हम उसके हाथ से बंधी कटपुतलियाँ हैं,
हर किसी का अंत है,हम मेंसे कोई अंनंत नहीं,
जो गलतियाँ जवानी में नहीं ,तो क्या खाक बुढ़ापें में सुधार पाओगे ?|
तुम्हे जीना है,ओर लोगों कोजीने देना है
फिर क्यों नहीं अपनी हरकतों से ,बाज़ आते हो
"पवन पागल" मंजिल डूबने से नहीं,तैरने से मिलती है,
जो अपने आप को बचा पाये,तभी तो दूसरों को बचाओगे |
जो इरादे मज़बूत हों,समंदर रास्ता दे देगा,
तैर-तैर कर डूबने से,अच्छीतैराकी नहीं कहलाएगी
बिना अक्कल के,क्या समंदर में ईमारत बन पायेगी ?
अच्छा बुरा बनने में,पहले आपकी मर्जी शामिल होती है
दूसरे आपको जब बहलाएँगे ,क्या आप बहल जाओगे ?
गलतियाँ आप को पकड़ें ,या आप गलतियों को पकड़ें '
बैगर गलतियों के, क्या अपने आप को सुधार पाओगे ?|
कहतें हैं इन्सान,गलतियों का पुलन्दा है
सीधे-सीधे क्यों नही कहते की,हम उसके हाथ से बंधी कटपुतलियाँ हैं,
हर किसी का अंत है,हम मेंसे कोई अंनंत नहीं,
जो गलतियाँ जवानी में नहीं ,तो क्या खाक बुढ़ापें में सुधार पाओगे ?|
तुम्हे जीना है,ओर लोगों कोजीने देना है
फिर क्यों नहीं अपनी हरकतों से ,बाज़ आते हो
"पवन पागल" मंजिल डूबने से नहीं,तैरने से मिलती है,
जो अपने आप को बचा पाये,तभी तो दूसरों को बचाओगे |
८५.नेक इरादे
बैठो उनके पास,जो महकते हों
वो ही फूल बोयें जांये,जो सुघंदित हों
जो न रह पायें,किसी उसूल पे कायम
उनसे दोस्ती न हो,तो दुश्मनी भी न हो |
विषेले साँपों के बीच,रहना तो पड़ता है
क्या चन्दन पर साँपों के जहर का असर होता है ?
चन्दन बन,घिस-घिस कर काम आते रहो,
जहर तो रहेगा ,पर अपनी महक को बढ़ाते रहो |
जो अपने मतलब के लिए,चहकते हों
उस कलरव से हमारा ,कोई नाता न हो
उनसे दोस्ती करो,जो सब के दोस्त हों,
फिर लोगों की क्या परवाह,बस हमारे इरादे नेक हों |
जो देखें हिमालय को,अगले कदम हिमालय पर हों
वो ही कुआ खोंदें,जिसमें सब के लिये पानी हो
"पवन पागल" आग सीनें में हो,पर लोगों को खबर न हो,
कल की फ़िक्र क्यों हो,न जाने कल हो न हो |
वो ही फूल बोयें जांये,जो सुघंदित हों
जो न रह पायें,किसी उसूल पे कायम
उनसे दोस्ती न हो,तो दुश्मनी भी न हो |
विषेले साँपों के बीच,रहना तो पड़ता है
क्या चन्दन पर साँपों के जहर का असर होता है ?
चन्दन बन,घिस-घिस कर काम आते रहो,
जहर तो रहेगा ,पर अपनी महक को बढ़ाते रहो |
जो अपने मतलब के लिए,चहकते हों
उस कलरव से हमारा ,कोई नाता न हो
उनसे दोस्ती करो,जो सब के दोस्त हों,
फिर लोगों की क्या परवाह,बस हमारे इरादे नेक हों |
जो देखें हिमालय को,अगले कदम हिमालय पर हों
वो ही कुआ खोंदें,जिसमें सब के लिये पानी हो
"पवन पागल" आग सीनें में हो,पर लोगों को खबर न हो,
कल की फ़िक्र क्यों हो,न जाने कल हो न हो |
८४.खोया-पाया
गैरों ने कम,अपनों ने ज्यादा रुलाया
जो उजालों ने दी दस्तक,अपने को अँधेरे में ही पाया,
ख़ुशी कम,गम बेहिसाब पाया
हर तीर को अपनी ही,ओर आता पाया |
जो जीना ही रास न आया ,तो मरने की तम्मना कोन करे ?
जिसे डूबने का डर न हो,वो तूफ़ान की फ़िक्र क्यों करे ?
एक तेरा जो साथ मिला,जिंदगी में सब कुछ मिल गया
सुकून मिला इतना की ,सिर्फ तेरे आगे रोने को दिल करे |
तेरे रहते सब कुछ पाया,क्या काया- क्या माया ?
वो मर कर फिर जी गया,जिसने मन से तुझे पाया,
जो सुख में खोगया ओर गम से डर गया,वो जीते-जी मर गया
"पवन पागल" पहले ज्ञान न पाया ,जो तुझे इतनी देर से अपनाया |
जो उजालों ने दी दस्तक,अपने को अँधेरे में ही पाया,
ख़ुशी कम,गम बेहिसाब पाया
हर तीर को अपनी ही,ओर आता पाया |
जो जीना ही रास न आया ,तो मरने की तम्मना कोन करे ?
जिसे डूबने का डर न हो,वो तूफ़ान की फ़िक्र क्यों करे ?
एक तेरा जो साथ मिला,जिंदगी में सब कुछ मिल गया
सुकून मिला इतना की ,सिर्फ तेरे आगे रोने को दिल करे |
तेरे रहते सब कुछ पाया,क्या काया- क्या माया ?
वो मर कर फिर जी गया,जिसने मन से तुझे पाया,
जो सुख में खोगया ओर गम से डर गया,वो जीते-जी मर गया
"पवन पागल" पहले ज्ञान न पाया ,जो तुझे इतनी देर से अपनाया |
८३.कवि और कविता
जब से पुराने कवि गये,कविता कंही खो गयी
वो कुछ ऐसा लिख गये की,हमेशा के लिए दिमाग में छागयी ,
वो अपने शौक में,अपनी धुन में,अनवरत लिखते रहे
उनको छपने का शौक न था,पर आज छपाई कविता को खागयी |
उनकी सोच लम्बी थी,इसलिये कविता विस्त्तार पागयी
बदलाव ओर वक़्त की मार से,कुछ ज्यादा ही भिखर गयी ,
पैसे से ज्यादा अपने मान-सम्मान को अहमियत देते रहे
सिमित सम्मान व असीमित माया,कविता को मार गयी |
अपने स्वार्थ के लिये ,साहित्य का गला घोटते रहे
उन्होंने साहित्य के लिये गले कटवा लिये ,
"पवन पागल" अति से- मति,ज्यादा ही नाराज़ होगयी
दिलों को छूने वाली,आज अँधेरे में कहीं खोगयी |
वो कुछ ऐसा लिख गये की,हमेशा के लिए दिमाग में छागयी ,
वो अपने शौक में,अपनी धुन में,अनवरत लिखते रहे
उनको छपने का शौक न था,पर आज छपाई कविता को खागयी |
उनकी सोच लम्बी थी,इसलिये कविता विस्त्तार पागयी
बदलाव ओर वक़्त की मार से,कुछ ज्यादा ही भिखर गयी ,
पैसे से ज्यादा अपने मान-सम्मान को अहमियत देते रहे
सिमित सम्मान व असीमित माया,कविता को मार गयी |
अपने स्वार्थ के लिये ,साहित्य का गला घोटते रहे
उन्होंने साहित्य के लिये गले कटवा लिये ,
"पवन पागल" अति से- मति,ज्यादा ही नाराज़ होगयी
दिलों को छूने वाली,आज अँधेरे में कहीं खोगयी |
८२.जो तुम न होते
जो''औरत'न होती,तो न हम होते न तुम होते
न ताजमहल होता,न शहनाईयां होंती न नक्कारे होते,
होते सिर्फ,दिलजलों के सपनाई महल होते
जिनमें रोशनी नहीं,घुप्प अँधेरे होते |
न बीबियों के शानदार मकबरे होते
न दरबारों में लाजवाब नाच- गाने होते,
मकबरों की जगह सिर्फ चबूतरे होते
और दरबारों में सिर्फ बेनामी शायर होते |
न शायरी होती,न नामी शायर होते
न फूलों में पुंकेसर होते,न भोंरे उनका रस चूँसते ,
होतीं सिर्फ तुक-बंदियां,जिन्हें जबरन सुनते
फूलों की बजाय कांटें होते,जो हर जगह चुभते रहते |
न बरातें होंतीं ,न चुल -बुले बाराती होतें
न दहेज की पीड़ा होती,न दहेज के खरीदार होते,
न बेजा जुल्म होते,न जुल्मों के ठेकेदार होते,
होंतीं सिर्फ नाम की रातें ,जिसमें अधिकतर खैराती होते |
जो न होता हुस्न , तो बुर्के नदारत होते,
अगर कत्ले-आम मचता तो,पहरेदार निहथे होते
"पवन पागल" जो 'वो'न होंतीं,तो रौशनी की जगह अँधेरे होतें,
न कोई हमारा होता,न हम किसी के होंते |
न ताजमहल होता,न शहनाईयां होंती न नक्कारे होते,
होते सिर्फ,दिलजलों के सपनाई महल होते
जिनमें रोशनी नहीं,घुप्प अँधेरे होते |
न बीबियों के शानदार मकबरे होते
न दरबारों में लाजवाब नाच- गाने होते,
मकबरों की जगह सिर्फ चबूतरे होते
और दरबारों में सिर्फ बेनामी शायर होते |
न शायरी होती,न नामी शायर होते
न फूलों में पुंकेसर होते,न भोंरे उनका रस चूँसते ,
होतीं सिर्फ तुक-बंदियां,जिन्हें जबरन सुनते
फूलों की बजाय कांटें होते,जो हर जगह चुभते रहते |
न बरातें होंतीं ,न चुल -बुले बाराती होतें
न दहेज की पीड़ा होती,न दहेज के खरीदार होते,
न बेजा जुल्म होते,न जुल्मों के ठेकेदार होते,
होंतीं सिर्फ नाम की रातें ,जिसमें अधिकतर खैराती होते |
जो न होता हुस्न , तो बुर्के नदारत होते,
अगर कत्ले-आम मचता तो,पहरेदार निहथे होते
"पवन पागल" जो 'वो'न होंतीं,तो रौशनी की जगह अँधेरे होतें,
न कोई हमारा होता,न हम किसी के होंते |
सोमवार, 29 नवंबर 2010
(८१)कटु-सच
सच बोलते-बोलते,सुर्ख लाल होट काले पड़ गये
फिर सच का यकीन,दिलाने के लाले पड़ गये |
चापलूसी सच से,लोग बहुत खुश रहते हैं
असल सच सुन सभी,आग-बबूला हो जातें हैं |
जो देखा दूर से उन्हें,ठीक-ठाक नज़र आये
जो देखा पास से, टूटे-फूटे नज़र आये |
पास से देखने के लिए,जिंदगी के दिन ही कम पड़ गये
जितनों को भी देखा,वो सब किनारा कर गये |
जो देखा गहराई में,सच के नमूने मिल गये
कुछ परेहट गये,कुछ शर्मा कर मर गये |
"पवन पागल" सच की खोज में,पाँवों में छाले पड़ गये
पहले गिने-चुने दुश्मन थे,अब दुश्मनों के खाते खुल गये |
फिर सच का यकीन,दिलाने के लाले पड़ गये |
चापलूसी सच से,लोग बहुत खुश रहते हैं
असल सच सुन सभी,आग-बबूला हो जातें हैं |
जो देखा दूर से उन्हें,ठीक-ठाक नज़र आये
जो देखा पास से, टूटे-फूटे नज़र आये |
पास से देखने के लिए,जिंदगी के दिन ही कम पड़ गये
जितनों को भी देखा,वो सब किनारा कर गये |
जो देखा गहराई में,सच के नमूने मिल गये
कुछ परेहट गये,कुछ शर्मा कर मर गये |
"पवन पागल" सच की खोज में,पाँवों में छाले पड़ गये
पहले गिने-चुने दुश्मन थे,अब दुश्मनों के खाते खुल गये |
(८०) दूरीयाँ
फासले जैसे भी होंगे,फिर भी मैं उनसे दूर न था
फैसले जो भी होंगे,फिर भी मैं उनमें शामिल न था |
बिछड़े मुसाफ़िर फिर एक होंगे,मैं उनसे दूर ही कब था ?
मेरे हिस्से के सभी ग़मों में,मैं नहीं तो ओर कोंन शामिल था?
जो आज लड़ेंगे कल फिर मिलेंगे,मैं उनसे दूर ही कब था ?
सच्चाई समझने पर,सभी की जबानों पर ताला था |
इस दोरमें नहीं तो अगले दोर में मिलेंगे,मैं उनसे दूर ही कब था ?
तुम आसमान में उड़तें होंगे, मेरा तो हर कदम जमीं पर ही था |
सपने पूरे होंगे,ऐसा मेरा नसीब ही कहाँ था ?
रोज नये कुए खोदता,ओर पुरानों को बूरता था |
"पवन पागल" की खुली किताब को,कोंन समझ पाया था ?
सच लिखते हुये भी,मेरा 'लेखन' अधूरा ही था |
फैसले जो भी होंगे,फिर भी मैं उनमें शामिल न था |
बिछड़े मुसाफ़िर फिर एक होंगे,मैं उनसे दूर ही कब था ?
मेरे हिस्से के सभी ग़मों में,मैं नहीं तो ओर कोंन शामिल था?
जो आज लड़ेंगे कल फिर मिलेंगे,मैं उनसे दूर ही कब था ?
सच्चाई समझने पर,सभी की जबानों पर ताला था |
इस दोरमें नहीं तो अगले दोर में मिलेंगे,मैं उनसे दूर ही कब था ?
तुम आसमान में उड़तें होंगे, मेरा तो हर कदम जमीं पर ही था |
सपने पूरे होंगे,ऐसा मेरा नसीब ही कहाँ था ?
रोज नये कुए खोदता,ओर पुरानों को बूरता था |
"पवन पागल" की खुली किताब को,कोंन समझ पाया था ?
सच लिखते हुये भी,मेरा 'लेखन' अधूरा ही था |
(७९)पूछेगा कोन
जो गम जिंदगी में न रहे,तो उसे पूछेगा कोन ?
हम उन्हें भूलते जायें,बदलते मोसमों की तरह |
जो हम सदा मयखानों में रहें,तो हमें पूछेगा कोन ?
सरासर इस आग में जल जाओगे,परवानों की तरह |
जो लड़ाई ना लड़ते रहें,तो ज़ख्मों को पूछेगा कोन ?
यूँ ही लड़तें रहें,बहादुर सपूतों की तरह |
जो जिंदगी में बेगानें रहें,तो दीवानों को पूछेगा कोन ?
सुलगते-भुझते रहें,आग ओर पानी की तरह |
सहाय को सभी पूछते रहें,तो असहाय को पूछेगा कोन ?
उनके गम में शामिल होजायें,सागर में नदी की तरह |
जो आपस में मोहबत ही ना रहे,तो उसे पूछेगा कोन ?
"पवन पागल" साथ-साथ रहें,लैला-मजनूं की तरह |
हम उन्हें भूलते जायें,बदलते मोसमों की तरह |
जो हम सदा मयखानों में रहें,तो हमें पूछेगा कोन ?
सरासर इस आग में जल जाओगे,परवानों की तरह |
जो लड़ाई ना लड़ते रहें,तो ज़ख्मों को पूछेगा कोन ?
यूँ ही लड़तें रहें,बहादुर सपूतों की तरह |
जो जिंदगी में बेगानें रहें,तो दीवानों को पूछेगा कोन ?
सुलगते-भुझते रहें,आग ओर पानी की तरह |
सहाय को सभी पूछते रहें,तो असहाय को पूछेगा कोन ?
उनके गम में शामिल होजायें,सागर में नदी की तरह |
जो आपस में मोहबत ही ना रहे,तो उसे पूछेगा कोन ?
"पवन पागल" साथ-साथ रहें,लैला-मजनूं की तरह |
रविवार, 28 नवंबर 2010
(७८)बड़ा जादूगर
तेरी मेहरबानियाँ,हमारी नादानियाँ
दोनों एक साथ रहतें हैं
फिर भी दूरियां बहुत हैं
तू नचाये हम न नाचें ,ऊपर से बजाये शहनाइयाँ|
अगर न होती हमारे में कमियां
तो फिर तो तेरे ही साथ हम रहते
पर तू तो बड़ा ही जादूगर है
ऊपर बैठा नचाता रहता,अपनी कटपुतलियाँ |
जो हम न होते,तो तू क्या करता ?
तुझे भी तो समय,व्यतीत करना ही था
वैसे भी एक राजा को, प्रजा की ज़रूरत होती है
वाह रे वाह बहुत महंगी पड़ी,तेरी ये चतुराईयां |
वैसे तो तू हमें अपना ही अंश बताता है
फिर हममें क्यों इतनी भर दीं बिमारियाँ ?
क्या ख़ता थी जो तडफता छोड़ दिया यहाँ ?
अपने पास ही रखता,जिससे न होंती परेशानियाँ |
बैगर हम खलनायकों के,महानायक है अधूरा
अधूरीं हैं जग की,तमाम कहानियां
बिना खलनायकों के,रचते गीता ,रामायण
सच में तुमने जान-भूझ के,हमसे बनाई हैं दूरियां |
अपनों से ही अपने फ़रियाद कर सकतें हैं
जानतें हैं दूरियां बनाये रखने में तू उस्ताद है
हमें सर झुका कर तेरे,तमाम फैसले मंज़ूर हैं
वंश से अंश को जुदा करने में,तेरी रही होंगी कोई मजबूरियां |
पाप का घड़ा फूटने पर,तू ज़मीं पर आता है
जल्दी भर दे हमारे पापों की,अदछलकत गगरी
जिससे निज़ात मिले इस दुनिया से,ओर जल्दी पहुंचें तेरी नगरी
"पवन पागल"को अब रास नहीं आंतीं,ये खोखली जिंदगानियां |
दोनों एक साथ रहतें हैं
फिर भी दूरियां बहुत हैं
तू नचाये हम न नाचें ,ऊपर से बजाये शहनाइयाँ|
अगर न होती हमारे में कमियां
तो फिर तो तेरे ही साथ हम रहते
पर तू तो बड़ा ही जादूगर है
ऊपर बैठा नचाता रहता,अपनी कटपुतलियाँ |
जो हम न होते,तो तू क्या करता ?
तुझे भी तो समय,व्यतीत करना ही था
वैसे भी एक राजा को, प्रजा की ज़रूरत होती है
वाह रे वाह बहुत महंगी पड़ी,तेरी ये चतुराईयां |
वैसे तो तू हमें अपना ही अंश बताता है
फिर हममें क्यों इतनी भर दीं बिमारियाँ ?
क्या ख़ता थी जो तडफता छोड़ दिया यहाँ ?
अपने पास ही रखता,जिससे न होंती परेशानियाँ |
बैगर हम खलनायकों के,महानायक है अधूरा
अधूरीं हैं जग की,तमाम कहानियां
बिना खलनायकों के,रचते गीता ,रामायण
सच में तुमने जान-भूझ के,हमसे बनाई हैं दूरियां |
अपनों से ही अपने फ़रियाद कर सकतें हैं
जानतें हैं दूरियां बनाये रखने में तू उस्ताद है
हमें सर झुका कर तेरे,तमाम फैसले मंज़ूर हैं
वंश से अंश को जुदा करने में,तेरी रही होंगी कोई मजबूरियां |
पाप का घड़ा फूटने पर,तू ज़मीं पर आता है
जल्दी भर दे हमारे पापों की,अदछलकत गगरी
जिससे निज़ात मिले इस दुनिया से,ओर जल्दी पहुंचें तेरी नगरी
"पवन पागल"को अब रास नहीं आंतीं,ये खोखली जिंदगानियां |
शनिवार, 27 नवंबर 2010
(७७)खून के रिश्ते
खून चाहे हमारे बाप-दादा का हो,या हमारे बेटे-बेटियों का हो
चाहे खून हमारे पोते-पोतियों का हो,या फिर हमारे भाई-बहनों का हो
खून तो खून ही रहेगा,ओर रिश्ता भी खून का ही रहेगा
पर कई बार इन खून के रिश्तों की खातिर
हमें कुछ कुर्बानियां भी देनी पड़ती हैं |
वैसे तो दोनों हाथों से ही ताली बजतीं हैं
पर अकेला चना भी भाड़ नहीं फोड़ सकता है
पर न जानें ऐसा क्या होजाता है ?
की खून के रिश्ते भी बेमानी लगतें हैं
जिन्हें हम अपना समझते हैं,वो पराये लगतें हैं |
कुछ उसूलों की खातिर,या फिर अपने मतलब के लिये
खून के रिश्ते भी टूट जातें हैं
रह्जातीं हैं कुछ यादें,जो ये एहसास दिलातीं रहतीं हैं
की वो पहले वाली सुबह कब आयेगी ?
जिस सुबह में,खून के रिश्तों पर फिर से यकीन होगा
"पवन पागल"जब एक बाप अपने बच्चों से,
पति-पत्नी एक दूसरे से खुश रहें
या फिर समझदारी से समझोता करलें
ओर खून के रिश्तों को,खून के आँसू न बननें दें |
चाहे खून हमारे पोते-पोतियों का हो,या फिर हमारे भाई-बहनों का हो
खून तो खून ही रहेगा,ओर रिश्ता भी खून का ही रहेगा
पर कई बार इन खून के रिश्तों की खातिर
हमें कुछ कुर्बानियां भी देनी पड़ती हैं |
वैसे तो दोनों हाथों से ही ताली बजतीं हैं
पर अकेला चना भी भाड़ नहीं फोड़ सकता है
पर न जानें ऐसा क्या होजाता है ?
की खून के रिश्ते भी बेमानी लगतें हैं
जिन्हें हम अपना समझते हैं,वो पराये लगतें हैं |
कुछ उसूलों की खातिर,या फिर अपने मतलब के लिये
खून के रिश्ते भी टूट जातें हैं
रह्जातीं हैं कुछ यादें,जो ये एहसास दिलातीं रहतीं हैं
की वो पहले वाली सुबह कब आयेगी ?
जिस सुबह में,खून के रिश्तों पर फिर से यकीन होगा
"पवन पागल"जब एक बाप अपने बच्चों से,
पति-पत्नी एक दूसरे से खुश रहें
या फिर समझदारी से समझोता करलें
ओर खून के रिश्तों को,खून के आँसू न बननें दें |
(७६)बेहतर
अनकही दिल में ना रहे,तो बेहतर है
वरना सीनें में गुबार,बनती रहती है
सारी भड़ास एक बार में निकल जाये तो बेहतर है
वरना एक छोटी सी बात,एक लम्बी सी कहानी बन जाती है |
क्यों लोग खोखली ज़िदगी,रह-रह कर जीतें हैं ?
किताबें खुलीं क्यों नहीं रहतीं हैं ?
एक छोटी सी गल्ती भी,इतिहास बन जाती है
इतिहास दोहराया न जाये,तो बेहतर है |
सभी को सभी सवालों का,जवाब देना ज़रूरी नहीं है
चेहरे की ख़ामोशी से समझ जायें,तो बेहतर है
वरना तेवर दिखाने में,क्या देर लगती है ?
कुछ फैसलों में किसी से पूछा ना जाये,तो बेहतर है |
ज़िंदगियाँ सँवारने के लिए,उनका उजाड़ ना क्या बेहतर है
जो आज संवरी ,कल उजड़ सकतीं हैं
आम-राय से फैसले ,होजायें तो बेहतर है
वरना जिंदगी नासूर ,बन जाती है |
झूंट की परतें जल्दी ही खुल जायें ,तो बेहतर है
वरना झूंट पे झूंट,बोलने की आदत बन जाती है
सो झूंट बोलने की बजाय, एक सच बोला जाये तो बेहतर है
वरना "पवन पागल" दिवाली , होली -- बन जाती है |
वरना सीनें में गुबार,बनती रहती है
सारी भड़ास एक बार में निकल जाये तो बेहतर है
वरना एक छोटी सी बात,एक लम्बी सी कहानी बन जाती है |
क्यों लोग खोखली ज़िदगी,रह-रह कर जीतें हैं ?
किताबें खुलीं क्यों नहीं रहतीं हैं ?
एक छोटी सी गल्ती भी,इतिहास बन जाती है
इतिहास दोहराया न जाये,तो बेहतर है |
सभी को सभी सवालों का,जवाब देना ज़रूरी नहीं है
चेहरे की ख़ामोशी से समझ जायें,तो बेहतर है
वरना तेवर दिखाने में,क्या देर लगती है ?
कुछ फैसलों में किसी से पूछा ना जाये,तो बेहतर है |
ज़िंदगियाँ सँवारने के लिए,उनका उजाड़ ना क्या बेहतर है
जो आज संवरी ,कल उजड़ सकतीं हैं
आम-राय से फैसले ,होजायें तो बेहतर है
वरना जिंदगी नासूर ,बन जाती है |
झूंट की परतें जल्दी ही खुल जायें ,तो बेहतर है
वरना झूंट पे झूंट,बोलने की आदत बन जाती है
सो झूंट बोलने की बजाय, एक सच बोला जाये तो बेहतर है
वरना "पवन पागल" दिवाली , होली -- बन जाती है |
(७५)टूटा-तारा
जो उनका नाम,किताबों से निकल कर
गलीयों में आगया
मैं छप कर तो,उनका हो न सका
संग गलीयों में खेल कर
उन्हें अपने करीब पा गया |
जो आसमान से चाँद निकल कर
जमीं पर आगया
लाख कोशिश की मिलने की,पर मिल न सका
फिर चाँद की चांदनी में नहाकर
उसकी शीतलता को बहुत भा गया |
जो सपनों की दुनियां से निकल कर
हकीकत में आगया
न किताबें रहीं--न चाँद रहा--
उनका साथ तो दूर "पवन पागल"
एक टूटा-तारा बनकर रहगया |
गलीयों में आगया
मैं छप कर तो,उनका हो न सका
संग गलीयों में खेल कर
उन्हें अपने करीब पा गया |
जो आसमान से चाँद निकल कर
जमीं पर आगया
लाख कोशिश की मिलने की,पर मिल न सका
फिर चाँद की चांदनी में नहाकर
उसकी शीतलता को बहुत भा गया |
जो सपनों की दुनियां से निकल कर
हकीकत में आगया
न किताबें रहीं--न चाँद रहा--
उनका साथ तो दूर "पवन पागल"
एक टूटा-तारा बनकर रहगया |
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010
(७४)सावधान
तुम्हें उसे पुकारना ही ,नहीं आता
तुम क्या ख़ाक,उसे पाओगे
पहले ठीक से,पुकारना सीख लो
फिर कहीं जाके,तुम उसे पाओगे |
तू भी मेरा है,यह कहना गलत है
तू 'ही' मेरा है,यह कहना सही है
अपनी इस भूल को,जल्दी सुधार लो
तुरंत ही तुम उसे,अपने सामने पाओगे |
हजारों देवी-देवताओं को भजना गलत है
इससे से ध्यान इधर-उधर भटकता है
कोई' एक' जो तुम्हे अच्छा लगे,उसे 'ही' अपना लो
फिर देखना तुम उसे,अपने करीब ही पाओगे |
तुम्हारे अन्दर ही तो वो,छुपा बैठा है
तो तुम इतनी दूर,क्यों भागते हो
पहले ठीक से,उसे जानना सीख लो
पलक झपक ते ही,तुम उसे पाओगे |
कोंन किसका नोकर है,कोन किसका मालिक
"पवन पागल" ये समझना ज़रूरी है
कहे'कृपालु' आत्मा तन की नोकर है,ये गलत है
तन आत्मा का नोकर है,ये 'ही' अमिट सच है |
तुम क्या ख़ाक,उसे पाओगे
पहले ठीक से,पुकारना सीख लो
फिर कहीं जाके,तुम उसे पाओगे |
तू भी मेरा है,यह कहना गलत है
तू 'ही' मेरा है,यह कहना सही है
अपनी इस भूल को,जल्दी सुधार लो
तुरंत ही तुम उसे,अपने सामने पाओगे |
हजारों देवी-देवताओं को भजना गलत है
इससे से ध्यान इधर-उधर भटकता है
कोई' एक' जो तुम्हे अच्छा लगे,उसे 'ही' अपना लो
फिर देखना तुम उसे,अपने करीब ही पाओगे |
तुम्हारे अन्दर ही तो वो,छुपा बैठा है
तो तुम इतनी दूर,क्यों भागते हो
पहले ठीक से,उसे जानना सीख लो
पलक झपक ते ही,तुम उसे पाओगे |
कोंन किसका नोकर है,कोन किसका मालिक
"पवन पागल" ये समझना ज़रूरी है
कहे'कृपालु' आत्मा तन की नोकर है,ये गलत है
तन आत्मा का नोकर है,ये 'ही' अमिट सच है |
(७३) फासला
सर्दी,गर्मीं ,बरसांत ,में
जब भी फटाव आता है
तो
मन का फटाव
कम हो जाता है |
पल भर अपनों की याद में
जब मन खो जाता है
तो
"पवन पागल" मींलों की दूरी का फासला
गज भर का रह जाता है |
जब भी फटाव आता है
तो
मन का फटाव
कम हो जाता है |
पल भर अपनों की याद में
जब मन खो जाता है
तो
"पवन पागल" मींलों की दूरी का फासला
गज भर का रह जाता है |
(७२) छोड़ दो
कोशिश करना छोड़ दो
वरना ये तुम्हेपीछे छोड़ देगी
जवाब सिर्फ "हाँ " में दो
या फिर "ना" में दो |
वरना ये तुम्हेपीछे छोड़ देगी
जवाब सिर्फ "हाँ " में दो
या फिर "ना" में दो |
(७१)समझदार
कुत्ता बिल्ली का मांस नहीं खाता है
मतलब वो हमसे ज्यादा समझदार है
इंसान जानवर का मांस खाता है
इसका मतलब जानवर ,इंसान से ज्यादा समझदार है |
मतलब वो हमसे ज्यादा समझदार है
इंसान जानवर का मांस खाता है
इसका मतलब जानवर ,इंसान से ज्यादा समझदार है |
(६९)आनंद
जितनी भी मन में,बातें आरही हैं
या-- जा-- रही हैं
आनें दो, जानें दो
पर मानों मत |
ये है 'आनंद'
पर ये है क्या ?
वर्तमान में जीना
बल्की इस पल में जीना |
या-- जा-- रही हैं
आनें दो, जानें दो
पर मानों मत |
ये है 'आनंद'
पर ये है क्या ?
वर्तमान में जीना
बल्की इस पल में जीना |
(६८)नजराना
उसको दो तो, जिंदगी का खिलता गुलाब दो
हो सके तो उसके सामने, अपना ये नकाब उतार दो,
उसकी तेज रौशनी, तमाम जख्म्मों को भर देगी
तुमको उससे सच्ची मोहब्बत है इसका उसे यकीन दो|
वो तुम्हारी तमाम करतूतें,इत्मीनान से देखता रहता है
अच्छे-बुरे सभी कर्मो का,बाकायदा हर पल हिसाब रखता है,
होसके तो उसके सामनें,अपने सारे आँसू बहा दो
ओर अपनी सभी बुराइयाँ ,उसके दामन में दफ़न कर दो|
उसे चाहने वालों की,इस दुनियां में कमी नहीं है
पर वो कुछ खास चुनिन्दा,शाखों पर ही फूल देता है,
होसके तो इन सुखद फूलों की,खुशबुओं को अपनालो
ओर अपनी तमाम खुशियों की दोलत,उसके हवाले कर दो|
वो तुमसे क्या लेगा,जो सारी दुनिया का दाता है
तुम उसे क्या दोगे,जोकि पूरी कायनात का मालिक है?
जिन शाखों पर फूल देता है,उन पर वो फल भी देता है,
"पवन पागल"बेहतर है अपनी नज़र को,उसकी नज़र से मिला दो|
हो सके तो उसके सामने, अपना ये नकाब उतार दो,
उसकी तेज रौशनी, तमाम जख्म्मों को भर देगी
तुमको उससे सच्ची मोहब्बत है इसका उसे यकीन दो|
वो तुम्हारी तमाम करतूतें,इत्मीनान से देखता रहता है
अच्छे-बुरे सभी कर्मो का,बाकायदा हर पल हिसाब रखता है,
होसके तो उसके सामनें,अपने सारे आँसू बहा दो
ओर अपनी सभी बुराइयाँ ,उसके दामन में दफ़न कर दो|
उसे चाहने वालों की,इस दुनियां में कमी नहीं है
पर वो कुछ खास चुनिन्दा,शाखों पर ही फूल देता है,
होसके तो इन सुखद फूलों की,खुशबुओं को अपनालो
ओर अपनी तमाम खुशियों की दोलत,उसके हवाले कर दो|
वो तुमसे क्या लेगा,जो सारी दुनिया का दाता है
तुम उसे क्या दोगे,जोकि पूरी कायनात का मालिक है?
जिन शाखों पर फूल देता है,उन पर वो फल भी देता है,
"पवन पागल"बेहतर है अपनी नज़र को,उसकी नज़र से मिला दो|
गुरुवार, 25 नवंबर 2010
(६७)पथराई आँखें
कभी नजदीकियां,कभी दूरियां करलीं
आज तौबा की,कल शुरू करली |
उनकी खामोंशियाँ,मैनें दिल्ल्लगी करली
उनकी परछाइयाँ , मैनें हूब-हू समझ लीं |
ये जिंदगी भर की तन्हाईयां ,कभी बहुत दूर करलीं
कभी इनसे लड़ते रहे,कभी आँख बंद करलीं |
कभी जो दूर हुईं रोशनियाँ,कभी सिसकियों में हामी भरली
जो हुईं उनकी मेहरबानियाँ,उनकी हाँ में हाँ करली |
अक्सर मुझसे जलती रहती हैं चांदनियां,जो मैनें तारों से दोस्ती करली,
जो जलते सूरज को पकड़ना चाहा, दिल ने धड़कन बंद करलीं |
उनकी कुछ झलकियाँ देख,आँखें शुकून से बंद करलीं
जो उनका दीदार न हुआ,आँखें हमेशा के लिए बंद करलीं|
"पवन पागल"सूखता नहीं कभी दरिया,जो नदियों से दोस्ती करली,
पीने के लिए जीना,जीने के लिए पीना,इन से सच में नफरत करली |
आज तौबा की,कल शुरू करली |
उनकी खामोंशियाँ,मैनें दिल्ल्लगी करली
उनकी परछाइयाँ , मैनें हूब-हू समझ लीं |
ये जिंदगी भर की तन्हाईयां ,कभी बहुत दूर करलीं
कभी इनसे लड़ते रहे,कभी आँख बंद करलीं |
कभी जो दूर हुईं रोशनियाँ,कभी सिसकियों में हामी भरली
जो हुईं उनकी मेहरबानियाँ,उनकी हाँ में हाँ करली |
अक्सर मुझसे जलती रहती हैं चांदनियां,जो मैनें तारों से दोस्ती करली,
जो जलते सूरज को पकड़ना चाहा, दिल ने धड़कन बंद करलीं |
उनकी कुछ झलकियाँ देख,आँखें शुकून से बंद करलीं
जो उनका दीदार न हुआ,आँखें हमेशा के लिए बंद करलीं|
"पवन पागल"सूखता नहीं कभी दरिया,जो नदियों से दोस्ती करली,
पीने के लिए जीना,जीने के लिए पीना,इन से सच में नफरत करली |
बुधवार, 24 नवंबर 2010
(६६)घायल कुदरत
बरसांत दुखी मन से बोली
'मैं तो ठीक ही बरसती थी'
पर आज-कल लोगों ने मुझे भी
बरसाना शुरू कर दिया है |
जो छेड़े मुझे ये दुनिया बावली
मैं बिन बादल ही बरस ने लगी थी
जो छेड़ा कुदरत को
मैंने भी तेवर दिखाना शुरू कर दिया है|
मैं तो साल में चार महीने ही
बरसना चाहती थी
पर इन्होंने मुझे हर महीने ही
बरसाना शुरू कर दिया है|
मैं कहती हूँ मैं पहले ही
ठीक बरसती थी
इन्होंने खामखाँ मुझ से
पंगा लेना शुरू कर दिया है |
वो गरजती हुई आसमान से बोली
'ये क्या कुदरत की कारीगरी ही थी'
जो जब चाहें मुझे
बरसने के लिए छोड़ दिया है |
आसमान ने कहा'बहना बावली
तेरा बदला मैंने लेना शुरू कर दिया है'
आज-कल मैनें भी अचानक
फटना शुरू कर दिया है |
तुरंत इन दोनों से धरती बोली
'मैं तो ठीक ही धुरी पर घुमती थी
पर आज-कल लोगों ने
मेरे अन्दर भी विश्फोट शुरू कर दिया है |
जो ये मुझे करने लगेंगे बावली
मैं डग-मग घूमती थी
रोको इनको मैंने भी बड़े-बड़े
भुकम्प्पों के तेवर दिखाना शुरू कर दिया है |
इन तीनोकी सुन हवा बोली
'मैं तो ठीक ही बहती थी
पर आज-कल लोगों ने
मुझ को दूषित कर दिया है |
दुखी प्राकृतिक साधनों की देवी बोली
'हमने तो ठीक से ही जग की पोटली बांधी थी
पर कुछ चतुर लोगों ने
उसे खोलना शुरू कर दिया है |
"पवन पागल" ये दुनिया हो गई है बावली,
कुदरत ने तो ठीक ही व्यवस्था बना रखी थी
पर कोन समझाए इन नादानों को
इन्होने कुदरत के साथ,अजीब मजाक शुरू कर दिया है |
'मैं तो ठीक ही बरसती थी'
पर आज-कल लोगों ने मुझे भी
बरसाना शुरू कर दिया है |
जो छेड़े मुझे ये दुनिया बावली
मैं बिन बादल ही बरस ने लगी थी
जो छेड़ा कुदरत को
मैंने भी तेवर दिखाना शुरू कर दिया है|
मैं तो साल में चार महीने ही
बरसना चाहती थी
पर इन्होंने मुझे हर महीने ही
बरसाना शुरू कर दिया है|
मैं कहती हूँ मैं पहले ही
ठीक बरसती थी
इन्होंने खामखाँ मुझ से
पंगा लेना शुरू कर दिया है |
वो गरजती हुई आसमान से बोली
'ये क्या कुदरत की कारीगरी ही थी'
जो जब चाहें मुझे
बरसने के लिए छोड़ दिया है |
आसमान ने कहा'बहना बावली
तेरा बदला मैंने लेना शुरू कर दिया है'
आज-कल मैनें भी अचानक
फटना शुरू कर दिया है |
तुरंत इन दोनों से धरती बोली
'मैं तो ठीक ही धुरी पर घुमती थी
पर आज-कल लोगों ने
मेरे अन्दर भी विश्फोट शुरू कर दिया है |
जो ये मुझे करने लगेंगे बावली
मैं डग-मग घूमती थी
रोको इनको मैंने भी बड़े-बड़े
भुकम्प्पों के तेवर दिखाना शुरू कर दिया है |
इन तीनोकी सुन हवा बोली
'मैं तो ठीक ही बहती थी
पर आज-कल लोगों ने
मुझ को दूषित कर दिया है |
दुखी प्राकृतिक साधनों की देवी बोली
'हमने तो ठीक से ही जग की पोटली बांधी थी
पर कुछ चतुर लोगों ने
उसे खोलना शुरू कर दिया है |
"पवन पागल" ये दुनिया हो गई है बावली,
कुदरत ने तो ठीक ही व्यवस्था बना रखी थी
पर कोन समझाए इन नादानों को
इन्होने कुदरत के साथ,अजीब मजाक शुरू कर दिया है |
(६५) बुत
मैं उनसे क्या मांगू,जो खुद ही किसी सहारे के है,
मांगूं तो उससे ,जो सब का सहारा है|
मैं सबसे ये मांगूं,जिनके पास वो है
है तो मेरे पास भी वो,पर बहुत दूर है |
मुझे उनसे जो नजदीकियां मिल जायें खुद ही
मैं अपना सब-कुछ हार दूँ उसके लिये खुद ही
हम पत्थर के बुत तो बनते रहते हैं खुद ही
"पवन पागल"क्यों न खुदाई बुत बन जायें खुद ही |
मांगूं तो उससे ,जो सब का सहारा है|
मैं सबसे ये मांगूं,जिनके पास वो है
है तो मेरे पास भी वो,पर बहुत दूर है |
मुझे उनसे जो नजदीकियां मिल जायें खुद ही
मैं अपना सब-कुछ हार दूँ उसके लिये खुद ही
हम पत्थर के बुत तो बनते रहते हैं खुद ही
"पवन पागल"क्यों न खुदाई बुत बन जायें खुद ही |
(६४)ये हसरतें
मुझे तोड़कर तुम,यूँ ही मत फेंक देना
मैं बड़ी मुश्किल से खिला हूँ,
होसके तो मुझे कुछ अपनी परछाइयाँ देनां
मैं धूप में बहुत झुलश चूका हूँ |
मुझे परछाईयौं में रहकर खिलने देना,
मैं धूप में कभी खिला नहीं हूँ
होसके तो मुझे अपनी पनाह देना,
मैं बहार आने से डरा हुआ हूँ |
मुझ से बिछुड़ कर तुम,यूँ ही मत चले जाना
पास से देखना,मैं ख़तम ही हूँ
होसके तो मुझे कुछ,सहारा देना
मैं तुम्हें दूर जाते न देखना चाहता हूँ |
मैं जब भी रुखसत हूँ,अपने पास ही जगह देना,
मैं बड़ी हसरत लिये जारहा हूँ
होसके तो "पवन पागल" को अपना प्यार देना
जिंदगी भर साथ रहने का,अपना वादा देना|
मैं बड़ी मुश्किल से खिला हूँ,
होसके तो मुझे कुछ अपनी परछाइयाँ देनां
मैं धूप में बहुत झुलश चूका हूँ |
मुझे परछाईयौं में रहकर खिलने देना,
मैं धूप में कभी खिला नहीं हूँ
होसके तो मुझे अपनी पनाह देना,
मैं बहार आने से डरा हुआ हूँ |
मुझ से बिछुड़ कर तुम,यूँ ही मत चले जाना
पास से देखना,मैं ख़तम ही हूँ
होसके तो मुझे कुछ,सहारा देना
मैं तुम्हें दूर जाते न देखना चाहता हूँ |
मैं जब भी रुखसत हूँ,अपने पास ही जगह देना,
मैं बड़ी हसरत लिये जारहा हूँ
होसके तो "पवन पागल" को अपना प्यार देना
जिंदगी भर साथ रहने का,अपना वादा देना|
(६३)मोसम के तकाजे
सावन-भादों में बरसांत
अच्छी लगती है
माघ में लगातार बरसे
तो कपं-कपी लगती है |
किसी को तू कोहरे में नहाई
दुल्हन सी लगती लगती है
जो फुट-पाथ पर बसर कर रहें हैं
उन्हें "पवन पागल" तू सोतेली लगती है |
अच्छी लगती है
माघ में लगातार बरसे
तो कपं-कपी लगती है |
किसी को तू कोहरे में नहाई
दुल्हन सी लगती लगती है
जो फुट-पाथ पर बसर कर रहें हैं
उन्हें "पवन पागल" तू सोतेली लगती है |
मंगलवार, 23 नवंबर 2010
(६२) कुछ शेर
आँखों से आँखें मिलाने की,
तुम्हारी आदत पुरानी होगी
हम अंदाजें बंया,झुकी पलकों से
भांप लेते हैं|
* सामने देख कर चलो,इसी में सब का भला है,
नीची नजरें करके चलने वालों को,यंहा क्या मिला है ?
कभी रुकना,कभी चलना,ये जिंदगी एक झमेला है
इतने इंसानों के होते हुए भी,आज आदमी अकेला है |
* कभी तनहाइयों से मैं परेशान,
कभी तनहाइयाँ मुझ से परेशान
ऊपर वाले का बहुत-बहुत एहसान,
जिसकी बदोलत मेरी बनी हुई है जान|
* चमन में बिच्ढ़ कर, वापस मिलने की उम्मीद,
दिल को सुकून देती है,
किसी बुरे सपने को देख कर,उसके हकीकत में न होने की उम्मीद,
सब को सुकून देती है|
*मैं बहार से डरता नहीं हूँ,
बहार में मुझ से कोई न मिले,इसलिए डरता हूँ
चमन में फूल खिलें,मुझे एक भी न मिले
बस इस ख़याल से मैं,रात-दिन डरता हूँ|
*मैं रात-रात भर छुप-छुप के क्यों मिलूं उनसे,
वो जो दिन के उजाले में,मिलने से डरतें हैं
मैं जो सरेआम मोहब्बत करूँ उनसे,
फिर वो उसे क्यों, जग से छुपाते रहते हैं|
*तुम्हारी आँखें बहुत बोलतीं हैं,
जरा पलकें गिराना,
मेरी नज़र तुम्हारी नज़र से बोलती है,
संभल कर खोलना,एक को नहीं,हजारों को गिराना|
तुम्हारी आदत पुरानी होगी
हम अंदाजें बंया,झुकी पलकों से
भांप लेते हैं|
* सामने देख कर चलो,इसी में सब का भला है,
नीची नजरें करके चलने वालों को,यंहा क्या मिला है ?
कभी रुकना,कभी चलना,ये जिंदगी एक झमेला है
इतने इंसानों के होते हुए भी,आज आदमी अकेला है |
* कभी तनहाइयों से मैं परेशान,
कभी तनहाइयाँ मुझ से परेशान
ऊपर वाले का बहुत-बहुत एहसान,
जिसकी बदोलत मेरी बनी हुई है जान|
* चमन में बिच्ढ़ कर, वापस मिलने की उम्मीद,
दिल को सुकून देती है,
किसी बुरे सपने को देख कर,उसके हकीकत में न होने की उम्मीद,
सब को सुकून देती है|
*मैं बहार से डरता नहीं हूँ,
बहार में मुझ से कोई न मिले,इसलिए डरता हूँ
चमन में फूल खिलें,मुझे एक भी न मिले
बस इस ख़याल से मैं,रात-दिन डरता हूँ|
*मैं रात-रात भर छुप-छुप के क्यों मिलूं उनसे,
वो जो दिन के उजाले में,मिलने से डरतें हैं
मैं जो सरेआम मोहब्बत करूँ उनसे,
फिर वो उसे क्यों, जग से छुपाते रहते हैं|
*तुम्हारी आँखें बहुत बोलतीं हैं,
जरा पलकें गिराना,
मेरी नज़र तुम्हारी नज़र से बोलती है,
संभल कर खोलना,एक को नहीं,हजारों को गिराना|
(६१) चाटुकार
हर ऊँची शकसियत के आस-पास,
चाटुकारों का मेला सा लगा होता है
जैसे शहद के छते आस -पास,
मधु-मक्खियों का मेला सा लगा होता है|
हर कोई एक दूसरेपर, पैर रख कर,
आगे बढ़ना चाहता है
फिर लोगों की जिंदगी थम सी जाती है
उस शक्श के आस-पास |
क्या गलत है,क्या सही इसका,
उस शक्श को कभी पता नहीं चलता
वो तो चाहता है की,"पवन पागल"
खुजाने वाले रहें,उसके आस-पास |
चाटुकारों का मेला सा लगा होता है
जैसे शहद के छते आस -पास,
मधु-मक्खियों का मेला सा लगा होता है|
हर कोई एक दूसरेपर, पैर रख कर,
आगे बढ़ना चाहता है
फिर लोगों की जिंदगी थम सी जाती है
उस शक्श के आस-पास |
क्या गलत है,क्या सही इसका,
उस शक्श को कभी पता नहीं चलता
वो तो चाहता है की,"पवन पागल"
खुजाने वाले रहें,उसके आस-पास |
(६०) बेईमानी-रिश्ता
ये रिश्ता शादी का,बेईमानी सा लगता है,
जब हम-सफ़र साथ न दे|
ये रिश्ता-----
होना उनका,अजनबी सा लगता है,
जब हम-सफ़र साथ न दे|
ये रिश्ता--------
हम गैरों की,बांहों में क्यों रहतें हैं?
सिर्फ इसलिए,की हम-सफ़र साथ न दे|
ये रिश्ता-----
क्या खता है मेरी,जो मैनें ओरों को चाहा ?
अपनों ने पूछा नहीं कभी |
ये रिश्ता------
हम बरबाद हो गये, खुशियों की चाहत में,
उन्हें आसमान मिला,हमें जमीं भी नहीं |
ये रिश्ता------
क्यों आंती हैं खुशियाँ, इस सूने जीवन में,
"पवन पागल" उन्हें बरसांत मिलें,हमें सूखा भी नहीं |
ये रिश्ता------
जब हम-सफ़र साथ न दे|
ये रिश्ता-----
होना उनका,अजनबी सा लगता है,
जब हम-सफ़र साथ न दे|
ये रिश्ता--------
हम गैरों की,बांहों में क्यों रहतें हैं?
सिर्फ इसलिए,की हम-सफ़र साथ न दे|
ये रिश्ता-----
क्या खता है मेरी,जो मैनें ओरों को चाहा ?
अपनों ने पूछा नहीं कभी |
ये रिश्ता------
हम बरबाद हो गये, खुशियों की चाहत में,
उन्हें आसमान मिला,हमें जमीं भी नहीं |
ये रिश्ता------
क्यों आंती हैं खुशियाँ, इस सूने जीवन में,
"पवन पागल" उन्हें बरसांत मिलें,हमें सूखा भी नहीं |
ये रिश्ता------
(५९) 'मन'
हे 'मन' तू एक यान है
जिसकी गति की तुलना करना
असंभव है |
इस तन के चिड़िया घर में
'तू'
एक विचरता हुआ पक्षी है|
हे 'मन' पहले तू लड़ता है
फिर हथियार लड़तें हैं
तेरे हारे 'हार' है
तेरे जीते 'जीत है|
हे 'मन'पहले तू चलता है
फिर हम चलतें हैं
जब तू गलता है
तो "पवन पागल"मरता है|
हे मन 'जु'शब्द के तुझ में
मिलने पर
तू
एक सुगंधित पुष्प है|
तेरा न कोई 'आदि' है
न कोई अन्त है
'तू' इस सृष्टि में "पवन पागल"
अन्नंत है|
जिसकी गति की तुलना करना
असंभव है |
इस तन के चिड़िया घर में
'तू'
एक विचरता हुआ पक्षी है|
हे 'मन' पहले तू लड़ता है
फिर हथियार लड़तें हैं
तेरे हारे 'हार' है
तेरे जीते 'जीत है|
हे 'मन'पहले तू चलता है
फिर हम चलतें हैं
जब तू गलता है
तो "पवन पागल"मरता है|
हे मन 'जु'शब्द के तुझ में
मिलने पर
तू
एक सुगंधित पुष्प है|
तेरा न कोई 'आदि' है
न कोई अन्त है
'तू' इस सृष्टि में "पवन पागल"
अन्नंत है|
(५८) नेता
नेता,कभी किसी को कुछ भी नहीं देता
खुद के स्वार्थ के लिए,जनता से सब कुछ ले लेता |
चुनाव जीतने के लिए
जनता को लम्बे-लम्बे हाथ जोड़ता|
चुनाव जीतने के बाद
इस भोली-भाली गरीब जनता को भूल जाता|
अपने उदर की पूर्ति के लिए
जी भर के लूट-पाट करता|
बुरे से बुरे कर्म वो करता,पर कभी भी
हवालात की हवा नहीं खता|
अछे-खासे इंसान को,हवालात जरुर पंहुँचाता
सारे घोटालों की जड़ वो होता,फिर भी मज़बूत पकड़ रखता|
सत्ता में रहते उसका 'बाल भी बांका'नही होता
सत्ता से जाने के बाद,करोंडो डकारने का भांडा फूटता|
फिर भी वो आज,'खुले सांड'की तरह आज़ाद घूमता
"पवन पागल"कोई आज भी उसका,कुछ नहीं बिगाड़ सकता|
खुद के स्वार्थ के लिए,जनता से सब कुछ ले लेता |
चुनाव जीतने के लिए
जनता को लम्बे-लम्बे हाथ जोड़ता|
चुनाव जीतने के बाद
इस भोली-भाली गरीब जनता को भूल जाता|
अपने उदर की पूर्ति के लिए
जी भर के लूट-पाट करता|
बुरे से बुरे कर्म वो करता,पर कभी भी
हवालात की हवा नहीं खता|
अछे-खासे इंसान को,हवालात जरुर पंहुँचाता
सारे घोटालों की जड़ वो होता,फिर भी मज़बूत पकड़ रखता|
सत्ता में रहते उसका 'बाल भी बांका'नही होता
सत्ता से जाने के बाद,करोंडो डकारने का भांडा फूटता|
फिर भी वो आज,'खुले सांड'की तरह आज़ाद घूमता
"पवन पागल"कोई आज भी उसका,कुछ नहीं बिगाड़ सकता|
सोमवार, 22 नवंबर 2010
(५७) गंजे को नाखून
थोडा ऊँचा हुआ था, पर हमसे नीचा ही रहा
'गंजे को नाख़ून मिले', कुछ ऐसा ही रहा |
अपने आपको तीस-मारखां 'मार्डन ' समझता था
अपनी ही सूरत पर, खुद ही मरता था |
बहुत अभिमान था,उसे अपने आप पर
बड़ा खुश होता था,हमें गुमराह कर|
सही को गलत ,गलत को सही बताना
मानों उसका पेशा था|
खुद अपना नुकसान कभी न करता
दूसरों को नुकसान के,नुक्कशे बताया करता|
पर हम तो उसके गुरु थे
सुनते उसकी,मानते मन की|
इसीलिए अब तक हमारे सर पर बाल हैं
ओर वो कभी का टकला हो गया |
वो हमेशा 'ड्राई एरिये' को बताता था 'जेंटरी प्लेस'
सलवार को बताता था 'सलेक्स
इस तरह वो करता हमें 'मिसप्लेस' |
बांतों का न था,उसके पास कभी 'एन्ड'
हर किसी को बताता अपनी 'गर्ल-फ्रेंड' |
'ब्यूटी' की तुलना पनीर से करता
कहता 'क्या चीज' है?
पनीर को कहता,' हाउ स्वीट यू आर'
हकीकत में उसका,कोई यार ही नहीं था |
बरसांत का मोंसम था,एक दिन बोला
'यार" बीयर "होनी चाहिये
हमने कहा ज़रूर
पर "पवन पागल"
'बीयर' करने वाला भी,होना चाहिये |
'गंजे को नाख़ून मिले', कुछ ऐसा ही रहा |
अपने आपको तीस-मारखां 'मार्डन ' समझता था
अपनी ही सूरत पर, खुद ही मरता था |
बहुत अभिमान था,उसे अपने आप पर
बड़ा खुश होता था,हमें गुमराह कर|
सही को गलत ,गलत को सही बताना
मानों उसका पेशा था|
खुद अपना नुकसान कभी न करता
दूसरों को नुकसान के,नुक्कशे बताया करता|
पर हम तो उसके गुरु थे
सुनते उसकी,मानते मन की|
इसीलिए अब तक हमारे सर पर बाल हैं
ओर वो कभी का टकला हो गया |
वो हमेशा 'ड्राई एरिये' को बताता था 'जेंटरी प्लेस'
सलवार को बताता था 'सलेक्स
इस तरह वो करता हमें 'मिसप्लेस' |
बांतों का न था,उसके पास कभी 'एन्ड'
हर किसी को बताता अपनी 'गर्ल-फ्रेंड' |
'ब्यूटी' की तुलना पनीर से करता
कहता 'क्या चीज' है?
पनीर को कहता,' हाउ स्वीट यू आर'
हकीकत में उसका,कोई यार ही नहीं था |
बरसांत का मोंसम था,एक दिन बोला
'यार" बीयर "होनी चाहिये
हमने कहा ज़रूर
पर "पवन पागल"
'बीयर' करने वाला भी,होना चाहिये |
(५६) मैरिज एजेंट
एजेंट बोले----
"आपकी भावी पत्न्नी का नाम 'स्नेहलता है
स्नेह का तो ब्लैक मार्केट है,ओर
लता आपके पीछे है "
भावी दुल्हा बोला---
क्या दो रत्नों की वरमाला का फंदा
एक ही के गले में डाल रहे हो
क्यों दो कन्याओं का मुझ से वरण कर रहे हो
क्या तुम्हें जाना है जेल,जो मुझे फांस कर
करते हो मुझ से 'ब्लैक-मेल
सुनो! अगर तुम पकडे गये,तो छुड़ा लाऊंगा
पर दहेज में 'ब्लैक के साथ 'वाहिट भी लूँगा |
क्या आपकी यह प्यारी लता कंही
अम्बर बेल की सहेली तो नहीं
लिपट जाये बिचारे मुझ जैसे किसी
भोले-भाले पेड़ से
ओर भोजन का बटवारा करे
मकान का बटवारा करे,बंटवारा करे' ऐ टू जेड '
बिना कोई मुवावजा पेड़ को दिये हुए |
हे महोदय आपका यह फ्री' सेम्पल
आप के ही पास ही रखिये
दीजिये किसी ऐसे मरीज़ को,जिसकी बीमारी
"पवन पागल" 'फ्री सेम्पल' से ही जाती हो |
"आपकी भावी पत्न्नी का नाम 'स्नेहलता है
स्नेह का तो ब्लैक मार्केट है,ओर
लता आपके पीछे है "
भावी दुल्हा बोला---
क्या दो रत्नों की वरमाला का फंदा
एक ही के गले में डाल रहे हो
क्यों दो कन्याओं का मुझ से वरण कर रहे हो
क्या तुम्हें जाना है जेल,जो मुझे फांस कर
करते हो मुझ से 'ब्लैक-मेल
सुनो! अगर तुम पकडे गये,तो छुड़ा लाऊंगा
पर दहेज में 'ब्लैक के साथ 'वाहिट भी लूँगा |
क्या आपकी यह प्यारी लता कंही
अम्बर बेल की सहेली तो नहीं
लिपट जाये बिचारे मुझ जैसे किसी
भोले-भाले पेड़ से
ओर भोजन का बटवारा करे
मकान का बटवारा करे,बंटवारा करे' ऐ टू जेड '
बिना कोई मुवावजा पेड़ को दिये हुए |
हे महोदय आपका यह फ्री' सेम्पल
आप के ही पास ही रखिये
दीजिये किसी ऐसे मरीज़ को,जिसकी बीमारी
"पवन पागल" 'फ्री सेम्पल' से ही जाती हो |
(५५) बिगडेल बाराती
बारात समय से तीन घंटे पहले ही आ पंहुँची
पर बेटी वाले के घर से तीन मील दूर पंहुँची
रास्ता भटक गये थे बेचारे
आखिर पकवानों की खुशबू सूंघते-सांघते
पहुंचे बेटी वाले के आस-पास
एक जान-पहचान वाले ने आश्रय दिया
ठंडे पानी के अलावा,एक गरम प्याला चाय भी दिया |
बारातियों में एक थे,एक सही एक बटा दो
(आप समझ गये होंगे ) दरअसल वो कुछ काणें थे
चाय का जो प्याला दिया उन्हें ,कहा फेंक दो
हमनें चटकी ली,पूछा कंहा? -- वे बोले
मेरे उप्पर --
पास खड़ा था एक गधा
दे मारा हमने उसी पे वो चाय का प्याला
काटो तो उन्हें खून नहीं |
खैर---लड़की वाले के घर पंहुंचे
रिसेप्शन में मिला ठंडा कोका-कोला
हो गये जल कर वो आग-बबूला
बोले 'ये क्या मजाक' ?
पहले ठंडा,फिर गर्म, फिर ठंडा
उपर से हमें गधा समझ मारा एक डंडा
हम बोले
'श्रीमान एक सही एक बटा दो जी
ये तो आधी को एक करने का 'सेम्पल है
अभी तो पूरा 'ओपरेशन बाकी है |
डेढ़ आँख उनकी,ओर ऊपर से उनका सदव्यवहार
हमें उनकी नेता गीरी पर कोई शक न रहा
अपने कुछ खास लोगों को हमने बताया
'इनकी चमचागिरी करो
येही हैं,बनाने-बिगाड़ने वाले
हर बारात में,एक ऐसा मोहरा ज़रूर होता है
बात लोगों को जची
खूब उनकी सेवा की,खूब लगाया मश्का
पर ये क्या,पड़ गया था उन्हें अब
इन सब का चश्का---
किसी से सुना वे भूतों से डरतें हैं
बने भूत रात में,उतारा उनका भूत बात ही बात में
कहने लगे अब बस करो,कोई भी खलल अब
नहीं होगा बारात में------
"पवन पागल"हर बारात में ऐसा एक शक्श ज़रूर होता है
जो बनते काम को बिगाड़ता है बात-बात में|
पर बेटी वाले के घर से तीन मील दूर पंहुँची
रास्ता भटक गये थे बेचारे
आखिर पकवानों की खुशबू सूंघते-सांघते
पहुंचे बेटी वाले के आस-पास
एक जान-पहचान वाले ने आश्रय दिया
ठंडे पानी के अलावा,एक गरम प्याला चाय भी दिया |
बारातियों में एक थे,एक सही एक बटा दो
(आप समझ गये होंगे ) दरअसल वो कुछ काणें थे
चाय का जो प्याला दिया उन्हें ,कहा फेंक दो
हमनें चटकी ली,पूछा कंहा? -- वे बोले
मेरे उप्पर --
पास खड़ा था एक गधा
दे मारा हमने उसी पे वो चाय का प्याला
काटो तो उन्हें खून नहीं |
खैर---लड़की वाले के घर पंहुंचे
रिसेप्शन में मिला ठंडा कोका-कोला
हो गये जल कर वो आग-बबूला
बोले 'ये क्या मजाक' ?
पहले ठंडा,फिर गर्म, फिर ठंडा
उपर से हमें गधा समझ मारा एक डंडा
हम बोले
'श्रीमान एक सही एक बटा दो जी
ये तो आधी को एक करने का 'सेम्पल है
अभी तो पूरा 'ओपरेशन बाकी है |
डेढ़ आँख उनकी,ओर ऊपर से उनका सदव्यवहार
हमें उनकी नेता गीरी पर कोई शक न रहा
अपने कुछ खास लोगों को हमने बताया
'इनकी चमचागिरी करो
येही हैं,बनाने-बिगाड़ने वाले
हर बारात में,एक ऐसा मोहरा ज़रूर होता है
बात लोगों को जची
खूब उनकी सेवा की,खूब लगाया मश्का
पर ये क्या,पड़ गया था उन्हें अब
इन सब का चश्का---
किसी से सुना वे भूतों से डरतें हैं
बने भूत रात में,उतारा उनका भूत बात ही बात में
कहने लगे अब बस करो,कोई भी खलल अब
नहीं होगा बारात में------
"पवन पागल"हर बारात में ऐसा एक शक्श ज़रूर होता है
जो बनते काम को बिगाड़ता है बात-बात में|
(५४)मौन प्रचार
परिवार नियोजन का मौनं प्रचार करने चले
कुछ नये आधुनिक,सस्ते-सुंदर तरीके सोचने चले|
लोगों की शर्ट पर बने दिल को
तीर से चीरता हुआ मत दिखाओ
दिल को सजीव ही दिखाओ|
शर्ट पर दिल की जगह ,लाल त्रिकोण बनाओ|
गले में लोकिट की जगह,कानों में झुमकों की जगह
माथे पर टीके की जगह,हाथों में दस्तबंद की जगह
सिर्फ लाल त्रिकोण का डिजाईन अपनाओ
ओंर मुफ्त में वेल एडवांस'उपाधी का सम्मान भोगो|
खाना परोसते समय भी तुम दो व दो के बाद
कभी नहीं का नारा मत भूलो
दो बार ही परोसो,दो के बाद कभी नहीं
खाने में बचत होगी,ओंर मोंन प्रचार भी होगा|
बस,रेल,सिनेमा या बारात की विदाई में
अगर किसी को रुपये देने हों तो
उलटे त्रिकोण की शक्ल बना कर ही दो
परिवार-नियोजन का मौनं प्रचार होगा|
घर में रोटी बनानें में कमी करो
शादी-ब्याह में पूड़ियाँ बिलकुल भी मत बनाओ
इन सब की जगह तिकोने पंरांठे बनाओ
सभी व्यंजन तिकोने बर्तन में परोसे हुए हों
ओंर सभी का आकार समोंसे से मिलता-झूलता हो
परिवार-नियोजन का मौनं प्रचार होगा|
फक्कड़ हो तो शादी कर लो
घर में सोच समझ कर थोड़ी आबादी कर लो
मिल कर गाना गाओ ------
एक से दो भले,दो से भले चार,पर याद रखो
अगर इससे आगे बढ़े तो होगा,उस फेमस नारे पर
होगा अत्याचार (हम दो-हमारे दो) |
वन,टू, थ्री,पर इससे आगे मत हों फ्री
एक को मानो कोमा
दो को अर्धविराम ओंर
"पवन पागल" तीन को मानो पूर्ण विराम |
कुछ नये आधुनिक,सस्ते-सुंदर तरीके सोचने चले|
लोगों की शर्ट पर बने दिल को
तीर से चीरता हुआ मत दिखाओ
दिल को सजीव ही दिखाओ|
शर्ट पर दिल की जगह ,लाल त्रिकोण बनाओ|
गले में लोकिट की जगह,कानों में झुमकों की जगह
माथे पर टीके की जगह,हाथों में दस्तबंद की जगह
सिर्फ लाल त्रिकोण का डिजाईन अपनाओ
ओंर मुफ्त में वेल एडवांस'उपाधी का सम्मान भोगो|
खाना परोसते समय भी तुम दो व दो के बाद
कभी नहीं का नारा मत भूलो
दो बार ही परोसो,दो के बाद कभी नहीं
खाने में बचत होगी,ओंर मोंन प्रचार भी होगा|
बस,रेल,सिनेमा या बारात की विदाई में
अगर किसी को रुपये देने हों तो
उलटे त्रिकोण की शक्ल बना कर ही दो
परिवार-नियोजन का मौनं प्रचार होगा|
घर में रोटी बनानें में कमी करो
शादी-ब्याह में पूड़ियाँ बिलकुल भी मत बनाओ
इन सब की जगह तिकोने पंरांठे बनाओ
सभी व्यंजन तिकोने बर्तन में परोसे हुए हों
ओंर सभी का आकार समोंसे से मिलता-झूलता हो
परिवार-नियोजन का मौनं प्रचार होगा|
फक्कड़ हो तो शादी कर लो
घर में सोच समझ कर थोड़ी आबादी कर लो
मिल कर गाना गाओ ------
एक से दो भले,दो से भले चार,पर याद रखो
अगर इससे आगे बढ़े तो होगा,उस फेमस नारे पर
होगा अत्याचार (हम दो-हमारे दो) |
वन,टू, थ्री,पर इससे आगे मत हों फ्री
एक को मानो कोमा
दो को अर्धविराम ओंर
"पवन पागल" तीन को मानो पूर्ण विराम |
(५३) भड़ास
पत्नी ने,पति से कहा की
अख़बार से मुंह क्यों पंहुंचते हो
कालिख लग जाएगी
जाकर धो क्यों नही आते|
पति ने कहा,अख़बार ही तो है
रद्दी के भाव बिक जायेगा
पत्नी बोलीं
ये तो फिर भी रद्दी के भाव बिक जायेगा
पर तुम्हारा तो इतने सालों से
भाव भी तय नहीं हुआ है की
किस भाव बिकोगे
ओर बिकोगे की भी नहीं
खामखां अख़बार को ख़राब कर रहे हो
पति ने चुप-चाप अख़बार रख दिया
पत्नी ने उसी अख़बार से
दर्पण को अच्छी तरह से पोंछा
अपना सुव्रण मुख उसमें देख कर
"पवन पागल"वो हंसी ,ओर अपना होट कचोटा
ओर कहा की क्या खूब हमने उनको डांटा |
अख़बार से मुंह क्यों पंहुंचते हो
कालिख लग जाएगी
जाकर धो क्यों नही आते|
पति ने कहा,अख़बार ही तो है
रद्दी के भाव बिक जायेगा
पत्नी बोलीं
ये तो फिर भी रद्दी के भाव बिक जायेगा
पर तुम्हारा तो इतने सालों से
भाव भी तय नहीं हुआ है की
किस भाव बिकोगे
ओर बिकोगे की भी नहीं
खामखां अख़बार को ख़राब कर रहे हो
पति ने चुप-चाप अख़बार रख दिया
पत्नी ने उसी अख़बार से
दर्पण को अच्छी तरह से पोंछा
अपना सुव्रण मुख उसमें देख कर
"पवन पागल"वो हंसी ,ओर अपना होट कचोटा
ओर कहा की क्या खूब हमने उनको डांटा |
(५२) समाजवाद
सेठ क्यों करता है लेट
क्यों करवा रहा है वेट
क्यों नहीं हमारी बढवा देता है रेट
हमारे कष्टों को मेट
अगर ऐसा नहीं हुआ तो
हम तुझसे करेंगे हेट
तेरा सकडा कर देंगे गेट
फिर कैसे मायेगा तेरा पेट
एक निशचित बता दे डेट
जब भर पाए गा हमारा पेट
तेरा बदल देंगे हम फेट
फिर तू कंहासे खायेगा आमलेट
तेरा ठंडा कर देंगे मार्केट
अगर नहीं बढ़वाई जो रेट
तेरा बदल देंगे फोरचुनेट
अगर २५० रूपये सलरी रखी नेट
"पवन पागल को ज़ल्दी ही दिलादे इन्क्रीमेंट
जिस से वो जल्दी ही हो जाये परमानेंट |
क्यों करवा रहा है वेट
क्यों नहीं हमारी बढवा देता है रेट
हमारे कष्टों को मेट
अगर ऐसा नहीं हुआ तो
हम तुझसे करेंगे हेट
तेरा सकडा कर देंगे गेट
फिर कैसे मायेगा तेरा पेट
एक निशचित बता दे डेट
जब भर पाए गा हमारा पेट
तेरा बदल देंगे हम फेट
फिर तू कंहासे खायेगा आमलेट
तेरा ठंडा कर देंगे मार्केट
अगर नहीं बढ़वाई जो रेट
तेरा बदल देंगे फोरचुनेट
अगर २५० रूपये सलरी रखी नेट
"पवन पागल को ज़ल्दी ही दिलादे इन्क्रीमेंट
जिस से वो जल्दी ही हो जाये परमानेंट |
(५१) झुलसते अरमान
सपनों की माला टूट गई
बिखर गया हर एक मोती
जिंदगी अब बोझ लगती है
क्यों न यह हो जाती छोटी |
अरमान किसी के थे की ,हम उनका नाम रोशन करें
पर अँधेरे हमारे साथी बने
काश वे उजालों को भी बुला लेते
अगर ऐसा होता तो ये ,कुदरत की अदभुत कारीगरी होती |
सुना है ,जी कर भी मरना आता है लोगों को
ओर मर कर भी,जीते हैं लोग
पर "पवन पागल"हम तो बीच भंवर में ही रहगये
न आज जीए,न कल मेरे|
बिखर गया हर एक मोती
जिंदगी अब बोझ लगती है
क्यों न यह हो जाती छोटी |
अरमान किसी के थे की ,हम उनका नाम रोशन करें
पर अँधेरे हमारे साथी बने
काश वे उजालों को भी बुला लेते
अगर ऐसा होता तो ये ,कुदरत की अदभुत कारीगरी होती |
सुना है ,जी कर भी मरना आता है लोगों को
ओर मर कर भी,जीते हैं लोग
पर "पवन पागल"हम तो बीच भंवर में ही रहगये
न आज जीए,न कल मेरे|
रविवार, 21 नवंबर 2010
(५०) फ़िल्मी कविता
ओ बसंती पवन पागल ,अगर मुझ से मोहब्बत है,
मैं तो कब से खड़ी,पर आपकी नजरों ने ना समझा प्यार के काबिल|
आवारा ऐ मेरे दिल,बचपन की मोहब्बत को दिल से जुदा ना करना,
बोल री कटपुतली गोरी ,भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना|
चाँद फिर निकला,छोड़ दे सारी दुनिया,
दिल अपना ओर प्रीत पराई, छोटी सी ये दुनिया|
दिल जो ना कह सका,दुनिया करे सवाल,
दुनियां में हम आंयें हैं तो,इक बेवफा से प्यार हो जाये|
घर आया मेरा परदेशी,गुडिया हमसे रूठी रहोगी कब तक,
है इसी में प्यार की आरज़ू,गुजरा ज़माना वापस नहीं आता |
हमें काश तुमसे मोहब्बत न होती,जीना हम को रास न आया,
जीया बेक़रार है,कभी ख़ुशी कभी गम |
कोई हम-दम न रहा,लाख छुपाओ छुप न सकेगा,
लो आगई उनकी याद,लग जा गले से दिल हंसी रात हो ना हो|
वो भूली दांस्ता याद आगई,मेरा मन डोले मेरा तन डोले,
मैं इक सदी से बैठी हूँ ,मैं तो तुम संग नैन लड़ा के हार गई |
मेरा दिल ये पुकारे आजा,मेरे अश्कों का गम न कर,
मेरे जीवन साथी, मोहब्बत की झूंटी कहानी पे रोये |
मुझे ऐसा मिला मोती,न छेड़ो कल के अफसाने,
नगरी-नगरी धुंडू रे सांवरिया,नैना बरसे रिम-झिम रिम-झिम |
निंदिया से जागी बहार, उनको ये शिकायत है,
पिया ऐसो जीया में समाय गयो,प्यार किया तो डरना क्या|
रात ओर दिन दिया जले,राजा की आएगी बरात ,
रसिक बलमा काहे दिल ,दिल उठ गया है जंहा से|
"पवन पागल"आप के दिल ने कई बार पुकारा मुझ को,
फिर न कीजिये गिला ,मेरी गुस्ताख निगाही को |
मैं तो कब से खड़ी,पर आपकी नजरों ने ना समझा प्यार के काबिल|
आवारा ऐ मेरे दिल,बचपन की मोहब्बत को दिल से जुदा ना करना,
बोल री कटपुतली गोरी ,भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना|
चाँद फिर निकला,छोड़ दे सारी दुनिया,
दिल अपना ओर प्रीत पराई, छोटी सी ये दुनिया|
दिल जो ना कह सका,दुनिया करे सवाल,
दुनियां में हम आंयें हैं तो,इक बेवफा से प्यार हो जाये|
घर आया मेरा परदेशी,गुडिया हमसे रूठी रहोगी कब तक,
है इसी में प्यार की आरज़ू,गुजरा ज़माना वापस नहीं आता |
हमें काश तुमसे मोहब्बत न होती,जीना हम को रास न आया,
जीया बेक़रार है,कभी ख़ुशी कभी गम |
कोई हम-दम न रहा,लाख छुपाओ छुप न सकेगा,
लो आगई उनकी याद,लग जा गले से दिल हंसी रात हो ना हो|
वो भूली दांस्ता याद आगई,मेरा मन डोले मेरा तन डोले,
मैं इक सदी से बैठी हूँ ,मैं तो तुम संग नैन लड़ा के हार गई |
मेरा दिल ये पुकारे आजा,मेरे अश्कों का गम न कर,
मेरे जीवन साथी, मोहब्बत की झूंटी कहानी पे रोये |
मुझे ऐसा मिला मोती,न छेड़ो कल के अफसाने,
नगरी-नगरी धुंडू रे सांवरिया,नैना बरसे रिम-झिम रिम-झिम |
निंदिया से जागी बहार, उनको ये शिकायत है,
पिया ऐसो जीया में समाय गयो,प्यार किया तो डरना क्या|
रात ओर दिन दिया जले,राजा की आएगी बरात ,
रसिक बलमा काहे दिल ,दिल उठ गया है जंहा से|
"पवन पागल"आप के दिल ने कई बार पुकारा मुझ को,
फिर न कीजिये गिला ,मेरी गुस्ताख निगाही को |
(49) अधूरी प्यास
उसका ही रंग काला है,यक़ीनन वो गोपाला ही होगा
मेरा कृष्णा बिना राधा के,अधूरा ही होगा |
उसमें इतना खो जांयें ,की शायद कान्हा मिल जाये
बिना राधा-कृष्ण के,जिंदगी में अँधेरा ही होगा |
उस प्यास का क्या ज़िक्र, जो वृन्दावन में भी ना भुझी
शायद द्वारका में,वो हमारा इंतजार कर रहा होगा |
जिंदगी में सांसे इतनी तेजी से आती-जातीं रहतीं हैं
इन को रोक कर देखो,पास ही में कृष्णा मिल जायेगा |
उसकी तस्वीर को देखने पर,शुकून मिलता है
मन की आँखें बंद करलें,अपने अन्दर ही मिल जायेगा |
पहले हम उनसे मिलने के ,काबिल तो बन जाएँ
तन-मन पर लगे मैल को हटालें,यक़ीनन वो ज़रूर मिल जायेगा |
तेरे कांधे पर सर रख के,रोने को जी चाहता है
तू होसला देदे,कहीं ना कंहीं तो ढूंढे मिल जायेगा |
"पवन पागल" को इतनी तसल्ली देदे राधे-राधे
की तू मेरी हर सांसों में,सदा के लिए मिल जायेगा |
मेरा कृष्णा बिना राधा के,अधूरा ही होगा |
उसमें इतना खो जांयें ,की शायद कान्हा मिल जाये
बिना राधा-कृष्ण के,जिंदगी में अँधेरा ही होगा |
उस प्यास का क्या ज़िक्र, जो वृन्दावन में भी ना भुझी
शायद द्वारका में,वो हमारा इंतजार कर रहा होगा |
जिंदगी में सांसे इतनी तेजी से आती-जातीं रहतीं हैं
इन को रोक कर देखो,पास ही में कृष्णा मिल जायेगा |
उसकी तस्वीर को देखने पर,शुकून मिलता है
मन की आँखें बंद करलें,अपने अन्दर ही मिल जायेगा |
पहले हम उनसे मिलने के ,काबिल तो बन जाएँ
तन-मन पर लगे मैल को हटालें,यक़ीनन वो ज़रूर मिल जायेगा |
तेरे कांधे पर सर रख के,रोने को जी चाहता है
तू होसला देदे,कहीं ना कंहीं तो ढूंढे मिल जायेगा |
"पवन पागल" को इतनी तसल्ली देदे राधे-राधे
की तू मेरी हर सांसों में,सदा के लिए मिल जायेगा |
शनिवार, 20 नवंबर 2010
(48) खुदा जाने
जो कल होगा,खुदा जाने
जो कल हो गया,उसकी हम जानें
अभी जो हो रहा है,उससे हम हैं अनजान
इस पल में जी लो,आगे की खुदा जाने |
क्यों बेवजह फ़िक्र करते हो दीवाने
अक्सर यूँ ही जलते रहतें हैं,परवाने
अपने आप को मन से पहचानें
उसको पकडे रहो,बाकी की राम जाने |
क्यों छेड़ते हो कल के अफसाने ?
आज की बात के, बहुत हैं मायने
जो छूटगएँ हैं,मयखानें में पैमाने
उन्हें वहीँ छोड़ होजाओ रब के दीवाने |
इश्क में चोट लगती है,जाने-अनजाने
शमा जलती रहे,झुलस जायेंगे परवानें
मुस्तेद रहो,कामयाबी के परचम फहराने
सिल-सिला ख़तम न हो,आगे की अल्लाह जाने |
याद रहे,हम यंहां आयें हैं,मरनें
बचा सकते हो तो,बचालो डूबते शफ़िने
अनमोल जिंदगी में"पवन पागल" जड़ दो नगीनें
वक़्त की कमी है,कल क्या होगा,खुदा जाने |
जो कल हो गया,उसकी हम जानें
अभी जो हो रहा है,उससे हम हैं अनजान
इस पल में जी लो,आगे की खुदा जाने |
क्यों बेवजह फ़िक्र करते हो दीवाने
अक्सर यूँ ही जलते रहतें हैं,परवाने
अपने आप को मन से पहचानें
उसको पकडे रहो,बाकी की राम जाने |
क्यों छेड़ते हो कल के अफसाने ?
आज की बात के, बहुत हैं मायने
जो छूटगएँ हैं,मयखानें में पैमाने
उन्हें वहीँ छोड़ होजाओ रब के दीवाने |
इश्क में चोट लगती है,जाने-अनजाने
शमा जलती रहे,झुलस जायेंगे परवानें
मुस्तेद रहो,कामयाबी के परचम फहराने
सिल-सिला ख़तम न हो,आगे की अल्लाह जाने |
याद रहे,हम यंहां आयें हैं,मरनें
बचा सकते हो तो,बचालो डूबते शफ़िने
अनमोल जिंदगी में"पवन पागल" जड़ दो नगीनें
वक़्त की कमी है,कल क्या होगा,खुदा जाने |
(४७) तोबा
जाने अनजाने तुम जो भी करो
पर शराब से तोबा करो
नुकसान इसके बहुत हैं,तुम हो अनजानें
तुम इसे नहीं पीते,ये तुम्हे पीती है|
शराब का नशा,थोड़ी देर के लिए
तेरी आँख का नशा,उम्र भर के लिए
कुछ वक़्त उसकी आँख से,आँख मिलालो
मदहोश हो जाओगे,जिंदगी भर के लिए|
जो मिले उसका साथ,जिंदगी संवर जाएगी
पहले जो रोकर या रुलाकर कटती थी
वो अब हंसी-ख़ुशी कट जाएगी
वरना नैया बीच भंवर में ही ,फंस जाएगी|
किसी के कहने से कोई नहीं छोड़ता है
तुम खुद ही इसे छोड़ सकते हो
वो तुम्हारी नोकर है,तुम उसके नोकर नहीं
उससे नाता जोड़ो,जिसे कोई तोड़ सकता नहीं |
रात-दिन काम में मशगूल रहो
पीने के सभी बहानों को ठोकर मारो
ऊपर वाले को देख कर ,रोते रहो
शाम को अपनी सूरत,आईने में देखते रहो |
छोड़ो सभी दर्द के बहाने
अपने दर्द को दूसरों के दर्द में मिला दो
तुम्हें मिल जायेंगे,जिंदगी के सही मायने
इस लडखडाती जिंदगी को,नई रफ़्तार दो |
जो घर की ओरतें भीं ,पीने लग जांयें
क्या तुम बर्दाश्त करोगे ?
बर्दाश्त करना तो दूर
दूसरे ही दिन तोबा करोगे |
आप ओर पूरा परिवार सुख से रहोगे
दुनिया के लिए कुछ कर पाओगे
"पवन पागल"की लेखनी को, धन्य कर जाओगे
जो शराब को अपने से,दूर भगाओ गे |
पर शराब से तोबा करो
नुकसान इसके बहुत हैं,तुम हो अनजानें
तुम इसे नहीं पीते,ये तुम्हे पीती है|
शराब का नशा,थोड़ी देर के लिए
तेरी आँख का नशा,उम्र भर के लिए
कुछ वक़्त उसकी आँख से,आँख मिलालो
मदहोश हो जाओगे,जिंदगी भर के लिए|
जो मिले उसका साथ,जिंदगी संवर जाएगी
पहले जो रोकर या रुलाकर कटती थी
वो अब हंसी-ख़ुशी कट जाएगी
वरना नैया बीच भंवर में ही ,फंस जाएगी|
किसी के कहने से कोई नहीं छोड़ता है
तुम खुद ही इसे छोड़ सकते हो
वो तुम्हारी नोकर है,तुम उसके नोकर नहीं
उससे नाता जोड़ो,जिसे कोई तोड़ सकता नहीं |
रात-दिन काम में मशगूल रहो
पीने के सभी बहानों को ठोकर मारो
ऊपर वाले को देख कर ,रोते रहो
शाम को अपनी सूरत,आईने में देखते रहो |
छोड़ो सभी दर्द के बहाने
अपने दर्द को दूसरों के दर्द में मिला दो
तुम्हें मिल जायेंगे,जिंदगी के सही मायने
इस लडखडाती जिंदगी को,नई रफ़्तार दो |
जो घर की ओरतें भीं ,पीने लग जांयें
क्या तुम बर्दाश्त करोगे ?
बर्दाश्त करना तो दूर
दूसरे ही दिन तोबा करोगे |
आप ओर पूरा परिवार सुख से रहोगे
दुनिया के लिए कुछ कर पाओगे
"पवन पागल"की लेखनी को, धन्य कर जाओगे
जो शराब को अपने से,दूर भगाओ गे |
मंगलवार, 16 नवंबर 2010
(४६) तेरा शुक्रिया
तू सवाल करे ओर मैं जवाब ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
दरिया में नदी मिले ओर मैं मिलने ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तेरी हर तम्मना को मैं पूरा ना करूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
रोज नित्य तेरी पूजा ना करूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तेरे अच्छे उपदेशों की में तारीफ ना करूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
तेरा पसीना बहे ओर में कुछ भी ना करूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तू अकेले सफ़र में जाये ओर तेरे साथ ना चलूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
तू दिल से पुकारे ओर मैं सुन ना पाऊँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तू मुझे संवारता रहे ओर मैं तुझे संवर ने ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
तू आगे-आगे चले ओर मैं क़दमों को रफ़्तार ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तेरी ख़ुशी के लिए मैं अपना सब कुछ गवां ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
"पवन पागल"तेरी ख़ुशी के लिए मैं अपने लब खोलूं
ऐसा मुमकिन तो नहीं |
ऐसा मुमकिन तो नहीं
दरिया में नदी मिले ओर मैं मिलने ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तेरी हर तम्मना को मैं पूरा ना करूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
रोज नित्य तेरी पूजा ना करूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तेरे अच्छे उपदेशों की में तारीफ ना करूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
तेरा पसीना बहे ओर में कुछ भी ना करूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तू अकेले सफ़र में जाये ओर तेरे साथ ना चलूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
तू दिल से पुकारे ओर मैं सुन ना पाऊँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तू मुझे संवारता रहे ओर मैं तुझे संवर ने ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
तू आगे-आगे चले ओर मैं क़दमों को रफ़्तार ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं|
तेरी ख़ुशी के लिए मैं अपना सब कुछ गवां ना दूँ
ऐसा मुमकिन तो नहीं
"पवन पागल"तेरी ख़ुशी के लिए मैं अपने लब खोलूं
ऐसा मुमकिन तो नहीं |
(४५) फ़िक्र
जिंदगी बहुत छोटी सी होती है
बिना काम के बहुत लम्बी होती है
जो कट जाये तो ठीक
वरना रो-रो कर कटती है|
कुछ तो हमारी भी गल्तीयाँ रहीं होंगी
थोड़ी उसकी की भी मेहरबानीयां रहीं होंगी
दोनों ने मिल कर क्या किया ठीक ?
एक अछे-खासे इन्सान को पंगु बना दिया |
हमसफ़र अच्छा हो तो
ऐसी जिंदगी भी सहज कट जाती है
जो ओलाद हो ठीक
तो जीवन सफल हो जाता है |
अपनी चाहे जैसी भी गुज़रे
ओलादों के सुख की फ़िक्र होती है
उनकी बेहतर कट जाये तो ठीक
वरना सीनें में घुटन सी होती है |
किसी को बेटों का गम सताता है
किसी पर बेटियां भारी पड़ जातीं हैं
जो बहुएं मिलें ठीक
तो सब की राज़ी-ख़ुशी कट जाती है|
क्यों फ़िक्र करते हो "पवन पागल"
हर गम को धुंए में उड़ा कर जीओ
ऊपर वाले को कस कर पकडे रहो
ऐसी एक क्या हज़ार जिंदगियां कट जाएँगी |
बिना काम के बहुत लम्बी होती है
जो कट जाये तो ठीक
वरना रो-रो कर कटती है|
कुछ तो हमारी भी गल्तीयाँ रहीं होंगी
थोड़ी उसकी की भी मेहरबानीयां रहीं होंगी
दोनों ने मिल कर क्या किया ठीक ?
एक अछे-खासे इन्सान को पंगु बना दिया |
हमसफ़र अच्छा हो तो
ऐसी जिंदगी भी सहज कट जाती है
जो ओलाद हो ठीक
तो जीवन सफल हो जाता है |
अपनी चाहे जैसी भी गुज़रे
ओलादों के सुख की फ़िक्र होती है
उनकी बेहतर कट जाये तो ठीक
वरना सीनें में घुटन सी होती है |
किसी को बेटों का गम सताता है
किसी पर बेटियां भारी पड़ जातीं हैं
जो बहुएं मिलें ठीक
तो सब की राज़ी-ख़ुशी कट जाती है|
क्यों फ़िक्र करते हो "पवन पागल"
हर गम को धुंए में उड़ा कर जीओ
ऊपर वाले को कस कर पकडे रहो
ऐसी एक क्या हज़ार जिंदगियां कट जाएँगी |
सोमवार, 15 नवंबर 2010
(४४)) कटी-पतंग
तुम उड़ती हो हवा में,उस लम्बी पतंग की तरह
तुम बहुत दूर उड़ जाना चाहती हो
चाहे जो कुछ भी हो जाये
तुम अपनी मंजिल को,जल्दी पाना चाहती हो|
पर हाय रे किस्मत
तुम्हारी डोर उस शक्श ने थाम राखी है
जो ढील में पतंग उड़ाना
पसंद नहीं करता|
उसे तो खीँच कर
पतंग लड़ाने में ही, मज़ा आता है
तुम्हे तो दिन के उजाले में भी
रात का अँधेरा नजर आता है|
पर वो शक्श ,
रात-दिन कदम फूंक-फूंक कर चलता है
तुम्हे तो चंद रुपये भी
हाथ का मैल लगते हैं|
पर उस शक्श को
चंद रुपयों की खातिर
हाथ पर लगा मैल
भी मंज़ूर है|
जो जितनी तेजी से,उडान भरतें हैं,
वो उतनीही तेजी से नीचे भी गिरतें हैं,
उड़ो धीरे-धीरे, पंखों को फैला कर,
उन्हें फड-फडाओ -मंजिल ओर रफ़्तार दोनों मिल जायेंगीं |
"पवन पागल"पतंगबाज़ी में,
अच्छा पतंगबाज़,डोर ओर अच्छी पतंग होना ज़रूरी है,
जो बिना सोचे-समझे, उड़ते-उड़ाते हैं
वो धडाम से जमी पर गिरतें हैं|
तुम बहुत दूर उड़ जाना चाहती हो
चाहे जो कुछ भी हो जाये
तुम अपनी मंजिल को,जल्दी पाना चाहती हो|
पर हाय रे किस्मत
तुम्हारी डोर उस शक्श ने थाम राखी है
जो ढील में पतंग उड़ाना
पसंद नहीं करता|
उसे तो खीँच कर
पतंग लड़ाने में ही, मज़ा आता है
तुम्हे तो दिन के उजाले में भी
रात का अँधेरा नजर आता है|
पर वो शक्श ,
रात-दिन कदम फूंक-फूंक कर चलता है
तुम्हे तो चंद रुपये भी
हाथ का मैल लगते हैं|
पर उस शक्श को
चंद रुपयों की खातिर
हाथ पर लगा मैल
भी मंज़ूर है|
जो जितनी तेजी से,उडान भरतें हैं,
वो उतनीही तेजी से नीचे भी गिरतें हैं,
उड़ो धीरे-धीरे, पंखों को फैला कर,
उन्हें फड-फडाओ -मंजिल ओर रफ़्तार दोनों मिल जायेंगीं |
"पवन पागल"पतंगबाज़ी में,
अच्छा पतंगबाज़,डोर ओर अच्छी पतंग होना ज़रूरी है,
जो बिना सोचे-समझे, उड़ते-उड़ाते हैं
वो धडाम से जमी पर गिरतें हैं|
(४३) ऐसा क्यों?
जो बारिश आये, ओर में ना भीगूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो तूफ़ान आये,ओर में ना डूबूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो बैशाखी के सहारे चलूँ, ओर ना गिरुं
ऐसा हो नहीं सकता|
जो उसूलों में रह कर, ठोकर ना खाऊँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो तरक्की को, अपनी गिरफ्त में कर लूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो कामयाबी मिले,ओर में उसे पकड़ लूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो लोग जी भर के लूटें, ओर में ना लूटूं
ऐसा हो नहीं सकता|
जो सच बात कहे बैगेर, में ना रुकूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो लोग मुझे तोडना चाहें, ओर में ना टूटूं
ऐसा हो नहीं सकता|
जो जिंदगी में बहार आये,ओर उसका में मज़ा लूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो ऐसी जिंदगी जीउँ, ओर सच्चा हमसफ़र भी साथ ना रखूं
ऐसा हो नहीं सकता|
जो" पवनपागल"उसकी मेहरबानियाँ रहें,ओर में ज़िन्दा न रहूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
ऐसा हो नहीं सकता|
जो तूफ़ान आये,ओर में ना डूबूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो बैशाखी के सहारे चलूँ, ओर ना गिरुं
ऐसा हो नहीं सकता|
जो उसूलों में रह कर, ठोकर ना खाऊँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो तरक्की को, अपनी गिरफ्त में कर लूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो कामयाबी मिले,ओर में उसे पकड़ लूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो लोग जी भर के लूटें, ओर में ना लूटूं
ऐसा हो नहीं सकता|
जो सच बात कहे बैगेर, में ना रुकूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो लोग मुझे तोडना चाहें, ओर में ना टूटूं
ऐसा हो नहीं सकता|
जो जिंदगी में बहार आये,ओर उसका में मज़ा लूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
जो ऐसी जिंदगी जीउँ, ओर सच्चा हमसफ़र भी साथ ना रखूं
ऐसा हो नहीं सकता|
जो" पवनपागल"उसकी मेहरबानियाँ रहें,ओर में ज़िन्दा न रहूँ
ऐसा हो नहीं सकता|
(४२) हकीकत
हज़ार बातें ओर उनका गम
जिंदगी के साथ चलती हैं
मोती बनी-जो सीप में गिरी शबनम
वैसे तो बरसात होती ही रहती है |
उम्र काटे नहीं कटती
बैगेर किसी काम के
किससे कहें क्यों नहीं कटती?
कटती है सिर्फ उसकी मदद से?
अब कुछ याद नहीं,कल क्या हुआ था?
मैं जाग रहा था,सारा आलम सोया था
मैं जिंदगी के हिसाब-किताब में उलझ गया था
कहीं आग लगी थी ,उसे भुजाने गया था|
जो तोड़-मरोड़ कर बातें करतें हैं
उसमें कुछ ही सच्चाई होती है
जो मुंह पर साफ बक देतें हैं
उसमें सच्चाई ही सच्चाई होती है|
जिसने कभी दुनिया को कुछ दिया ही नहीं
अपने लिए भी कभी कुछ खर्च किया ही नहीं
"पवन पागल"वो क्या ख़ाक मिशाल कायम करेंगे
जिंदगी भर घुट-घुट के अपने ही घर में मरेंगे|
जिंदगी के साथ चलती हैं
मोती बनी-जो सीप में गिरी शबनम
वैसे तो बरसात होती ही रहती है |
उम्र काटे नहीं कटती
बैगेर किसी काम के
किससे कहें क्यों नहीं कटती?
कटती है सिर्फ उसकी मदद से?
अब कुछ याद नहीं,कल क्या हुआ था?
मैं जाग रहा था,सारा आलम सोया था
मैं जिंदगी के हिसाब-किताब में उलझ गया था
कहीं आग लगी थी ,उसे भुजाने गया था|
जो तोड़-मरोड़ कर बातें करतें हैं
उसमें कुछ ही सच्चाई होती है
जो मुंह पर साफ बक देतें हैं
उसमें सच्चाई ही सच्चाई होती है|
जिसने कभी दुनिया को कुछ दिया ही नहीं
अपने लिए भी कभी कुछ खर्च किया ही नहीं
"पवन पागल"वो क्या ख़ाक मिशाल कायम करेंगे
जिंदगी भर घुट-घुट के अपने ही घर में मरेंगे|
शनिवार, 13 नवंबर 2010
(४१) शिवमय
जो टूट गया,वो भिखर गया,
जो मन से हारा,वो मर गया|
जो नेकी के लिए मिट गया,वो अमर होगया,
जो दिल के लिए मिटा,वो दिलदार होगया|
जो मोह-माया से दूर होगया,वो जग में तर गया,
जो लोभ-लालच में फंस गया,वो नर्क में गया|
जो सपनों में रहगया,वो कंही खोगया,
जो हकीकत में जी गया,वो कामयाब होगया|
जो प्यार में गया,वो बेकार होगया,
जो प्यार को पागया,वो निहाल होगया |
जो किसी की बैशाखी बन गया,वो चल गया,
जो सारथी बन गया, वो धन्य होगया|
जो धूप में नहाया,वो सफल होगया,
जो मोज-मस्ती में रह गया,वो असफल होगया|
जो "पवन पागल" 'गम' पी गया,वो जी गया,
जो सारे ज़हरों को पी गया,वो "शिवमय" होगया|
जो मन से हारा,वो मर गया|
जो नेकी के लिए मिट गया,वो अमर होगया,
जो दिल के लिए मिटा,वो दिलदार होगया|
जो मोह-माया से दूर होगया,वो जग में तर गया,
जो लोभ-लालच में फंस गया,वो नर्क में गया|
जो सपनों में रहगया,वो कंही खोगया,
जो हकीकत में जी गया,वो कामयाब होगया|
जो प्यार में गया,वो बेकार होगया,
जो प्यार को पागया,वो निहाल होगया |
जो किसी की बैशाखी बन गया,वो चल गया,
जो सारथी बन गया, वो धन्य होगया|
जो धूप में नहाया,वो सफल होगया,
जो मोज-मस्ती में रह गया,वो असफल होगया|
जो "पवन पागल" 'गम' पी गया,वो जी गया,
जो सारे ज़हरों को पी गया,वो "शिवमय" होगया|
(४०) झिल-मिल हिदायतें
सदा मुस्कराईये,रूठे हुओं को मनाईये
हाथ आगे बढाईये ,कभी मेरे घर भी आईये
वादा तो निभाईये ,करीब से मत जाईये
बात आगे बढाईये ,कभी तो साथ निभाईये |
सफ़र में साथ चलिये,काँटों को भी अपनाईये
पैरों को तकलीफ दीजिये ,कभी तो जिंदगी का मज़ा लीजिये
फूलों सा महकिये,अच्छाइयों की खुशबु सदा फैलाइये
बुरों को सुधारिये,बुराईयों से दामन बचाइये |
आनें-जानें वाली सांसों पर नजर रखिये
अपने को मोंत से मीलों दूर भगाईये
होसके तो किसी न किसी के होजाईये
गुजरती जिंदगी को करीब से देख लीजीये |
लम्बे सफ़र में,दूर तक साथ जाईये
जो अच्छा लगे,उसे जीवन में अपनाईये
बेवजह किसी को भी मत सताईये
भूल से किसी को सता कर ज़रूर पछताईये |
गल्तीयां कीजिये,पर दुबारा मत कीजिये
अपनी गलतियों की सजा,दूसरों को मत दीजिये
दिल में बुराइयों को जगह मत दीजिये
"पवन पागल"खुल कर सभी को ,गले लगाइये |
हाथ आगे बढाईये ,कभी मेरे घर भी आईये
वादा तो निभाईये ,करीब से मत जाईये
बात आगे बढाईये ,कभी तो साथ निभाईये |
सफ़र में साथ चलिये,काँटों को भी अपनाईये
पैरों को तकलीफ दीजिये ,कभी तो जिंदगी का मज़ा लीजिये
फूलों सा महकिये,अच्छाइयों की खुशबु सदा फैलाइये
बुरों को सुधारिये,बुराईयों से दामन बचाइये |
आनें-जानें वाली सांसों पर नजर रखिये
अपने को मोंत से मीलों दूर भगाईये
होसके तो किसी न किसी के होजाईये
गुजरती जिंदगी को करीब से देख लीजीये |
लम्बे सफ़र में,दूर तक साथ जाईये
जो अच्छा लगे,उसे जीवन में अपनाईये
बेवजह किसी को भी मत सताईये
भूल से किसी को सता कर ज़रूर पछताईये |
गल्तीयां कीजिये,पर दुबारा मत कीजिये
अपनी गलतियों की सजा,दूसरों को मत दीजिये
दिल में बुराइयों को जगह मत दीजिये
"पवन पागल"खुल कर सभी को ,गले लगाइये |
(३९) सावन में लग गयी आग
पांव तो मेरे,ज़मीं पर ही थे,
ओर ज़मीं पर ही रहेते हैं,
फिर एक दिन न जाने कैसे ?
मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गयी |
अरमान तो मेरे,दिल में ही रहेते थे,
ओर दिल में ही रहेते हैं,
अचानक न जाने कैसे ?
अरमानों की नदिया सी बह्गयी|
जीवन की पतंग को ,ठीक ही उड़ा रहे थे,
ओर डोर को काबू में ही रखतें हैं,
यकायक न जाने कैसे ?
पतंग कट गयी,डोर हाथ में ही रह गयी
ख़याल तो मेरे, ठीक ही थे,
ओर नेक ही रखतें हैं,
वक़्त के हाथों न जाने कैसे ?
अरमानों की होली ही जल गयी |
सभी से रिश्ते,बहुत अछे थे,
ओर अछे ही रहतें हैं,
एक चिंगारी न जाने भड़की कैसे ?
रिश्ते ही नहीं,रिश्तेदारों को भी जला गयी|
वो मेरा नसीब,ओर मेरे फैसले ही थे,
जिन पर अब भी यकीन रखतें हैं,
फिर न जाने,"पवन पागल"गल्ती होगई कैसे ?
दरिया देखता रहा,उसमें नदियाँ मिलने से रह्गयीं |
ओर ज़मीं पर ही रहेते हैं,
फिर एक दिन न जाने कैसे ?
मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गयी |
अरमान तो मेरे,दिल में ही रहेते थे,
ओर दिल में ही रहेते हैं,
अचानक न जाने कैसे ?
अरमानों की नदिया सी बह्गयी|
जीवन की पतंग को ,ठीक ही उड़ा रहे थे,
ओर डोर को काबू में ही रखतें हैं,
यकायक न जाने कैसे ?
पतंग कट गयी,डोर हाथ में ही रह गयी
ख़याल तो मेरे, ठीक ही थे,
ओर नेक ही रखतें हैं,
वक़्त के हाथों न जाने कैसे ?
अरमानों की होली ही जल गयी |
सभी से रिश्ते,बहुत अछे थे,
ओर अछे ही रहतें हैं,
एक चिंगारी न जाने भड़की कैसे ?
रिश्ते ही नहीं,रिश्तेदारों को भी जला गयी|
वो मेरा नसीब,ओर मेरे फैसले ही थे,
जिन पर अब भी यकीन रखतें हैं,
फिर न जाने,"पवन पागल"गल्ती होगई कैसे ?
दरिया देखता रहा,उसमें नदियाँ मिलने से रह्गयीं |
(३८) खामोश उलझन
रातें गुजार दीं हैं, तारों की रोशनी में,
अफ़साने सुन चूका हूँ,अपनी ही ख़ामोशी में,
कब तक रहेगी,यह रोशनी जिंदगी में ?
जो कुछ बची है,गुजर जाएगी तेरी याद में |
हम जाने वाले थे,कि वो आगये,
आग भुजाना तो दूर,ओर लगा गये,
जिंदगी गुजार दी है,जख्मों कि कर्हाहट में,
अब तो काम आने लगें हैं 'घाव, आग भुजाने में |
पर ये वो आग है , जो भुजाये न भुझे,
धीरे-धीरे सुलगे है,ओर जोर-जोर से न भुजे,
कब तक रहेगी ,ये आग जिंदगी में ?
काश बारिश हो, हम साथ भिगलें वादी में|
नहीं दिखाई देती,किसी को हमारी ये हालत,
दिन के उजाले में ,
चाँद पे लगे दाग को देखा जाता है,
काले दर्पण में |
काले बनो',
जलो अपनी ही आग में,
रात का इंतजार करो "पवन पागल",
फिर देखो,तारों कि रोशनी में |
अफ़साने सुन चूका हूँ,अपनी ही ख़ामोशी में,
कब तक रहेगी,यह रोशनी जिंदगी में ?
जो कुछ बची है,गुजर जाएगी तेरी याद में |
हम जाने वाले थे,कि वो आगये,
आग भुजाना तो दूर,ओर लगा गये,
जिंदगी गुजार दी है,जख्मों कि कर्हाहट में,
अब तो काम आने लगें हैं 'घाव, आग भुजाने में |
पर ये वो आग है , जो भुजाये न भुझे,
धीरे-धीरे सुलगे है,ओर जोर-जोर से न भुजे,
कब तक रहेगी ,ये आग जिंदगी में ?
काश बारिश हो, हम साथ भिगलें वादी में|
नहीं दिखाई देती,किसी को हमारी ये हालत,
दिन के उजाले में ,
चाँद पे लगे दाग को देखा जाता है,
काले दर्पण में |
काले बनो',
जलो अपनी ही आग में,
रात का इंतजार करो "पवन पागल",
फिर देखो,तारों कि रोशनी में |
(३७) अंजान सफ़र
कंहा जारहा है ?
तू ऐ जाने वाले,
जाने से पहले तुझे सोचना होगा,
कहाँ जायेगा तू ऐ जाने वाले ?
मंजिल तक पहुँचने वाले,
काँटों भरी डगर पर चलना होगा,
तेरे साथ कोई नहीं हैं जाने वाले,
मंजिल तक तुझे पहुंचना होगा |
गम को साथ लिए,
तू हँसता हुआ जा,
ऐसी मंजिल पे पहुँच,
जहाँ हों तेरे चाहने वाले?
क्या जायेगा तेरे संग अपने ?
ये ठाट-बाट ? यहीं पड़ा रह जायेगा,
'सिक्कंदर भी खली हाथ गया था,
बस जायेगा तेरे साथ,तेरा कर्म ओ जानेवाले |
पथ के काँटों को तू,
मुस्कराता हुआ चुनता जा,
"पवन पागल" ये कांटे फूल होंगे,
मंजिल को पाने वाले |
तू ऐ जाने वाले,
जाने से पहले तुझे सोचना होगा,
कहाँ जायेगा तू ऐ जाने वाले ?
मंजिल तक पहुँचने वाले,
काँटों भरी डगर पर चलना होगा,
तेरे साथ कोई नहीं हैं जाने वाले,
मंजिल तक तुझे पहुंचना होगा |
गम को साथ लिए,
तू हँसता हुआ जा,
ऐसी मंजिल पे पहुँच,
जहाँ हों तेरे चाहने वाले?
क्या जायेगा तेरे संग अपने ?
