Mere Dil Se.....

गुरुवार, 14 अक्टूबर 2010

(१६) कसक

कभी आबाद हुए, कभी बर्बाद हुए,
किसी के यूँ, मिलने-बिछुड़ने से|
क्यों आती है ये लहेरें सागर में ?
क्यों काली घटायें होती हैं आकाश में?
तूफ़ान क्यों नहीं आता?
बरसांत क्यों नहीं होती ?
अगर यह सब कुछ हो भी जाता है,
तो
हम अब तक क्यों नहीं बह गए?
शायद
मोत को भी हमसे प्यार नहीं |
खेर
जिंदगी को हमसे प्यार है,
इसीलिए तो
कुदरत ने हमें ये 'दो रंगा' चोला
दे रखा है,
जो की
"पवन पागल" की जिंदगी को मोत से,
ओर मोत को जिंदगी से जुदा किए हुए है|

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