जाने अनजाने कितने ही राही मिले,
जीवन के इस सफ़र में यंहा,
यारों की तरफ भी गए पर,
उन्हों ने भी मुंह फेर लिया यंहा|
हाथ पकड़ करसाथ चलने का वादा किया था,
जिन्होंने ,वो ही आज होगये पराये,
उनकी दहलीज़ तक भी गया था,
मगर उन्होंने दरवाज़ा ही बंद कर लिया|
हमें उनसे कुछ भी ना चाहिए, सिर्फ दो शब्द प्यार के,
जिससे आजाये जीवन में कुछ दिन बहार के|
सब दिन होते ना किसी के एक सामान,
रंग बदलते देर नहीं लगती,
हो जाते हैं पुरे सब अरमान
इतना क्यों नहीं समझता ये मूर्ख इन्सान|
बरसों बाद वो यूँ ही हमसे मिले एक बार,
तो शर्म से गर्दन झुक गयी उनकी,
पश्चाताप की अग्नी में जल रहे थे वो,
जब नज़रें उनसे मिलीं,तो कह रहे थे वो,
'पवन पागल'हम हारे,तुम हार कर भी जीते|
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