ये ठाट-बाट ? यहीं पड़ा रह जायेगा,
'सिक्कंदर भी खली हाथ गया था,
बस जायेगा तेरे साथ,तेरा कर्म ओ जानेवाले |
पथ के काँटों को तू,
मुस्कराता हुआ चुनता जा,
"पवन पागल" ये कांटे फूल होंगे,
मंजिल को पाने वाले |
(३६) ज़माना देख न ले
हँसो किसी पे ,तो अपने आस-पास देख कर हँसों,
कंही ऐसा न हो की ज़माना देख ले ,
तुम्हारी ये रुसवाई की हँसी|
मरो तो,तो अपने आस-पास देख कर मरो,
कंही ऐसा न हो की ज़माना देख ले,
तुम्हारे मरने की हँसी|
जिओ तो भी, अपने आस-पास देख कर जिओ,
कंही ऐसा न हो की ज़माना देख ले,
तुम्हारी ये थोथी जीवन की हँसी|
चलो तो अपने आस-पास देख कर चलो,
कंही ऐसा न हो की ज़माना देख ले,
तुम्हारी ये मतवाली चाल की हँसी|
किसी को दो, तो अपने आस-पास देख कर दो,
कंहीं ऐसा न हो की ज़माना देख ले,
तुम्हारे ये दान की हँसी|
"पवन पागल" हँसना है, तो अपने आप पर हँसो,
फिर चाहे ज़माना,देख भी ले,
तुम्हारी ये खिल-खिलाती हँसी|
कंही ऐसा न हो की ज़माना देख ले ,
तुम्हारी ये रुसवाई की हँसी|
मरो तो,तो अपने आस-पास देख कर मरो,
कंही ऐसा न हो की ज़माना देख ले,
तुम्हारे मरने की हँसी|
जिओ तो भी, अपने आस-पास देख कर जिओ,
कंही ऐसा न हो की ज़माना देख ले,
तुम्हारी ये थोथी जीवन की हँसी|
चलो तो अपने आस-पास देख कर चलो,
कंही ऐसा न हो की ज़माना देख ले,
तुम्हारी ये मतवाली चाल की हँसी|
किसी को दो, तो अपने आस-पास देख कर दो,
कंहीं ऐसा न हो की ज़माना देख ले,
तुम्हारे ये दान की हँसी|
"पवन पागल" हँसना है, तो अपने आप पर हँसो,
फिर चाहे ज़माना,देख भी ले,
तुम्हारी ये खिल-खिलाती हँसी|
(३५) धर्म के ठेकेदार
आजकल 'बाबाओं की बाढ़ सी आई हुई है,
कुछ तैर रहें हैं,कुछ की नैया भंवर में है ,
सच्चा कोंन है? इसकी समझ देर से आती है,
सबकुछ लुटाने के बाद,जब घर में फांके मारने की नोबत आती है|
जब भी इनका थोडा सा व्यापर बढ़ा,
ये अहंकारी होगये ,
जब भी इन्हें धन मिला,
इन्होंने उपदेश की भाषा सीख ली |
जब भी इनको सम्मान मिला,
ये पागल होगये,
ओर जब भी इनको अधिकार मिले,
इन्होने दुनिया को तबाह कर दिया|
जब भी इन्हें यश मिला,
इसी दुनिया पर वो हंसने लगे,
तमाम उम्र यूँ हीं ,हवाई घोड़े दोडाते रहे'
ओर अपनी समझ में ,बहुत बड़ा काम करते रहे|
हजारों की नैया डूबती है, इनके भरोसे पर,
मुझे धर्म की आड़ में,बड़ा व्यापार सा लगता है,
"पवन पागल" की समझ से,इन्होने 'अक्कल लगा कर,
'अपना बुढ़ापा सुधार' लिया है|
कुछ तैर रहें हैं,कुछ की नैया भंवर में है ,
सच्चा कोंन है? इसकी समझ देर से आती है,
सबकुछ लुटाने के बाद,जब घर में फांके मारने की नोबत आती है|
जब भी इनका थोडा सा व्यापर बढ़ा,
ये अहंकारी होगये ,
जब भी इन्हें धन मिला,
इन्होंने उपदेश की भाषा सीख ली |
जब भी इनको सम्मान मिला,
ये पागल होगये,
ओर जब भी इनको अधिकार मिले,
इन्होने दुनिया को तबाह कर दिया|
जब भी इन्हें यश मिला,
इसी दुनिया पर वो हंसने लगे,
तमाम उम्र यूँ हीं ,हवाई घोड़े दोडाते रहे'
ओर अपनी समझ में ,बहुत बड़ा काम करते रहे|
हजारों की नैया डूबती है, इनके भरोसे पर,
मुझे धर्म की आड़ में,बड़ा व्यापार सा लगता है,
"पवन पागल" की समझ से,इन्होने 'अक्कल लगा कर,
'अपना बुढ़ापा सुधार' लिया है|
(३४) मेरे सरकार
उनके लबों पर हंसी है,
आँखों में विलक्षण तेज है ,
मुख-मंडल पर दिव्य कांति है,
भाल पर अदभुत चमक है|
मोह-माया,अधिकार,यश,अदि,
सभी को बगल में रखतें हैं,
अपने ज्ञान व विद्वता से,
समस्त जग को सरोबर करते हैं|
हैं तो वो भी बड़े व्यापारी"पवन पागल",
पर व्यापार ओर अलबेली सरकार में,
फर्क रखते हैं,इसीलिए वे ,
'जगत-गुरुतम' की उपाधि से सुशोभित हैं|
* जगत-गुरुतम की सेवा में
आँखों में विलक्षण तेज है ,
मुख-मंडल पर दिव्य कांति है,
भाल पर अदभुत चमक है|
मोह-माया,अधिकार,यश,अदि,
सभी को बगल में रखतें हैं,
अपने ज्ञान व विद्वता से,
समस्त जग को सरोबर करते हैं|
हैं तो वो भी बड़े व्यापारी"पवन पागल",
पर व्यापार ओर अलबेली सरकार में,
फर्क रखते हैं,इसीलिए वे ,
'जगत-गुरुतम' की उपाधि से सुशोभित हैं|
* जगत-गुरुतम की सेवा में
बुधवार, 3 नवंबर 2010
(३३) दिवाली
सभी मनाते हैं दिवाली ,
कोई सोने से,कोई चांदी से,
दिलों को नजदीक लाती है दिवाली,
मज़हब की कोई बंदिश नहीं,सभी मिलतें हैं दिल से।
सूनें आँगन में रोशनी बन कर आती है दिवाली,
गरीब भी अमीर होजाता है,अपनी हैसियत से,
पूरे साल जो रहती दिवाली,
तो न दिल टूटते,न रात-दिन रहते झिल- मिल से,
सुना है की,पैसे वालों की होती है दिवाली,
पर गरीब भी अमीर होजाता है,दिल से,
जी भर के मनाता है दिवाली,
ये खुशियाँ उसे साल भर बचाती हैं,रिम-झिम से।
दिल वालों की होती है दिवाली,
वाह निकलती है गरीब से,वाह-वाह निकलती है अमीर से,
आह को "पवन पागल"दूर भगाती है दिवाली,
नई चाहत,नई ख़ुशी,नई उमंग लाती है दिवाली.
कोई सोने से,कोई चांदी से,
दिलों को नजदीक लाती है दिवाली,
मज़हब की कोई बंदिश नहीं,सभी मिलतें हैं दिल से।
सूनें आँगन में रोशनी बन कर आती है दिवाली,
गरीब भी अमीर होजाता है,अपनी हैसियत से,
पूरे साल जो रहती दिवाली,
तो न दिल टूटते,न रात-दिन रहते झिल- मिल से,
सुना है की,पैसे वालों की होती है दिवाली,
पर गरीब भी अमीर होजाता है,दिल से,
जी भर के मनाता है दिवाली,
ये खुशियाँ उसे साल भर बचाती हैं,रिम-झिम से।
दिल वालों की होती है दिवाली,
वाह निकलती है गरीब से,वाह-वाह निकलती है अमीर से,
आह को "पवन पागल"दूर भगाती है दिवाली,
नई चाहत,नई ख़ुशी,नई उमंग लाती है दिवाली.
शनिवार, 23 अक्टूबर 2010
(३२) उलझन
में तुम पर फ़िदा न होऊं ,तो फ़िदा होऊं किस पे ?
तुमने फिजां में इतने जो ,रंग बखेर दियें हैं,
में इनको बिखेरूं तो, बिखेरूं किस पे?
अदा इतरा जाये ,तो हो सितम किस पे ?
तुम्हारी अंगड़ाईयों ने,कितनों की कन्नियाँ काट दीं हैं ?
में उनको समेटूं तो, समेटूं किस पे ?
माँझा उलझ जाये , तो दोष किस पे ?
तुमने इतने जो पेच लड़ा दियें हैं,
में खींच कर न काटूं ,तो सितम किस पे ?
तुम पर नाराज़ न होंउ , तो होऊं किस पे ?
हर एक कटी पतंग पर, तुम्हारा नाम है,
आखिर में यकीं करूँ ,तो करूँ किस पे?
में तुम पर इल्ज़ाम न धरूँ, तो धरूं किस पे ?
तुम ने इतने बखेड़े खड़े कर दिये हैं
धुली चादर को बिछाऊ , तो बिछाऊ किस पे ?
में अगर ज़मीं पर न चलूँ,तो चलूँ किस पे?
तुमने हवाओं में इतनी रफ़्तार भर दी है
में इनको थामूं,चढ़ कर किस पे ?
"पवन पागल" रोऊँ , तो रोंउं किस पे ?
इन आँखों की ख़ामोशी,फिर भी नहीं जाती है,
में इन्हें बंद तो करलूं, पर खोलूं तो खोलूं किस पे ?
तुमने फिजां में इतने जो ,रंग बखेर दियें हैं,
में इनको बिखेरूं तो, बिखेरूं किस पे?
अदा इतरा जाये ,तो हो सितम किस पे ?
तुम्हारी अंगड़ाईयों ने,कितनों की कन्नियाँ काट दीं हैं ?
में उनको समेटूं तो, समेटूं किस पे ?
माँझा उलझ जाये , तो दोष किस पे ?
तुमने इतने जो पेच लड़ा दियें हैं,
में खींच कर न काटूं ,तो सितम किस पे ?
तुम पर नाराज़ न होंउ , तो होऊं किस पे ?
हर एक कटी पतंग पर, तुम्हारा नाम है,
आखिर में यकीं करूँ ,तो करूँ किस पे?
में तुम पर इल्ज़ाम न धरूँ, तो धरूं किस पे ?
तुम ने इतने बखेड़े खड़े कर दिये हैं
धुली चादर को बिछाऊ , तो बिछाऊ किस पे ?
में अगर ज़मीं पर न चलूँ,तो चलूँ किस पे?
तुमने हवाओं में इतनी रफ़्तार भर दी है
में इनको थामूं,चढ़ कर किस पे ?
"पवन पागल" रोऊँ , तो रोंउं किस पे ?
इन आँखों की ख़ामोशी,फिर भी नहीं जाती है,
में इन्हें बंद तो करलूं, पर खोलूं तो खोलूं किस पे ?
(३१) सूखे घरोंदे
दीवार क्या गिरी मेरे खस्ता मकान की ?
लोगों ने नजदीक ही रास्ते बना लिए|
में सूखी आँखों से ज़िन्दगी भर देखता रहा,
बस्ती वालों ने आलीशान मकान बना लिए|
क्या चर्चा करूँ ,मेरे अपनों के रिश्ते की ?
सच्चाई को नहीं परखा,दिलों में नासूर बनालिए|
में उनका जिंदगी भर, इंतजार करता रहा,
रिश्ते दारों ने रिश्ते , बेमानी बना लिए|
किसे तमन्ना है,जी भर के जीने की,
लोगों ने ज़रा सी बात के तमाशे बना लिए|
में अब भी आती-जाती बहार देख रहा हूँ,
चाहने वालों ने घरों में सूखे घरोंदे बना लिए|
ज़रूरत क्या है ,दूसरों के घरों में झाँकने की ?
पहेले खुद ,अपना घर तो सजा लीजिये ,
में बरसों से यह सब कुछ देखता रहा,
चंद लोगों ने मेरे ही घर में, झरोखे बना लिए|
बुरे वक़्त में ज़रूरत है, नजरिया बदल ने की,
जिन्होंने बदल लिए,वो सभी के होलिये,
"पवन पागल" नम आँखों से,उन्हें देखता रहा,
पर ये क्या उनहोंने,आँखों के नये चश्में बना लिए ?
लोगों ने नजदीक ही रास्ते बना लिए|
में सूखी आँखों से ज़िन्दगी भर देखता रहा,
बस्ती वालों ने आलीशान मकान बना लिए|
क्या चर्चा करूँ ,मेरे अपनों के रिश्ते की ?
सच्चाई को नहीं परखा,दिलों में नासूर बनालिए|
में उनका जिंदगी भर, इंतजार करता रहा,
रिश्ते दारों ने रिश्ते , बेमानी बना लिए|
किसे तमन्ना है,जी भर के जीने की,
लोगों ने ज़रा सी बात के तमाशे बना लिए|
में अब भी आती-जाती बहार देख रहा हूँ,
चाहने वालों ने घरों में सूखे घरोंदे बना लिए|
ज़रूरत क्या है ,दूसरों के घरों में झाँकने की ?
पहेले खुद ,अपना घर तो सजा लीजिये ,
में बरसों से यह सब कुछ देखता रहा,
चंद लोगों ने मेरे ही घर में, झरोखे बना लिए|
बुरे वक़्त में ज़रूरत है, नजरिया बदल ने की,
जिन्होंने बदल लिए,वो सभी के होलिये,
"पवन पागल" नम आँखों से,उन्हें देखता रहा,
पर ये क्या उनहोंने,आँखों के नये चश्में बना लिए ?
(३०) कर्म-कुशलता
कैसे भी हों,कर्म तो सभी करतें हैं,
ओर करना भी चाहिए,
बिना फल की कामना से करें,तो क्या कहना,
ओर 'कर्म में
'कर्म कुशलता ' का समावेश हो जाये तो'
वाह! क्या कहना ?
यक़ीनन आपके सभी कर्म,
शतप्रतिशत सफल होंगे |
ओर करना भी चाहिए,
बिना फल की कामना से करें,तो क्या कहना,
ओर 'कर्म में
'कर्म कुशलता ' का समावेश हो जाये तो'
वाह! क्या कहना ?
यक़ीनन आपके सभी कर्म,
शतप्रतिशत सफल होंगे |
(२९) नाकाम कर्म
हम लोग सपनों में ही,खयाली पुलाव बनाते हैं,
ओर सपनों को ,हकीकत में बदलने के लिए ,
हम लोग खूब बढ़-चढ़ कर बोलतें हैं,
इसीलिए हम असली कर्म करने में नाकाम रहतें हैं|
ओर सपनों को ,हकीकत में बदलने के लिए ,
हम लोग खूब बढ़-चढ़ कर बोलतें हैं,
इसीलिए हम असली कर्म करने में नाकाम रहतें हैं|
(२८) जातिंयाँ
कोई जात-पांत नहीं होती,
होती है तो सिर्फ हमारे मन की सोच|
'ब्राह्मणत्व ' तत्व वाले,
'शुद्रत्व' तत्व वालों की अच्छाई लेंलें ,
ओर
शुद्रतत्व वाले
ब्राह्मणत्व तत्व वालों की अच्छाई लेंलें ,
ओर
दोनों तत्व ऊँचे उठें ,ओर नीचे न गिरें,
तो फिर क्या जाती क्या पांती |
एक ही मां, ओर उसकी एक ही छाती,
फिर चाहे ब्राह्मण हो,
या शुद्र,
"पवन पागल' 'भारतमाता ' की एक ही जाती |
होती है तो सिर्फ हमारे मन की सोच|
'ब्राह्मणत्व ' तत्व वाले,
'शुद्रत्व' तत्व वालों की अच्छाई लेंलें ,
ओर
शुद्रतत्व वाले
ब्राह्मणत्व तत्व वालों की अच्छाई लेंलें ,
ओर
दोनों तत्व ऊँचे उठें ,ओर नीचे न गिरें,
तो फिर क्या जाती क्या पांती |
एक ही मां, ओर उसकी एक ही छाती,
फिर चाहे ब्राह्मण हो,
या शुद्र,
"पवन पागल' 'भारतमाता ' की एक ही जाती |
(२५) शूद्र
शारीरिक शक्ति के साथ ,
जिसमें सेवाभाव हो,
ओर संस्कार की ध्रष्टि से नि कृष्ट हो ,
तथा जिसमें ब्राह्मणत्व का अभाव हो,
वो शूद्र कहलाता है |
जिसमें सेवाभाव हो,
ओर संस्कार की ध्रष्टि से नि कृष्ट हो ,
तथा जिसमें ब्राह्मणत्व का अभाव हो,
वो शूद्र कहलाता है |
(२४)ब्राह्मणत्व
जो सुसंस्कृति वान,
तथा
मन , बुद्धी व ह्रदय से ,
हो एश्व्रवान,
वो कहलाता है,
ब्राह्मणत्व जन |
तथा
मन , बुद्धी व ह्रदय से ,
हो एश्व्रवान,
वो कहलाता है,
ब्राह्मणत्व जन |
(२३) तुझे देख लिया
मेरी आँखों ने चुना है, तुझको दुनिया देख कर,
ओर किसी का चेहरा अब में क्यों देखूं, तेरा चेहरा देख कर|
मेरी आँखों --------------------------------
तमाम तसवीरें फीकी लगतीं हैं, तुझ को देख कर,
दूसरी ओर अब में क्यों रुख करूँ, तुझे रूबरू देख कर|
मेरी आँखों--------------------------------
तमाम ख़ुशी मिल जाती है,तुझको रूप-ध्यान में देख कर,
ओर किसी रूप को अब में क्यों देखूं, तेरा रूप देख कर|
मेरी आँखों----------------------------------
तुझे साथ लेकर में बहुत खुश हूँ, परली दुनिया देख कर,
अगला-पिछला अब में क्यों कर जानूं , तुझे देख कर|
मेरी आँखों --------------------------------
मुझे अब जीना सार्थक लगता है,तुझ को देख कर ,
परमाणु मुझे बेकार लगता है,तेरा 'अणु रूप 'देख कर |
मेरी आँखों-----------------------------------
मुझे अब ज़िन्दगी के मायने पता लग गए हैं,तुझ को देख कर,
एक ही आँख,एक ही निशाना,लगाना है तुझे देख कर|
मेरी आँखों-----------------------------------
बहुत देर से चुना है तुझको,अपनी तमाम उम्र गवां कर,
"पवन पागल"अब तुझसे दूर नहीं हो पाऊँगा ,तुझे देखकर |
मेरी आँखों------------------------------------
('श्री जगत गुरुतम कृपालु जी महाराज की सेवा में')
ओर किसी का चेहरा अब में क्यों देखूं, तेरा चेहरा देख कर|
मेरी आँखों --------------------------------
तमाम तसवीरें फीकी लगतीं हैं, तुझ को देख कर,
दूसरी ओर अब में क्यों रुख करूँ, तुझे रूबरू देख कर|
मेरी आँखों--------------------------------
तमाम ख़ुशी मिल जाती है,तुझको रूप-ध्यान में देख कर,
ओर किसी रूप को अब में क्यों देखूं, तेरा रूप देख कर|
मेरी आँखों----------------------------------
तुझे साथ लेकर में बहुत खुश हूँ, परली दुनिया देख कर,
अगला-पिछला अब में क्यों कर जानूं , तुझे देख कर|
मेरी आँखों --------------------------------
मुझे अब जीना सार्थक लगता है,तुझ को देख कर ,
परमाणु मुझे बेकार लगता है,तेरा 'अणु रूप 'देख कर |
मेरी आँखों-----------------------------------
मुझे अब ज़िन्दगी के मायने पता लग गए हैं,तुझ को देख कर,
एक ही आँख,एक ही निशाना,लगाना है तुझे देख कर|
मेरी आँखों-----------------------------------
बहुत देर से चुना है तुझको,अपनी तमाम उम्र गवां कर,
"पवन पागल"अब तुझसे दूर नहीं हो पाऊँगा ,तुझे देखकर |
मेरी आँखों------------------------------------
('श्री जगत गुरुतम कृपालु जी महाराज की सेवा में')
(२२) उनसे चाहत
जब भी फुर्सत मिले तुझे,
थोड़ी देर नज़र मुझ पर टिका लेना,
में चला आऊँगा|
मुझे मालूम है ,वक़्त की कमी है तेरे पास,
मुझे आँख का इशारा कर देना,
में चला आऊँगा|
किसी को फुर्सत नहीं मिलती,
किसी को इशारा नहीं मिलता,तू सिर्फ ख्याल कर,
में चला आऊँगा|
मुझे उनसे कुछ मोहबत सी हो गई है,इसलिए,
दिल बेचैन है,नब्ज़ मेरी देखनी हो तो बता देना,
में चला आऊँगा|
मेरे मर्ज़ का सिर्फ एक ही इलाज है,
तेरे साथ रहना, तेरे साथ जीना,तू याद तो कर,
में चला आऊँगा|
में रास्ते में पड़ा एक पत्थर हूँ, उसे तू वंहा लगा देना,
जंहा से तेरे कदम रोज़ गुजरते हों,मुझे बता देना,
में चला आऊँगा|
मेरी सभी ख़ताओं को माफ़ कर देना,
मेरे अन्दर जो तेरे लिए चिंगारी सुलगी है, उसे ओर हवा देना,
में चला आऊँगा|
मुझे अब जीने में ओर भी मज़ा आने लगा है,
साथ जो तेरा मिल गया,बता देना कँहा चलना है,
में चला आऊँगा|
यंहा रह कर भी में क्या करूँगा?
मुझे अंनंत तक पहुंचा दे,
में चला आऊँगा|
'पवन पागल' को अब तेरे सीवा कोई जचता नहीं है,
मुझे रास्ता बता देना,ओर तेरा पता देना,
में चला आऊँगा|
("श्री जगत गुरुतम कृपालु जी महाराज की सेवा में" )
थोड़ी देर नज़र मुझ पर टिका लेना,
में चला आऊँगा|
मुझे मालूम है ,वक़्त की कमी है तेरे पास,
मुझे आँख का इशारा कर देना,
में चला आऊँगा|
किसी को फुर्सत नहीं मिलती,
किसी को इशारा नहीं मिलता,तू सिर्फ ख्याल कर,
में चला आऊँगा|
मुझे उनसे कुछ मोहबत सी हो गई है,इसलिए,
दिल बेचैन है,नब्ज़ मेरी देखनी हो तो बता देना,
में चला आऊँगा|
मेरे मर्ज़ का सिर्फ एक ही इलाज है,
तेरे साथ रहना, तेरे साथ जीना,तू याद तो कर,
में चला आऊँगा|
में रास्ते में पड़ा एक पत्थर हूँ, उसे तू वंहा लगा देना,
जंहा से तेरे कदम रोज़ गुजरते हों,मुझे बता देना,
में चला आऊँगा|
मेरी सभी ख़ताओं को माफ़ कर देना,
मेरे अन्दर जो तेरे लिए चिंगारी सुलगी है, उसे ओर हवा देना,
में चला आऊँगा|
मुझे अब जीने में ओर भी मज़ा आने लगा है,
साथ जो तेरा मिल गया,बता देना कँहा चलना है,
में चला आऊँगा|
यंहा रह कर भी में क्या करूँगा?
मुझे अंनंत तक पहुंचा दे,
में चला आऊँगा|
'पवन पागल' को अब तेरे सीवा कोई जचता नहीं है,
मुझे रास्ता बता देना,ओर तेरा पता देना,
में चला आऊँगा|
("श्री जगत गुरुतम कृपालु जी महाराज की सेवा में" )
शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010
(२१) पुनर:मिलन
तू मेरे अधरों की बांसुरी बन जाये,
में तेरे गले का हार,
हम दोनों का जीवन संवर जाये,
बरसों का ख़तम, होजाये इंतजार |
तेरी सवेरे वाली लाली,मेंरी खुशगवार शाम बन जाये,
इसको पाने के लिए,में जीवन दूँ हार|
दोनों अलग रह रहे जिस्म,एक हो जांयें,
जिससे की हमारे भी जीवन में आजाये बहार|
हमारे मासूमों की भीबिगड़ी सुधर जाये ,
वो नन्हे होंगे हमारे बड़े कर्जदार |
जो हम ठीक से, वफ़ा निभाते चलें जांयें ,
तो उनका भी ढंग से,बस जाये संसार|
खता हमारी,सजा उन्हें दी जाये,
बच्चे हमारे,फिर भी उन्हें नहीं करार|
कुछ पाने के लिए, कुछ खो दिया जाये,
वर्ना ये ज़िन्दगी है बेकार
हम क्योंकर अपनों के गुनहगार बन जांयें,
जबकि सभी उनसे करतें हैं प्यार|
अपनी अड़ी को छोड़ दिया जाये,
ओर भूल जांए सभी तकरार|
क्यों न हम अपनी हदों से गुजर जांए"पवन पागल",
अपनी नन्ही सी ज़िन्दगी को बनालें, खुशगवार|
में तेरे गले का हार,
हम दोनों का जीवन संवर जाये,
बरसों का ख़तम, होजाये इंतजार |
तेरी सवेरे वाली लाली,मेंरी खुशगवार शाम बन जाये,
इसको पाने के लिए,में जीवन दूँ हार|
दोनों अलग रह रहे जिस्म,एक हो जांयें,
जिससे की हमारे भी जीवन में आजाये बहार|
हमारे मासूमों की भीबिगड़ी सुधर जाये ,
वो नन्हे होंगे हमारे बड़े कर्जदार |
जो हम ठीक से, वफ़ा निभाते चलें जांयें ,
तो उनका भी ढंग से,बस जाये संसार|
खता हमारी,सजा उन्हें दी जाये,
बच्चे हमारे,फिर भी उन्हें नहीं करार|
कुछ पाने के लिए, कुछ खो दिया जाये,
वर्ना ये ज़िन्दगी है बेकार
हम क्योंकर अपनों के गुनहगार बन जांयें,
जबकि सभी उनसे करतें हैं प्यार|
अपनी अड़ी को छोड़ दिया जाये,
ओर भूल जांए सभी तकरार|
क्यों न हम अपनी हदों से गुजर जांए"पवन पागल",
अपनी नन्ही सी ज़िन्दगी को बनालें, खुशगवार|
(२०) संतोष- धन
क्या तेरा है-क्या मेरा है,ये समझ लिया तो,
सवेरा है,वरना ज़िन्दगी घोर अँधेरा है|
आने-जाने वाली सांसों पर नज़र रखो,
जो आगई तो ठीक,
जान में जान है,वरना,
नज़दीक ही शमशान है|
जो ख़ुशी से मिल रहा है,
उसे खर्च तो करलो,
जी भर कर जी तो लो,वरना
'चिड़िया चुग गई खेत'-यही कहना है|
कुछ मिल गया तो अच्छा है,
कुछ नहीं मिला तो ओर भी अच्छा है,
जीवन 'संतोष-धन,वरना,
गल-सड कर मरना है|
अगला-पिछला सब देख लिया है,
कुछ बाकी है तो
अभी पर,इस वक़्त पर जी लो,
ओरों से अच्छी कट जाएगी|
कड़क उसूलों से ज़िन्दगी सहज कटती नहीं है,
"पवन पागल"इसे थोडा लचर बना लिया जाये तो,
सभी की सरलता से कट जाएगी,
वरना हम भी परेशान-तुम भी परेशान!
सवेरा है,वरना ज़िन्दगी घोर अँधेरा है|
आने-जाने वाली सांसों पर नज़र रखो,
जो आगई तो ठीक,
जान में जान है,वरना,
नज़दीक ही शमशान है|
जो ख़ुशी से मिल रहा है,
उसे खर्च तो करलो,
जी भर कर जी तो लो,वरना
'चिड़िया चुग गई खेत'-यही कहना है|
कुछ मिल गया तो अच्छा है,
कुछ नहीं मिला तो ओर भी अच्छा है,
जीवन 'संतोष-धन,वरना,
गल-सड कर मरना है|
अगला-पिछला सब देख लिया है,
कुछ बाकी है तो
अभी पर,इस वक़्त पर जी लो,
ओरों से अच्छी कट जाएगी|
कड़क उसूलों से ज़िन्दगी सहज कटती नहीं है,
"पवन पागल"इसे थोडा लचर बना लिया जाये तो,
सभी की सरलता से कट जाएगी,
वरना हम भी परेशान-तुम भी परेशान!
(१९) शे:और मात
में इस बार तुम्हारे सफ़र में,
साथ न दे पाऊंगा,कुछ मज़बूरी है,
मेरे घर पर,कुछ पेड़ सूख गये हैं,
उन्हें पानी देना ज़रूरी है|
में जीउँ तो हरियाली में,
ओर मरुँ तो यार की गली में,
मेंरे कुछ नज़दीकी रूठ गये हैं,
उन्हें मनाना ज़रूरी है|
में अकेला उसूलों के बियाबान में,
चल ना पाउँगा,लोगों से कुछ दूरी है,
मेंरे घर पर,कुछ ज़रूरी ख़त आगये हैं,
उन्हें पढ़ना ज़रूरी है|
मुझे शाख से तोड़ने में,
क्या मज़बूरी है?
मेंरे कुछ पाशे उलटे पड़ गएँ हैं,
उन्हें तरतीब देना ज़रूरी है|
उम्र के इस पड़ाव में,
नई बीशात बिघाना समझदारी है,
राजा को पैदल की शैह लग गई है,
"पवन पागल"उसे मात से बचाना ज़रूरी है|
साथ न दे पाऊंगा,कुछ मज़बूरी है,
मेरे घर पर,कुछ पेड़ सूख गये हैं,
उन्हें पानी देना ज़रूरी है|
में जीउँ तो हरियाली में,
ओर मरुँ तो यार की गली में,
मेंरे कुछ नज़दीकी रूठ गये हैं,
उन्हें मनाना ज़रूरी है|
में अकेला उसूलों के बियाबान में,
चल ना पाउँगा,लोगों से कुछ दूरी है,
मेंरे घर पर,कुछ ज़रूरी ख़त आगये हैं,
उन्हें पढ़ना ज़रूरी है|
मुझे शाख से तोड़ने में,
क्या मज़बूरी है?
मेंरे कुछ पाशे उलटे पड़ गएँ हैं,
उन्हें तरतीब देना ज़रूरी है|
उम्र के इस पड़ाव में,
नई बीशात बिघाना समझदारी है,
राजा को पैदल की शैह लग गई है,
"पवन पागल"उसे मात से बचाना ज़रूरी है|
(१८) बदलती सोच
हर कोई ख़ुशी चाहता है,
दुःख से अपने को दूर चाहता है|
पर ये नामुमकिन है-
हर कोई इन्द्रधनुष देखना चाहता है,
बैगेर बरसांत के,सात रंग देखना चाहता है,
हर कोई आपको चोट पहुँचाना चाहता है,
आपको आहत कर,खुद को सुखी देखना चाहता है|
पर ये नामुमकिन है की
आपको चोट नहीं पहुंचे,ओर वो देखता रहे,
ज़रूरी यह है की
ये चोट आपके लिए,कितना मायना रखती है|
हर राजा पहेले ,असहाय बालक था,
ऐसा नहीं की उठाये कदम,ओर राजशाही मिल गई|
क्या यह संभव है की?
बैगेर नकशे के,शानदार ईमारत बन जाये,
आप दूर सफ़र में चलो,ओर पैरों में छाले भी न पड़ जायें|
हर कोई अपनी सोच,नहीं बदलना चाहता है|
बैगेर सोच बदले,चाँद-सितारों को पाना चाहता है|
पर ये नामुमकिन है की,
"पवन पागल"आपको गहरे सागर में,किनारा मिल जाये,
आप दिशाएँ भी ना बदलें,ओर आपको संसार भी मिल जाये|
दुःख से अपने को दूर चाहता है|
पर ये नामुमकिन है-
हर कोई इन्द्रधनुष देखना चाहता है,
बैगेर बरसांत के,सात रंग देखना चाहता है,
हर कोई आपको चोट पहुँचाना चाहता है,
आपको आहत कर,खुद को सुखी देखना चाहता है|
पर ये नामुमकिन है की
आपको चोट नहीं पहुंचे,ओर वो देखता रहे,
ज़रूरी यह है की
ये चोट आपके लिए,कितना मायना रखती है|
हर राजा पहेले ,असहाय बालक था,
ऐसा नहीं की उठाये कदम,ओर राजशाही मिल गई|
क्या यह संभव है की?
बैगेर नकशे के,शानदार ईमारत बन जाये,
आप दूर सफ़र में चलो,ओर पैरों में छाले भी न पड़ जायें|
हर कोई अपनी सोच,नहीं बदलना चाहता है|
बैगेर सोच बदले,चाँद-सितारों को पाना चाहता है|
पर ये नामुमकिन है की,
"पवन पागल"आपको गहरे सागर में,किनारा मिल जाये,
आप दिशाएँ भी ना बदलें,ओर आपको संसार भी मिल जाये|
गुरुवार, 14 अक्टूबर 2010
(१७) नाजुक रिश्ता
तेरी याद ने तड़फा दिया है सनम,
तू मिल जाये, तो मिट जाये ये गम|
अनजान रिश्तों को पहेले काँच में देखा करते थे हम,
बुजुर्गों ने काँच हटा लिया, ओर रिश्ता पक्का कर दिया एकदम|
पहली बार तुझे दूर से देखा था हमदम
कुछ घडी का साथ था वो
जिसमे मिले थे हम|
तेरी याद-------------
कई साल लम्बी जुदाई में गुजर गए,
न तुम को मुझ से मिलने दिया गया,
न मुझ को तुम से मिलने दिया गया,
न तुम ने मुझ में देखा था,न मैंने तुझ में देखा था,
पर लोगों ने इतना ही काफी समझा-
दो लोगों की जिंदगी का फैसला,
तुरंत- फुरंत कर दिया उसी दम|
तेरी याद----------------
इतनी लम्बी जुदाई,ओर ऊपर से,
मिलने -मिलाने पर सख्त पहरा,
"पवन पागल"ये जुदाई अच्छे-अच्छों को मार देती है,
ओर नाज़ुक रिश्तों में ,कडुवाहट घोल देती है|
तू मिल जाये, तो मिट जाये ये गम|
अनजान रिश्तों को पहेले काँच में देखा करते थे हम,
बुजुर्गों ने काँच हटा लिया, ओर रिश्ता पक्का कर दिया एकदम|
पहली बार तुझे दूर से देखा था हमदम
कुछ घडी का साथ था वो
जिसमे मिले थे हम|
तेरी याद-------------
कई साल लम्बी जुदाई में गुजर गए,
न तुम को मुझ से मिलने दिया गया,
न मुझ को तुम से मिलने दिया गया,
न तुम ने मुझ में देखा था,न मैंने तुझ में देखा था,
पर लोगों ने इतना ही काफी समझा-
दो लोगों की जिंदगी का फैसला,
तुरंत- फुरंत कर दिया उसी दम|
तेरी याद----------------
इतनी लम्बी जुदाई,ओर ऊपर से,
मिलने -मिलाने पर सख्त पहरा,
"पवन पागल"ये जुदाई अच्छे-अच्छों को मार देती है,
ओर नाज़ुक रिश्तों में ,कडुवाहट घोल देती है|
(१६) कसक
कभी आबाद हुए, कभी बर्बाद हुए,
किसी के यूँ, मिलने-बिछुड़ने से|
क्यों आती है ये लहेरें सागर में ?
क्यों काली घटायें होती हैं आकाश में?
तूफ़ान क्यों नहीं आता?
बरसांत क्यों नहीं होती ?
अगर यह सब कुछ हो भी जाता है,
तो
हम अब तक क्यों नहीं बह गए?
शायद
मोत को भी हमसे प्यार नहीं |
खेर
जिंदगी को हमसे प्यार है,
इसीलिए तो
कुदरत ने हमें ये 'दो रंगा' चोला
दे रखा है,
जो की
"पवन पागल" की जिंदगी को मोत से,
ओर मोत को जिंदगी से जुदा किए हुए है|
किसी के यूँ, मिलने-बिछुड़ने से|
क्यों आती है ये लहेरें सागर में ?
क्यों काली घटायें होती हैं आकाश में?
तूफ़ान क्यों नहीं आता?
बरसांत क्यों नहीं होती ?
अगर यह सब कुछ हो भी जाता है,
तो
हम अब तक क्यों नहीं बह गए?
शायद
मोत को भी हमसे प्यार नहीं |
खेर
जिंदगी को हमसे प्यार है,
इसीलिए तो
कुदरत ने हमें ये 'दो रंगा' चोला
दे रखा है,
जो की
"पवन पागल" की जिंदगी को मोत से,
ओर मोत को जिंदगी से जुदा किए हुए है|
(15) प्यास
नयनों की प्यास को, इतना कम न समझो
जो भुझ जाएगी जाम से,
आ के तू गले लगजा
जैसे सुबह शाम से|
नयनों ----------------------------
दिन तो गुजर जाता है
दर्द की करराहट में
पर ये रात क्यूँ आती है,
चाँद के साथ में|
नयनों---------------------------
तू आती तो है,पर तू वो नहीं,
जो थी कभी मेरे नयनों की रोशनी-वो अब नहीं।
माना की - रोशनी तो होती है तुझ से ,
पर मेरा घर रोशन नहीं|
नयनों----------------------------
में इतना कमजोर भी नहीं
जो लबों को तर करलूं ,तेरे शबाब से
नयनों की प्यास, नयनों से ही भुजे तो अच्छा,
'पवन पागल' बाकी प्यास भुझा लेगा सुराही से|
नयनों------------------------------
जो भुझ जाएगी जाम से,
आ के तू गले लगजा
जैसे सुबह शाम से|
नयनों ----------------------------
दिन तो गुजर जाता है
दर्द की करराहट में
पर ये रात क्यूँ आती है,
चाँद के साथ में|
नयनों---------------------------
तू आती तो है,पर तू वो नहीं,
जो थी कभी मेरे नयनों की रोशनी-वो अब नहीं।
माना की - रोशनी तो होती है तुझ से ,
पर मेरा घर रोशन नहीं|
नयनों----------------------------
में इतना कमजोर भी नहीं
जो लबों को तर करलूं ,तेरे शबाब से
नयनों की प्यास, नयनों से ही भुजे तो अच्छा,
'पवन पागल' बाकी प्यास भुझा लेगा सुराही से|
नयनों------------------------------
(14) BEST -WISHES
Renu my dear friend Ashok,
is going to marry you,
in two three day's,
and when we will meet today in the party,
the engagement ceremony will be completed.
I wish a happy and a prosperous life to both of you.
Till now you might have familiar with him.
What sweetness is in Mr Ashok ?
I do not mean only external sweetness,
but internal sweetness too.
Mr Ashok is smiling and smiling
even for no reason,
but simply because He is feeling.
what about you ? I don't know
more about you,expect your name.
Any how, whenever you will invite me,
for A cup of tea in the near future,
I will try to catch up about you & your Smile.
As you know Mr Ashok is coming from a very,
high & well to do family.
Two member's are doctor's,
having big nice Car,
others are also doing well,
through I don't know much.
Coming back to Mr ashok
He is most popular Gentleman,
Not only with Men,but also with Ladies too .
Whenever I looked him, to do any thing,
He was saying"Just now Sir
I will do it".
That is showing Good sprit.
Saying 'No' is not in his Dictionary,
He is always saying' Yes'.
and today He is going
to start his new life with you.
Now dear you are with him
Let us Pray for all the success
and a Happy Life.
Remember me ? I am 'Pawan pagal'
'Not really'?just for the fun!'
just for the sake of your
Happy Marriage Life.
many-many Happy returns of the day'
May GOD! bless you,
All the Happiness of the Word'
Spare some time,
and have a cup of tea with Me,
with a lot of Blessings in persons.
is going to marry you,
in two three day's,
and when we will meet today in the party,
the engagement ceremony will be completed.
I wish a happy and a prosperous life to both of you.
Till now you might have familiar with him.
What sweetness is in Mr Ashok ?
I do not mean only external sweetness,
but internal sweetness too.
Mr Ashok is smiling and smiling
even for no reason,
but simply because He is feeling.
what about you ? I don't know
more about you,expect your name.
Any how, whenever you will invite me,
for A cup of tea in the near future,
I will try to catch up about you & your Smile.
As you know Mr Ashok is coming from a very,
high & well to do family.
Two member's are doctor's,
having big nice Car,
others are also doing well,
through I don't know much.
Coming back to Mr ashok
He is most popular Gentleman,
Not only with Men,but also with Ladies too .
Whenever I looked him, to do any thing,
He was saying"Just now Sir
I will do it".
That is showing Good sprit.
Saying 'No' is not in his Dictionary,
He is always saying' Yes'.
and today He is going
to start his new life with you.
Now dear you are with him
Let us Pray for all the success
and a Happy Life.
Remember me ? I am 'Pawan pagal'
'Not really'?just for the fun!'
just for the sake of your
Happy Marriage Life.
many-many Happy returns of the day'
May GOD! bless you,
All the Happiness of the Word'
Spare some time,
and have a cup of tea with Me,
with a lot of Blessings in persons.
बुधवार, 13 अक्टूबर 2010
(१३) बे-बफा
उनकी महफिल में आ बैठे हैं,
जो परायों की महफिल में हैं,
ऐसे नज़रें चुरातें हैं ,
जैसे हम कोई गैर हैं|
उनकी---------------
कभी नज़रें चुरातें हैं,
कभी नज़रें मिलातें हैं,
बीते दिनों की याद कर,
हमें वो गुजरा वक़त याद दिलातें हैं|
उनकी-------------------
तन साहिल पे है,
मन मझधार में है,
बहार जो पहेले कभी थी,
आज वो यार में कँहा है ?
उनकी--------------------
गल्ती से आगये हैं,
हमें माफ़ करना सितमगर,
हमें मालूम न था की,
तुम होंगी यँहा सरे बाज़ार|
उनकी--------------------
जा रहा हूँ, दूर तुझ से,
पर तेरी,एक कसक तो है,
तू मिलें ,या ना मिलें,
'पवन पागल' तेरी जुस्तजू तो है|
जो परायों की महफिल में हैं,
ऐसे नज़रें चुरातें हैं ,
जैसे हम कोई गैर हैं|
उनकी---------------
कभी नज़रें चुरातें हैं,
कभी नज़रें मिलातें हैं,
बीते दिनों की याद कर,
हमें वो गुजरा वक़त याद दिलातें हैं|
उनकी-------------------
तन साहिल पे है,
मन मझधार में है,
बहार जो पहेले कभी थी,
आज वो यार में कँहा है ?
