दीवार क्या गिरी मेरे खस्ता मकान की ?
लोगों ने नजदीक ही रास्ते बना लिए|
में सूखी आँखों से ज़िन्दगी भर देखता रहा,
बस्ती वालों ने आलीशान मकान बना लिए|
क्या चर्चा करूँ ,मेरे अपनों के रिश्ते की ?
सच्चाई को नहीं परखा,दिलों में नासूर बनालिए|
में उनका जिंदगी भर, इंतजार करता रहा,
रिश्ते दारों ने रिश्ते , बेमानी बना लिए|
किसे तमन्ना है,जी भर के जीने की,
लोगों ने ज़रा सी बात के तमाशे बना लिए|
में अब भी आती-जाती बहार देख रहा हूँ,
चाहने वालों ने घरों में सूखे घरोंदे बना लिए|
ज़रूरत क्या है ,दूसरों के घरों में झाँकने की ?
पहेले खुद ,अपना घर तो सजा लीजिये ,
में बरसों से यह सब कुछ देखता रहा,
चंद लोगों ने मेरे ही घर में, झरोखे बना लिए|
बुरे वक़्त में ज़रूरत है, नजरिया बदल ने की,
जिन्होंने बदल लिए,वो सभी के होलिये,
"पवन पागल" नम आँखों से,उन्हें देखता रहा,
पर ये क्या उनहोंने,आँखों के नये चश्में बना लिए ?
I think one has to change his own perspective to see things with wide spread light. Its been advised in The Gita that one should always radiates positive vibes even by thoughts.
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