Mere Dil Se.....

शनिवार, 13 नवंबर 2010

(३८) खामोश उलझन

रातें गुजार दीं हैं, तारों की रोशनी में,
अफ़साने सुन चूका हूँ,अपनी ही ख़ामोशी में,
कब तक रहेगी,यह रोशनी जिंदगी में ?
जो कुछ बची है,गुजर जाएगी तेरी याद में |
हम जाने वाले थे,कि वो आगये,
आग भुजाना तो दूर,ओर लगा गये,
जिंदगी गुजार दी है,जख्मों कि कर्हाहट में,
अब तो काम आने लगें हैं 'घाव, आग भुजाने में |
पर ये वो आग है , जो भुजाये न भुझे,
धीरे-धीरे सुलगे है,ओर जोर-जोर से न भुजे,
कब तक रहेगी ,ये आग जिंदगी में ?
काश बारिश हो, हम साथ भिगलें वादी में|
नहीं दिखाई देती,किसी को हमारी ये हालत,
दिन के उजाले में ,
चाँद पे लगे दाग को देखा जाता है,
काले दर्पण में |
काले बनो',
जलो अपनी ही आग में,
रात का इंतजार करो "पवन पागल",
फिर देखो,तारों कि रोशनी में |

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