Mere Dil Se.....

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

३३(११४)किनारे लगी नाव

जिंदगी एक नाव है
जो हर दाव पर चलती
दूसरे किनारे पे लगने की उम्मीद में
कभी हिचकोले लेकर चलती
कभी जोर-शोर से चलती |
किनारे तो अपनी जगह अटल हैं
कभी सूख भी जाते हैं बेचारे
ऐसे में नाव भी रुक जाती है
सूखे किनारों में पानी भर जाने पर
नाव फिर से लहराकर शान से चलती |
जर-जर होजाने पर वो नाव
हमेशा के लिए किनारे लगती
जब इतना ही सफ़र तय है
तो हम खातमों की चुभन में
अपने को और जर-जर क्यों बनायें ?|
मोत इस किनारे हो,या उस किनारे
नाव का दूसरे किनारे पर लगना तो तय है
चलो आज तो नहीं मरे,कल की फ़िक्र क्यों करें ?
क्या पता "पवन पागल"किनारे लगी नाव ?
सज-संवर कर फिर से चलने लगे |

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