कुछ खड़े हुए थे,कुछ बैठ गए हैं,
ओर जो कुछ खड़े हैं,उन्हें,
खुद को भी यंकी नहीं है की,
वो खड़े हुए हैं, या खड़े किये गए हैं|
राजनीती ओर राजनीतिग्य ,
कभी किसी के नहीं हुए|
इस दलदल में से शायद ही कभी,
'लाल बहादुर' जैसा कोई कमल खिला हो|
इस दलित राजनीती का ,बस एक ही नारा है,
'दलबदल', कर अदल बदल|
जब भी मोका आया,इस कीचड़ में से,
ये सफ़ेद कमल की तरह निकल आतें हैं,
जैसे बरसात में मेंडक|
ये सिद्धांत- हीन राजनेता
पहेले अपना दिल बदलते हैं
फिर अपना दल ओर
घुसते ही जाते हैं इस दल-दल में|
दिन के उजाले में ये सब 'पवन पागल',
अनेकता में एकता रखेते हैं|
रात के अँधेरे में सभी दलों के लोग।
मिल बाँट कर खाने में एक हो जातें हैं|
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