Mere Dil Se.....

बुधवार, 13 अक्टूबर 2010

(८) दूसरा पहलू

ये सुबह-शाम का गम,भी क्या कम है,
जो तुम पिलाये जा रहे हो,वो भी क्या कम है|
पिला तुम रहे हो,पर अंदाज़ बदल गया है,
सुला तुम रहेहो,पर वो हसींन ख्वाब बदल गया है|
नज़रें तुम मिला रहे हो,पर अंदाज़ बदल गया है,
संगीत तुम सुना रहे हो,पर साज़ बदल गया है|
तुम्हारा इतना सब एहेसान ,भी क्या कम है,
जो तुम पिलाये जारहे हो,वो भी क्या कम है |
अँधेरे में देख रहे हो,वो भी क्या कम है,
दिल को जला कर उजालाकर रहे हो,वो भी क्या कम है |
कत्ल कर रहे हो,पर वो खँजर बदल गया है,
पर्दा कर रहे हो, पर अब ये हुस्न बदल गया है|
चाँद की चाँदनी देख रहे हो,ये क्या कम है,
उस पर लगे दाग को,नकार रहे हो,ये क्या कम है|
जला तुम रहे हो,पर दाग़ लग गया है,
उसे भुजा रहे हो, जो खुद ही भुज गया है|
जिसे चाहते हो, उसकी राख़ भी क्या कम है,
ख़ुशी तुम चाहते हो,तो उसे क्या गम है|
इश्क कर रहे हो, पर वो दिल बदल गया है,
पैमाने दिखा रहे हो,पर उनमें ज़हर भर गया है|
मयखाने में तिरछी नज़रों से बुला रहे हो,ये क्या कम है,
मय की जगह ज़हर पिला रहे हो,ये क्या कम है|
शिकारी हो पर ,निशाना बदल गया है,
भिखारी हो, पर वक़त बदल गया है|
फूल हो, पर कलियाँ भी क्या कम हैं,
यार हो ,पर यारों की गलियाँ ,भी क्या कम हैं|
चल रहे हो,पर काँटा चुभ गया है,
जिंदा हो, पर शर्म से सर झुक गया है|
दुनिया की नज़र में ,वो हमारे हों ,ये क्या कम है,
रोज़ उसी चहरे को सुबह-शाम देखूं,ये क्या कम है|
तुम भी उसी के पास चली जाओ, जो गम हमारे पास आगया है,
'पवन पागल'ज़िन्दगी में अब बस,यही एक अरमान बाकी रह गया है|

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