Mere Dil Se.....

शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010

(२१) पुनर:मिलन

तू मेरे अधरों की बांसुरी बन जाये,
में तेरे गले का हार,
हम दोनों का जीवन संवर जाये,
बरसों का ख़तम, होजाये इंतजार |
तेरी सवेरे वाली लाली,मेंरी खुशगवार शाम बन जाये,
इसको पाने के लिए,में जीवन दूँ हार|
दोनों अलग रह रहे जिस्म,एक हो जांयें,
जिससे की हमारे भी जीवन में आजाये बहार|
हमारे मासूमों की भीबिगड़ी सुधर जाये ,
वो नन्हे होंगे हमारे बड़े कर्जदार |
जो हम ठीक से, वफ़ा निभाते चलें जांयें ,
तो उनका भी ढंग से,बस जाये संसार|
खता हमारी,सजा उन्हें दी जाये,
बच्चे हमारे,फिर भी उन्हें नहीं करार|
कुछ पाने के लिए, कुछ खो दिया जाये,
वर्ना ये ज़िन्दगी है बेकार
हम क्योंकर अपनों के गुनहगार बन जांयें,
जबकि सभी उनसे करतें हैं प्यार|
अपनी अड़ी को छोड़ दिया जाये,
ओर भूल जांए सभी तकरार|
क्यों न हम अपनी हदों से गुजर जांए"पवन पागल",
अपनी नन्ही सी ज़िन्दगी को बनालें, खुशगवार|

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें