जब से पुराने कवि गये,कविता कंही खो गयी
वो कुछ ऐसा लिख गये की,हमेशा के लिए दिमाग में छागयी ,
वो अपने शौक में,अपनी धुन में,अनवरत लिखते रहे
उनको छपने का शौक न था,पर आज छपाई कविता को खागयी |
उनकी सोच लम्बी थी,इसलिये कविता विस्त्तार पागयी
बदलाव ओर वक़्त की मार से,कुछ ज्यादा ही भिखर गयी ,
पैसे से ज्यादा अपने मान-सम्मान को अहमियत देते रहे
सिमित सम्मान व असीमित माया,कविता को मार गयी |
अपने स्वार्थ के लिये ,साहित्य का गला घोटते रहे
उन्होंने साहित्य के लिये गले कटवा लिये ,
"पवन पागल" अति से- मति,ज्यादा ही नाराज़ होगयी
दिलों को छूने वाली,आज अँधेरे में कहीं खोगयी |
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