उनकी--------------------
गल्ती से आगये हैं,
हमें माफ़ करना सितमगर,
हमें मालूम न था की,
तुम होंगी यँहा सरे बाज़ार|
उनकी--------------------
जा रहा हूँ, दूर तुझ से,
पर तेरी,एक कसक तो है,
तू मिलें ,या ना मिलें,
'पवन पागल' तेरी जुस्तजू तो है|
(१२) एहसास
तेरी यादों के सहारे बैठा हूँ ,
दिल में तेरे आने की,आरजू लिए बैठा हूँ|
हर एक आहट पे,तेरे आने का इंतजार होता है मुझे,
हर एक मोड़ पे तेरे बिछड़ जाने का एहसास होता है मुझे|
कितना बेताब बना दिया है तूने मुझे,
आदमी था काम का,बेकार बना दिया है तूने मुझे|
पुरानी यादों के महल में गुम-सुम बैठा हूँ,
दिल में तेरे आने की आरजू लिए बैठा हूँ|
तेरी यादों------------
कंही ऐसा ना हो की हमारी आरजू किसी ,
ओर की आरजू बन जाये,
हम इंतजार करते रहें,
तू किसी ओर की हो जाये|
दिल में----------------
हाथ में खाली ज़ाम लिए बैठा हूँ,
कोई आएगा ,इसे भरने 'पवन पागल',
में आज उसी के इंतजार में बैठा हूँ|
तेरी-----------------------
तू ना आई तो,ज़ाम में शराब की जगह आँसू होंगे,
जिस्म मिटटी का एक ढेर होगा,न जाने तब तक,
कितेने ही बुत बन गए होंगे,
एक नहीं हजारों "पवन पागल, तेरी ही याद में मर गए होंगे|
दिल में तेरे आने की,आरजू लिए बैठा हूँ|
हर एक आहट पे,तेरे आने का इंतजार होता है मुझे,
हर एक मोड़ पे तेरे बिछड़ जाने का एहसास होता है मुझे|
कितना बेताब बना दिया है तूने मुझे,
आदमी था काम का,बेकार बना दिया है तूने मुझे|
पुरानी यादों के महल में गुम-सुम बैठा हूँ,
दिल में तेरे आने की आरजू लिए बैठा हूँ|
तेरी यादों------------
कंही ऐसा ना हो की हमारी आरजू किसी ,
ओर की आरजू बन जाये,
हम इंतजार करते रहें,
तू किसी ओर की हो जाये|
दिल में----------------
हाथ में खाली ज़ाम लिए बैठा हूँ,
कोई आएगा ,इसे भरने 'पवन पागल',
में आज उसी के इंतजार में बैठा हूँ|
तेरी-----------------------
तू ना आई तो,ज़ाम में शराब की जगह आँसू होंगे,
जिस्म मिटटी का एक ढेर होगा,न जाने तब तक,
कितेने ही बुत बन गए होंगे,
एक नहीं हजारों "पवन पागल, तेरी ही याद में मर गए होंगे|
(११) दो रंग
जीवन के दो रंग,
जिनमें रंग गए हैं हम,
साथ थोड़ी ख़ुशी,
ओर ज्यादा हैं गम|
जीवन ------------
कभी सुख की छांव में बैठे,
कभी आग के शोलों पर,
पर फिर भी ना मिट पाए,
अभी तक हम|
जीवन-------------
क्या बताएं ,इन ज़ख्मों की कहानी,
तुम्हे रात-दिन,
न इनमें सुबह का रंग,
न शाम का गम|
जीवन---------------
रातों की तन्हाई भी नहीं,
भोर की ताजगी भी नहीं,
दोपहर की धूप की कमी भी नहीं,
जिसमें की 'पवन पागल',
झुलस गए हैं हम|
जीवन----------------
जिनमें रंग गए हैं हम,
साथ थोड़ी ख़ुशी,
ओर ज्यादा हैं गम|
जीवन ------------
कभी सुख की छांव में बैठे,
कभी आग के शोलों पर,
पर फिर भी ना मिट पाए,
अभी तक हम|
जीवन-------------
क्या बताएं ,इन ज़ख्मों की कहानी,
तुम्हे रात-दिन,
न इनमें सुबह का रंग,
न शाम का गम|
जीवन---------------
रातों की तन्हाई भी नहीं,
भोर की ताजगी भी नहीं,
दोपहर की धूप की कमी भी नहीं,
जिसमें की 'पवन पागल',
झुलस गए हैं हम|
जीवन----------------
(१०) पछतावा
जाने अनजाने कितने ही राही मिले,
जीवन के इस सफ़र में यंहा,
यारों की तरफ भी गए पर,
उन्हों ने भी मुंह फेर लिया यंहा|
हाथ पकड़ करसाथ चलने का वादा किया था,
जिन्होंने ,वो ही आज होगये पराये,
उनकी दहलीज़ तक भी गया था,
मगर उन्होंने दरवाज़ा ही बंद कर लिया|
हमें उनसे कुछ भी ना चाहिए, सिर्फ दो शब्द प्यार के,
जिससे आजाये जीवन में कुछ दिन बहार के|
सब दिन होते ना किसी के एक सामान,
रंग बदलते देर नहीं लगती,
हो जाते हैं पुरे सब अरमान
इतना क्यों नहीं समझता ये मूर्ख इन्सान|
बरसों बाद वो यूँ ही हमसे मिले एक बार,
तो शर्म से गर्दन झुक गयी उनकी,
पश्चाताप की अग्नी में जल रहे थे वो,
जब नज़रें उनसे मिलीं,तो कह रहे थे वो,
'पवन पागल'हम हारे,तुम हार कर भी जीते|
जीवन के इस सफ़र में यंहा,
यारों की तरफ भी गए पर,
उन्हों ने भी मुंह फेर लिया यंहा|
हाथ पकड़ करसाथ चलने का वादा किया था,
जिन्होंने ,वो ही आज होगये पराये,
उनकी दहलीज़ तक भी गया था,
मगर उन्होंने दरवाज़ा ही बंद कर लिया|
हमें उनसे कुछ भी ना चाहिए, सिर्फ दो शब्द प्यार के,
जिससे आजाये जीवन में कुछ दिन बहार के|
सब दिन होते ना किसी के एक सामान,
रंग बदलते देर नहीं लगती,
हो जाते हैं पुरे सब अरमान
इतना क्यों नहीं समझता ये मूर्ख इन्सान|
बरसों बाद वो यूँ ही हमसे मिले एक बार,
तो शर्म से गर्दन झुक गयी उनकी,
पश्चाताप की अग्नी में जल रहे थे वो,
जब नज़रें उनसे मिलीं,तो कह रहे थे वो,
'पवन पागल'हम हारे,तुम हार कर भी जीते|
(९) इंतजार
उनकी आरजू का दिया जल ही गया,
वो मिलें ना मिलें,ये गम तो हमें मिल ही गया |
कितना फर्क है,उस दिए में जो जलता था,कभी अँधेरे में
आज वही, जलते हुए भी भुज गया|
उनकी---------
आँखों में आँसू होते तो हैं,पर फर्क होता है उनमें,
कभी वो दरिया थे,आज मोती से लटकते हैं |
क़ाश की वो आज साथ होते,ये तो मलाल ही रहगया,
वो कभी मिलेंगे,ये तो इंतजार ही रहगया |
कितना फर्क है उस इंतजार में,जो कभी किया था उजालों में,
आज उन्ही लम्हों को समेटते हुए मैं जर-जर हो गया,
मैं ही नहीं मेरा छोटासा आंसियाँ भी तितर-बितर होगया
"पवन पागल"आज उनके इंतजार में दर-बदर होगया |
उनकी ------------
वो मिलें ना मिलें,ये गम तो हमें मिल ही गया |
कितना फर्क है,उस दिए में जो जलता था,कभी अँधेरे में
आज वही, जलते हुए भी भुज गया|
उनकी---------
आँखों में आँसू होते तो हैं,पर फर्क होता है उनमें,
कभी वो दरिया थे,आज मोती से लटकते हैं |
क़ाश की वो आज साथ होते,ये तो मलाल ही रहगया,
वो कभी मिलेंगे,ये तो इंतजार ही रहगया |
कितना फर्क है उस इंतजार में,जो कभी किया था उजालों में,
आज उन्ही लम्हों को समेटते हुए मैं जर-जर हो गया,
मैं ही नहीं मेरा छोटासा आंसियाँ भी तितर-बितर होगया
"पवन पागल"आज उनके इंतजार में दर-बदर होगया |
उनकी ------------
(८) दूसरा पहलू
ये सुबह-शाम का गम,भी क्या कम है,
जो तुम पिलाये जा रहे हो,वो भी क्या कम है|
पिला तुम रहे हो,पर अंदाज़ बदल गया है,
सुला तुम रहेहो,पर वो हसींन ख्वाब बदल गया है|
नज़रें तुम मिला रहे हो,पर अंदाज़ बदल गया है,
संगीत तुम सुना रहे हो,पर साज़ बदल गया है|
तुम्हारा इतना सब एहेसान ,भी क्या कम है,
जो तुम पिलाये जारहे हो,वो भी क्या कम है |
अँधेरे में देख रहे हो,वो भी क्या कम है,
दिल को जला कर उजालाकर रहे हो,वो भी क्या कम है |
कत्ल कर रहे हो,पर वो खँजर बदल गया है,
पर्दा कर रहे हो, पर अब ये हुस्न बदल गया है|
चाँद की चाँदनी देख रहे हो,ये क्या कम है,
उस पर लगे दाग को,नकार रहे हो,ये क्या कम है|
जला तुम रहे हो,पर दाग़ लग गया है,
उसे भुजा रहे हो, जो खुद ही भुज गया है|
जिसे चाहते हो, उसकी राख़ भी क्या कम है,
ख़ुशी तुम चाहते हो,तो उसे क्या गम है|
इश्क कर रहे हो, पर वो दिल बदल गया है,
पैमाने दिखा रहे हो,पर उनमें ज़हर भर गया है|
मयखाने में तिरछी नज़रों से बुला रहे हो,ये क्या कम है,
मय की जगह ज़हर पिला रहे हो,ये क्या कम है|
शिकारी हो पर ,निशाना बदल गया है,
भिखारी हो, पर वक़त बदल गया है|
फूल हो, पर कलियाँ भी क्या कम हैं,
यार हो ,पर यारों की गलियाँ ,भी क्या कम हैं|
चल रहे हो,पर काँटा चुभ गया है,
जिंदा हो, पर शर्म से सर झुक गया है|
दुनिया की नज़र में ,वो हमारे हों ,ये क्या कम है,
रोज़ उसी चहरे को सुबह-शाम देखूं,ये क्या कम है|
तुम भी उसी के पास चली जाओ, जो गम हमारे पास आगया है,
'पवन पागल'ज़िन्दगी में अब बस,यही एक अरमान बाकी रह गया है|
जो तुम पिलाये जा रहे हो,वो भी क्या कम है|
पिला तुम रहे हो,पर अंदाज़ बदल गया है,
सुला तुम रहेहो,पर वो हसींन ख्वाब बदल गया है|
नज़रें तुम मिला रहे हो,पर अंदाज़ बदल गया है,
संगीत तुम सुना रहे हो,पर साज़ बदल गया है|
तुम्हारा इतना सब एहेसान ,भी क्या कम है,
जो तुम पिलाये जारहे हो,वो भी क्या कम है |
अँधेरे में देख रहे हो,वो भी क्या कम है,
दिल को जला कर उजालाकर रहे हो,वो भी क्या कम है |
कत्ल कर रहे हो,पर वो खँजर बदल गया है,
पर्दा कर रहे हो, पर अब ये हुस्न बदल गया है|
चाँद की चाँदनी देख रहे हो,ये क्या कम है,
उस पर लगे दाग को,नकार रहे हो,ये क्या कम है|
जला तुम रहे हो,पर दाग़ लग गया है,
उसे भुजा रहे हो, जो खुद ही भुज गया है|
जिसे चाहते हो, उसकी राख़ भी क्या कम है,
ख़ुशी तुम चाहते हो,तो उसे क्या गम है|
इश्क कर रहे हो, पर वो दिल बदल गया है,
पैमाने दिखा रहे हो,पर उनमें ज़हर भर गया है|
मयखाने में तिरछी नज़रों से बुला रहे हो,ये क्या कम है,
मय की जगह ज़हर पिला रहे हो,ये क्या कम है|
शिकारी हो पर ,निशाना बदल गया है,
भिखारी हो, पर वक़त बदल गया है|
फूल हो, पर कलियाँ भी क्या कम हैं,
यार हो ,पर यारों की गलियाँ ,भी क्या कम हैं|
चल रहे हो,पर काँटा चुभ गया है,
जिंदा हो, पर शर्म से सर झुक गया है|
दुनिया की नज़र में ,वो हमारे हों ,ये क्या कम है,
रोज़ उसी चहरे को सुबह-शाम देखूं,ये क्या कम है|
तुम भी उसी के पास चली जाओ, जो गम हमारे पास आगया है,
'पवन पागल'ज़िन्दगी में अब बस,यही एक अरमान बाकी रह गया है|
(७) दल-दल
कुछ खड़े हुए थे,कुछ बैठ गए हैं,
ओर जो कुछ खड़े हैं,उन्हें,
खुद को भी यंकी नहीं है की,
वो खड़े हुए हैं, या खड़े किये गए हैं|
राजनीती ओर राजनीतिग्य ,
कभी किसी के नहीं हुए|
इस दलदल में से शायद ही कभी,
'लाल बहादुर' जैसा कोई कमल खिला हो|
इस दलित राजनीती का ,बस एक ही नारा है,
'दलबदल', कर अदल बदल|
जब भी मोका आया,इस कीचड़ में से,
ये सफ़ेद कमल की तरह निकल आतें हैं,
जैसे बरसात में मेंडक|
ये सिद्धांत- हीन राजनेता
पहेले अपना दिल बदलते हैं
फिर अपना दल ओर
घुसते ही जाते हैं इस दल-दल में|
दिन के उजाले में ये सब 'पवन पागल',
अनेकता में एकता रखेते हैं|
रात के अँधेरे में सभी दलों के लोग।
मिल बाँट कर खाने में एक हो जातें हैं|
ओर जो कुछ खड़े हैं,उन्हें,
खुद को भी यंकी नहीं है की,
वो खड़े हुए हैं, या खड़े किये गए हैं|
राजनीती ओर राजनीतिग्य ,
कभी किसी के नहीं हुए|
इस दलदल में से शायद ही कभी,
'लाल बहादुर' जैसा कोई कमल खिला हो|
इस दलित राजनीती का ,बस एक ही नारा है,
'दलबदल', कर अदल बदल|
जब भी मोका आया,इस कीचड़ में से,
ये सफ़ेद कमल की तरह निकल आतें हैं,
जैसे बरसात में मेंडक|
ये सिद्धांत- हीन राजनेता
पहेले अपना दिल बदलते हैं
फिर अपना दल ओर
घुसते ही जाते हैं इस दल-दल में|
दिन के उजाले में ये सब 'पवन पागल',
अनेकता में एकता रखेते हैं|
रात के अँधेरे में सभी दलों के लोग।
मिल बाँट कर खाने में एक हो जातें हैं|
(६)आँखें
आँखों में बस गये हैं,वो दूर रहेने वाले,
ऐसे आंसू बन गये, जो न हैं बहेने वाले|
आँखों में-------------------------
कई बातें,जो जुबां से कही नहीं जाती ,
आँखें बंया करती हैं,वो दिल की दास्ताँ|
आँखों में ------------------------
मोहब्बत की,बातें ,आँखों से समझा ने वाले,
आज उसी इशारे के लिए बैठे हैं,तेरे चाहेने वाले|
आँखों में--------------------------------
शराब का नशा थोड़ी देर के लिए,
तेरी आँख का नशा, ज़िन्दगी भर के लिए|
आँखों में----------------------------
हमें बेहोश करके,तू होश में क्यों है?
क्यों जाम तेरे हाथ में है,आँखों से पिलाने वाले ?
आँखों में--------------------------------
आज तू खामोश क्यों है,सदा मुस्कराने वाले,
मार डालेगी तेरी ये ख़ामोशी,ओ जिंदा रहेने वाले|
आँखों में---------------------------------
काश आज तेरे लब खुले होते,आँखों से बात करने वाले,
"'पवन पागल"जुबां हर अफसाना बयां करती,आँखों से बंया करने वाले|
आँखों में---------------------------------------------------
ऐसे आंसू बन गये, जो न हैं बहेने वाले|
आँखों में-------------------------
कई बातें,जो जुबां से कही नहीं जाती ,
आँखें बंया करती हैं,वो दिल की दास्ताँ|
आँखों में ------------------------
मोहब्बत की,बातें ,आँखों से समझा ने वाले,
आज उसी इशारे के लिए बैठे हैं,तेरे चाहेने वाले|
आँखों में--------------------------------
शराब का नशा थोड़ी देर के लिए,
तेरी आँख का नशा, ज़िन्दगी भर के लिए|
आँखों में----------------------------
हमें बेहोश करके,तू होश में क्यों है?
क्यों जाम तेरे हाथ में है,आँखों से पिलाने वाले ?
आँखों में--------------------------------
आज तू खामोश क्यों है,सदा मुस्कराने वाले,
मार डालेगी तेरी ये ख़ामोशी,ओ जिंदा रहेने वाले|
आँखों में---------------------------------
काश आज तेरे लब खुले होते,आँखों से बात करने वाले,
"'पवन पागल"जुबां हर अफसाना बयां करती,आँखों से बंया करने वाले|
आँखों में---------------------------------------------------
मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010
(५)मोंन-प्रेम
मोहब्बत उनसे करते हैं,पर उन्हें खबर नहीं,
क्यों याद करते हैं उन्हें,जो याद करते नहीं|
कोई जिस्म का भूका है, कोई हुस्न का गुलाम,
कोई दोलत के पीछे है,बस हो जाये उनका सलाम|
हम जो चाहते हैं,वो सब इन में नहीं,
आँखों से बढ़ कर,कोई चीज़ मोहब्बत में नहीं|
महबूब की आँखों से ही प्यार करते हैं,
उन्ही को मोहब्बत का, एक जरिया समझते हैं|
वो जाने की हम उनसे मोहब्बत करते हैं,ज़रूरी नहीं,
इज़हारे मोहब्बत करें ,ये ज़रूरी नहीं|
वो हमारे हों ओर हम उनके,ये भी ज़रूरी नहीं,
रोज़ मिलें आँखें बातें करें ,पर लबों का खुलना ज़रूरी नहीं|
जो मज़ा इस मोंन प्रेम में है 'पवन पागल',
वो इज़हारे मोहब्बत में कहाँ?
जो नशा इस प्यार में है वो,
लबों से पिलाई गई शराब में कहाँ ?
आँखें अगर बयाँ करें,मोहब्बत का अफसाना,
तो मज़ा कुछ ओर ही है,
शराब बोतल की जगह,पैमाने में हो,
तो मज़ा कुछ ओर ही है|
आँख 'चार' करतें हैं,पर 'दो' की खबर नहीं
"'पवन पागल"' उनको याद करते हैं,पर उनको खबर नहीं |
क्यों याद करते हैं उन्हें,जो याद करते नहीं|
कोई जिस्म का भूका है, कोई हुस्न का गुलाम,
कोई दोलत के पीछे है,बस हो जाये उनका सलाम|
हम जो चाहते हैं,वो सब इन में नहीं,
आँखों से बढ़ कर,कोई चीज़ मोहब्बत में नहीं|
महबूब की आँखों से ही प्यार करते हैं,
उन्ही को मोहब्बत का, एक जरिया समझते हैं|
वो जाने की हम उनसे मोहब्बत करते हैं,ज़रूरी नहीं,
इज़हारे मोहब्बत करें ,ये ज़रूरी नहीं|
वो हमारे हों ओर हम उनके,ये भी ज़रूरी नहीं,
रोज़ मिलें आँखें बातें करें ,पर लबों का खुलना ज़रूरी नहीं|
जो मज़ा इस मोंन प्रेम में है 'पवन पागल',
वो इज़हारे मोहब्बत में कहाँ?
जो नशा इस प्यार में है वो,
लबों से पिलाई गई शराब में कहाँ ?
आँखें अगर बयाँ करें,मोहब्बत का अफसाना,
तो मज़ा कुछ ओर ही है,
शराब बोतल की जगह,पैमाने में हो,
तो मज़ा कुछ ओर ही है|
आँख 'चार' करतें हैं,पर 'दो' की खबर नहीं
"'पवन पागल"' उनको याद करते हैं,पर उनको खबर नहीं |
(४) क्यों पीयूं
उसे क्योँ पीउं ,जो खुद ही मुझे पीगई
क्यों जीउँ उसके लिए,जो बेफा होगई|,
पहेले मय,फिर मैखाना,वो दिखा गयी,
आज मय नहीं,मय की जगह ज़हर पिला गयी|
उसे क्या कहूं,जो मर कर भी जी गयी ,
यंहा तो जीते जी ही मोंत आगयी|
चिराग उसने जलाया था,पर रोशनी गुल हो गयी ,
मयखाना जला दिया,ओर आंसू पीने को छोड़ गयी|
क्यों पीयेगी वो आंसू,जो हमे ही पीगई,
'पवन पागल' उसे मैं क्यों पीउं , जो खुद ही मुझे पी गयी |
क्यों जीउँ उसके लिए,जो बेफा होगई|,
पहेले मय,फिर मैखाना,वो दिखा गयी,
आज मय नहीं,मय की जगह ज़हर पिला गयी|
उसे क्या कहूं,जो मर कर भी जी गयी ,
यंहा तो जीते जी ही मोंत आगयी|
चिराग उसने जलाया था,पर रोशनी गुल हो गयी ,
मयखाना जला दिया,ओर आंसू पीने को छोड़ गयी|
क्यों पीयेगी वो आंसू,जो हमे ही पीगई,
'पवन पागल' उसे मैं क्यों पीउं , जो खुद ही मुझे पी गयी |
(३) त्रिकोण
लाल त्रिकोण सरकार ने
जनता को दिया ,
पर,
आज एक नया त्रिकोण
जनता ने सरकार को दिया,
हड़ताल,लूट-पाट,व बंद
कितना अंतर है,
इन दो त्रिकोणों के कोणों में
एक
सुनियोजित परिवार के
विकास में लगा हुआ है,
दूसरा,
सुनियोजित परिवार के,
विनाश में लगा हुआ है|
क्या हम लाल को,
ध्यान में रखेते हुए
सुख,समर्धि व विकास का
हरा त्रिकोण''पवन पागल"
सरकार को नहीं दे सकते?,
जनता को दिया ,
पर,
आज एक नया त्रिकोण
जनता ने सरकार को दिया,
हड़ताल,लूट-पाट,व बंद
कितना अंतर है,
इन दो त्रिकोणों के कोणों में
एक
सुनियोजित परिवार के
विकास में लगा हुआ है,
दूसरा,
सुनियोजित परिवार के,
विनाश में लगा हुआ है|
क्या हम लाल को,
ध्यान में रखेते हुए
सुख,समर्धि व विकास का
हरा त्रिकोण''पवन पागल"
सरकार को नहीं दे सकते?,
सोमवार, 11 अक्टूबर 2010
(३) आँसू
मुझे आँसू पसंद हैं ,
पर वो ,
जो की सपाट से निकल जांयें ,
एक बार |
मैं नहीं चाहता की,
वो हर पल आँखों मैं समाये रहें ,
ओर लोगों को,
यह कहने का मोका दें की।
"यार कुछ दुखी नज़र आते हो"|
'पवन पागल' को वो आँसू पसंद हैं ,
जो की एक सम्मानित आथिति की तरह ,
आंयें एक बार|
पर वो ,
जो की सपाट से निकल जांयें ,
एक बार |
मैं नहीं चाहता की,
वो हर पल आँखों मैं समाये रहें ,
ओर लोगों को,
यह कहने का मोका दें की।
"यार कुछ दुखी नज़र आते हो"|
'पवन पागल' को वो आँसू पसंद हैं ,
जो की एक सम्मानित आथिति की तरह ,
आंयें एक बार|
(२) फासला
सर्दी, गर्मी ,बरसात मैं
जब भी फटाव आता है
तो
मन का फटाव
कम हो जाता है |
पल भर अपनो की याद मैं
जब मन खो जाता है
तो
'पवन पागल' मीलों की दूरी का फासला
गज भर का रह जाता है|
जब भी फटाव आता है
तो
मन का फटाव
कम हो जाता है |
पल भर अपनो की याद मैं
जब मन खो जाता है
तो
'पवन पागल' मीलों की दूरी का फासला
गज भर का रह जाता है|
(१) "एक-बार"
आँसुओं तुम जी भर के निकल जाओ ,
एक बार
मैं नहीं चाहता उनका आवागमन जारी रहे
बार बार|
बहारो तुम भी जी भर के आ जाओ,
एक बार
मैं नहीं चाहता की गुलशन उजड़े
बार बार|
घटाओ तुम भी जी भर के बरस जाओ,
एक बार
"पवन पागल " नहीं चाहता है की
सैलाब आये बार बार,
एक बार
मैं नहीं चाहता उनका आवागमन जारी रहे
बार बार|
बहारो तुम भी जी भर के आ जाओ,
एक बार
मैं नहीं चाहता की गुलशन उजड़े
बार बार|
घटाओ तुम भी जी भर के बरस जाओ,
एक बार
"पवन पागल " नहीं चाहता है की
सैलाब आये बार बार,
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