Mere Dil Se.....

शनिवार, 13 नवंबर 2010

(३९) सावन में लग गयी आग

पांव तो मेरे,ज़मीं पर ही थे,
ओर ज़मीं पर ही रहेते हैं,
फिर एक दिन न जाने कैसे ?
मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गयी |
अरमान तो मेरे,दिल में ही रहेते थे,
ओर दिल में ही रहेते हैं,
अचानक न जाने कैसे ?
अरमानों की नदिया सी बह्गयी|
जीवन की पतंग को ,ठीक ही उड़ा रहे थे,
ओर डोर को काबू में ही रखतें हैं,
यकायक न जाने कैसे ?
पतंग कट गयी,डोर हाथ में ही रह गयी
ख़याल तो मेरे, ठीक ही थे,
ओर नेक ही रखतें हैं,
वक़्त के हाथों न जाने कैसे ?
अरमानों की होली ही जल गयी |
सभी से रिश्ते,बहुत अछे थे,
ओर अछे ही रहतें हैं,
एक चिंगारी न जाने भड़की कैसे ?
रिश्ते ही नहीं,रिश्तेदारों को भी जला गयी|
वो मेरा नसीब,ओर मेरे फैसले ही थे,
जिन पर अब भी यकीन रखतें हैं,
फिर न जाने,"पवन पागल"गल्ती होगई कैसे ?
दरिया देखता रहा,उसमें नदियाँ मिलने से रह्गयीं |

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