Mere Dil Se.....

शनिवार, 23 अक्टूबर 2010

(३२) उलझन

में तुम पर फ़िदा न होऊं ,तो फ़िदा होऊं किस पे ?
तुमने फिजां में इतने जो ,रंग बखेर दियें हैं,
में इनको बिखेरूं तो, बिखेरूं किस पे?
अदा इतरा जाये ,तो हो सितम किस पे ?
तुम्हारी अंगड़ाईयों ने,कितनों की कन्नियाँ काट दीं हैं ?
में उनको समेटूं तो, समेटूं किस पे ?
माँझा उलझ जाये , तो दोष किस पे ?
तुमने इतने जो पेच लड़ा दियें हैं,
में खींच कर न काटूं ,तो सितम किस पे ?
तुम पर नाराज़ न होंउ , तो होऊं किस पे ?
हर एक कटी पतंग पर, तुम्हारा नाम है,
आखिर में यकीं करूँ ,तो करूँ किस पे?
में तुम पर इल्ज़ाम न धरूँ, तो धरूं किस पे ?
तुम ने इतने बखेड़े खड़े कर दिये हैं
धुली चादर को बिछाऊ , तो बिछाऊ किस पे ?
में अगर ज़मीं पर न चलूँ,तो चलूँ किस पे?
तुमने हवाओं में इतनी रफ़्तार भर दी है
में इनको थामूं,चढ़ कर किस पे ?
"पवन पागल" रोऊँ , तो रोंउं किस पे ?
इन आँखों की ख़ामोशी,फिर भी नहीं जाती है,
में इन्हें बंद तो करलूं, पर खोलूं तो खोलूं किस पे ?

1 टिप्पणी: