Mere Dil Se.....

सोमवार, 15 नवंबर 2010

(४४)) कटी-पतंग

तुम उड़ती हो हवा में,उस लम्बी पतंग की तरह
तुम बहुत दूर उड़ जाना चाहती हो
चाहे जो कुछ भी हो जाये
तुम अपनी मंजिल को,जल्दी पाना चाहती हो|
पर हाय रे किस्मत
तुम्हारी डोर उस शक्श ने थाम राखी है
जो ढील में पतंग उड़ाना
पसंद नहीं करता|
उसे तो खीँच कर
पतंग लड़ाने में ही, मज़ा आता है
तुम्हे तो दिन के उजाले में भी
रात का अँधेरा नजर आता है|
पर वो शक्श ,
रात-दिन कदम फूंक-फूंक कर चलता है
तुम्हे तो चंद रुपये भी
हाथ का मैल लगते हैं|
पर उस शक्श को
चंद रुपयों की खातिर
हाथ पर लगा मैल
भी मंज़ूर है|
जो जितनी तेजी से,उडान भरतें हैं,
वो उतनीही तेजी से नीचे भी गिरतें हैं,
उड़ो धीरे-धीरे, पंखों को फैला कर,
उन्हें फड-फडाओ -मंजिल ओर रफ़्तार दोनों मिल जायेंगीं |
"पवन पागल"पतंगबाज़ी में,
अच्छा पतंगबाज़,डोर ओर अच्छी पतंग होना ज़रूरी है,
जो बिना सोचे-समझे, उड़ते-उड़ाते हैं
वो धडाम से जमी पर गिरतें हैं|

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