Mere Dil Se.....

बुधवार, 24 नवंबर 2010

(६६)घायल कुदरत

बरसांत दुखी मन से बोली
'मैं तो ठीक ही बरसती थी'
पर आज-कल लोगों ने मुझे भी
बरसाना शुरू कर दिया है |
जो छेड़े मुझे ये दुनिया बावली
मैं बिन बादल ही बरस ने लगी थी
जो छेड़ा कुदरत को
मैंने भी तेवर दिखाना शुरू कर दिया है|
मैं तो साल में चार महीने ही
बरसना चाहती थी
पर इन्होंने मुझे हर महीने ही
बरसाना शुरू कर दिया है|
मैं कहती हूँ मैं पहले ही
ठीक बरसती थी
इन्होंने खामखाँ मुझ से
पंगा लेना शुरू कर दिया है |
वो गरजती हुई आसमान से बोली
'ये क्या कुदरत की कारीगरी ही थी'
जो जब चाहें मुझे
बरसने के लिए छोड़ दिया है |
आसमान ने कहा'बहना बावली
तेरा बदला मैंने लेना शुरू कर दिया है'
आज-कल मैनें भी अचानक
फटना शुरू कर दिया है |
तुरंत इन दोनों से धरती बोली
'मैं तो ठीक ही धुरी पर घुमती थी
पर आज-कल लोगों ने
मेरे अन्दर भी विश्फोट शुरू कर दिया है |
जो ये मुझे करने लगेंगे बावली
मैं डग-मग घूमती थी
रोको इनको मैंने भी बड़े-बड़े
भुकम्प्पों के तेवर दिखाना शुरू कर दिया है |
इन तीनोकी सुन हवा बोली
'मैं तो ठीक ही बहती थी
पर आज-कल लोगों ने
मुझ को दूषित कर दिया है |
दुखी प्राकृतिक साधनों की देवी बोली
'हमने तो ठीक से ही जग की पोटली बांधी थी
पर कुछ चतुर लोगों ने
उसे खोलना शुरू कर दिया है |
"पवन पागल" ये दुनिया हो गई है बावली,
कुदरत ने तो ठीक ही व्यवस्था बना रखी थी
पर कोन समझाए इन नादानों को
इन्होने कुदरत के साथ,अजीब मजाक शुरू कर दिया है |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें