उसे क्योँ पीउं ,जो खुद ही मुझे पीगई
क्यों जीउँ उसके लिए,जो बेफा होगई|,
पहेले मय,फिर मैखाना,वो दिखा गयी,
आज मय नहीं,मय की जगह ज़हर पिला गयी|
उसे क्या कहूं,जो मर कर भी जी गयी ,
यंहा तो जीते जी ही मोंत आगयी|
चिराग उसने जलाया था,पर रोशनी गुल हो गयी ,
मयखाना जला दिया,ओर आंसू पीने को छोड़ गयी|
क्यों पीयेगी वो आंसू,जो हमे ही पीगई,
'पवन पागल' उसे मैं क्यों पीउं , जो खुद ही मुझे पी गयी |
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